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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में विभिन्न प्रकार की मुद्रास्फीति पर चर्चा कीजिये। मुद्रास्फीति से किस प्रकार से भारत का वृद्धि और विकास परिदृश्य प्रभावित होता है? भारत में मूल्य स्थिरता के साथ मुद्रास्फीति को कम करने से संबंधित कुछ नीतिगत उपाय बताइये। (250 शब्द)

    12 Jul, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मुद्रास्फीति का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • बताइये कि मुद्रास्फीति भारत के वृद्धि और विकास परिदृश्य को किस प्रकार प्रभावित करती है।
    • मूल्य स्थिरता को बनाए रखने के साथ मुद्रास्फीति को कम करने के लिये कुछ नीतिगत उपाय बताइये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    मुद्रास्फीति का आशय एक निश्चित समयावधि में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में निरंतर होने वाली वृद्धि से है। मुद्रास्फीति दर का आशय एक निश्चित अवधि (आमतौर पर एक वर्ष या एक महीने) में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में होने वाला प्रतिशत परिवर्तन है। मुद्रास्फीति दर ऐसे प्रमुख व्यापक आर्थिक संकेतकों में से एक है जिससे किसी देश के आर्थिक प्रदर्शन का आकलन होता है।

    मुख्य भाग:

    भारत में मुद्रास्फीति के प्रकार:

    • मांग प्रेरित मुद्रास्फीति:
      • ऐसा तब होता है जब वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग कुल आपूर्ति से अधिक हो जाती है, जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
      • ऐसा आय वृद्धि, जनसंख्या वृद्धि, राजकोषीय प्रोत्साहन एवं मौद्रिक विस्तार आदि जैसे कारकों से हो सकता है।
    • लागत प्रेरित मुद्रास्फीति:
      • ऐसा तब होता है जब वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की लागत बढ़ जाती है, जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
      • ऐसा मज़दूरी एवं कर में वृद्धि तथा सब्सिडी में कमी जैसे कारकों से हो सकता है।
    • संरचनात्मक मुद्रास्फीति:
      • ऐसा तब होता है जब अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक स्तर पर जटिलताएँ आ जाती हैं जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
      • ऐसा बुनियादी ढाँचे की खराब स्थिति, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, बाज़ार की जटिलताएँ एवं संस्थागत बाधाओं आदि जैसे कारकों से हो सकता है।
    • आयातित मुद्रास्फीति:
      • ऐसा तब होता है जब बाहरी कारकों से आयातित वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे घरेलू कीमतें बढ़ जाती हैं।
      • ऐसा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीतियों में असंतुलन एवं विनिमय दर में उतार-चढ़ाव आदि जैसे कारकों से हो सकता है।

    भारत की वृद्धि और विकास संभावनाओं पर मुद्रास्फीति का प्रभाव:

    • सकारात्मक प्रभाव:
      • मध्यम स्तर की मुद्रास्फीति से अर्थव्यवस्था और समाज पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है जैसे आर्थिक विकास एवं निवेश और नवाचार को प्रोत्साहन मिलना, बेरोज़गारी में कमी आना, कर राजस्व में वृद्धि होना और ऋण के बोझ में कमी आना आदि।
    • नकारात्मक प्रभाव:
      • उच्च मुद्रास्फीति से अर्थव्यवस्था और समाज पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसे क्रय शक्ति में कमी आना, सापेक्ष कीमतों में विकृति होना, अनिश्चितता और अस्थिरता पैदा होना, बचत और निवेश हतोत्साहित होना, आय असमानता को बढ़ावा मिलना, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में बाधा उत्पन्न होना आदि।

    भारत में मूल्य स्थिरता को प्राप्त करने तथा मुद्रास्फीति को कम करने हेतु नीतिगत उपाय:

    • मौद्रिक नीति:
      • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2016 से +/- 2% के उतार-चढ़ाव के साथ मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4% रखा है।
      • आरबीआई द्वारा अर्थव्यवस्था में धन आपूर्ति और ऋण उपलब्धता को विनियमित करने और ब्याज एवं विनिमय दरों को प्रभावित करने के लिये रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात, वैधानिक तरलता अनुपात आदि जैसे विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
      • आरबीआई विभिन्न उतार-चढ़ाव और चुनौतियों के बावजूद मुद्रास्फीति को लक्ष्य सीमा के अंदर रखने में काफी हद तक सफल रहा है।
      • हालाँकि मौद्रिक नीति की कुछ सीमाओं में समय अंतराल, ट्रांसमिशन मुद्दे, राजकोषीय नीति के साथ समन्वय संबंधी जटिलताएँ आदि शामिल हो सकती हैं।
    • राजकोषीय नीति:
      • राजकोषीय अनुशासन को सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2003 में सरकार द्वारा राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM) लागू किया गया।
      • अर्थव्यवस्था में कुल मांग और आपूर्ति को प्रभावित करने और राजकोषीय घाटे तथा सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन करने के लिये सरकार द्वारा कराधान, व्यय, उधार, सब्सिडी आदि जैसे विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
      • संकट के समय में अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये सरकार द्वारा विभिन्न राजकोषीय प्रोत्साहन दिये जाते हैं।
      • हालाँकि राजकोषीय नीति से संबंधित कुछ चुनौतियों में राजस्व में कमी होना, व्यय में वृद्धि होना, धन का बहिर्गमन होना आदि शामिल हैं।
    • आपूर्ति-पक्ष संबंधी नीति:
      • सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था की उत्पादकता और दक्षता में सुधार लाने और मुद्रास्फीति का कारण बनने वाली संरचनात्मक बाधाओं और बाज़ार की खामियों को कम करने के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास, कृषि सुधार, औद्योगिक सुधार, व्यापार उदारीकरण आदि जैसे विभिन्न उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
      • सरकार द्वारा समाज के कमज़ोर वर्गों को मुद्रास्फीति के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने और आवश्यक वस्तुओं तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), खाद्य सुरक्षा अधिनियम आदि जैसी विभिन्न योजनाएँ भी शुरू की गई हैं।
      • हालाँकि आपूर्ति-पक्ष की नीतियों से संबंधित कुछ मुद्दों में कार्यान्वयन अंतराल, रिसाव, भ्रष्टाचार आदि शामिल हैं।

    निष्कर्ष:

    मुद्रास्फीति एक ऐसी जटिल घटना है जिससे अर्थव्यवस्था और समाज पर विभिन्न प्रभाव पड़ते हैं। मुद्रास्फीति को एक ऐसे स्तर पर रखने की आवश्यकता होती है जिससे विकास और स्थिरता के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण हेतु संतुलित मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों के साथ-साथ अन्य हितधारकों के समन्वित और व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

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