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प्रश्न :
प्रश्न .समकालीन भारतीय समाज में पारंपरिक सामाजिक मूल्यों की निरंतरता और परिवर्तन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
12 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संदर्भ में पारंपरिक सामाजिक मूल्यों को परिभाषित कीजिये तथा भारतीय समाज में उनके महत्त्व को संक्षेप में रेखांकित कीजिये।
- उन प्रमुख सामाजिक मूल्यों का अभिनिर्धारण कीजिये जो समय के साथ कायम रहे हैं तथा समकालीन समाज में उनकी भूमिका की भी चर्चा कीजिये।
- विश्लेषण कीजिये कि विभिन्न आधुनिक प्रभावों के कारण ये पारंपरिक मूल्य किस प्रकार परिवर्तित हो गए हैं।
- निरंतरता और परिवर्तन की दोहरी प्रकृति का सारांश प्रस्तुत कीजिये।
परिचय:
भारतीय समाज विविध परंपराओं का मिश्रण है, जो मूल्यों और प्रथाओं की समृद्ध संरचना में गहराई से निहित है, जिसमें समय के साथ निरंतरता एवं परिवर्तन दोनों हुए हैं। यद्यपि कई पारंपरिक मानदंड कायम हैं, तथापि वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण जैसी आधुनिक शक्तियों ने सामाजिक प्रथाओं को नया रूप दिया है, जो इसकी विकसित प्रकृति को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
पारंपरिक सामाजिक मूल्यों की निरंतरता:
- वरिष्ठ जनों के प्रति सम्मान: वरिष्ठ जनों के प्रति सम्मान एक प्रमुख सांस्कृतिक मूल्य बना हुआ है, संयुक्त परिवार प्रणाली अभी भी कई ग्रामीण क्षेत्रों और यहाँ तक कि शहरी परिवारों में प्रचलित है।
- परिवार-केंद्रित सामाजिक संरचना: परिवार सामाजिक संगठन की प्राथमिक इकाई बना हुआ है।
- विवाह और पारिवारिक दायित्वों को अभी भी बहुत महत्त्व दिया जाता है, विशेष तौर पर छोटे शहरों एवं ग्रामीण भारत में, अरेंज मैरिज प्रणाली बहुत हद तक बरकरार है। परंपरा में निहित यह प्रणाली अभी भी पारिवारिक बंधनों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- जाति आधारित सामाजिक पदानुक्रम : भारतीय संविधान के माध्यम से अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था के कानूनी उन्मूलन के बावजूद, जाति अभी भी भारतीय समाज में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- जातिगत पंचायतें और जातिगत पहचान आज भी दृढ़ बनी हुई है।
- समुदाय और आतिथ्य: आतिथ्य का मूल्य बरकरार है, प्रसिद्ध भारतीय कहावत, ‘अतिथि देवो भव’ (अतिथि भगवान है), अभी भी विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है।
पारंपरिक सामाजिक मूल्यों का परिवर्तन:
- व्यक्तिवाद और उपभोक्तावाद: सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक शहरी भारत में व्यक्तिवाद का बढ़ता प्रभाव है।
- पाश्चात्य संस्कृति, शिक्षा और वैश्विक संपर्क जैसे आधुनिक प्रभावों ने संयुक्त परिवार प्रणाली को नष्ट कर दिया है, जिससे एकल परिवार संरचना को बढ़ावा मिला है ।
- इस बदलाव ने एकल अभिभावक परिवारों को जन्म दिया है, जहाँ घरों में आमतौर पर एकल रूप से अभिभावक और उनके बच्चे होते हैं, जो बदलते सामाजिक मूल्यों एवं जीवन शैली को दर्शाता है।
- युवा पीढ़ी व्यक्तिगत कॅरियर और व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर अधिक इच्छुक है, जिसके कारण प्राथमिकताओं में बदलाव आ रहा है।
- उपभोक्ता संस्कृति के उदय के कारण (विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) व्यक्तिगत सफलता, धन संचय और स्टेटस सिंबल पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है ।
