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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में भूजल संकट की गहनता का मूल्यांकन करते हुए इसके नकारात्मक परिणामों को कम करने हेतु रणनीतियाँ बताइये। (250 शब्द)

    11 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में भूजल संकट की सीमाओं का मूल्यांकन कीजिये।
    • इसके नकारात्मक परिणामों को कम करने की रणनीतियाँ बताइये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    बेंगलुरु गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में जल की गंभीर कमी की स्थिति बनी है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, कर्नाटक के 236 तालुकों में से 223 सूखे से प्रभावित हैं, जिनमें मांड्या और मैसूरु ज़िले भी शामिल हैं जो बेंगलुरु के लिये जल के दो प्रमुख स्रोत हैं।

    मुख्य भाग:

    भारत में भूजल संकट की वर्तमान स्थिति:

    • जल उपलब्धता का अभाव:
      • विश्व की 17% आबादी के वहन के बावजूद भारत के पास विश्व के मीठे जल संसाधनों का केवल 4% मौजूद है, जिससे इसकी विशाल आबादी की जल आवश्यकताओं को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
      • नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा जून 2018 में प्रकाशित ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ (CWMI) शीर्षक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि भारत अपने इतिहास में सबसे गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है; इसके लगभग 600 मिलियन लोग चरम जल तनाव का सामना कर रहे हैं; और सुरक्षित जल की अपर्याप्त पहुँच के कारण हर वर्ष लगभग 200,000 लोग मृत्यु का शिकार हो रहे हैं।
    • भूजल का अति उपयोग या अत्यधिक दोहन:
      • भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता देश है, जिसका अनुमानित उपयोग प्रतिवर्ष लगभग 251 BCM है, जो कुल वैश्विक उपयोग के एक चौथाई भाग से अधिक है।
      • 60% से अधिक सिंचित कृषि और 85% पेयजल आपूर्ति भूजल पर निर्भर है तथा बढ़ते औद्योगिक/शहरी उपयोग के साथ यह बेहद महत्त्वपूर्ण संसाधन है।
      • अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता लगभग 1400 m3 तक कम हो जाएगी और वर्ष 2050 तक यह 1250 m3 तक कम हो जाएगी।
    • भूजल संदूषण:
      • भूजल संदूषण (Groundwater contamination) घरेलू सीवेज सहित मानवीय गतिविधियों के कारण जल में बैक्टीरिया, फॉस्फेट और भारी धातुओं जैसे प्रदूषकों की उपस्थिति है।
      • नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की सूची में 120वें स्थान पर है, जिसका लगभग 70% जल संदूषित है।
      • भारत के कुछ हिस्सों में भूजल में प्राकृतिक रूप से आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आयरन का उच्च स्तर भी पाया जाता है, जिनकी सांद्रता में जल स्तर की गिरावट के साथ वृद्धि की संभावना है।
    • सुरक्षित पेयजल तक पहुँच का अभाव:
      • लाखों भारतीयों की सुरक्षित पेयजल और बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है, जिससे जलजनित बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं।
        • भारत में जल संकट विशेष रूप से तेज़ी से बढ़ते मध्यम वर्ग की ओर से स्वच्छ जल की बढ़ती मांग और खुले में शौच के व्यापक अभ्यासों के कारण बढ़ गया है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ पैदा हो रही हैं।
    • विश्व बैंक के कुछ आँकड़े देश की दुर्दशा को उजागर करते हैं:
      • 163 मिलियन भारतीयों की सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है।
      • 210 मिलियन भारतीयों की बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है।
      • 21% संचारी रोग असुरक्षित जल से संबद्ध हैं।
      • भारत में हर दिन पाँच वर्ष से कम आयु के 500 बच्चे डायरिया से मर जाते हैं।
    • भविष्य के अनुमान:
      • नीति आयोग की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक देश की जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाएगी, जिससे लाखों लोगों के लिये जल की गंभीर कमी उत्पन्न होगी और अंततः देश की जीडीपी को नुकसान होगा।
      • एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2041-2080 के दौरान भारत में भूजल की कमी की दर ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के साथ वर्तमान दर से तीन गुना अधिक होगी।
      • विभिन्न जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों में, शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि वर्ष 2041 से 2080 तक भूजल स्तर (GWL) में गिरावट का उनका अनुमान वर्तमान गिरावट दर का औसतन 3.26 गुना (1.62-4.45 गुना) होगा जो जलवायु मॉडल और प्रतिनिधि सांद्रता मार्ग (Representative Concentration Pathway- RCP) परिदृश्य पर निर्भर करेगा।

