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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “मुग़ल शक्ति के पराभव के पश्चात् अंग्रेज़ों एवं मराठों के मध्य हुए ‘आंग्ल-मराठा’ युद्ध स्वयं को एक-दूसरे से सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिये किये गए संघर्ष थे; जिसमें अंततः अंग्रेजों की विजय हुई।” इसी पृष्ठभूमि में आंग्ल-मराठा युद्धों में मराठों की पराजय के कारणों का विश्लेषण करें।

    24 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में आंग्ल-मराठा युद्ध को स्पष्ट करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करते हुए मराठों की पराजय के कारणों का विश्लेषण करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के खंडहरों पर मराठों का साम्राज्य मज़बूत हुआ था। उन्हीं परिस्थितियों में अंग्रेज़ी कंपनी (ईस्ट इंडिया कंपनी) भी एक शक्तिशाली संगठन के रूप में अपने पैर जमा चुकी थी। अब इन दोनों शक्तियों के मध्य मुद्दा स्वयं के अधिकारों में वृद्धि करने, क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करने और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने का था।

    हितों के इन टकरावों की परिणति तीन आंग्ल-मराठा युद्धों के रूप में हुई। अंग्रेज़ों और मराठों के मध्य 1775-82 तक प्रथम, 1803-06 तक द्वितीय तथा 1817-18 में तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ। यद्यपि मराठा उस समय मुगलों से अधिक शक्तिशाली थे परंतु अंग्रेज़ों से सैनिक व्यवस्था, नेतृत्व, कूटनीति तथा साधनों में बहुत पीछे थे। फलस्वरूप मराठों को अंग्रेज़ों से हार मिली। मराठों की पराजय के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

    • मराठों में उत्तम नेतृत्व का पूर्णतया अभाव था। महादजी सिंधिया, अहिल्याबाई होल्कर, पेशवा माधवराव तथा नाना फड़नवीस जैसे नेता 1790 से 1800 के बीच संसार से चल बसे थे।
    • मराठा राज्य के लोगों की एकता कृत्रिम तथा आकस्मिक थी। मराठा शासकों ने किसी समय भी कोई सामुदायिक विकास, विद्या प्रसार अथवा जनता के एकीकरण के लिये कोई प्रयास नहीं किया।
    • मराठों की आर्थिक नीति राजनीतिक स्थिरता में सहायक नहीं थी। मराठा साम्राज्य महाराष्ट्र के संसाधनों पर नहीं अपितु बलपूर्वक एकत्रित की गई धनराशि (लूट, चौथ, सरदेशमुखी आदि) पर निर्भर था। परिणामस्वरूप बार-बार युद्धों के चलते अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई।
    • मराठों में राजनीतिक तौर पर पारस्परिक सहयोग की भावना नहीं थी। होल्कर, सिंधिया, भौंसले सब आपस में लड़ते रहते थे और अंग्रेज़ों ने उनकी इस फूट का लाभ उठाया।
    • यद्यपि व्यक्तिगत वीरता में मराठा कम नहीं थे, किंतु इनकी सैनिक प्रणाली अंग्रेज़ी सैनिक संगठन, अस्त्र-शस्त्र, अनुशासन और नेतृत्व से काफी पीछे थी। मराठों ने युद्ध की वैज्ञानिक तथा आधुनिक प्रणाली नहीं अपनाईऔर न ही उन्होंने उत्तम व अचूक तोपखाना बनाया।
    • अंग्रेज़ों की उत्तम कूटनीति जिसके द्वारा वे युद्ध से पूर्व प्रायः भिन्न-भिन्न मित्र बनाकर शत्रु को अकेला कर देते थे, अधिक उत्तम गुप्तचर व्यवस्था तथा प्रगतिशील दृष्टिकोण (यूरोपीय लोग उस समय तक धर्म तथा दैवीय बंधनों से बाहर आ चुके थे तथा अपनी शक्ति का प्रयोग वैज्ञानिक आविष्कारों, दूर समुद्री यात्राओं तथा उपनिवेश जीतने में कर रहे थे) मराठों से अंग्रेज़ों को श्रेष्ठ सिद्ध करने में सफल रहा।

    इस प्रकार अपनी आंतरिक व बाह्य दुर्बलताओं के कारण मराठों ने अपने से अधिक मज़बूत व अनुशासित संगठन के समक्ष घुटने टेक दिये तथा मराठा साम्राज्य पर कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

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