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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. "आर्थिक नीति निर्माण में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को कम महत्त्व दिया जाता है, जिससे विकास और संधारणीयता दोनों ही कमज़ोर हो रहे हैं। "नीतिगत निर्णय-प्रक्रिया में पारिस्थितिकी तंत्र मूल्यांकन को एकीकृत करने के भारत के प्रयासों का आकलन कीजिये। (250 शब्द)

    03 Dec, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की संक्षिप्त जानकारी देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये। 
    • पारिस्थितिकी तंत्र मूल्यांकन को एकीकृत करने के भारत के प्रयासों के आकलन पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये। 
    • महत्त्वपूर्ण अंतरालों और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। 
    • भारत को मात्र अंकेक्षण से आगे बढ़ते हुए उत्तरदायित्व की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिये, इसके लिये उपाय प्रस्तावित कीजिये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (प्रकृति द्वारा प्रदान किये जाने वाले लाभ जैसे: कार्बन अवशोषण, जल शोधन और परागण) को प्रायः निःशुल्क सार्वजनिक वस्तुओं के रूप में माना जाता है। 

    • आर्थिक नीतिनिर्माण में उनके अवमूल्यन के कारण सामूहिक संसाधनों का क्षय होता है, जहाँ अल्पकालिक विकासात्मक लाभ, जैसे: राजमार्ग निर्माण को दीर्घकालिक संधारणीयता से अधिक प्राथमिकता दी जाती है और अंततः भविष्य के विकास हेतु आवश्यक संसाधन-आधार और भी कमज़ोर हो जाता है। 

    मुख्य भाग: 

    पारिस्थितिकी तंत्र मूल्यांकन को एकीकृत करने के भारत के प्रयास: 

    • प्राकृतिक पूंजी लेखांकन का संस्थागतकरण
      • EnviStats इंडिया: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) अब वार्षिक EnviStats रिपोर्ट जारी करता है।
        • ये सकल घरेलू उत्पाद के साथ-साथ मृदा, जल और जैवविविधता जैसी प्राकृतिक संपदाओं की निगरानी करने के लिये SEEA (पर्यावरण-आर्थिक लेखांकन प्रणाली) कार्यढाँचे का पालन करते हैं।
      • NCAVES परियोजना: भारत उन पाँच देशों में से एक है जो यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर प्राकृतिक पूंजी लेखांकन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्यांकन (NCAVES) परियोजना को क्रियान्वित कर रहे हैं, जिसका लक्ष्य हरित GDP के समतुल्य का सृजन करना है।
        • यह दृष्टिकोण विकास को किसी भी मूल्य पर प्राप्त करने के बजाय संसाधन-क्षय को समायोजित विकास की ओर ले जाता है।
    • पारिस्थितिक राजकोषीय अंतरण (EFT): भारत संरक्षण के लिये राज्यों को भुगतान करने की दुनिया की सबसे बड़ी प्रणालियों में से एक का संचालन करता है।
      • वित्त आयोग (FC) पुरस्कार: 15वें वित्त आयोग ने अपने कर अंतरण फार्मूले में वन और पारिस्थितिकी को 10% भार दिया।
        • इससे राज्यों को वनों का दोहन न करने से होने वाली राजकोषीय अक्षमता (राजस्व की हानि) की भरपाई करके वन आवरण बनाए रखने के लिये प्रोत्साहन मिलता है।
    • नियामक मूल्यांकन: 
      • वन परिवर्तन लागत: वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत, वन भूमि का परिवर्तन करने वाली किसी भी उपयोगकर्त्ता एजेंसी (उद्योग/सरकार) को नष्ट हुए वन का निवल वर्तमान मूल्य (NPV) चुकाना होता है।
    • उप-राष्ट्रीय एवं स्थानीय सफलताएँ (पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये भुगतान— PES)
      • पालमपुर मॉडल (हिमाचल प्रदेश): एक अग्रणी उदाहरण जहाँ पालमपुर नगर परिषद जलग्रहण क्षेत्र की सुरक्षा के लिये अपस्ट्रीम ग्राम वन विकास सोसायटी को भुगतान करती है।

