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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    यह कहना कहाँ तक न्यायसंगत है कि आधुनिक भारत में सांप्रदायिकता की समस्या औपनिवेशिक विरासत का ही एक उत्पाद है? (150 शब्द)

    27 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय समाज में व्याप्त सांप्रदायिकता पर उपनिवेशवाद के प्रभाव के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने में औपनिवेशिक नीतियों की भूमिका को बताइये।
    • संतुलित निष्कर्ष दीजिये।

    सांप्रदायिकता पद का प्रयोग विभिन्न समुदायों के मध्य धार्मिक/जातीय पहचान के रूप में किया जाता है। वस्तुत: भारतीय औपनिवेशिक दासता के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा इसी जातीय पहचान का प्रयोग ‘‘बाँटो और राज करो’’ की नीति के तहत किया गया, जहाँ उन्होंने भारतीय समाज को विभिन्न जातियों एवं संप्रदायों में बाँटा तथा उनकी जातीय पहचान का दुरुपयोग समाज में वैमनस्य फैलाने में किया। वस्तुत: सांप्रदायिकता का अर्थ वर्तमान में नकारात्मक स्वरूप लिये है, जो समाज में भेदभाव, कटुता एवं नफरत फैलाती है।

    वर्तमान में देखा जाए तो कई मायनों में वर्तमान सांप्रदायिकता की जड़ें औपनिवेशिक काल की ही विरासत महसूस होती हैं, जहाँ भारतीय समाज की विविधता का दुरुपयोग कर ब्रिटिश एवं अन्य यूरोपियों ने बाँटो और राज करो की नीति का अनुसरण करते हुए भारत पर शासन करने का मौका प्राप्त किया। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य भारत के दो बड़े धार्मिक समूहों-हिंदू एवं मुस्लिम के बीच दरार उत्पन्न कर उनकी आपसी लड़ाई का लाभ स्वयं लेना था, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे।

    ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति ने भारत में हिंदू-मुस्लिम धार्मिक विविधता का दुरुपयोग बंगाल विभाजन से प्रारंभ कर सांप्रदायिक निर्वाचन, सांप्रदायिक पंचाट एवं भारत विभाजन तक किया, जिसकी परिणति रही कि भारत में सांप्रदायिकता के मुद्दे पर समय-समय पर कई विवाद एवं हिंसा होती आई है, जो वर्तमान में भी कहीं-न-कहीं दिखाई देती रहती है, फिर चाहे वह मुज़फ्फरनगर हिंसा हो, राम मंदिर विवाद हो, सहारनपुर विवाद हो या फिर वर्तमान में जारी सी.ए.ए. प्रोटेस्ट ही क्यों न हो, इनमें कहीं-न-कहीं सांप्रदायिक तत्त्व विद्यमान हैं।

    वस्तुत: भारत में सांप्रदायिकता के बीज औपनिवेशिक काल में बोए गए थे, किंतु पूर्णत: यह मान लेना कि सिर्फ यही एक कारण सांप्रदायिकता के लिये उत्तरदायी है तो यह गलत होगा। इसके लिये कुछ अन्य कारण, जैसे- एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना, सहिष्णुता की कमी एवं राजनीतिक पार्टियों द्वारा की जाने वाली वोट बैंक की राजनीति आदि प्रमुख हैं। यद्यपि भारतीय संविधान निर्माण के साथ ही भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया, जहाँ सर्व धर्म समभाव की बात कही गई। हमें वर्तमान में भी धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को पूर्णत: लागू करने हेतु अपनी ‘सर्व धर्म समभाव’ की नीति को यथासंभव एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की ओर स्थानांतरित करना चाहिये।

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