इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लिंगायत कौन हैं? इस समुदाय को अलग धर्म का दर्जा प्रदान करने के पीछे क्या तर्क है तथा इन्हें अलग धर्म का दर्जा प्रदान करना वर्तमान में कितना प्रासंगिक है? चर्चा करें।

    17 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा : 

    • लिंगायत समुदाय का परिचय।
    • हिन्दू धर्म से अलग धर्म की मांग क्यों?
    • अलग धर्म का दर्जा प्रदान करना कितना प्रासंगिक होगा।

    बारहवीं सदी में कर्नाटक में ‘बासवन्ना’ के नेतृत्व में एक धार्मिक आंदोलन चला जिसमें बासवन्ना के अनुयायी लिंगायत कहलाए। इन्होंने जन्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्म के आधार पर वर्गीकरण की पैरवी की। लिंगायत मृतकों को जलाने की बजाय दफनाते हैं तथा श्राद्ध नियमों का पालन नहीं करते, न तो ब्राह्मणवादी जाति व्यवस्था को मानते हैं और न ही पुनर्जन्म को। इन्होंने मूर्ति पूजा का भी विरोध किया।

    माना जाता है कि वीरशैव तथा लिंगायत एक ही है किंतु लिंगायतों का तर्क है कि वीरशैव का अस्तित्व लिंगायतों से पहले का है तथा वीरशैव मूर्तिपूजक है। वीरशैव वैदिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं, जबकि लिंगायत ऐसा नहीं करते।

    कर्नाटक में लगभग 18 प्रतिशत आबादी लिंगायतों की है। ये लंबे समय से हिंदू धर्म से पृथक् धर्म का दर्जा चाहते हैं। अगर इन्हें धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है तो इन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण का फायदा मिलेगा।

    सांप्रदायिक पंचाट के तहत जब अंग्रेजों ने दलितों को अल्पसंख्यक मानते हुए उनके लिये पृथक् निर्वाचन प्रणाली की घोषणा की तो गांधी जी ने यह कहते हुए विरोध किया कि दलित, ईसाई तथा मुस्लिम की तरह कोई पृथक् धर्म नहीं है बल्कि हिंदू धर्म के अभिन्न अंग हैं। यहाँ गांधी जी ने यह स्पष्ट किया कि वे राज्य को इस बात की शक्ति देना चाहते थे कि वह किसी धार्मिक संरचना के अंदर यह तय कर सके कि उसका कोई हिस्सा उस धर्म का है या नहीं।

    वर्तमान संदर्भ में गांधी जी का मत बेहद महत्त्वपूर्ण है। हिंदू धर्म वास्तविक अर्थों में वैविध्यता का वाहक है, न कि संकीर्णता का। इसमें चार्वाक तथा नास्तिक भी सम्मिलित किये जाते हैं।

    इसके अतिरिक्त लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने या न देने से पूर्व इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि भारतीय पंथनिरपेक्षता यह निर्देशित करती है कि राज्य, धर्म के मूलभूत विषयों में हस्तक्षेप न करे।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2