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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न .एक्ज़िऑम मिशन में भारत की भागीदारी वैश्विक मानव अंतरिक्ष उड़ान सहयोग की दिशा में एक परिवर्तन का प्रतीक है। भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र पर इसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    30 Jul, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण : 

    • एक्ज़िऑम-4 मिशन का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये इसके महत्त्व और निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुये हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    25 जून, 2025 को प्रक्षेपित एक्ज़िऑम-4 मिशन, चार दशकों से भी अधिक समय के बाद मानवयुक्त अंतरिक्ष यान में भारत की आधिकारिक वापसी का प्रतिनिधित्व करता है। स्पेसएक्स, नासा, ESA और इसरो के साथ साझेदारी में एक्ज़िऑम स्पेस द्वारा आयोजित इस मिशन में एक विविध अंतर्राष्ट्रीय दल शामिल था, जिसमें भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला मिशन पायलट के रूप में कार्यरत थे।

    मुख्य भाग: 

    महत्त्व और वैश्विक सहयोग की ओर बदलाव:

    • चार दशकों बाद अंतरिक्ष में वापसी: शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा भारत के पहले और एकमात्र अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा (1984) की उड़ान के 41 वर्षों बाद हुई है। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान समुदाय में वापसी को चिह्नित करती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय और वाणिज्यिक साझेदारियों को अपनाना: निजी तौर पर संगठित, बहुराष्ट्रीय मिशन में भारत की भागीदारी द्विपक्षीय, सरकार-से-सरकार मिशनों से वैश्विक रूप से एकीकृत, वाणिज्यिक रूप से संचालित सहयोग की ओर संक्रमण का संकेत प्रदान करती है।
    • वैश्विक मंचों के माध्यम से सीखना: शुक्ला ने रूस के गागरिन कॉस्मोनॉट सेंटर और नासा/इसरो के साथ प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा स्पेसएक्स ड्रैगन और आईएसएस पर व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया, जो पाँच प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों के तत्वावधान में संचालित होता है।

    भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण निहितार्थ

    • प्रत्यक्ष मानव अंतरिक्ष उड़ान अनुभव: भारतीय टीमों ने उच्चतम स्तर पर प्रक्षेपण-पूर्व, कक्षा में और ज़मीनी परिचालनों में भाग लिया तथा अंतर्राष्ट्रीय चालक दल प्रथाओं, कक्षीय आपातकालीन प्रबंधन और जैव-चिकित्सा निगरानी का ज्ञान प्राप्त किया, जो भविष्य के मिशनों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • गगनयान से पहले महत्त्वपूर्ण सीख: एक्ज़िऑम-4 से प्राप्त सबक भारत के आगामी गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान (मानव रहित प्रक्षेपण लक्ष्य: दिसंबर 2025; मानव सहित प्रक्षेपण: 2026-27 ) के लिये चालक दल के प्रशिक्षण, मिशन योजना, अंतरिक्ष यात्री चिकित्सा प्रोटोकॉल और संचार प्रक्रियाओं को सूचित कर रहे हैं।
    • प्रौद्योगिकी साझाकरण: इस मिशन में स्वदेशी रूप से विकसित प्रयोग किटों (IIT, IISC, DBT द्वारा) का उपयोग किया गया, जिसमें भारतीय जैव प्रौद्योगिकी, जीवन विज्ञान और सामग्री प्रौद्योगिकी का वास्तविक सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में परीक्षण किया गया, जो भारतीय टीमों के लिये अभूतपूर्व था।
      • प्रयोगों में सूक्ष्म शैवाल (दीर्घ अवधि के मिशनों के लिये संभावित सतत् भोजन) की वृद्धि, प्रोटीन क्रिस्टलीकरण और मांसपेशी कोशिका अनुसंधान का अध्ययन शामिल था, जिससे गगनयान और अंतरिक्ष स्टेशन योजना को प्रत्यक्ष रूप से लाभ हुआ।
    • अंतरिक्ष स्टार्टअप्स का विकास: भारत की अंतरिक्ष नीति सुधारों और ऐसे ऐतिहासिक मिशनों के कारण वर्ष 2025 तक अंतरिक्ष स्टार्टअप्स की संख्या 328 से ज़्यादा हो जाएगी। पिछले एक दशक में इस क्षेत्र का बजट लगभग तीन गुना बढ़कर 2025-26 तक ₹13,416 करोड़ हो गया है।
      • उदारीकृत FDI मानदंड (कई अंतरिक्ष गतिविधियों में 100% तक), साथ ही IN-SPACe और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड जैसे प्लेटफॉर्म, विदेशी निवेश को आकर्षित कर रहे हैं तथा घरेलू उद्यमिता को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • विश्वसनीय साझेदार के रूप में पहचान: अंतर्राष्ट्रीय दल में भागीदारी और प्रमुख अंतरिक्ष राष्ट्रों के साथ सहयोग, भारत को एक समान, सक्षम और भरोसेमंद साझेदार के रूप में प्रस्तुत करता है। यह संयुक्त अभियानों, साझा अनुसंधान और भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशन सहयोग के लिये विश्वास को मज़बूत करता है।

    निष्कर्ष: 

    एक्ज़िऑम-4 मिशन में भारत की भागीदारी, भारत को न केवल एक भागीदार के रूप में, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में एक सह-नेता के रूप में भी स्थापित करती है। यह वर्ष 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के भारत के दीर्घकालिक दृष्टिकोण की नींव भी रखता है, जो एक आत्मनिर्भर और सहयोगात्मक अंतरिक्ष भविष्य की ओर भारत के निरंतर बढ़ते कदम को दर्शाता है।

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