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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. किसी राज्य की राजकोषीय स्थिति उसकी विकासात्मक समुत्थानशीलता को निर्धारित करती है। भारतीय राज्यों में राजकोषीय क्षमता और राजकोषीय प्रदर्शन के बीच के अंतर को समाप्त करने में राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) किस प्रकार सहायक हो सकता है? (150 शब्द)

    15 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • राजकोषीय स्वास्थ्य और राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) की परिभाषा से अपने उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
    • इसके पश्चात् राजकोषीय क्षमता–प्रदर्शन अंतराल से संबंधित चुनौतियों को रेखांकित कीजिये।
    • इन अंतरालों को न्यूनतम करने में FHI की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    'राजकोषीय स्वास्थ्य' किसी राज्य की राजस्व संग्रहण, व्यय प्रबंधन करने तथा ऋण को स्थायी रूप से वहन करने की क्षमता अर्थात् कल्याणकारी व्यय को बनाए रखने और आर्थिक झटकों से निपटने की वह क्षमता, जो उसकी विकासात्मक दृढ़ता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है, को निरूपित करता है। NITI आयोग द्वारा विकसित 'राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (Fiscal Health Index – FHI)' देश के 18 प्रमुख राज्यों की राजकोषीय स्थिति का आकलन करता है। इसमें राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान, जनांकिकी, सार्वजनिक व्यय, राजस्व स्रोत एवं समग्र राजकोषीय स्थिरता जैसे घटकों को सम्मिलित किया गया है।

    मुख्य भाग:

    राजकोषीय क्षमता-प्रदर्शन अंतराल को न्यूनतम करने में चुनौतियाँ

    • असमान राजस्व आधार: औद्योगिक राज्यों (जैसे गुजरात) की कर-संग्रहण क्षमता कृषि-प्रधान राज्यों (जैसे झारखंड) की तुलना में अधिक है, जिससे कमज़ोर राज्यों की राजकोषीय नम्य क्षमता सीमित हो जाती है।
    • केंद्रीय अंतरणों पर निर्भरता: बिहार जैसे राज्य वित्त आयोग के अनुदानों और GST क्षतिपूर्ति पर अत्यधिक निर्भर हैं, जिससे उनकी राजकोषीय स्वायत्तता घट जाती है।
    • अप्रभावी व्यय प्रबंधन: उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में योजनाबद्ध व्यय के अभाव में ऋण तो बढ़ता है परंतु सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार नहीं होता।
    • लोकाधिकारवादी योजनाएँ: पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अत्यधिक सब्सिडियों से वित्तीय दबाव बढ़ता है, जिससे सतत् विकास प्रभावित होता है।
    • ऋण का बोझ: केरल में बार-बार के राजस्व व्ययों हेतु अधिक उधारी लेने से पूँजीगत निवेश (जैसे: अवसंरचना व कल्याणकारी कार्यक्रमों में) की क्षमता सीमित हो जाती है।

    राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) की भूमिका 

    • FHI एक निदानात्मक और नीतिगत साधन के रूप में कार्य करके राजकोषीय क्षमता-प्रदर्शन अंतर को न्यूनतम करने में सहायता करता है।
    • FHI पाँच प्रमुख उप-सूचकांकों के आधार पर राज्यों को रैंक करता है:
      • व्यय की गुणवत्ता: दीर्घकालिक विकास (विकासात्मक) बनाम नियमित संचालन (गैर-विकासात्मक) पर व्यय के अनुपात का निर्धारण करता है।
        • आर्थिक उत्पादन के हिस्से के रूप में पूँजी निवेश का आकलन करता है।
      • राजस्व संग्रहण: किसी राज्य की अपनी स्वयं की राजस्व का सृजन करने और अपने व्यय को स्वतंत्र रूप से वहन करने की क्षमता को दर्शाता है।
      • राजकोषीय विवेक: आर्थिक उत्पादन के सापेक्ष घाटे (राजकोषीय और राजस्व) और उधारी पर नज़र रखता है, जो राजकोषीय स्वास्थ्य का संकेत देता है।
      • ऋण सूचकांक: राज्य के ऋण भार का आकलन करता है, आर्थिक आकार के सापेक्ष ब्याज भुगतान और देयताओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • ऋण स्थिरता: सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) वृद्धि की तुलना ब्याज भुगतान से करता है, जिसमें सकारात्मक अंतर-राजकोषीय स्थिरता को दर्शाता है।

    निष्कर्ष:

    राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) राज्यों की क्षमता और प्रदर्शन के मध्य समन्वय स्थापित करने हेतु एक सुदृढ़ रूपरेखा प्रदान करता है। यह राज्यों को तुलनात्मक मानक, पारदर्शिता और नीतिगत सुधारों के लिये प्रोत्साहित कर 'सहकारी राजकोषीय संघवाद' को सशक्त बनाता है तथा विकासात्मक दृढ़ता को बढ़ाता है।

    जो राज्य FHI-आधारित सुधार अपनाते हैं, वे अधिक कुशल व्यय, सतत् ऋण प्रबंधन तथा मानव एवं भौतिक पूँजी में रणनीतिक निवेश के माध्यम से संतुलित, समावेशी और दृढ़ विकास की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।

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