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फोन टैपिंग की वैधता

  • 09 Jul 2025
  • 7 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय ने फोन टैपिंग के मुद्दे पर विरोधाभासी निर्णय दिये कि क्या सरकार अपराधों को रोकने के लिये, विशेष रूप से आर्थिक अपराधों (जैसे रिश्वतखोरी) के मामलों में, कानूनी रूप से फोन टैप कर सकती है।

फोन टैपिंग से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • परिचय: फोन टैपिंग का तात्पर्य किसी तीसरे पक्ष द्वारा बिना संबंधित व्यक्तियों की जानकारी या सहमति के टेलीफोन वार्तालापों की निगरानी या रिकॉर्डिंग करने से है।
    • यह आमतौर पर सरकारी एजेंसियों द्वारा सुरक्षा, खुफिया जानकारी या कानून प्रवर्तन के उद्देश्यों से किया जाता है।
  • फोन टैपिंग से संबंधित कानून:
    • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885: धारा 5(2) के तहत केंद्र या राज्य सरकार को सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा के मामलों में फोन कॉल को इंटरसेप्ट (अवरोधन) करने की अनुमति है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह डिजिटल संचार (जैसे- ईमेल, व्हाट्सएप आदि) की निगरानी को नियंत्रित करता है।
    • भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898: यह डाक संचार पर लागू होता है।
  • फोन टैपिंग के विरुद्ध सुरक्षा उपाय: भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 के नियम 419A में फोन टैपिंग के लिये प्रक्रियाएँ प्रदान की गई हैं, जिसमें दुरुपयोग की जाँच के लिये एक समीक्षा समिति भी शामिल है।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला: आकाशदीप चौहान बनाम सीबीआई केस, 2020 में अदालत ने पुष्टि की कि किसी अपराध को भड़काने से रोकने के लिये निगरानी कानूनी रूप से अनुमेय है और यह फैसला सुनाया कि कानून के तहत फोन टैपिंग उचित थी।
    • कोर्ट ने माना कि सार्वजनिक परियोजनाओं में भ्रष्टाचार, आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है, जो सार्वजनिक सुरक्षा का विषय है।
  • मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय: पी. किशोर बनाम भारत सरकार सचिव, 2018 के मामले में न्यायालय ने गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2011 में जारी इंटरसेप्शन आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह न तो कोई सार्वजनिक आपातकाल था और न ही कोई स्पष्ट सार्वजनिक सुरक्षा का खतरा। न्यायालय ने कहा कि यह फोन टैपिंग गैर-कानूनी थी क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों (People’s Union for Civil Liberties बनाम भारत सरकार, 1997) का पालन नहीं करती थी।
    • इसमें यह भी कहा गया कि फोन टैपिंग गैर-कानूनी थी क्योंकि यह पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस, 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित प्रक्रियात्मक मानकों को पूरा करने में विफल रही है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय, 1997: पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस 1997 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार:
    • केवल केंद्र या राज्य के गृह सचिव ही फोन टैपिंग को अधिकृत कर सकते हैं। संयुक्त सचिव के पद से नीचे के किसी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता।
    • प्रत्येक फोन-टैप आदेश की समीक्षा एक समीक्षा समिति द्वारा दो महीने के भीतर की जानी चाहिये, जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे:
      • केंद्र में: कैबिनेट सचिव, विधि सचिव, दूरसंचार सचिव।
      • राज्य में: मुख्य सचिव, विधि सचिव तथा एक अन्य सदस्य (गृह सचिव को छोड़कर)।
  • साक्ष्य की अस्वीकार्यता: यदि फोन-टैप आदेश गैर-कानूनी है, तो एकत्रित जानकारी न्यायालय में अस्वीकार्य है, जिससे गोपनीयता और मुक्त भाषण जैसे अधिकारों की रक्षा होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'गोपनीयता का अधिकार' भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद 19
(b) अनुच्छेद 20
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (C)


प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया गया है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही और समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य के नीति निदेशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई  स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c)

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