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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वाताग्र जनन की प्रक्रिया को स्पष्ट करें साथ ही इस प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों की चर्चा करते हुए, उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति पर प्रकाश डालें।

    28 Sep, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका

    • वाताग्र जनन से आशय

    • उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति 

    • निष्कर्ष

    वाताग्र एक मौसमी तंत्र है। जब किसी प्रदेश में गर्म एवं ठंडी वायुराशियाँ विपरीत दिशा में प्रवाहित होती हुई एक-दूसरे से अभिसरण करती हैं, तो वे आपस में मिलने का प्रयास करती हैं। इनके बीच एक संक्रमण क्षेत्र निर्मित होता है, जिनमें दोनों वायुराशियों के गुण मौजूद होते हैं। इसी संक्रमण क्षेत्र को वाताग्र प्रदेश कहा जाता है। वाताग्र बनने की प्रक्रिया को वाताग्र जनन कहते हैं।

    वताग्र को प्रभावित करने वाले कारक:

    • ताप एवं आर्द्रता जैसे भौगोलिक कारक वाताग्र जनन को प्रभावित करते हैं। ताप एवं आर्द्रता संबंधी दो अलग-अलग गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से वाताग्र की उत्पत्ति होती है।
    • इसके अलावा गतिक कारक भी वाताग्र जनन हेतु आवश्यक हैं वस्तुतः विभिन्न वायुराशियों का अपने मूल स्थान से अन्य क्षेत्रों की ओर गतिशील होना आवश्यक है। ध्यातव्य है कि विषुवत रेखा पर भी व्यापारिक पवनों का अभिसरण होता है, परंतु स्वभाव में समानता होने के कारण वताग्रों की उत्पत्ति नहीं होती।
    • वायुराशियों का अभिसरण वताग्रजनन में सहायक तथा वायुराशियों का अपसरण वताग्र जनन में बाधक होता है।

    उष्ण कटिबंधीय चक्रवात एक आक्रामक तूफान है जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है और ये तटीय क्षेत्रों की ओर गतिमान होतें हैं। अर्थात उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवातों को ‘उष्ण कटिबंधीय चक्रवात’ कहते हैं।

    ये चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी वायुमंडलीय तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है, तत्पश्चात् इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है।

    एक विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषता इसके केंद्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण है जिसे इसकी आँख (eye) कहा जाता है। इसका केंद्र(अक्षु) शांत होता है जहाँ पवनों का अवतलन होता है। अक्षु के चारों ओर वायु का प्रबल तथा वृत्ताकार रूप में आरोहण होता है। उल्लेखनीय है कि इसी क्षेत्र में पवनों का वेग अधिकतम होता है।

    ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। उल्लेखनीय है कि भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्राय: अभाव रहता है। ITCZ के प्रभाव से निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं। फलत: वृत्ताकार समदाब रेखाओं के सहारे उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है।

    इसका व्यास बंगाल की खाड़ी, अरब सागर व हिंद महासागर पर 600 से 1200 किलोमीटर के मध्य होता है यह परिसंचरण प्रणाली धीमी गति से 300 से 500 किलोमीटर प्रतिदिन की दर से आगे बढ़ता है। ये चक्रवात तूफ़ान तरंग उत्पन्न करतें हैं और तटीय निम्न इलाकों को जलप्लावित कर देते हैं। ये तूफान स्थल पर धीरे-धीरे क्षीण होकर खत्म हो जातें हैं।

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