- फ़िल्टर करें :
- अर्थव्यवस्था
- विज्ञान-प्रौद्योगिकी
- पर्यावरण
- आंतरिक सुरक्षा
- आपदा प्रबंधन
-
प्रश्न :
प्रश्न . भारतीय शहरों को प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है। शहरी नियोजन एवं बुनियादी अवसंरचना में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को एकीकृत करने की आवश्यकता की विवेचना कीजिये। (150 शब्द)
28 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- शहरीकरण और बुनियादी अवसंरचना की चुनौतियों के कारण भारतीय शहरों के समक्ष बढ़ते आपदा जोखिमों को परिभाषित कीजिये।
- शहरी आपदा प्रबंधन में प्रमुख चुनौतियों और शहरी नियोजन में DRR को एकीकृत करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये तथा आपदा समुत्थान बढ़ाने के उपायों की रूपरेखा तैयार कीजिये।
- उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय भारतीय शहरों में जनसंख्या और बुनियादी अवसंरचना में तेज़़ी से वृद्धि हो रही है, जिससे बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ अग्नि और औद्योगिक दुर्घटनाओं जैसे मानव निर्मित खतरों का जोखिम बढ़ रहा है। आपदा प्रबंधन में प्रगति के बावजूद, समुत्थानशीलता सीमित बनी हुई है, जिससे अनुकूल, सुरक्षित शहरों के निर्माण के लिये शहरी नियोजन में DRR को एकीकृत करना आवश्यक हो गया है।
मुख्य भाग:
शहरी आपदा प्रबंधन के समक्ष चुनौतियाँ:
- तीव्र एवं अनियोजित शहरीकरण: उचित विनियमन के बिना बाढ़ के मैदानों, आर्द्रभूमियों और भूकंपीय क्षेत्रों में विस्तार रहा है, जिससे आपदा जोखिम बढ़ रहा है।
- बेंगलुरु में बाढ़ की स्थिति अतिक्रमण और जल निकासी की अपर्याप्त क्षमता के कारण और भी गंभीर हो जाती है। यह शहरी नियोजन की खराब स्थिति को दर्शाता है, जिसमें बाढ़ क्षेत्र प्रबंधन जैसे आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों की अनदेखी की जाती है।
- भवन विनियमों का कमज़ोर प्रवर्तन: कई शहरी संरचनाएँ भवन संहिताओं या ज़ोनिंग कानूनों का पालन करने में विफल रहती हैं।
- गुजरात में मोरबी पुल का ढहना (2022 ) सुरक्षा मानकों की उपेक्षा के परिणामों को दर्शाता है।
- भवन विनियमों का कमज़ोर प्रवर्तन: कई शहरी संरचनाएँ भवन संहिताओं या ज़ोनिंग कानूनों का पालन करने में विफल रहती हैं।
- विखंडित शासन प्रणाली: आपदा प्रतिक्रिया और शहरी विकास की ज़िम्मेदारी कई एजेंसियों पर होती है, जिनके बीच सीमित समन्वय होता है, जिससे संकट के समय कार्यों में अकार्यक्षमता और अंतराल उत्पन्न होते हैं।
- अपर्याप्त प्रारंभिक चेतावनी और संचार प्रणालियाँ: आपदा चेतावनियाँ प्रायः कमज़ोर समुदायों, जैसे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों और हाशिये पर पड़े समूहों तक नहीं पहुँच पातीं, जिससे समय पर निकासी और तैयारी सीमित हो जाती है।
- प्रारंभिक चेतावनी के प्रसार और संपर्क की कमी के कारण बचाव कार्य बुरी तरह प्रभावित हुए और वर्ष 2013 केदारनाथ बाढ़ के दौरान हताहतों की संख्या बहुत अधिक हो गई थी (एनआईडीएम और आपदा के बाद के आकलन के अनुसार)।
- सार्वजनिक भागीदारी का अभाव: शहरी निवासी प्रायः आपदा जोखिमों या तैयारी प्रथाओं के प्रति अनभिज्ञ या अनिच्छुक होते हैं, जिससे सामुदायिक अनुकूलता कम होती है तथा प्रतिक्रियात्मक प्रतिक्रियाओं पर निर्भरता बढ़ती है।
शहरी नियोजन और बुनियादी अवसंरचना में DRR को एकीकृत करने की आवश्यकता:
- व्यवस्थित जोखिम मूल्यांकन: शहरी या नगरीय नियोजन को बाढ़ क्षेत्रों, भूकंपीय क्षेत्रों और जोखिमग्रस्त आबादी की पहचान करने के लिये व्यापक खतरे और भेद्यता मानचित्रण द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये।