    भारत में जल संकट से निपटने के लिये आवश्यक कदम:

    • नदियों को जोड़ना:
      • इसमें यह विचार शामिल है कि नदियों को आपस में जोड़ा जाना चाहिये, ताकि जल की कमी के मुद्दे को हल करने के लिये जल अधिशेष वाली नदियों एवं क्षेत्रों से जल को इसकी कमी वाली नदियों तथा क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सके।
    • जल संरक्षण को बढ़ावा देना:
      • व्यक्तिगत, सामुदायिक और राष्ट्रीय स्तर पर जल संरक्षण उपायों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है।
      • इसमें वर्षा जल संचयन, कुशल सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना और घरेलू, औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्रों में जल की बर्बादी को कम करना शामिल है।
    • अवसंरचना में निवेश करना:
      • जल अवसंरचना विकास, रखरखाव और पुनर्वास के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधन आवंटित किया जाए।
      • जल परियोजनाओं हेतु धन जुटाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी, जल शुल्क और उपयोगकर्त्ता शुल्क जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र पर विचार किया जाए।
    • सतत् कृषि को बढ़ावा देना:
      • किसानों को ड्रिप सिंचाई, परिशुद्ध कृषि, फसल चक्र और कृषि वानिकी जैसी जल-कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
      • जल-बचत प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिये प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करने के माध्यम से इस संक्रमण को सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
      • ‘जल की प्रति बूंद अधिक फसल एवं आय’ पर एम.एस. स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट (2006) के अनुसार, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई से फसल की खेती में लगभग 50% जल की बचत की जा सकती तथा फसलों की पैदावार 40-60% तक बढ़ सकती है।
    • प्रदूषण को संबोधित करना:
      • औद्योगिक बहि:स्राव, सीवेज उपचार और कृषि अपवाह पर सख्त नियम लागू कर जल प्रदूषण का मुकाबला किया जाए।
      • अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों की स्थापना करने और पर्यावरण-अनुकूल अभ्यासों को अपनाने से नदियों, झीलों एवं भूजल स्रोतों में प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • विधान और शासन:
      • जल-संबंधी विधान, नीतियों और नियामक तंत्रों को अधिनियमित एवं लागू कर जल प्रशासन ढाँचे को सुदृढ़ किया जाए।
      • स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय जल प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थापना से जल प्रबंधन रणनीतियों के समन्वित निर्णयन एवं कार्यान्वयन की सुविधा मिल सकती है।
      • कम जल-गहन फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन नीतियाँ (minimum support policies) शुरू करने से कृषि जल के उपयोग पर दबाव कम हो सकता है।
    • सामाजिक सहभागिता:
      • भूजल प्रशासन में सामुदायिक भागीदारी और अधिकारों को सशक्त करने से भूजल प्रबंधन में सुधार हो सकता है।
      • प्रायद्वीपीय भारत में भूजल प्रशासन के लिये विश्व बैंक की परियोजनाएँ सहभागी भूजल प्रबंधन (Participatory Groundwater Management- PGM) दृष्टिकोण लागू करने के माध्यम से कई मोर्चों पर सफल रहीं।
    • ‘वन वाटर एप्रोच’ को अपनाना:
      • वन वाटर एप्रोच (One Water Approach), जिसे एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) भी कहा जाता है, इस बात की मान्यता है कि सभी जल का मूल्य है, चाहे उसका स्रोत कुछ भी हो।
      • इसमें पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ के लिये समुदाय, व्यापारिक नेताओं, उद्योगों, किसानों, संरक्षणवादियों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य लोगों को शामिल करते हुए उस स्रोत को एकीकृत, समावेशी एवं संवहनीय तरीके से प्रबंधित करना शामिल है।

    निष्कर्ष:

    सभी हितधारकों की समावेशी भागीदारी को बढ़ावा देकर और अल्पकालिक लाभ पर दीर्घकालिक संवहनीयता को प्राथमिकता देने वाली ठोस नीतियों को लागू कर, भारत एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जहाँ हर भारतीय की सुरक्षित एवं भरोसेमंद भूजल तक पहुँच हो।

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