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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वर्तमान में साइबर सुरक्षा ढाँचे के अद्यतनीकरण की आवश्यकता क्यों है? साइबर सुरक्षा को मज़बूत करने की दिशा में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को रेखांकित करें।

    17 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण-

    • भूमिका
    • साइबर सुरक्षा ढाँचे के अद्यतनीकरण की आवश्यकता क्यों है?
    • सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास
    • अन्य संभावित उपाय

    वर्तमान में हम जितनी तेज़ी से डिजिटल दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं, ठीक उतनी ही तेज़ी से साइबर अपराध की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। इसका एक ताजा उदाहरण ऑस्ट्रेलिया की संचार प्रणाली पर हुआ साइबर हमला है, जिसने शासन व्यवस्था की संचार प्रणाली को बाधित कर दिया है। साइबर विशेषज्ञों ने भारत में भी एक बड़े साइबर हमले की आशंका व्यक्त की है।

    अद्यतनीकरण आवश्यकता क्यों?

    राष्ट्रीय सुरक्षा का अभिन्न अंग -

    साइबर कमांड को बढ़ाने की आवश्यकता के पक्ष में सैन्य सिद्धांतों में हो रहा परिवर्तन साइबर सुरक्षा रणनीति में बदलाव के महत्त्व को प्रतिबिंबित करता है।

    राष्ट्रीय सुरक्षा के अभिन्न अंग के रूप में एक सक्षम साइबर सुरक्षा बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता पर पहली बार कारगिल समीक्षा समिति द्वारा ज़ोर दिया गया था।

    डिजिटल अर्थव्यवस्था का बढ़ता महत्त्व-

    वर्तमान में भारत की कुल अर्थव्यवस्था के आकार का 14-15 प्रतिशत भाग डिजिटल अर्थव्यवस्था के रूप में शामिल है और वर्ष 2024 तक इसे 20 प्रतिशत तक पहुँचाने का लक्ष्य है।

    एक जटिल डोमेन-

    कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग , डेटा एनालिटिक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स की अधिक समावेशी प्रकृति के कारण साइबर स्पेस एक जटिल डोमेन बन गया है, जो तकनीकी व कानूनी प्रकृति की समस्याओं को जन्म देगा।

    डेटा संरक्षण की चुनौती-

    21वीं सदी में डेटा, मुद्रा के समान महत्त्वपूर्ण हो गया है। भारत की विशाल जनसंख्या के कारण कई अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ (जैसे-गूगल, अमेज़न) यहाँ अपनी पहुँच बनाने की कोशिश कर रही हैं।

    इसलिये डेटा संप्रभुता, डेटा स्थानीयकरण और इंटरनेट गवर्नेंस आदि से संबंधित मुद्दों का समाधान आवश्यक है।

    सरकार के प्रयास-

    भारत में ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000’ पारित किया गया जिसके प्रावधानों के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता के प्रावधान सम्मिलित रूप से साइबर हमलों के प्रभाव से निपटने के लिये पर्याप्त हैं।

    सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धाराएँ 43, 43A, 66, 66B, 66C, 66D, 66E, 66F, 67, 67A, 67B, 70, 72, 72A और 74 हैकिंग और साइबर अपराधों से संबंधित हैं।

    सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, 2013’ जारी की गई जिसके तहत अति-संवेदनशील सूचनाओं के संरक्षण के लिये ‘राष्ट्रीय अति-संवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र का गठन किया गया।

    इसके अंतर्गत 2 वर्ष की उम्रकैद तथा दंड अथवा जुर्माने का भी प्रावधान है।

    विभिन्न स्तरों पर सूचना सुरक्षा के क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य से सरकार ने ‘सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता’ परियोजना प्रारंभ की है।

    साइबर सुरक्षा के खतरों का विश्‍लेषण करने, अनुमान लगाने और चेतावनी देने के लिये भारतीय कंप्यूटर आपात प्रतिक्रिया टीम को नोडल एजेंसी बनाया गया।

    देश में साइबर अपराधों से समन्वित और प्रभावी तरीके से निपटने के लिये 'साइबर स्वच्छता केंद्र' भी स्थापित किया गया है। यह इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत भारत सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम का एक हिस्सा है।

    अन्य संभावित उपाय-

    वित्तीय संगठनों और सरकारी प्रक्रियाओं को लक्षित करने वाले डिजिटल वारफेयर और हैकर्स के विरुद्ध ठोस उपाय करने के लिये भारत को अन्य देशों के साथ साझा उपाय करने होंगे और इस संदर्भ में जागरूकता में वृद्धि करनी होगी कि कोई भी व्यक्ति या संस्था अकेले डिजिटल वारफेयर के प्रति प्रतिरक्षित नहीं है।

    राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र , नेशनल क्रिटिकल इन्फॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर और कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम जैसी राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा परियोजनाओं को कई गुना मज़बूत करने की आवश्यकता है।

    मोबाइल फोन और दूरसंचार के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति और राष्ट्रीय दूरसंचार नीति को वर्ष 2030 तक एक व्यापक समग्र नीति के निर्माण हेतु प्रभावी रूप से सहयोग करना होगा।

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