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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “विदेशी संबंधों के निर्धारण में कैदी प्रत्यावर्तन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।” कैदियों को लौटाने और पुनर्वास के संदर्भ में किये गए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की चर्चा करते हुए कैदी प्रत्यावर्तन अधिनियम 2003 का उल्लेख करें।

    23 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में कैदियों को लौटाने और पुनर्वास के संदर्भ में किये गए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों तथा कैदी प्रत्यावर्तन का उल्लेख करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    ऐसे कई मामले हैं जब एक देश के अपराधियों ने अन्य देशों की जेलों में समय काटा है, इन कैदियों को विदेशी कैदी माना जाता है। उदाहरण के लिये भारतीयों ने ब्रिटेन, पाकिस्तान या सऊदी अरब की जेलों में समय बिताया है, इसके विपरीत बांग्लादेश, नेपाल या श्रीलंका जैसे देशों के कैदियों ने भी भारतीय जेलों में समय काटा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे अपराधियों को अपने देश से दूर होने के कारण 'मानव' नहीं माना जाता है, खासकर जब उन्हें मामूली अपराध में सज़ा सुनाई जाती है। कैदियों की इस स्थिति को देखते हुए उन्हें स्वदेश लौटाने और पुनर्वास के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निम्नलिखित प्रयास किये गए हैं-

    • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध अनुच्छेद 12(4) के तहत कहा गया है कि एक व्यक्ति को उसके अपने देश लौटने का अधिकार है। अपने देश की अपेक्षा अन्य देश में सज़ा काटना कठिन माना गया है।
    • वर्ष 1963 के कॉन्सुलर रिलेशंस पर वियना सम्मेलन के तहत दूसरे देश में गिरफ्तारी, हिरासत और परीक्षण पर कॉन्सुलर संरक्षण का प्रावधान है।
    • विदेशी कैदियों के स्थानांतरण पर संयुक्त राष्ट्र मॉडल समझौता और 1985 के विदेशी कैदियों के उपचार की सिफारिशों के माध्यम से 'विदेशी कैदियों के सामाजिक पुनर्वास' पर उनके घरेलू देशों के प्रारंभिक प्रत्यावर्तन के माध्यम से ज़ोर दिया गया है।
    • सज़ायाफ्ता कैदियों के हस्तांतरण से संबंधित क़ानून युद्ध के बाद मानवतावादी विनिमय (‘पीओयू-युद्ध के कैदी’) में निहित है और वर्ष 2004 के दो संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून में निहित है।
    • राज्य कैदियों का आदान-प्रदान करने के लिये द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौते करने के लिये स्वतंत्र हैं। यहाँ यह सिद्धांत शामिल है कि 'विदेश में किया गया अपराध स्वयं के देश में भी एक अपराध ही है' बशर्ते कि कैदियों के हस्तांतरण की बातों को उत्तेजित/भड़काया न जाए (जिसमें भारी वृद्धि हुई है)।

    भारत में इस संदर्भ में कैदी प्रत्यावर्तन अधिनियम, 2003 लागू है, अधिनियम में दो भाग शामिल हैं- पहला हिस्सा भारतीय जेलों से अपने मूल के देशों में विदेशी कैदियों के हस्तांतरण से संबंधित है, जबकि दूसरा हिस्सा अपने देश में किसी भी दूसरे देश से सज़ायाफ्ता भारतीय नागरिकों को लाने से  संबंधित है। लगभग सभी प्रकार के कैदी प्रत्यावर्तन के योग्य हैं, बशर्ते कि वे इन शर्तों को पूरा करें-

    • वे वापस आने के इच्छुक हो।
    • उन पर किसी भी अदालत में कोई लंबित अपील न हो।
    • अपराध सैन्य कानून के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता हो।
    • मृत्युदंड न दिया गया हो।
    • उन्हें सुनाई गई सज़ा में से कम-से-कम 6 महीने की सज़ा शेष हो।
    • प्रत्यावर्तन के मामले में दोनों देशों की सहमति हो।

    भारत ने प्रत्यावर्तन से संबंधित 30 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं तथा विदेश में किये गए अपराधों पर अंतर-अमेरिकी सम्मेलन और सज़ायाफ्ता व्यक्तियों के स्थानांतरण पर यूरोप परिषद के सम्मेलन के साथ स्थानांतरण समझौता भी किया है। ये दोनों समझौते कम-से-कम 50 अन्य देशों को भारत के साथ एक सहकारी कानूनी ढाँचे के अंतर्गत लाते हैं।

    प्रत्यावर्तन के लिये किये गए विभिन्न प्रयासों और समझौतों के बावजूद वास्तविकता बहुत अधिक भरोसेमंद नहीं है। वर्ष 2015 में भारत से केवल 9 विदेशी कैदियों (6 यूनाइटेड किंगडम से और फ्राँस, ज़र्मनी तथा संयुक्त अरब अमीरात से एक-एक) को वापिस उनके देश में भेजा गया था। इसके अलावा 2003 से मार्च 2018 के बीच भारतीय नागरिकों को स्थानांतरित करने के लिये किये गए 171 आवेदनों में से केवल 63 को स्वीकार किया गया है।

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