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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. विश्व में भूकंप के वितरण पर प्रकाश डालिये। भूकंप संबंधी खतरों के प्रति भारत की सुभेद्यता की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

    14 Nov, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूकंप का संक्षेप में वर्णन करते हुए अपने उत्तर का परिचय दीजिये।
    • विश्व में भूकंप के वितरण की चर्चा कीजिये।
    • भारत में भूकंप संबंधी खतरों की भेद्यता पर चर्चा कीजिये।

    परिचय

    साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी की कंपन से होता है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।

    भूकंप से उत्पन्न तरगों को भूकंपीय तरगें कहा जाता है, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं तथा इन्हें ‘सिस्मोग्राफ’ (Seismographs) से मापा जाता है।

    पृथ्वी की सतह के नीचे का स्थान जहाँ भूकंप का केंद्र स्थित होता है, हाइपोसेंटर (Hypocenter) कहलाता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर स्थित वह स्थान जहाँ भूकंपीय तरगें सबसे पहले पहुँचती है अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।

    भूकंप के प्रकार: फाल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखी भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप।

    भूकंप का वितरण:

    • परि-प्रशांत भूकंपीय पेटी: विश्व की सबसे बड़ी भूकंप पेटी, परि-प्रशांत भूकंपीय पेटी, प्रशांत महासागर के किनारे पाई जाती है, जहाँ हमारे ग्रह के सबसे बड़े भूकंपों के लगभग 81% आते हैं। इसने "रिंग ऑफ फायर" उपनाम अर्जित किया है।
      • यह पेटी विवर्तनिक प्लेटों की सीमाओं में मौजूद है, जहाँ अधिकतर समुद्री क्रस्ट की प्लेटें दूसरी प्लेट के नीचे जा रही हैं। इसका कारण इन ‘सबडक्शन ज़ोन’ में भूकंप, प्लेटों के बीच फिसलन और प्लेटों का भीतर से टूटना है।
    • मध्य महाद्वीपीय बेल्ट: एल्पाइड भूकंप बेल्ट (मध्य महाद्वीपीय बेल्ट) जावा से सुमात्रा तक हिमालय, भूमध्यसागर और अटलांटिक में फैली हुई है।
      • इस बेल्ट में दुनिया के सबसे बड़े भूकंपों का लगभग 17% भूकंप आते है, जिसमें कुछ सबसे विनाशकारी भी शामिल हैं।
    • मध्य अटलांटिक कटक: तीसरा प्रमुख बेल्ट जलमग्न मध्य-अटलांटिक रिज में है। रिज वह क्षेत्र होता है, जहाँ दो टेक्टोनिक प्लेट अलग-अलग विस्तृत होती हैं।
      • मध्य अटलांटिक रिज का अधिकांश भाग गहरे पानी के भीतर है और मानव हस्तक्षेप से बहुत दूर है।

    South-America

    भारत अल्पाइन भूकंप बेल्ट में स्थित है जो भूकंपों के सबसे विनाशकारी बेल्ट में से एक है। इसलिये भारत भूकंप संबंधी खतरों के प्रति सुभेद्य है :

    भारत भूकंप के प्रति संवेदनशील है क्योंकि:

    • भूभाग यूरेशियन प्लेट में प्रवेश कर रहा है, जो देश को बहुत अधिक तीव्रता के भूकंपों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
    • घनी आबादी वाले क्षेत्रों, व्यापक अवैज्ञानिक निर्माणों और अनियोजित शहरीकरण ने जोखिमों को बढ़ा दिया है।
    • हिमालय की तलहटी में स्थित क्षेत्र भूकंप के कारण भूस्खलन की चपेट में हैं।
    • इसके अलावा, भारत का लगभग 59% क्षेत्र विभिन्न तीव्रता के भूकंपों के लिये प्रवण है। इन्हें चार भूकंपीय ज़ोन में वर्गीकृत किया गया है:
      • ज़ोन -V (अति उच्च जोखिम),
      • ज़ोन - IV (उच्च जोखिम),
      • ज़ोन -III (मध्यम जोखिम),
      • ज़ोन - II (कम जोखिम)।

    Seismic-Zone

    • देश के वर्तमान सिस्मिक ज़ोन मैप के अनुसार भारत की भूमि का लगभग 59% हिस्सा सामान्य से गंभीर भूकंपीय खतरों के अधीन है। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष उत्तर व उत्तर-पूर्व दिशा में 1 सेमी. खिसक रही है परंतु उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट के अवरोध के परिणामस्वरूप हिमालय का तलहटी क्षेत्र भूकंप, द्रवीकरण और भूस्खलन की चपेट में है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एक अंतर-प्लेट सीमा पर स्थित होने के कारण अक्सर विनाशकारी भूकंपों का अनुभव करते हैं। भारत की बढ़ती आबादी, व्यापक अवैज्ञानिक निर्माणों एवं अनियोजित शहरीकरण आदि ने भी भूकंप से जुड़े जोखिमों को बढ़ा दिया है।
    • पिछले तीन दशकों में भूकंप के कारण क्रमश: कई आपदाएँ हुईं; जैसे-1993 में लातूर और उस्मानाबाद में भूकंप आया, जिसमें अपेक्षाकृत उथली गहराई के कारण सतह की बड़ी क्षति हुई। 1999 में चमोली में थ्रस्ट फॉल्ट के कारण भूकंप आया। परिणामस्वरूप भूस्खलन, सतही जल प्रवाह में परिवर्तन, सतह का टूटना और कटी हुई घाटियों को देखा गया। 2001 में रिएक्टिवेटेड फॉल्ट के कारण भुज में भूकंप आया और जान-माल की भारी क्षति हुई। 2004 में हिंद महासागर में नीचे भूकंपीय गतिविधि के कारण सुनामी आई जिसने भारत के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित किया।

    निष्कर्ष

    • भूकंप जनित खतरों के प्रति सुभेद्यता के अनुरूप विकास योजनाएँ बनाने की आवश्यकता है, ताकि पर्यावरण संतुलन के साथ सतत विकास को बढ़ावा मिले और जान-माल की क्षति कम की जा सके।

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