- PMAY जैसे कार्यक्रमों को आपदा-रोधी मानकों के अनुरूप झुग्गी-झोपड़ियों में आवासों के पुनर्निर्माण और नवीनीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिये, जिससे कमज़ोर समुदायों के लिये जोखिम कम हो सके।
- स्थानीयकृत शहरी आपदा प्रबंधन योजनाएँ: शहरों को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार अधिक घनत्व वाली आबादी, बुनियादी अवसंरचना की सुरक्षा एवं परिवहन संबंधी समस्याओं जैसी चुनौतियों के अनुरूप आपदा प्रबंधन से संबंधित योजनाएँ शुरू की जानी चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितता से निपटने के लिये, उन्हें जल निकासी प्रणालियाँ, हरित अवसंरचना (जैसे: जल-संवेदनशील फुटपाथ, ग्रीन रूफ) और अक्षय ऊर्जा समाधान लागू करने चाहिये, ताकि हीटवेव और सूखे जैसे जोखिमों को कम किया जा सके, यह सब राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन (NAPCC) के अनुरूप होना चाहिये।
- भवन निर्माण: शहरी नियोजन विनियमों में निर्माण में आपदा-रोधी डिज़ाइन (भूकंप-रोधी संरचनाएँ, बाढ़ सुरक्षा) को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है, जिसे अनुमोदन से पहले ऑडिट द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये।
- मॉडल बिल्डिंग कोड और ज़ोनिंग कानूनों में DRR को शामिल करने से शहरी बुनियादी अवसंरचना की स्थिरता मज़बूत होगी।
- बेहतर समन्वय और क्षमता निर्माण: आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों, शहरी स्थानीय निकायों, आपातकालीन प्रत्युत्तरदाताओं और नागरिक समाज के बीच एकीकृत कमान और बेहतर समन्वय से तैयारी और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं में वृद्धि होती है।
शहरी नियोजन के लिये नीतिगत रूपरेखा:
- सशक्त कार्यान्वयन: शहरी स्तर पर अनिवार्य आपदा तैयारी और शमन योजनाओं को सुनिश्चित करने के लिये आपदा प्रबंधन अधिनियम के कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाना।
- उप-नियमों का प्रवर्तन: शहरों में आपदा-रोधी निर्माण और सुरक्षित बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा देने के लिये मॉडल बिल्डिंग उप-नियमों (2016) को लागू करना।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देश: शहरी जोखिम आकलन, भेद्यता मानचित्रण करने और शहरी नियोजन एवं विकास के सभी पहलुओं में DRR को एकीकृत करने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देशों का उपयोग करना।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आपदा चेतावनियों का निर्बाध, भू-लक्षित प्रसार सुनिश्चित करने के लिये कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (CAP) आधारित एकीकृत अलर्ट प्रणाली के अखिल भारतीय कार्यान्वयन का विस्तार करना।
- मोबाइल उपयोगकर्त्ताओं को सीधे वास्तविक समय, बहुभाषी अलर्ट देने के लिये सेल ब्रॉडकास्ट प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- सहभागिता: जागरूकता अभियान, सहभागी योजना और स्थानीय ज्ञान को शामिल करने से सार्वजनिक तत्परता में सुधार होता है तथा समुत्थानशील संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
निष्कर्ष: आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को एकीकृत करना यह सुनिश्चित करता है कि शहरी विकास सतत्, समावेशी और प्राकृतिक तथा मानवजनित आपदाओं के प्रति अनुकूल हो। इसका प्रभावी एकीकरण एक बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की मांग करता है, जिसमें नीति निर्माताओं, शहरी योजनाकारों, आपातकालीन सेवाओं और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी हो तथा यह मज़बूत कानूनी तथा संस्थागत ढाँचे पर आधारित हो।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print