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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या अंतरात्मा कानूनों, नियमों एवं विनियमों की तुलना में नैतिक निर्णय लेने के लिये अधिक विश्वसनीय मार्गदर्शक है? उचित उदाहरणों के साथ अपने तर्कों की पुष्टि कीजिये। (150 शब्द)

    23 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अंतरात्मा को परिभाषित करते हुए कानूनों एवं अंतरात्मा के बीच उत्पन्न होने वाले संघर्ष को बताइये।
    • उदाहरणों के साथ बताइये कि अकेले अंतरात्मा के निर्णय को लोकतांत्रिक व्यवस्था में कैसे पूर्णत: नहीं स्वीकारा जाना चाहिये।
    • संतुलित निष्कर्ष दीजिये।

    अंतरात्मा व्यक्ति में सही एवं गलत का अंतर करनेवाला नैतिक बोध है जो कि व्यक्ति के व्यवहारों के लिये मार्गदर्शक का कार्य करता है। हमारी अंतरात्मा की सहायता से हम अपने नैतिक सिद्धांतों को गहनता से जानते हैं तथा उनके अनुरूप कार्य करने हेतु प्रेरित होते हैं। सार्वजनिक सेवा में कार्य करते हुए एक व्यक्ति को प्रचलित कानूनों एवं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने के संदर्भ में नैतिक दुविधा उत्पन्न हो सकती है।

    यदि कोई लोकतांत्रिक प्रणाली बहुमत की मनमानी एवं अलोकतांत्रिक नियमों पर आधारित होती है तो उसका उल्लंघन नैतिकता के आधार पर किया जा सकता है। जैसा कि महात्मा गांधी ने भी कहा है कि ‘‘अंतरात्मा के मामले में बहुमत के नियमों एवं कानूनों का कोई स्थान नहीं हैं।’’ अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के आधार पर ही गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के प्रति किये जाने वाले भेदभाव के विरुद्ध तथा भारत में चंपारण के किसानों का शोषण करने वाली तिनकठिया पद्धति के खिलाफ सत्याग्रह की शुरुआत की थी तथा ऐसा ही अमेरिका की एक अश्वेत महिला रोजा पार्क्स ने श्वेत व्यक्ति को सीट न देकर नागरिक अधिकारों के आंदोलन की नींव रखी। जबकि उस समय श्वेत व्यक्तियों के लिये सीट छोड़ना कानूनी रूप से बाध्यकारी था। इन उदाहरणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि अंतरात्मा की आवाज़ व्यक्ति को नैतिक मार्ग प्रदान करती है।

    किंतु यह कहना पूर्णत: तार्किक प्रतीत नहीं होता कि अंतरात्मा कानूनों, नियमों एवं विनियमों की तुलना में अधिक विश्वसनीय मार्गदर्शक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत नियम या संहिताएँ ‘सार्वभौमिक न्याय’ को ध्यान में रखकर निर्मित की जाती हैं जिसके तहत यह माना जाता है कि सामान्य परिस्थितियों में इन नियमों का पालन करके अधिकतर नागरिकों के हितों को संरक्षित किया जा सकता है। अत: सिविल सेवकों एवं नागरिकों से यह अपेक्षा होती है कि वे इन नियमों का पालन करेंगे। एक संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोक सेवक को सर्वप्रथम संवैधानिक विधियों का अनुसरण करना चाहिये तत्पश्चात् कानूनों, नियमों एवं विनियमों के अनुरूप कार्य करना चाहिये। यदि किसी विषय पर उपर्युक्त सभी मौन हों तो ऐसी स्थिति में उसे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के अनुरूप कार्य करना चाहिये। यद्यपि कई बार ऐसी स्थिति भी आ सकती है जहाँ लोक सेवक की अंतरात्मा संवैधानिक व संसदीय कानूनों के अनुरूप न हो। ऐसी स्थिति में उसे स्थापित कानूनों के अनुरूप ही कार्य करना चाहिये।

    यद्यपि किसी व्यक्ति की अंतरात्मा की नैतिकता का निर्धारण उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियाँ करती हैं, ऐसे में अंतरात्मा की आवाज़ सदैव ही नैतिक एवं न्यायसंगत निर्णय ले, यह आवश्यक नहीं है। अत: एक लोक सेवक को स्थापित विधियों के अनुरूप ही निर्णय लेने चाहिये। यदि वे सभी मौन हों तभी अंतरात्मा की आवाज़ के आधार पर निर्णय लेने चाहिये।

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