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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के लिये पूर्वी घाट के घाट के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। इस क्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण हेतु कौन-से उपाय किये जा सकते हैं? (250 शब्द)

    08 Mar, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पूर्वी घाट के बारे में सामान्य जानकारी (जैसे स्थान, जैव विविधता) देते हुए भूमिका लिखें।
    • भारत के लिये पूर्वी घाट का महत्त्व स्पष्ट कीजिये।
    • पूर्वी घाटों के लिये बढ़ते खतरे और घटते वन आवरण एवं जैव विविधता के बारे में बताएँ।
    • जैव विविधता के संरक्षण हेतु उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सुझाव दें।
    • संक्षेप में उचित निष्कर्ष दें।

    पूर्वी घाट ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में फैली हुई पहाड़ी शृंखलाएँ हैं, जहाँ का पारिस्थितिक तंत्र अद्वितीय है।

    यह विविध प्रकार के स्थानिक वनस्पतियों और जीवों का घर है। बाघों और हाथियों सहित कई जानवर और लगभग 400 पक्षी प्रजातियाँ इन जंगलों में पाई जाती हैं। यहाँ 1,200 मिमी. से 1,500 मिमी. तक वार्षिक औसत वर्षा होती है।

    महत्त्व

    लगभग 75,000 वर्ग किलोमीटर में फैला पूर्वी घाट जैव विविधता को बढ़ावा देने और पेड़ों में बायोमास के भंडारण जैसी दोहरी भूमिका निभाता है।

    पूर्वी घाट में कई बाँध हैं जैसे- कृष्णगिरि, सथानूर, शेनबागथोप्पु, करियालुर, गोमुकी, मृगांडा, चेंगम आदि जो जल प्रवाह को नियंत्रित करके सिंचाई और बाढ़ प्रबंधन में मदद करते हैं।

    पेरियार फॉल्स, मेगाम फॉल्स, बेमन फॉल्स, किलियूर फॉल्स, होगनक्कल जैसे झरने पर्यटकों को आकर्षित करने के अलावा भूमि को उपजाऊ बनाते हैं।

    क्षेत्र के वन संसाधन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं।

    पूर्वी घाट के लिये खतरा

    • पूर्वी घाट जलवायु परिवर्तन के रूप में एक गंभीर खतरे का सामना करते हैं। पिछली सदी में यह क्षेत्र 16% तक सिमट गया है और सिर्फ एक स्थान, पापिकोंडा नेशनल पार्क, पिछले बीस वर्षों में लगभग 650 वर्ग किमी. से कम हो गया है।
    • मानवीय गतिविधियों, जनसंख्या का दबाव, निरंतर विकास, जनता द्वारा उदासीनता, लोक सेवकों की लापरवाही आदि के कारण भी इन क्षेत्रों की जैव विविधता में अत्यधिक गिरावट और क्षति देखी जा रही है।
    • खनन, लॉगिंग, अवैध शिकार, जंगल की आग, वन उपज, दुर्लभ प्रजातियों, दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों की तस्करी तथा निर्यात, वन भूमि का अतिक्रमण एवं अवसंरचना विकास, औद्योगीकरण इत्यादि इस क्षेत्र के लिये मुख्य खतरे हैं।

    पूर्वी घाटों के संरक्षण हेतु उठाए जाने वाले कदम

    अति दोहन का मुकाबला करने के लिये वन संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देना चाहिये।

    • पर्याप्त कृषि अभ्यास: सरकार को शिफ्टिंग कृषि के प्रभाव का मुकाबले के लिये एक जगह स्थिर होकर किये जाने वाली कृषि को प्रोत्साहित करना चाहिये क्योंकि स्थानांतरित कृषि के कारण पेड़ों की कटाई का प्रभाव सीधे वनों पर पड़ता है।
    • वनीकरण: वनीकरण राष्ट्रीय स्तर पर वृक्षावरण में सुधार, मानसून में सुधार, हवा की गुणवत्ता में सुधार और जैव विविधता की व्यापकता को बनाए रखने सहित कई लाभ प्रदान कर सकता है।
    • कृषि में स्वदेशी किस्मों की फसलों और उत्पादों को बढ़ावा: सरकार को इन क्षेत्रों के चारों ओर स्वदेशी पौधों और पेड़ों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये वित्त उपलब्ध कराना चाहिये।
    • स्थानीय भागीदारी: सभी हितधारकों विशेष रूप से जनता की भागीदारी द्वारा ठोस और मैक्रो-स्तरीय संरक्षण की आवश्यकता है। सभी नागरिक समूहों को एक नेटवर्क के अंतर्गत लाने और साथ कार्य करने से इस क्षेत्र की विविधता में अधिक सुधार आएगा।
    • इको-टूरिज़्म: इको-टूरिज़्म से स्थानीय लोगों को आजीविका प्राप्त होती है, उन्हें इसका हिस्सा बनाकर वन और इसकी जैव विविधता को पर्यावरण-पर्यटन प्रबंधन समिति के सदस्यों द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिये।
    • समग्र संरक्षण: वन्यजीव गलियारों, विशेष पारिस्थितिक तंत्र और विशेष प्रजनन स्थलों, आंतरिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों, पवित्र उपवनों और सीमांत जंगलों आदि जैसे पारिस्थितिकी प्रणालियों का संरक्षण किया जाना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

    निष्कर्ष

    यदि स्थानीय लोगों को शामिल करके इन क्षेत्रों के पर्यावरणीय विकास के लिये एक प्रभावी रणनीति विकसित की जाती है तो पूर्वी घाट की वनस्पतियों, जीवों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की जा सकती है अन्यथा भविष्य में पूर्वी घाट और इसकी जैव विविधता नष्ट हो सकती है।

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