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पल्मायरा पाम ट्री

  • 25 Aug 2025
  • 13 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ

ओडिशा ने पारिस्थितिकीय और सामाजिक लाभों के कारण पल्मायरा ट्री (ताड़ के पेड़ों) की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया है।

पलमायरा पाम ट्री (बोरासस फ्लेबेलिफ़र)

  • परिचय: यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया मूल का होने के साथ-साथ अत्यधिक सूखा प्रतिरोधी है तथा तमिलनाडु के राज्य वृक्ष के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • यह मुख्यतः ओडिशा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में पाया जाता है।
    • तमिल संस्कृति में इसे कर्पगा वृक्षम् (“ऐसा दिव्य वृक्ष जो सब कुछ प्रदान करता है”) के रूप में पूजनीय माना जाता है, और इसके ताड़-पत्र पांडुलिपियों ने सदियों तक तमिल भाषा और साहित्य को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • पारिस्थितिकीय भूमिका: इसके फल (ताड़) जुलाई–अगस्त में पकते हैं, जिन्हें कम पैदावार के दौरान हाथियों द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता हैं और साथ ही यह मानव-हाथी संघर्ष को भी कम करते हैं। इसकी ऊँची संरचना प्राकृतिक आकाशीय बिजली अवरोधक के रूप में कार्य करती है, जिससे मानसून के दौरान होने वाली मृत्युओं में कमी आती है।
    • इसकी लंबी जड़ें भूजल पुनर्भरण, सूखे से निपटने में सहायता करती है तथा जल निकायों और तटों पर मृदा अपरदन को रोकने में भी सहायक होती है।
  • महत्त्व: इसका फल गूदा (नुंगु) खनिजों से भरपूर ग्रीष्मकालीन शीतल पेय के रूप में उपयोग होता है, जबकि ताड़ की शक्कर (पनई करुप्पट्टी) एवं गुड़ तथा पदनीर (रस) और ताड़ी जैसे पेय आधुनिक उत्पादों के स्थान पर स्वास्थ्यवर्धक पारम्परिक विकल्प प्रदान करते हैं।
    • पत्तियाँ छत, चटाई और हस्तशिल्प के लिये उपयोगी होती हैं, तथा इसकी लकड़ी निर्माण सामग्री और ईंधन प्रदान करती है।

और पढ़ें: ऑयल पाम वृक्षारोपण को प्राथमिकता

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