दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    छोटे राष्ट्रों को भेडि़यों के आगे डालने से उनको संतुष्ट किया जा सकता है, पर वे यह नहीं समझ सके कि एक बार लहू का स्वाद चख लेने पर तृष्णा कभी पूर्ण नहीं होती, जितना तुष्टिकरण किया जाएगा, उतना ही असंतोष बढ़ेगा। द्वितीय विश्व युद्ध के संदर्भ में उपर्युक्त कथन का विश्लेषण कीजिये।

    25 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व तुष्टिकरण की नीति की चर्चा करें। 
    • इस नीति के प्रभाव की चर्चा करें। 
    • इसके बाद तुष्टिकरण करने वाले राष्ट्रों पर इसके प्रभाव की चर्चा करें।

    उपरोक्त कथन जर्मनी तथा इटली के प्रति ब्रिटेन तथा फ्राँस की तुष्टिकरण की नीति से संबंधित है। द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत से पहले इस नीति के कारण कई छोटे राष्ट्रों में उथल-पुथल मची तथा उन्हें अपनी स्वतंत्रता से हाथ धोना पड़ा। राजनीतिक संदर्भ में तुष्टिकरण वह कूटनीति है, जिसके द्वारा शत्रु शक्ति के साथ संघर्ष से बचने के लिये राजनीतिक या भौतिक रियायतें दी जाती हैं।

    1930 के दशक में ब्रिटेन तथा फ्राँस ने तुष्टिकरण की नीति अपनाई तथा शांति कायम करने के लिये हिटलर ने जो चाहा उसे दिया गया। ब्रिटिश प्रधानमंत्री नेविल चैंबरलेन तुष्टिकरण की नीति में विश्वास रखते थे। 

    ब्रिटेन के उत्पादों की जर्मनी में अच्छी खपत थी, अतः वह अपने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का बड़ा हिस्सा खोना नहीं चाहता था। ब्रिटेन व्यापारिक लाभों के लिये जर्मनी के पुनःशस्त्रीकरण में भी सहयोग कर रहा था।

    इटली के साथ तुष्टिकरण की नीति का कारण था कि ब्रिटेन अपने विश्वव्यापी साम्राज्य एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को कायम रखने के लिये भूमध्य सागर एवं सुदूरपूर्व को भी खतरों से सुरक्षित रखना चाहता था। 

    चूँकि प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् फ्राँस की शक्ति काफी बढ़ गई थी, अतः ब्रिटेन शक्ति संतुलन कायम करने के लिये जर्मनी को शक्तिशाली बनाना चाहता था। 

    हिटलर और मुसोलिनी ने ब्रिटेन तथा फ्राँस की तुष्टिकरण की नीति का भरपूर लाभ उठाया। ब्रिटेन और फ्राँस ने मुसोलिनी को संतुष्ट रखने के लिये राष्ट्रसंघ द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का पूर्णरूप से पालन नहीं होने दिया। हिटलर द्वारा राइनलैंड के सैन्यीकरण के विरुद्ध भी कोई कदम नहीं उठाया गया। 1938 में जर्मनी के द्वारा ऑस्ट्रिया का अतिक्रमण करने के बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं की गई तो हिटलर की विस्तारवादी लिप्सा और बढ़ गई। 1938 में चेकोस्लोवाकिया के सुदेतेनलैंड ने हिटलर के जर्मन संघ में शामिल होने की इच्छा जताई। म्यूनिख समझौते द्वारा बिना चेकोस्लोवाकिया की सलाह लिये ब्रिटेन तथा फ्राँस ने जर्मनी को सुदेतेनलैंड दे दिया। 

    तुष्टिकरण की नीति से मित्र राष्ट्रों में अविश्वास की भावना पनपी तथा उनका संयुक्त मोर्चा कमजोर पड़ गया और वे तानाशाहों की बढ़ती शक्ति को रोक पाने में कठिनाई का अनुभव करने लगे। 

    निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मित्र राष्ट्रों की तुष्टिकरण की नीति फासीवादी शक्तियों को निरर्थक रूप से संतुष्ट करने का प्रयास करती रही, तथापि भावी युद्ध को रोका नहीं जा सका।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow