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द बिग पिक्चर : आरटीआई के दायरे में राजनीतिक दल

  • 26 Apr 2019
  • 12 min read

संदर्भ

हाल ही में राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 के दायरे में लाने को लेकर दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग और सरकार से इस पर अपना जवाब देने को कहा है। दायर याचिका में उच्चतम न्यायालय से मांग की गई है कि देश के सभी प्रमुख राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को RTI के दायरे में लाने के लिये आदेश दिया जाए, जिससे उनकी जवाबदेही तय हो सके।

पृष्ठभूमि

  • केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission-CIC) ने 3 जून, 2013 को कई राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ घोषित किया था जो ऐसे संगठनों को RTI अधिनियम के दायरे में लाता है।
  • एक फैसले में CIC ने निर्णय दिया था कि राजनीतिक दल RTI अधिनियम के दायरे में आते हैं।
  • चूँकि CIC के आदेश ने कॉन्ग्रेस और भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों में हलचल पैदा कर दी थी। अतः 12 अगस्त, 2013 को कॉन्ग्रेस ने राजनीतिक दलों को RTI से बाहर रखने के लिये लोकसभा में RTI संशोधन विधेयक, 2013 पेश किया।

याचिका में क्या मांग की गई है?

  • याचिका में मांग की गई है कि जनप्रतिनिधि कानून की धारा 29C के अनुसार, राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी भारत के चुनाव आयोग को दी जानी चाहिये क्योंकि राजनीतिक दल RTI कानून 2005 की धारा 2(H) के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण हैं।
  • याचिका में मांग की गई है कि चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करे कि राजनीतिक दलों द्वारा जनप्रतिनिधि कानून, आरटीआई कानून, आयकर कानून, आचार संहिता और अन्य चुनावी नियमों के प्रावधानों का पालन नहीं करने पर उनकी मान्यता रद्द की जाए या उन पर ज़ुर्माना लगाया जाए।
  • याचिका में यह मांग की गई है कि सभी पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को 4 सप्ताह के भीतर सार्वजनिक सूचना अधिकारी (Public Information Officer) तथा अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) की नियुक्ति करने का निर्देश दिया जाए।

राजनीतिक दलों को RTI के दायरे में लाए जाने के पक्ष में तर्क

  • राजनीतिक रणनीति को छोड़कर वित्त और प्रशासन से संबंधित अन्य मामलों को जनता के लिये उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है क्योंकि राजनीतिक दल सार्वजनिक संस्थान (Public Institution) हैं तथा जनता से धन प्राप्त करते हैं।
  • इलेक्टोरल बांड राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को बढ़ावा नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि धन दाताओं (Donors) का नाम जनता को ज्ञात नहीं हो पाता है।
  • न केवल फंडिंग बल्कि राजनीतिक दलों द्वारा विशेष रूप से चुनावों के दौरान किये गए खर्च को सार्वजनिक किया जाना चाहिये। वर्तमान में भारत में चुनावों के समय राजनीतिक दलों द्वारा किये गए खर्च की कोई सीमा नहीं है।
  • राजनीतिक दल पहले से ही RTI अधिनियम के अंतर्गत आते हैं क्योंकि उन्होंने 3 जून, 2013 के केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले को चुनौती नहीं दी है (राजनीतिक दल RTI अधिनियम की धारा 2 (H) के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण हैं), ये बात अलग है कि उन्होंने आदेश का अनुपालन नहीं किया है।
  • RTI अधिनियम एक बहुत ही संतुलित अधिनियम है। अधिनियम की धारा 8 (1) के कई अपवाद हैं। यदि कोई राजनीतिक दल RTI अधिनियम के दायरे में आता है तो यह खंड उन्हें सभी प्रकार की जानकारी का खुलासा करने से बचाता है।
  • यह भी तर्क दिया जाता है कि यदि राजनीतिक दलों को RTI से बाहर रखा जाता है, तो अन्य संस्थाएँ भी यह दावा कर सकती हैं कि उन्हें भी इसके दायरे से बाहर रखा जाना चाहिये।
  • भारत जैसे देश में यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण राजनीतिक फंडिंग (Political Funding) है। इसलिये राजनीतिक दलों के कामकाज में आंतरिक लोकतंत्र, वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही तय किया जाना आवश्यक है।

विरोध में तर्क

  • RTI अधिनियम की धारा 2 (H) सार्वजनिक प्राधिकरण को उसी रूप में परिभाषित करती है जैसे कि संविधान द्वारा या संसद द्वारा किया जाता है।
  • राजनीतिक दलों का गठन संसद के अधिनियम अर्थात् जनप्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत किया जाता है जो कि संसद द्वारा बनाए जाने के समान नहीं है।
  • इसलिये जब तक कानून में बदलाव नहीं किया जाता तब तक राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के दायरे में लाना मुश्किल होगा।
  • राजनीतिक दलों को आशंका है कि RTI अधिनियम के तहत सूचना का खुलासा उनके प्रतिद्वंदियों को लाभ पहुँचा सकता है।
  • राजनीतिक दल अपने आंतरिक कामकाज के साथ-साथ निर्णय लेने की प्रणाली का भी खुलासा नहीं करना चाहते हैं।
  • राजनीतिक दलों का तर्क है कि आयकर अधिनियम, 1961 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में पहले से ही प्रावधान हैं जो राजनीतिक दलों के वित्तीय पहलुओं के बारे में आवश्यक पारदर्शिता की बात करते हैं।

