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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘अंग्रेज़ों द्वारा समय-पूर्व सत्ता हस्तांतरण करने की शीघ्रता व तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता आज़ादी के समय हुए नरसंहार व अशांति के लिये उत्तरदायी थी।’ इस कथन की समीक्षा कीजिये।

    16 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में आज़ादी की घोषणा के समय की स्थिति को स्पष्ट करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में सत्ता हस्तांतरण की शीघ्रता तथा तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता के अतिरिक्त अन्य कारणों पर भी चर्चा करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    20 फरवरी, 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने घोषणा की थी कि अंग्रेज़ सरकार 30 जून, 1948 तक भारतवासियों को सत्ता सौंप देगी परंतु ‘माउंटबेटन योजना’ द्वारा 3 जून, 1947 को ही यह स्पष्ट हो गया कि ब्रिटिश सरकार द्वारा 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान को डोमिनियन स्टेट्स के रूप में सत्ता का हस्तांतरण कर दिया जाएगा। समय-पूर्व सत्ता हस्तांतरण और अंग्रेज़ों की भारत से शीघ्रातिशीघ्र वापसी के निर्णय से भारत में अनेक विकट समस्याएँ उत्पन्न हो गईं। इस शीघ्रता के कारण विभाजन के संबंध में सुनिश्चित योजना बनाने की रणनीति गड़बड़ा गई जिसके कारण देश भर में व्यापक नरसंहार रोकने का प्रयास असफल रहा। उस समय हुए नरसंहार और अशांति के पीछे निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे- 

    • विभाजन की योजना के संबंध में एक सुनिश्चित एवं दूर्शितापूर्ण रणनीति का अभाव था। साथ ही योजना में यह भी नहीं बताया गया था कि विभाजन उपरांत उत्पन्न समस्याओं को कैसे हल किया जाएगा।
    • माउंटबेटन यह मानकर चल रहे थे कि उन्हें भारत एवं पाकिस्तान दोनों का गवर्नर जनरल बनाया जाएगा, जिससे वे विभाजनोपरांत उत्पन्न समस्याओं को हल कर लेंगे किंतु जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल का पद स्वयं संभालना चाहते थे। 
    • सीमा आयोग (रेडक्लिफ की अध्यक्षता में) की घोषणा करने में अनावश्यक देरी की गई। हालाँकि इस संबंध में निर्णय 12 अगस्त, 1947 को ही लिया जा चुका था लेकिन माउंटबेटन ने इसे 15 अगस्त, 1947 को ही सार्वजनिक करने का निर्णय लिया। इसके पीछे उनकी यह सोच थी कि इससे सरकार किसी भी प्रकार की विपरीत घटना होने पर जिम्मेदारी से बच जाएगी।

    परंतु , इसके अतिरिक्त जिन्ना की जल्दी-से-जल्दी पाकिस्तान बनाने की ज़िद, हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य सांप्रदायिकता का उफान, पंजाब व बंगाल में सरकार की प्रशासनिक विफलता आदि कारक भी तत्कालीन हिंसा के लिये उत्तरदायी थे।

    इस प्रकार, ब्रिटिश सरकार की स्वयं के हितों को सुरक्षित रखने की स्वार्थपूर्ण नीति ने भारतीय उपमहाद्वीप को अस्त-व्यस्त कर दिया जिसके कारण भीषण नरसंहार हुआ तथा किसी को भी इसके लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया गया।

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