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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में प्राकृतिक खेती की अवधारणा तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने में इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    16 Jan, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्राकृतिक कृषि का संक्षेप में परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्थायी कृषि को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालिये।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    प्राकृतिक कृषि एक ऐसी कृषि पद्धति है जो रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों पर निर्भर रहने के बजाय फसलों के उत्पादन और पशुपालन के लिये प्राकृतिक प्रक्रियाओं और स्थानीय रूप से अनुकूलित पारिस्थितिक तंत्र के उपयोग पर बल देती है।

    इसमें अक्सर फसल चक्रण, इंटरक्रॉपिंग और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिये कवर फसलों के उपयोग जैसे तत्त्व शामिल होते हैं। प्राकृतिक कृषि का लक्ष्य ऐसा आत्मनिर्भर कृषि पारिस्थितिकी तंत्र सृजित करना है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित हो।

    मुख्य भाग:

    • भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्थायी कृषि को बढ़ावा देने में प्राकृतिक कृषि का महत्त्व:
      • प्राकृतिक कृषि का उद्देश्य लागत में कमी, कम जोखिम, समान उपज द्वारा किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि करके कृषि को व्यवहार्य और आकांक्षी बनाना है।
        • खाद्य और पोषण सुरक्षा: प्राकृतिक कृषि भारत में खाद्य सुरक्षा में सुधार करने में मदद कर सकती है, विशेष रूप से छोटे स्तर के किसानों के लिये जिनके पास आधुनिक इनपुट तक पहुँच नहीं है या वह अधिक खर्च करने में सक्षम नहीं हैं।
          • प्राकृतिक तकनीकों पर भरोसा करके किसान उच्च लागत के बिना स्वस्थ, पौष्टिक अनाज का उत्पादन कर सकते हैं।
      • सतत कृषि:
        • शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZNBF): प्राकृतिक कृषि की प्रमुख प्रक्रियाओं में से एक, शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZNBF) है।
          • यह कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों जैसे किसी बाहरी निवेश के उपयोग के बिना फसलों के उत्पादन की प्रणाली है।
          • शून्य बजट वाक्यांश, शून्य उत्पादन लागत वाली फसलों को संदर्भित करता है। लागत कम होने और पैदावार बढ़ाने में सहायक होने के कारण इससे किसानों के राजस्व में वृद्धि होती है।
      • उत्पादन लागत कम करना: प्राकृतिक प्रक्रियाओं के सिद्धांतों पर आधारित होने से इसमें कीटनाशकों और उर्वरकों जैसे बाहरी आदानों पर निर्भरता में कमी आती है। उत्पादन की कुल लागत में कमी आने से यह किसानों के लिये अधिक व्यवहार्य हो जाता है।
      • मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार: प्राकृतिक कृषि मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करती है जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि होने के साथ कीट संक्रमण की घटनाओं में कमी आती है।
      • SDG-2 प्राप्त करने में सहायक: भारत में प्राकृतिक कृषि कोई नई अवधारणा नहीं है। प्राचीन काल से जैविक अवशेषों जैसे गाय के गोबर और प्राकृतिक खाद का कृषि में उपयोग होता आ रहा है।
        • यह सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2 के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य 'भूखमरी खत्म करना, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण हासिल करना और सतत कृषि को बढ़ावा देना' है।
      • महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना: ग्रामीण क्षेत्र श्रम प्रधान जैविक कृषि में रोजगार के सृजन से लाभान्वित हो सकते हैं और उन महिलाओं की भागीदारी को भी सुगम बना सकते हैं जिनकी औपचारिक ऋण बाजार तक कम पहुँच है और वे अक्सर कृषि इनपुट नहीं खरीद सकती हैं।
      • रोजगार सृजन और गरीबी कम करने में सहायक: आर्थिक दृष्टिकोण से जैविक कृषि से किसानों के लिये कई लाभ हैं जिनमें सस्ता इनपुट, उच्च और अधिक स्थिर मूल्य शामिल हैं।
        • भारत जैसे उभरते हुए देश में सतत कृषि, खाद्य सुरक्षा और रोजगार सृजन की दोहरी चुनौतियों का सामना करने में मदद कर सकती है, यह गरीबी कम करने में भी मदद करती है।
    • भारत में प्राकृतिक कृषि से संबंधित चुनौतियाँ:
      • कम बजटीय समर्थन: भारत में ‘सतत कृषि पर राष्ट्रीय मिशन’ को कृषि बजट का केवल 0.8% प्राप्त होता है जो प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और समर्थन करने के लिये पर्याप्त नहीं है। इसके अतिरिक्त कीट प्रकोप को नियंत्रित करने के लिये प्राकृतिक कृषि समाधान नहीं हो सकता है, किसानों को ऐसी स्थितियों के दौरान रासायनिक आदानों की आवश्यकता हो सकती है।
      • सिंचाई सुविधा का अभाव: राष्ट्रीय स्तर पर भारत के सकल फसली क्षेत्र (GCA) का केवल 52% क्षेत्र सिंचित है। आजादी के बाद से भारत ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, इसके बावजूद मानसून से फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
      • कृषि विविधीकरण का अभाव: भारत में कृषि के तेजी से व्यावसायीकरण के बावजूद अधिकांश किसान अनाज उत्पादन पर बल देते हैं जिससे फसल विविधीकरण की उपेक्षा होती है।
    • प्राकृतिक कृषि से संबंधित सरकारी पहल:
      • राष्ट्रीय जैविक उत्पाद कार्यक्रम (NPOP): इसका उद्देश्य प्राकृतिक कृषि और गुणवत्तापूर्ण उत्पादों का केंद्रित और सुनिर्देशित विकास करना है।
      • राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (NCOF): इसका उद्देश्य मानव संसाधन विकास, प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, गुणवत्ता वाले जैविक आदानों के प्रचार और उत्पादन सहित सभी हितधारकों की तकनीकी क्षमता निर्माण के माध्यम से देश में जैविक कृषि को बढ़ावा देना है।
      • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): इसका उद्देश्य उपयुक्त अनुकूलन और शमन योजना बनाकर जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों के संदर्भ में 'सतत कृषि' से संबंधित समस्याओं और मुद्दों का समाधान करना है।
      • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): यह योजना क्लस्टर गठन, प्रमाणन, प्रशिक्षण और विपणन में सहायता प्रदान करती है।
      • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH): यह फल, सब्जियों, जड़ और कंद फसलों, मशरूम, मसालों, फूलों, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको और बाँस को कवर करने वाले बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना है।

    निष्कर्ष:

    • भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिये कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करना होगा। इसके लिये ऐसे दृष्टिकोण को अपनाना चाहिये जो किसानों को अधिक पैसा कमाने में सहायक होने के साथ कम रसायनों एवं कीटनाशकों का उपयोग करते हुए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पौष्टिक भोजन का उत्पादन करने में सक्षम हो।
    • यदि अधिक से अधिक किसान जैविक और प्राकृतिक कृषि के तरीकों को सफलतापूर्वक अपना लें तो भारतीय कृषि टिकाऊ हो सकती है। इसके लिये राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सरकारों को वर्तमान प्रयासों की तुलना में बड़े पैमाने पर इस परिवर्तन का नेतृत्व करने और समर्थन करने के लिये समन्वित उपाय करने की आवश्यकता होगी। यह उपाय राजनीतिक नेतृत्व की प्रतिबद्धता के साथ पर्याप्त बजट द्वारा समर्थित होने चाहिये।

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