सुझाव

  • राजनीतिक दल चुनाव लड़ने और अपने दैनिक कार्यों के लिये 'स्वैच्छिक योगदान/चंदे' पर अधिक निर्भर रहते हैं। उन्हें कॉर्पोरेट, ट्रस्ट और व्यक्तियों से स्वैच्छिक योगदान और चंदे के रूप में बड़ी रकम मिलती है।
  • राजनीतिक दलों को धन नहीं दिया जाना चाहिये क्योंकि इससे धनदाता और राजनीतिक दलों के बीच साँठगाँठ होती है, जिसके कारण देश में नीति निर्माण प्रभावित होता है। इसके बजाय, लोगों से चंदा प्राप्त करने के लिये एक राष्ट्रीय चुनाव कोष बनाया जाना चाहिये तथा प्राप्त धन का उपयोग चुनावों के संचालन के लिये किया जाना चाहिये।
  • पैसे की आवश्यकता के मूल कारण को खत्म करना यानी चुनावी रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध लगाए जाने की आवश्यकता है साथ ही लोगों से सीधा जुड़ाव सुनिश्चित करना भी ज़रूरी होगा। लाइव T.V डिबेट जनता से जुड़ने का एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

  • सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है जो उसे 30 दिन के अंदर मिल जानी चाहिये।
  • इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
  • यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर (यहाँ जम्मू और कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभावी है) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों पर लागू होता है।
  • इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

चुनाव सुधार संबंधित सिफारिशें

  • निम्नलिखित सुधारों को तुरंत लागू किया जाना चाहिये:

♦ ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ जिसमें सबसे अधिक वोट (यहाँ तक ​​कि एक अतिरिक्त वोट के साथ) वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है, को बदल दिया जाना चाहिये। इसके बजाय कुल मतदान से प्राप्त हुए वोटों के न्यूनतम प्रतिशत को उम्मीदवार के विजेता घोषित करने के लिये तय किया जाना चाहिये।

♦ राजनीतिक दलों को विनियमित करने के लिये एक अलग कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।

♦ अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकना।

♦ चुनाव प्रक्रिया में कालेधन के प्रवाह पर निगाह रखने की आवश्यकता है।

  • राजनीतिक दलों द्वारा जारी घोषणापत्रों की जाँच होनी चाहिये। साथ ही चुनाव से एक या दो महीने पहले घोषणापत्र जारी किये जाने चाहिये ताकि लोग उनमें बताई गई बातों को समझ सकें और उन पर चर्चा कर सकें।
  • एक ऐसे इलेक्टोरल सिस्टम का होना ज़रूरी है जिससे कि किसी मौजूदा विधायक या सांसद को दूसरी सीट के लिये नामांकन दाखिल करने से पहले मौजूदा सीट से इस्तीफा देना पड़े। इससे उपचुनावों पर होने वाले खर्च को बचाने में मदद मिलेगी।
  • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव के मामले में विधानसभाओं के विघटन की समस्या से निपटने के लिये एक प्रणाली की आवश्यकता है।

♦ प्रधानमंत्री को कम-से-कम 34% सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित नामांकन के आधार पर निचले सदन के सभी सदस्यों के गुप्त और अनिवार्य मत के माध्यम से चुना जाना चाहिये।

  • चूँकि राजनीतिक दल चुनाव सुधारों में कम दिलचस्पी लेते हैं, इसलिये सर्वोच्च न्यायालय इस संबंध में कार्रवाई कर सकता है।
  • वर्तमान में चुनाव सुधार कार्य प्रगति पर हैं। उन्हें तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिये जनता की भागीदारी आवश्यक है।

निष्कर्ष

राजनीतिक दल सरकार में विभिन्न स्तरों पर देश के नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे प्रशासनिक क्षेत्र में लोगों की मांगों और ज़रूरतों के लिये आवाज़ उठाते हैं और इसलिये नागरिकों और सरकार के बीच कड़ी के रूप में काम करते हैं। इस प्रकार, जब तक आरटीआई को राजनीतिक दलों तक विस्तारित नहीं किया जाता है, तब तक एक फूलप्रूफ पारदर्शी प्रणाली बनाने का प्रयास निरर्थक होगा।

प्रश्न : राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाए जाने के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क देते हुए आवश्यक सुझावों पर चर्चा कीजिये।

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