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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    उत्तरी भारतीय राज्यों में हिमालय के क्षेत्र में मंदिर वास्तुकला का एक अनूठा रूप विकसित हुआ। स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

    19 Jul, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्राचीन भारत की मुख्य मंदिर स्थापत्य शैली के बारे में संक्षेप में बताइये।
    • उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिये कि किस प्रकार पहाड़ी वास्तुकला अन्य कला रूपों से भिन्न थी।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    प्राचीन और मध्यकालीन भारत के अधिकांश स्थापत्य अवशेष धार्मिक प्रकृति के हैं। देश के विभिन्न भागों में मंदिरों की विशिष्ट स्थापत्य शैली भौगोलिक, जातीय और ऐतिहासिक विविधताओं का परिणाम थी।

    देश में मंदिरों की दो प्रसिद्ध शैलियाँ उत्तर में नागर और दक्षिण में द्रविड़ के नाम से जानी जाती हैं।

    कभी-कभी मंदिरों की बेसर शैली को एक स्वतंत्र शैली के रूप में देखा जाता है, जिसे नागर और द्रविड़ शैलियों के मिश्रण के माध्यम से बनाया गया है।

    प्रारूप

    • गांधार प्रभाव: यह कुमाऊँ, गढ़वाल, हिमाचल और कश्मीर की पहाड़ियों में विकसित वास्तुकला का एक अनूठा रूप है। प्रमुख गांधार स्थलों (जैसे तक्षशिला, पेशावर तथा उत्तर-पश्चिम सीमा) से कश्मीर की निकटता ने इस क्षेत्र को पाँचवीं शताब्दी तक एक मज़बूत गांधार प्रभाव क्षेत्र बना दिया।
    • गुप्त और उत्तर-गुप्त परंपराओं का प्रभाव सारनाथ, मथुरा और यहाँ तक ​​कि गुजरात एवं बंगाल के केंद्रों से संबंधित है।
      • लक्ष्मण-देवी मंदिर में महिषासुरमर्दिनी और नरसिम्हा की छवियाँ उत्तर-गुप्त परंपरा के प्रभाव का प्रमाण हैं। दोनों छवियाँ कश्मीर की धातु मूर्तिकला परंपरा के प्रभाव को दर्शाती हैं।
    • पहाड़ी क्षेत्रों की छतों वाली काष्ठ इमारतों की भी अपनी परंपरा थी। इस क्षेत्र में कई स्थानों पर मुख्य गर्भगृह और शिखर, रेखा-प्रसाद या लैटिना शैली में बनाए गए हैं। मंडप, काष्ठ वास्तुकला का एक पुराना रूप है।
    • कभी-कभी मंदिरों को पगोड़ा का आकार भी दे दिया गया है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण मंदिरों में से एक पंड्रेथन है, जिसे आठवीं और नौवीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था। मंदिर से जुड़ी एक पानी की टंकी की परंपरा को ध्यान में रखते हुए यह मंदिर एक तालाब के बीच में बने चबूतरे पर बनाया गया है।
    • यह एक हिंदू मंदिर है और संभवतः शिव को समर्पित है। इस मंदिर की वास्तुकला लकड़ी की इमारतों की सदियों पुरानी कश्मीरी परंपरा के अनुरूप है।
    • कश्मीर में बर्फीले हालात के कारण पहाड़ी मंदिरों की छत नुकीली और हल्की सी बाहर की ओर झुकी हुई बनाई गई है।
    • भारी नक्काशी के गुप्तोत्तर सौंदर्यशास्त्र से दूर जाते हुए मंदिर को मध्यम रूप से अलंकृत किया गया है।
    • हालाँकि कुमाऊँ, अल्मोड़ा में जागेश्वर और पिथौरागढ़ के पास चंपावत मंदिर इस क्षेत्र में नागर वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

    निष्कर्ष

    इस प्रकार बौद्ध और हिंदू दोनों परंपराएँ आपस में मिल गईं तथा पहाड़ी क्षेत्रों में विस्तृत हो गईं जिसके परिणामस्वरूप वास्तुकला की एक अनूठी शैली अस्तित्व में आई।

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