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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जलवायु परिवर्तन महिलाओं के जीवन को कैसे प्रभावित करता है? जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन को संबोधित करने में लैंगिक दृष्टि से ग्रहणशील नीतियों की भूमिका पर चर्चा करें। (250 शब्द)

    22 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जलवायु परिवर्तन का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • महिलाओं के जीवन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये।
    • जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन को संबोधित करने में लैंगिक-संवेदनशील नीतियों की भूमिका का वर्णन कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य तापमान और जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन से है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान वृद्धि से हिम का तीव्रता के साथ पिघलना है, जिससे सागरीय स्तर बढ़ रहा है। जलवायु संकट "लैंगिक-तटस्थता" (Gender Neutral) नहीं है। महिलाएँ और लड़कियाँ जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े प्रभावों का अनुभव करती हैं, जो मौजूदा लैंगिक असमानताओं को बढ़ाती है और उनकी आजीविका, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिये अद्वितीय संकट उत्पन्न करती है।

    मुख्य भाग:

    जलवायु परिवर्तन का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव:

    • कृषि क्षेत्र में महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
      • बढ़ती खाद्य असुरक्षा:
        • महिलाएँ घरों और समुदायों में खाद्य उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे कि फसल की विफलता, जल की कमी और वर्षा के पैटर्न में बदलाव महिलाओं की अपने परिवारों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की क्षमता को सीधे प्रभावित कर सकते हैं।
        • चरम मौसमी घटनाओं और उसके बाद जल चक्र पैटर्न में बदलाव से सुरक्षित पेयजल तक पहुँच गंभीर रूप से प्रभावित होती है, जिससे कठिन परिश्रम में वृद्धि हुई है, महिलाओं और लड़कियों के उत्पादक कार्य और स्वास्थ्य देखभाल के लिये समय कम हो जाता है।
      • आर्थिक निहितार्थ:
        • कृषि में महिलाओं के लिये जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभाव पर्याप्त हैं। बाढ़ और चरम मौसमी घटनाएँ फसलों और बुनियादी ढाँचे को तबाह कर सकती हैं, जिससे महिलाओं को परिवार की देखभाल और वैकल्पिक आय सृजन को प्राथमिकता देने के लिये मज़बूर होना पड़ता है। चरम मौसमी घटनाओं के कारण फसल की उत्पादकता में कमी से आय में कमी आती है, जिससे मौजूदा लैंगिक असमानताओं में और वृद्धि हो जाती है।
    • लैंगिक हिंसा से प्रत्यक्षता:
      • JAMA मनोचिकित्सा में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में दक्षिण एशिया में बढ़ते तापमान और बढ़ती अंतरंग साथी हिंसा (IPV) के बीच एक संबंध पाया गया है।
        • यदि औसत वार्षिक तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो वर्ष 2090 तक IPV में अनुमानित 23.5% की वृद्धि के साथ भारत को सबसे अधिक प्रभावित होने की उम्मीद है। यह नेपाल (14.8%) और पाकिस्तान (5.9%) में अनुमानित वृद्धि से काफी अधिक है।
        • अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में पूर्व में हुए प्रत्येक 1°C तापमान वृद्धि पर शारीरिक हिंसा में 8% की वृद्धि और यौन हिंसा में 7.3% की वृद्धि देखी जा रही है।
    • बाल विवाह की बढ़ती दर:
      • विभिन्न देशों और क्षेत्रों में विभिन्न समुदायों में बाल विवाह को आपदा की स्थिति से निपटने के साधन के रूप में देखा गया है, उदाहरण के लिये बाँग्लादेश, इथियोपिया और केन्या में धन या संपत्ति के साधन के रूप में।
      • महाराष्ट्र के ग्रामीण हिस्सों में, जल की कमी ने पुरुषों को 'पानी बाई' (जल लेकर आने वाली पत्नियाँ) की तलाश करने के लिये प्रेरित किया है, जहाँ वे घर के लिये जल एकत्रित करने में मदद करने के लिये एक से अधिक महिलाओं से विवाह करते हैं।
    • लंबे समय तक चलने वाली गर्म लहरों और प्रदूषण का प्रभाव:
      • पिछला दशक मानव इतिहास में अब तक का सबसे गर्म दशक रहा है और भारत जैसे देशों को अभूतपूर्व गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। लंबे समय तक गर्मी गर्भवती महिलाओं के लिये विशेष रूप से खतरनाक है (समय से पहले जन्म और एक्लम्पसिया (Eclampsia) का खतरा बढ़ जाता है)।
        • इसी तरह, वायु प्रदूषकों (घरेलू और बाहरी) के संपर्क में आने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, जिससे श्वसन और हृदय संबंधी रोग होते हैं, साथ ही अजन्मे बच्चे का शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास भी प्रभावित होता है।

    जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन को संबोधित करने में लैंगिक-संवेदनशील नीतियों की भूमिका:

    • असमान कमज़ोरियों को कम करना: महिलाएँ प्रायः जल संग्रहण, खाद्य सुरक्षा और घरेलू कल्याण के लिये ज़िम्मेदार होती हैं। जलवायु परिवर्तन इन क्षेत्रों को बाधित करता है, जिससे काम का बोझ, कुपोषण और महिलाओं के लिये स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाता है।
      • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुसार, विश्व भर में महिलाएँ 75 प्रतिशत से अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं, जो पुरुषों की तुलना में 3.2 गुना अधिक है।
      • निर्णय लेने में महिलाओं को शामिल करने वाली नीतियाँ जलवायु परिवर्तन नीतियों को अपनाने में मदद कर सकती हैं और महिलाओं की आवश्यकताओं को लाभ पहुँचाकर शमन और अनुकूलन प्रयासों को मज़बूत कर सकती हैं।
    • परिवर्तनकारी अभिकर्मकों के रूप में महिलाएँ: महिलाओं के पास संसाधन प्रबंधन और सामुदायिक लचीलेपन पर मूल्यवान ज्ञान और दृष्टिकोण हैं। उन्हें सशक्त बनाने से जलवायु चुनौतियों से निपटने की हमारी सामूहिक क्षमता मज़बूत होती है।
      • भूटान ने विभिन्न मंत्रालयों के साथ-साथ महिला संगठनों को लैंगिक समानता और जलवायु परिवर्तन पहलों के समन्वय और कार्यान्वयन में सक्षम बनाने के लिये लैंगिक आधारित बिंदुओं को प्रशिक्षित किया है।
    • सशक्तीकरण और समानता: लैंगिक-संवेदनशील नीतियाँ महिलाओं को सशक्त बनाती हैं, अधिक सामाजिक समानता को बढ़ावा देती हैं और समग्र रूप से अधिक लचीले समाज का निर्माण करती हैं। जब महिलाएँ उन्नति करती हैं, तो समुदाय उन्नति करते हैं।
      • चिली, युगांडा, लेबनान, कंबोडिया और जॉर्जिया जैसे देश अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) देने के संदर्भ में जलवायु कार्रवाई में लैंगिक विचारों को रणनीतिक रूप से एकीकृत करने पर प्रगति कर रहे हैं।

    निष्कर्ष:

    जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये लैंगिक-संवेदनशील नीतियाँ एक रणनीतिक आवश्यकता है। महिलाओं को सशक्त बनाकर और यह सुनिश्चित करके कि उनकी आवाज सुनी जाए, हम एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जहाँ हर कोई एक स्थायी और न्यायसंगत दुनिया में योगदान दे और लाभान्वित हो। यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण एक ऐसे भविष्य के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है, जहाँ जलवायु कार्रवाई सभी के लिये काम करे।

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