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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

देश देशांतर : जीनोम मैपिंग

  • 23 Apr 2019
  • 10 min read

संदर्भ

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) द्वारा एक परियोजना के अंतर्गत भारत के युवा छात्रों के जीनोम का अनुक्रमण (Genome Sequencing) किये जाने की योजना तैयार की गई है।

इस परियोजना का उद्देश्य जीनोमिक्स की ‘उपयोगिता’ (‘Usefulness’ of Genomics) के बारे में छात्रों की अगली पीढ़ी को शिक्षित करना है।

परियोजना का विवरण

  • जीनोम को रक्त के नमूने के आधार पर अनुक्रमित किया जाएगा। वैज्ञानिकों ने अधिकांश राज्यों को कवर करते हुए इसके लिये कम-से-कम 30 शिविरों को लगाए जाने की योजना बनाई है।
  • प्रत्येक व्यक्ति जिसके जीनोम का अनुक्रमण किया जाएगा उसे एक रिपोर्ट दी जाएगी।
  • प्रतिभागियों को बताया जाएगा कि क्या उनमें जीन वेरिएंट (Gene Varient) हैं जो उन्हें कुछ वर्गों की दवाओं के प्रति कम संवेदनशील बनाते हैं। उदाहरण के लिये एक निश्चित जीन होने से कुछ लोग क्लोपिडोग्रेल (Clopidogrel अर्थात् स्ट्रोक और दिल के दौरे को रोकने वाली एक प्रमुख दवा) के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं।
  • इस परियोजना में इंस्टीट्यूट ऑफ़ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी (Institute of Genomics and Integrated Biology-IGIB), नई दिल्ली तथा सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (Centre for Cellular and Molecular Biology-CCMB), मिलकर काम करेंगे।

जीनोम मैपिंग क्या है?

  • हमारी कोशिका के अंदर आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material) होता है जिसे हम DNA, RNA कहते हैं। यदि इन सारे पदार्थों को इकठ्ठा किया जाए तो उसे हम जीनोम कहते हैं।
  • एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार की तकनीकों को जीन मैपिंग कहा जाता है।
  • अक्सर, जीनोम मैपिंग का उपयोग वैज्ञानिकों द्वारा नए जीन की खोज करने में मदद के लिये की जाती है।
  • जीनोम में एक पीढ़ी के गुणों का दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर करने की क्षमता होती है।
  • ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (HGP) के मुख्य लक्ष्यों में नए जीन की पहचान करना और उसके कार्य को समझने के लिये बेहतर और सस्ते उपकरण विकसित करना है। जीनोम मैपिंग इन उपकरणों में से एक है।
  • मानव जीनोम में अनुमानतः 80,000-1,00,000 तक जीन होते है। जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स (Genomics) कहा जाता है।

जीनोम अनुक्रमण क्या होता है?

  • जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के तहत डीएनए अणु के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है।
  • इसके अंतर्गत डीएनए में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है।
  • डीएनए अनुक्रमण विधि से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर उनका समय पर इलाज करना और साथ ही आने वाली पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव है।

मानव जीनोम परियोजना

  • ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (HGP) एक बड़ा, अंतर्राष्ट्रीय और बहु-संस्थागत प्रयास था जिसमें जीन के अनुक्रम का खाका तैयार करने में 13 साल [1990-2003] का समय लगा और इस प्रोजेक्ट पर 2.7 बिलियन डॉलर खर्च हुए थे।
  • यह एक अति महत्त्वाकांक्षी वृहत एवं सर्वाधिक खर्चीली जैववैज्ञानिक परियोजना है। अमेरिका के ऊर्जा विभाग (USDE) तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) की भागीदारी से वर्ष 1988 में मानव जीनोम परियोजना शुरू की गई।
  • हालाँकि भारत इस परियोजना में शामिल नहीं था लेकिन इस परियोजना से प्रेरणा लेते हुए भारत में मानव जीनोम से संबंधित कार्यक्रम शुरू किये गए और उन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है।
  • इसका औपचारिक शुभारंभ 1990 में हुआ। कालांतर में इसने विश्वव्यापी रूप धारण किया। अठ्ठारह देशों की लगभग 250 प्रयोगशालाएँ इसमें सम्मिलित हैं।

परियोजना के मुख्य लक्ष्य

  • मानव DNA के लगभग एक लाख जीनों (Genes) की पहचान करना।
  • मानव DNA बनाने वाले लगभग तीन अरब बीस करोड़ क्षारकों (alkalies) का निर्धारण करना।
  • सूचनाओं को डेटाबेस में संचित करना।
  • अधिक तेज़ और कार्यक्षम अनुक्रमित प्रौद्योगिकी का विकास करना।
  • आँकड़ों के विश्लेषण के लिये टूल विकसित करना।
  • परियोजना से नैतिक, विधिक व सामाजिक मुद्दों का निराकरण करना।

(टीम दृष्टि इनपुट)

जीनोम मैपिंग के लाभ

  • जीनोम मैपिंग के माध्यम से हम जान सकते हैं कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं।
  • इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं या उनमें क्या समानता है।
  • इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है।
  • बीमारियों का समय रहते पता लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है।
  • क्यूरेटिव मेडिसिन के द्वारा रोग का इलाज किया जाता है तथा प्रिकाशनरी मेडिसिन के द्वारा बीमारी न हो इसकी तैयारी की जाती है, जबकि जीनोम के माध्यम से प्रिडीक्टिव मेडिसिन की तैयारी की जाती है।
  • इसके माध्यम से पहले से पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी आज से ही शुरू की जा सकती है।
  • जीनोम मैपिंग से बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जीन का पता लगाया जा सकता है और सही समय पर इसका इलाज किया जा सकता है या यदि बीमारी लाइलाज है तो बच्चे को पैदा होने से रोका जा सकता है।
  • कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं जो सही समय पर पता चल जाएँ तो उनकी क्यूरेटिव मेडिसिन विकसित की जा सकती है तथा व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है।

जीनोम मैपिंग की आवश्यकता क्यों?

  • 2003 में मानव जीनोम को पहली बार अनुक्रमित किये जाने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच संबंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिख रही है।
  • लगभग 10,000 बीमारियाँ जिनमें सिस्टिक फाइब्रोसिस, थैलेसीमिया शामिल हैं, के होने का कारण एकल जीन में खराबी (Single Gene Malfunctioning) को माना जाता है।
  • जीन कुछ दवाओं के प्रति असंवेदनशील हो सकते हैं, जीनोम अनुक्रमण ने यह सिद्ध किया है कि कैंसर जैसे रोग को भी आनुवंशिकी के दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।
  • अधिकांश गैर-संचारी रोग जैसे मानसिक मंदता (Mental Retardation), कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, न्यूरोमस्कुलर डिसऑर्डर तथा हीमोग्लोबिनोपैथी (Haemoglobinopathy) कार्यात्मक जीन में असामान्य डीएनए म्यूटेशन के कारण होते हैं।

निष्कर्ष

अब समय आ गया है कि भारत अपनी खुद की जीनोमिक्स क्रांति की शुरुआत करे। तकनीकी समझ और इसे सफलतापूर्वक लॉन्च करने की क्षमता हमारे देश के वैज्ञानिकों तथा मेडिसिन उद्योग में मौजूद है। इसके लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक विज़न तथा कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है। देश की स्वास्थ्य रक्षा के लिये कुछ भी दाँव पर लगाया जा सकता है।

प्रश्न : जीनोम मैपिंग क्या है? इस परियोजना पर संक्षिप्त प्रकश डालते हुए इसकी आवश्यकता तथा भारत की संभावनाओं का विश्लेषण करें।

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