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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    नए स्वतंत्र भारत के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का वर्णन कीजिये।

    01 Jul, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत की स्वतंत्रता का संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    स्वतंत्रता के लिये एक लंबे संघर्ष के बाद भारत 15 अगस्त, 1947 को औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हुआ। हालाँकि यह स्वतंत्रता अपने साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं के एक समूह के साथ आई।

    स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने उपस्थित विभिन्न चुनौतियाँ:

    • विभाजन: विभाजन को बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा के रूप में चिह्नित किया गया था। इसके अलावा विभाजन के कारण ही कश्मीर समस्या की उत्पत्ति हुई और उसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के साथ युद्ध भी भी हुआ।
      • साथ ही भारत को बड़ी संख्या में शरणार्थियों को पुनर्वास प्रदान करने की आवश्यकता थी।
    • बड़े पैमाने पर गरीबी और निरक्षरता: स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 80% या लगभग 250 मिलियन आबादी गरीब थी। अकाल और भूख ने भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा के लिये बाहरी मदद लेने हेतु प्रेरित किया।
    • विविधता में एकता सुनिश्चित करना: एक नए स्वतंत्र भारत जिसे मुख्य रूप से रियासतों को आत्मसात करने से उत्पन्न चुनौतियों के कारण देश की एकता और संप्रभुता को बनाए रखने की आवश्यकता थी।
      • ब्रिटिश भारतीय प्रांतों की सीमाओं को सांस्कृतिक और भाषाई एकता के बारे में सोचे बिना बेतरतीब ढंग से खींचा गया था।
    • कम आर्थिक क्षमता: भारत में स्थिर कृषि और निम्न औद्योगिक आधार जैसी समस्याएं मौजूद थीं। वर्ष 1947 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का 54% हिस्सा था। स्वतंत्रता के समय भारत की 60% जनसंख्या जीविका के लिए कृषि पर निर्भर थी।
    • शीत-युद्ध तनाव: अधिकांश विकासशील देश संयुक्त राज्य अमेरिका या सोवियत संघ की दो महाशक्तियों में से किसी एक से जुड़े हुए थे।
      • भारत ने शीत युद्ध की राजनीति से दूर रहने और इसके आंतरिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिये गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया।

    निष्कर्ष

    सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों के कारण स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर कई ब्रिटिश विद्वानों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत एक राष्ट्र के रूप में जीवित नहीं रहेगा।

    हालाँकि यह इसके संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति भारत की मज़बूत प्रतिबद्धता ही थी जिसने भारत को न केवल एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहने के लिये बल्कि नए स्वतंत्र देशों के नेता के रूप में उभरने हेतु भी प्रेरित किया।

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