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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में नोबल पुरस्कारों की घोषणा के बाद जीन एडिटिंग तकनीकी चर्चा का विषय रही इस तकनीकी से संबंधित अनुप्रयोगों की चर्चा करते हुए इससे संबंधित नैतिक चिंताओं पर प्रकाश डालें ।

    21 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका 
    • जीन एडिटिंग के अनुप्रयोग
    • जीन एडिटिंग से संबंधित नैतिक चिंताएँ
    • निष्कर्ष

    वर्ष 2020 के लिये नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई है। इस वर्ष ऐतिहासिक रूप से रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार फ्राँस की इमैनुएल चार्पेंटियर और अमेरिका की जेनिफर ए डौडना को प्रदान किया गया है। चार्पेंटियर एवं डौडना द्वारा विकसित ‘क्रिस्पर-कैस9 जेनेटिक सीज़र्स’ का उपयोग जानवरों, पौधों एवं सूक्ष्मजीवों के DNA को अत्यधिक उच्च सटीकता के साथ बदलने के लिये किया जा सकता है। यह तकनीकी न केवल नए कैंसर उपचार में योगदान कर रही है बल्कि आनुवंशिक बीमारियों के निदान का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है। 'नोबेल ज्यूरी’ ने इसे मानव जाति के लिये एक क्रांतिकारी आविष्कार बताया है। हालाँकि उन्होंने इसे सावधानी से प्रयोग करने की सलाह भी दी।

    जीन एडिटिंग प्रौद्योगिकियों का एक समुच्चय है जो वैज्ञानिकों को एक जीव के डीएनए को बदलने की क्षमता उपलब्ध कराता है। ये प्रौद्योगिकियाँ जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं। जीन एडिटिंग वह तकनीक है जिसका उपयोग किसी जीव के जीनों में परिवर्तन करने या उसके आनुवंशिक गठन में फेरबदल करने में किया जा सकता है।

    जीन एडिटिंग के अनुप्रयोग -

    • वैज्ञानिक अनुसंधान में पहले से ही व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जाता रहा है, क्रिस्पर-कैस 9 को HIV, कैंसर या सिकल सेल रोग जैसी बीमारियों के लिये संभावित जीनोम एडिटिंग उपचार हेतु एक आशाजनक तरीके के रूप में भी देखा गया है।
    • इस तरह इसके माध्यम से चिकित्सकीय रूप से बीमारी पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है या आनुवंशिक उत्परिवर्तन को सही कर सकते हैं।
    • उल्लेखनीय है कि CRISPR तकनीकी पहले से ही मौलिक बीमारी अनुसंधान, दवा जाँच और थेरेपी विकास, तेज़ी से निदान, इन-विवो एडिटिंग और ज़रूरी स्थितियों में सुधार के लिये बेहतर आनुवंशिक मॉडल प्रदान कर रही है।
    • वैज्ञानिक इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं कि CRISPR तकनीकी का उपयोग शरीर की टी-कोशिकाओं के कार्य को बढ़ावा देने में किया जा सके ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर को पहचानने और नष्ट करने में बेहतर हो तथा रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार और अन्य संभावित बीमारियों को लक्षित किया जा सके।
    • कैलिफोर्निया में विश्व के पहले जीन-एडिटिंग परीक्षण में HIV के लगभग 80 रोगियों के खून से HIV प्रतिरक्षा कोशिकाओं को ज़िंक-फाइबर न्यूक्लियस नामक एक अलग तकनीक का प्रयोग कर हटाया गया। चीन में शोधकर्त्ताओं ने मानव भ्रूण के एक दोषपूर्ण जीन को सही करने की कोशिश के लिये संपादित किया जो रक्त विकार का कारण बनता है।
    • वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने मलेरिया को दूर करने के लिये भी जीन एडिटिंग का उपयोग किया था जिससे मलेरिया का प्रतिरोध किया जा सकता है। किसानों द्वारा भी फसलों को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिये क्रिस्पर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। चिकित्सकीय क्षेत्र में, जीन एडिटिंग संभावित आनुवंशिक बीमारियों का इलाज कर सकती है, जैसे हृदय-रोग और कैंसर के कुछ रूप या एक दुर्लभ विकार जो दृष्टिबाधा या अंधेपन का कारण बन सकता है।
    • कृषि क्षेत्र में यह तकनीक उन पौधों को पैदा कर सकती है जो न केवल उच्च पैदावार में कारगर होंगे, जैसे कि लिप्पमैन के टमाटर, बल्कि यह सूखे और कीटों से बचाव के लिये फसलों में विभिन्न परिवर्तन कर सकते हैं ताकि आने वाले वर्षों में चरम मौसमी बदलावों में भी फसलों को हानि से बचाया जा सके।

    जीन एडिटिंग से संबंधित नैतिक चिंताएँ

    • इससे भविष्य में ‘डिज़ाइनर बेबी’ के जन्म की अवधारणा को और बल मिलेगा। यानी बच्चे की आँख, बाल और त्वचा का रंग ठीक वैसा ही होगा, जैसा उसके माता-पिता चाहेंगे।
    • इससे समाज में बड़ी जटिलताएँ और विषमताएँ उत्पन्न होंगी। डिज़ाइनर बेबी बनाने का कारोबार शुरू हो सकता है। जो आर्थिक रूप से संपन्न लोग होंगे उन्हें अपने बच्चे के बुद्धि-चातुर्य और व्यक्तित्व को जीन एडिटिंग के जरिये परिवर्तित करने का मौका मिलेगा। स्वाभाविक है कि इससे सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा।
    • चूँकि यह तकनीक अत्यंत महँगी है अतः इसका उपयोग केवल धनी वर्ग के लोग कर पाएंगे।
    • विरोधियों का यह भी मत है कि यदि किसी व्यक्ति को जीन विश्लेषण से यह पता चल जाता है कि उसके शरीर में कोई आनुवंशिक बीमारी है और वह आर्थिक रूप से उसका इलाज कराने में सक्षम नहीं है तो उस व्यक्ति के रोग निदान के संदर्भ में क्या प्रकिया है।
    • कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि विकास एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा इस प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा जीन में परिवर्तन हज़ारों वर्षों में होता है। यदि हम इसे कुछ ही घंटे में कर देंगे तो इससे जीनों के स्थायित्व पर घातक प्रभाव पड़ सकता है।
    • जब समाज यह पाएगा कि उसके बीच निवास कर रहा व्यक्ति विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है, तो समाज की प्रतिक्रिया नकारात्मक हो सकती है।

    निष्कर्ष

    वास्तव में जीन एडिटिंग तकनीकी हमें एक कृत्रिम दुनिया की और ले जाएगी। अतः इस क्षेत्र में भारत को प्रत्येक कदम पर्याप्त शोध एवं अनुसंधान के बाद ही उठाना चाहिये। जीन एडिटिंग से संबंधित विषय को पब्लिक डोमेन में रखना चाहिये ताकि इस विषय पर जनता की राय को भी जाना सके। जहाँ तक आनुवंशिक रोगों व विकृतियों को सुधारने का प्रश्न है, वहाँ तक इस तकनीकी की सहायता ली जा सकती है। परंतु डिज़ाइनर बेबी जैसे प्रयासों को हतोत्साहित किया जाना चाहिये।

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