- पाश्चात्य संस्कृति, शिक्षा और वैश्विक संपर्क जैसे आधुनिक प्रभावों ने संयुक्त परिवार प्रणाली को नष्ट कर दिया है, जिससे एकल परिवार संरचना को बढ़ावा मिला है ।
- लैंगिक भूमिकाएँ: परंपरागत लैंगिक भूमिकाएँ जो कठोर रूप से परिभाषित की गई थीं, धीरे-धीरे परिवर्तन के दौर से गुजर रही हैं। कार्यबल, शिक्षा और राजनीति में महिलाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- उदाहरण के लिये पिछले सात वर्षों में महिला श्रम बल भागीदारी दर सत्र 2017-18 में 23.3% से बढ़कर सत्र 2023-24 में 41.7% हो गई है और भारतीय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़कर 14% (लोकसभा) हो गया है।
- हालाँकि, लिंग-आधारित 'पिंक कॉलर' नौकरियों की अवधारणा, जो प्रायः कम वेतन वाली होती हैं और मुख्य रूप से महिलाओं से संबद्ध होती हैं (जैसे: नर्सिंग, शिक्षण और प्रशासनिक भूमिकाएँ), कायम है।
- जाति व्यवस्था: जाति व्यवस्था, हालाँकि अभी भी प्रभावशाली है, लेकिन इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है, विशेष रूप से शिक्षा और आर्थिक गतिशीलता के प्रभाव से ।
- अंतर-जातीय विवाह अधिक आम हो गए हैं, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, जिससे सख्त जातिगत पहचान धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
- अंतर-जातीय संघों में वृद्धि के बावजूद, जाति-आधारित पहचान कभी-कभी बनी रहती है तथा नए तरीकों से दृढ़ होती है, जैसे: राजनीतिक संबद्धता, जाति-आधारित आरक्षण या सामुदायिक संगठनों के माध्यम से।
- प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया: प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया के उदय ने भारतीयों के संवाद, सामाजिक समन्वय और स्वयं को देखने के तरीके को बदल दिया है।
- गोपनीयता, पहचान और अभिव्यक्ति से जुड़े मूल्य तेज़ी से विकसित हो रहे हैं, जिससे पीढ़ीगत संघर्ष हो रहे हैं, विशेष रूप से विवाह, लैंगिकता और लिंग आधारित पहचान जैसे मुद्दों के संबंध में।
निरंतरता और परिवर्तन में संतुलन:
- कानूनी संरक्षण: अनुच्छेद 15 के द्वारा सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान करके सशक्त बनाया गया है।
- अनुच्छेद 21 ने LGBTQ+ अधिकारों की रक्षा की है , विशेष रूप से नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (वर्ष 2018) मामले में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने के माध्यम से ।
- सांस्कृतिक संश्लेषण: भारतीय समाज ऐतिहासिक रूप से अपने मूल सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखते हुए विविध प्रभावों को समाहित करने में सफल रहा है।
- पारंपरिक मूल्यों को वैश्विक परिप्रेक्ष्यों के साथ संयोजित करने की इस समावेशी प्रक्रिया ने एक विशिष्ट आधुनिक भारतीय पहचान का निर्माण किया है, जो विरासत एवं प्रगति दोनों को महत्त्व देती है।
- जंडियाला गुरु क्षेत्र में प्रचलित धातु शिल्प, ठठेरों का पारंपरिक शिल्प, आधुनिकीकरण के दबावों के बावजूद, पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ रहा है।
निष्कर्ष:
भारत की सांस्कृतिक विरासत और समानता व स्वतंत्रता के आधुनिक मूल्यों का साथ-साथ विकास होना चाहिये। निरंतरता और परिवर्तन के बीच संतुलन बनाना एक समावेशी समाज के निर्माण की कुंजी है, जो 21वीं सदी में सभी नागरिकों के लिये सामाजिक एकता और प्रगति सुनिश्चित करे।
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