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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. "अपरिक्षित जीवन जीने योग्य नहीं है", आप सुकरात के इस कथन की व्याख्या कैसे करेंगे? (250 शब्द)

    17 Nov, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सुकरात के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • दिये गए कथन पर अपना पहलू रखते हुए व्याख्या कीजिये|
    • आत्म-पुनरावलोकन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    • सुकरात एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक था जिसे नैतिकता और अन्वेषण का जनक माना जाता है। उसकी मान्यताओं के अनुसार, परिपक्वता, ज्ञान और प्रेम के माध्यम से नैतिकता विकसित होती है।
    • 400 ई.पू. में उसने शिक्षण नैतिकता और आचरण के स्वीकार्य मानकों की अवधारणा पेश की और तब से पश्चिमी दर्शन तथा इतिहास के पाठ्यक्रम पर इसका गहरा और स्थायी प्रभाव रहा है।

    रूपरेखा

    • उपर्युक्त कथन की व्याख्या:
      • हमें हमारे अस्तित्व को साधारण प्राणियों से ऊपर उठाने के लिये हमारे अत्यधिक विकसित विचारों का उपयोग करना आवश्यक है। साधारण खाना, सोना, काम करना और प्रजनन करना हमें जानवरों से अलग नहीं कर सकता है। बिना तर्क के हमारा जीवन जीने योग्य नहीं है | परीक्षित जीवन ही सही समय, सही स्थान और योग्य लोगों को प्यार, नफरत, उदारता और खुशी देने में मदद करता है। ऐसा जीवन सीखने और बेहतर बनने में मदद करता है।
      • हालाँकि, लोगों और पूरे समाज पर इसके संभावित नकारात्मक प्रभावों के कारण जीवन की कठोर परीक्षा को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए जो मनुष्य नियमित आत्मनिरिक्षण में संलग्न है वे परमानन्द में जीतें हैं। वे मनुष्य बौद्धिक-सह-आध्यात्मिक-सह-अमूर्त अवस्था में रहने लगते हैं।
      • यह जीवन परीक्षक और पूरे समाज दोनों को खतरे में डाल सकता है। जो व्यक्ति कठोर आत्म-आलोचनात्मक परीक्षण में संलग्न होता है वह अंततः इसमे उलझ ही जाता है। जैसे कि सुकरात द्वंद्ववाद में उलझ गए और अलोकप्रिय हो गए , उन पर युवाओं को भ्रष्ट करने का आरोप लगाया गया और अंततः उन्हें मौत की सजा दी गई।
      • मानव जीवन में आत्म-पुनरावलोकन का महत्व:
        • महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' के माध्यम से आत्म निरिक्षण किया है, उनकी आत्मकथा जीवन पर प्रतिबिंब के महत्व पर प्रकाश डालती है। महात्मा गांधी न केवल आत्म-परीक्षण के माध्यम से अपनी कमज़ोरियों का पता लगाने में सक्षम थे बल्कि अपने पूर्वाग्रहों पर सवाल उठाने और एक इंसान के रूप में अपनी ताकत को समझने में भी सक्षम थे।
        • महाभारत में चिंतन क्षमता 'अर्जुन' के चरित्र को भीष्म, युधिष्ठिर या कौरवों जैसे अधिकांश अन्य पात्रों की तुलना में अधिक गहराई प्रदान करती है। I नियमों का पालन करने और अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ लड़ने के स्थान पर , अर्जुन युद्ध की अर्थहीनता और अपने जीवन के उद्देश्य पर सवाल उठाता है|

    निष्कर्ष :

    सुकरात का यह विश्वास था की "अपरीक्षित जीवन जीने योग्य नहीं है"। इस उद्धरण ने सुकरात की शिक्षाओं के सार और राजनीतिक दर्शन के दायरे के प्रभाव को संक्षेप में प्रस्तुत किया है |

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