इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जलवायु परिवर्तन, अति दोहन और नीतिगत उपायों ने संयुक्त रूप से भारत को जल-तनाव वाली अर्थव्यवस्था में रूपांतरित कर दिया है। चर्चा कीजिये।

    10 Mar, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में जल की कमी की स्थिति के बारे में संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर शुरू करें।
    • भारत में जल संसाधन में कमी के कारणों पर चर्चा करें।
    • जल की कमी की समस्या के समाधान के लिये कुछ उपाय सुझाएँ।
    • संक्षिप्त निष्कर्ष दें।

    जलवायु परिवर्तन के कारण अनावृष्टि की स्थिति और जल आपूर्ति में गिरावट के कारण भारत दिन-प्रतिदिन जल संसाधनों की समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। इनके अलावा कई सरकारी नीतियाँ जो विशेष रूप से कृषि से संबंधित हैं (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के परिणामस्वरूप जल का अत्यधिक दोहन हुआ है। इन कारकों की वजह से भारत जल की कमी वाली अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है।

    भारत में जल-तनाव के कारण

    भूजल का अत्यधिक दोहन: भारत में दो-तिहाई से अधिक सिंचाई भूजल के माध्यम से होती है। हालाँकि पिछले चार दशकों में कुल सिंचाई के लगभग 85% के लिये भूजल का उपयोग किया गया है। इसके परिणामस्वरूप भूजल में गिरावट आई है।

    नीतिगत मुद्दे: भूजल के अति-दोहन की समस्या भारतीय कानून के कारण जटिल हो जाती है, यह भूजल पर भूस्वामियों को अनन्य अधिकार प्रदान करता है।

    इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गेहूँ, चावल और सब्सिडी वाली बिजली की खरीद की राज्य नीति भी भूजल के दोहन में योगदान देती है।

    तीव्र शहरीकरण: भारत तेज़ी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है। शहरों के कंक्रीट के जंगल बनते जाने के कारण भी भूजल के पुनरुपयोग में कमी आई है, साथ ही उद्योग और कृषि में जल की मांग तेज़ी से बढ़ रही है।

    सतही जल का ईष्टतम उपयोग करने में अक्षमता: कमांड क्षेत्र के विकास और ऐसी नहरों में पानी का वितरण जिनका इस्तेमाल सही तरीके से न हुआ हो, अक्सर मिट्टी के भारी कटाव और गाद का कारण बनता है।

    मानसून में तेज़ी से बदलाव: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट में उत्तरी भारत में पिछले तीन दशकों में बारिश में भारी गिरावट एवं पूरे देश में मानसून में अस्थिरता की स्थिति दिखाई गई है।

    आगे की राह

    नीतिगत उपाय: नीतिगत कदमों के रूप में केंद्र और राज्य सरकारों की प्राथमिकता नदियों का कायाकल्प करना होनी चाहिये। सिंचाई प्रणालियों के सतत् संचालन और रखरखाव को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये वर्षा जल संचयन के कार्य को शहरी नियोजन में शामिल किया जाना चाहिये।

    सतत् कृषि: संरक्षण कृषि की दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है, अर्थात् फसलों और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाना।

    विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण: जहाँ भी संभव हो जल संरक्षण, स्रोत स्थिरता, भंडारण और पुन: उपयोग पर प्रमुखता से ध्यान देने की आवश्यकता है।

    नागरिकों को समाधान के प्रयास में शामिल करना: नागरिकों के व्यवहार में परिवर्तन पर ज़ोर देने की आवश्यकता है, नागरिकों द्वारा पीने योग्य और गैर-पीने योग्य जल में अंतर करना जन आंदोलन लाने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।

    निष्कर्ष

    तनावग्रस्त जल संसाधनों के सतत् उपयोग के लिये सहकारी संघवाद और नागरिक सक्रियता दोनों की आवश्यकता है। इस संदर्भ में एक सहभागी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2