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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को मील का पत्थर कहा जाता है।’ इस कथन के आलोक में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की उपलब्धियों को बताते हुए ओज़ोन समस्या की विद्यमानता का उल्लेख कीजिये। (200 शब्द)

    25 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • ओज़ोन समस्या के समाधान हेतु मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।

    • वर्तमान में जारी ओज़ोन क्षरण को भी चिह्नित कीजिये।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका लिखें।
    • ओज़ोन परत को बचाने हेतु वैश्विक प्रयासों की चर्चा करें।
    • वर्तमान में जारी ओज़ोन क्षरण की चिंताजनक स्थिति को स्पष्ट करते हुए निष्कर्ष दें।

    समताप मंडल में स्थित ओज़ोन परत का पृथ्वी पर उपस्थित सभी प्रकार के जीवों (पौधे, जन्तु, सूक्ष्म जीव व मानव) के लिये अत्यधिक महत्त्व है। यह पृथ्वी के लिये रक्षा कवच की भाँति कार्य करती है, जिससे सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके सौर्यिक विकिरण को छानकर पृथ्वी तक पहुँचने दिया जाता है। इस अति महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक रचना को मनुष्य ने अपने भौतिकतावादी व उपभोक्तावादी व्यवहार के कारण लगातार क्षति पहुँचाने का कार्य किया है जिसका दुष्प्रभाव वैश्विक तापन के रूप में सामने आया है। इसी समस्या के संदर्भ में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में सभी देशों की साझा हितों के प्रति सहमति को एक उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है।

    1960 के दशक से ही वैज्ञानिकों द्वारा ओज़ोन परत के क्षरण के संदर्भ में निष्कर्ष प्रस्तुत किये जाने लगे थे। धरती पर मनुष्य द्वारा प्रयोग की जाने वाली क्लोरो-फ्लोरो कार्बन ने ओज़ोन परत में तज़ी से क्षरण करने का कार्य किया। इस विकराल समस्या के समाधान हेतु 16 सितम्बर, 1987 को 46 देशों ने ऐतिहासिक मॉन्ट्रियल समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसमें अब तक 197 देश सम्मिलित हो चुके हैं। इस समझौते के तहत सभी सहयोगी देशों ने सहमति प्रकट की कि ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाने वाले तत्त्वों के उत्पादन व उपभोग पर लगाम कसी जाएगी। वैज्ञानिक व तकनीकी आधार पर समयबद्ध तरीके से इन खतरनाक गैसों के प्रयोग को पूरी तरह से समाप्त करने की तरफ बढ़ा जाएगा। इस समझौते के तहत लगभग 100 रसायनों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया। साथ ही, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन तथा हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन के उत्सर्जन को कम करने के लिये समय सीमा का निर्धारण किया गया। इसके अलावा मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने हेतु एक साझा कोष भी बनाया गया।

    इस प्रकार ओज़ोन परत को बचाने हेतु 1987 के इस समझौते ने अपने उच्च मानकों के आधार पर पर्यावरण संरक्षण व ओज़ोन रक्षण हेतु अब तक की सबसे सफल संधि को स्थापित किया। इस समझौते के अंतर्गत विकसित व विकासशील देशों ने मिलकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का कार्य किया है तथा ओज़ोन परत के क्षरण में कमी लाने का अभूतपूर्व प्रयास किया है।

    इस प्रकार मॉन्ट्रियल समझौते के माध्यम से हानिकारक क्लोरो-फ्लोरो कार्बन सहित कई खतरनाक गैसों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन वहीं, दूसरी तरफ हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन के उत्सर्जन पर प्रतिबंध लगाने की चुनौती अभी भी विश्व जगत के समक्ष विद्यमान है। इस गैस पर विकसित देश 2030 तक तथा विकासशील देश 2040 तक प्रतिबंध लगाने को प्रतिबद्ध हैं।

    रेप्रिजरेटरों एवं एयरकंडीशनरों के अत्यधिक प्रयोग के कारण हाइड्रो फ्लोरो कार्बन का अत्यधिक उत्सर्जन ओजोत परत के लिये अभी भी समस्या का कारण है। क्लोरो फ्लोरो कार्बन पर यद्यपि कुछ अंकुश लगा है परंतु बसंत ऋतु में सूर्य की रोशनी में इसके (सीएफसी) उपोत्पाद ओजोन परत को नुकसान पहुँचाते हैं। हालाँकि क्षति की यह सीमा पूर्व की अपेक्षा काफी कम हो गयी है।

    स्पष्ट है कि मॉन्ट्रियल समझौता निश्चित रूप से मील का पत्थर है जिसने क्लोरो-फ्लोरो कार्बन के उत्सर्जन पर प्रतिबंध लगाने तथा सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने का कार्य किया। लेकिन अभी भी वैश्विक समुदाय को अन्य हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण लगाने का कार्य करना शेष है जिसे निश्चित समय सीमा में प्राप्त करके ही वर्ष 2050 तक विश्व के तापमान को 0.5° सेन्टीग्रेड की बढ़ोतरी तक रोकने का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।

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