    महत्त्वपूर्ण अंतराल और चुनौतियाँ

    • मूल्यांकन बनाम वास्तविक मूल्य निर्धारण: बड़े उद्योगों द्वारा एन.पी.वी. को प्रायः एक निवारक के बजाय मात्र व्यापार करने की लागत के रूप में माना जाता है।
      • यह मूल्यांकन अभी भी प्राचीन वनों के विनाश को रोकने के लिये काफी कम है (उदाहरण के लिये, हसदेव अरंड कोयला खनन)।
    • हरित बनाम हरित का अंतर्विरोध: नवीकरणीय ऊर्जा (सौर पार्क, जलविद्युत) के लिये भारत का प्रयास प्रायः पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यांकन को नजरअंदाज़ कर देता है। 
      • उदाहरण के लिये, राजस्थान में बड़े सौर पार्कों द्वारा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के आवास को खतरा उत्पन्न करना इस बात को दर्शाता है कि किस प्रकार एक हरित लक्ष्य (जलवायु) दूसरे लक्ष्य (जैवविविधता) को कमज़ोर कर सकता है।
    • EFT में कार्यान्वयन घाटा: अध्ययनों से पता चलता है कि राज्यों को पारिस्थितिक राजकोषीय अंतरण प्राप्त होता है, लेकिन इस धन को वानिकी या पर्यावरण पुनर्स्थापन में विशेष रूप से पुनर्निवेशित करने के बजाय प्रायः सामान्य बजट में समाहित कर दिया जाता है।
    • पद्धतिगत जटिलता: परागण अथवा बाढ़-नियंत्रण जैसी कल्पित मूल्य निर्धारण सेवाओं के उचित राष्ट्रीय मूल्यांकन के लिये कोई मानकीकृत पद्धति नहीं है। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) में मूल्यांकन प्रायः असंगत रूप से किया जाता है।

    विकास को संवहनीयता के साथ सही मायने में संरेखित करने के लिये, भारत को लेखा से जवाबदेही की ओर बढ़ना होगा:सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ने हेतु आवश्यक सुधार

    • हरित लेखांकन का मानकीकरण: एनविस्टेट्स को एक सांख्यिकीय अभ्यास से नीतिगत उपकरण में बदला जाना चाहिये। राष्ट्रीय बजट के वक्तव्यों में आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ प्राकृतिक पूँजी के क्षरण का उल्लेख अनिवार्य होना चाहिये।
    • राष्ट्रीय PES कार्यढाँचा: पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये भुगतान (PES) के लिये एक राष्ट्रीय नीति को औपचारिक रूप दिया जाना चाहिये, ताकि पालमपुर जैसे और अधिक मॉडलों को प्रोत्साहित किया जा सके, विशेष रूप से नदी घाटियों (जैसे, निचले शहरों द्वारा ऊपरी क्षेत्र के किसानों को भुगतान) के लिये।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन में सुधार: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन में अनिवार्य लागत-लाभ विश्लेषण शामिल होना चाहिये, जो पारिस्थितिकी तंत्र की हानि का आकलन करता हो तथा यह सुनिश्चित करता हो कि परियोजनाओं को केवल तभी मंजूरी दी जाए जब सार्वजनिक लाभ वास्तव में पारिस्थितिक लागत से अधिक हो।

    निष्कर्ष: 

    भारत ने 15वें वित्त आयोग और पर्यावरण-सांख्यिकी के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यांकन के लिये आधारभूत संरचना तैयार कर ली है।  हालाँकि, वास्तविक संधारणीयता के लिये, इन मूल्यों को असंवहनीय परियोजनाओं पर प्रभावी रूप से रोक लगाने की आवश्यकता है। आवश्यकता इस बात की है कि प्रकृति का मूल्यांकन करने से आगे बढ़कर आर्थिक विकल्पों को प्रकृति की वास्तविक महत्ता के अनुरूप संचालित किया जाये।

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