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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. नाट्य शास्त्र में निहित आध्यात्मिक और भावनात्मक सिद्धांतों ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों के विकास को किस प्रकार निर्देशित किया है, इसका परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

    12 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नाट्य शास्त्र, भारतीय प्रदर्शन कलाओं के संदर्भ में इसके महत्त्व तथा इसके मूल सिद्धांतों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • नाट्य शास्त्र ने शास्त्रीय नृत्य के आध्यात्मिक और भावनात्मक आधार को किस प्रकार आकार दिया तथा क्षेत्रीय नृत्य शैलियों को प्रभावित किया, चर्चा कीजिये।
    • उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: भरत मुनि द्वारा 200 ईसा पूर्व और 200 ईसवी के बीच रचित नाट्य शास्त्र भारतीय शास्त्रीय नृत्य का आधारभूत ग्रंथ है। इसमें आध्यात्मिक और भावनात्मक सिद्धांत दिये गए हैं जो शास्त्रीय नृत्य को एक अभिव्यंजक कला और आध्यात्मिक संवाद के माध्यम के रूप में आकार प्रदान करती हैं।

    मुख्य भाग:

    नाट्य शास्त्र में आध्यात्मिक सिद्धांत: नृत्य का आधार

    • नाट्य शास्त्र नृत्य को भगवान ब्रह्मा द्वारा रचित एक दिव्य रचना मानता है, जिसमें आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये चार वेदों के तत्त्वों को सम्मिलित किया गया है।
    • इसमें इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि नृत्य भक्ति और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का एक रूप है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस कला का निर्माण भगवान शिव ने नटराज के रूप में किया था।
      • इस प्रकार, नृत्य आध्यात्मिक जागृति और ईश्वर के साथ संवाद के लिये एक वाहन के रूप में कार्य करता है।
      • उदाहरण के लिये उत्तर भारत में विकसित कथक नृत्य पारंपरिक रूप से मंदिरों में भगवान कृष्ण की कहानी और भक्ति के रूप में किया जाता था, जो ईश्वर और मानव आत्मा के बीच शाश्वत नृत्य का प्रतीक है।

    भावनात्मक सिद्धांत और रस: नृत्य के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करना

    • नाट्य शास्त्र में रस को भावनात्मक सार के रूप में परिभाषित किया गया है, जो नृत्य दर्शकों में जगाता है, जिसमें नौ प्रमुख रस हैं जैसे श्रृंगार (प्रेम), वीर (वीरता), और भयंकर (भय), आदि। इन्हें भावों के माध्यम से जीवंत किया जाता है, जो नर्तक द्वारा व्यक्त की गई भावनाएँ हैं।
      • इस ग्रंथ में आठ प्राथमिक भावों की पहचान की गई है, जैसे रति (प्रेम), शोक ( दुःख), और उत्साह (ख़ुशी), जिन्हें चेहरे के भाव (अंगिका ), हाथों के हाव-भाव (हस्त ) और शरीर की मुद्रा (स्थान ) के माध्यम से व्यक्त किया जाता है, जो शास्त्रीय नृत्य का अभिव्यंजक आधार बनाते हैं।
      • उदाहरण के लिये, कथक में घुंघरू और तेज़ चक्कर का प्रयोग आनंद और दिव्य प्रेम को दर्शाने (विशेष रूप से राधा-कृष्ण की कथाओं में) के लिये किया जाता है।
        • ओडिसी में, सुंदर त्रिभंगी मुद्रा भक्ति और सौंदर्य को व्यक्त करती है, जो अक्सर भगवान जगन्नाथ की स्तुति में की जाती है।

    नृत्य शैली

    नाट्य शास्त्र का प्रमुख प्रभाव

    भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलू

    भरतनाट्यम (तमिलनाडु)

    अभिव्यक्ति (अभिनय) और कथात्मक कहानी कहना।

    मुद्राएँ और भाव श्रृंगार (रोमांस) और वीर (वीरता) जैसे रसों को व्यक्त करते हैं; भगवान शिव और अन्य देवताओं के प्रति भक्ति।

    कथक 

    (उत्तर भारत)

    कथात्मक अभिव्यक्ति (अभिनय) और लय (ताल)।

    शृंगार (प्रेम) और करुणा (दया) जैसी भावनात्मक अभिव्यक्तियाँ; सूफी और भक्ति प्रभाव।

    कुचिपुड़ी

    (आंध्र प्रदेश)

    अभिनय को नृत्य के साथ एकीकृत करता है।

    पौराणिक कथाओं को समर्पित प्रदर्शनों में आध्यात्मिकता और भक्ति पर ज़ोर दिया जाता है।

    मणिपुरी

    नाट्य शास्त्र के भक्ति विषयों में गहराई से निहित।

    रासलीला और भक्ति कथाओं में सुंदर गतिविधियों और हाव-भाव के माध्यम से शृंगार (प्रेम) और अद्भुत (विस्मय) पर ध्यान केंद्रित करता है।

    निष्कर्ष: नृत्य के विकास के साथ, नाट्य शास्त्र के ये सिद्धांत इन कला रूपों का मूल सार बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये सिद्धांत आधुनिक युग में इनकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करते हैं, साथ ही इनकी प्राचीन आध्यात्मिकता एवं भावनात्मकता को सम्मान देते हैं।

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