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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के विदेश मंत्रालय शुरू किये गए ‘ई-माइग्रेट कार्यक्रम (eMigrate Program)' और ‘न्यूनतम निर्दिष्ट मजदूरी प्रणाली (Minimum Referrel Wages System-MRW)' ने खाड़ी देशों में भारतीय श्रमिकों के रोजगार के अवसरों को प्रभावित किया है। चर्चा कीजिये।

    30 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों के साथ होने वाले दुर्व्यवहारों की हजारों शिकायतें आने के कारण विदेश मंत्रालय के ‘प्रवासी मामलों के विभाग’ ने वर्ष 2015 में ‘ई-माइग्रेट’ कार्यक्रम शुरू किया था। यह एक ऐसा कार्यक्रम/प्रणाली है जो एक तरफ विदेश मंत्रालय की पासपोर्ट सेवा परियोजना व गृह मंत्रालय के आप्रवासन ब्यूरो से तथा दूसरी तरफ 18 ई.सी.आर. देशों में भारतीय मिशनों, विदेशी नियोक्ताओं और पंजीकृत भर्ती एजेंटों के साथ एकीकृत है। इसके अंतर्गत प्रवासियों के साथ-साथ विदेशी नियोक्ताओं, उनकी कंपनियों और भर्ती एजेंटों की विस्तृत जानकारियों का ‘डाटाबेस’ तैयार किया जाता है। 

    हाल ही में भारत में संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) के राजदूत ने इस प्रणाली को ‘संप्रभुता से जुड़ा मुद्दा’ बताकर अपना विरोध दर्ज कराया है। कुछ समय पहले साऊदी अरब ने भी इस विषय में विरोध दर्ज़ कराया था। यू.ए.ई. के राजदूत के अनुसार भारत की इस प्रणाली के अंतर्गत इसके दूतावास के अधिकारियों द्वारा विदेशी नियोक्ताओं के साथ-साथ यू.ए.ई. की कंपनियों के परिसर का निरीक्षण करना भी शामिल है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह केवल यू.ए.ई. सरकार का अधिकार क्षेत्र है। वैसे भी इस प्रणाली के क्रियान्वयन की खामियों ने विभिन्न प्रकार के ‘क्लीयरेंस’ की गति को काफी कम कर दिया है।

    वर्ष 2014 में भारत ने कम शिक्षित ब्लू कॉलर श्रमिकों के हित में न्यूनतम निर्दिष्ट मजदूरी की एक प्रणाली विकसित की थी। इसमें विभिन्न श्रेणी के श्रमिकों के लिये एक न्यूतनम निर्दिष्ट मजदूरी देने की गारंटी पर ही विदेशी नियोक्ता श्रमिकों की नियुक्ति कर सकते थे। विभिन्न देशों के लिये ऐसी सूची तैयार की गई।

    उपरोक्त दोनों कदमों (ई-माइग्रेट व एम.आर.डब्ल्यू.) के कारण विदेशी नियोक्ताओं द्वारा भारतीय श्रमिकों की नियुक्ति करने में ज्यादा मुश्किलें आने लगी हैं। अप्रैल, 2017 में विश्व बैंक की रिपोर्ट प्रकाशिता हुई जिसमें बताया गया कि जहाँ वर्ष 2014 में भारत में प्रवासियों द्वारा भेजा गया धन (remittances) $ 69.6 बिलियन था, वहीं 2016 में यह कम होकर $ 62.7 बिलियन रहा। दूसरी तरफ, खाड़ी देशों के निर्माण कार्यों में लगे श्रमिकों के मामलों में भी भारत के श्रमिकों का प्रतिशत पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी नीचे चला गया है क्योंकि इन देशों ने श्रमिकों की नियुक्ति और ‘माइग्रेशन’ के संबंध में भारत जैसी शर्तें व नियम नहीं बना रखे है

    निश्चित तौर पर ‘ई-माइग्रेट प्रणाली’ और ‘एम.आर.डब्ल्यू. प्रणाली’ लागू करने के पीछे प्रवासी भारतीय श्रमिकों के हितों की रक्षा करना ही भारत सरकार का मूल उद्देश्य था। किंतु, यदि इन कदमों से श्रमिकों के रोजगार के अवसरों में गिरावट आ रही है तो भारत सरकार को शीघ्र संबंधित देशों की सरकारों के साथ बातचीत कर समस्या का उचित ढंग से समाधान करना चाहिये।

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