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सामाजिक न्याय

जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार के एक भाग के रूप में डिजिटल पहुँच

  • 02 May 2025
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, अपने ग्राहक को जानें, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये:

डिजिटल युग में अनुच्छेद 21 की संवैधानिक व्याख्या, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 और डिजिटल पहुँच

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अमर जैन बनाम भारत संघ एवं अन्य, 2025 मामले में निर्णय दिया कि ई-गवर्नेंस और कल्याणकारी प्रणालियों तक समावेशी डिजिटल पहुँच, जीवन एवं स्वतंत्रता के मूल अधिकार का एक अभिन्न अंग है। इसके साथ ही इसमें दिव्यांगजनों (PwDs) के लिये अपने ग्राहक को जानो (KYC) प्रक्रिया को और अधिक सुलभ बनाने के निर्देश दिये गए।

  • यह निर्णय उन व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं की प्रतिक्रिया में आया है, जिनके समक्ष दिव्यांगता के कारण डिजिटल  KYC प्रक्रिया को पूरा करने में चुनौतियाँ आती हैं।

दिव्यांगजनों हेतु डिजिटल पहुँच पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 

  • डिजिटल  KYC संशोधन: सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांगजनों (विशेष रूप से दृष्टि दोष और चेहरे की विकृति वाले व्यक्तियों, जैसे एसिड अटैक सर्वाइवर्स) को समायोजित करने के लिये डिजिटल KYC मानदंडों में संशोधन का निर्देश दिया।
  • इसने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं को KYC प्रक्रियाओं में पहुँच सुनिश्चित करने का निर्देश दिया और अनिवार्य किया कि सभी विनियमित संस्थाएँ (सार्वजनिक और निजी) पहुँच मानकों का पालन करें। 
  • इसने निर्देश दिया कि विभागों को अनुपालन के लिये नोडल अधिकारी नियुक्त करने होंगे, प्रमाणित पेशेवरों द्वारा नियमित ऑडिट कराना होगा तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म के डिज़ाइन चरण में दृष्टिबाधित लोगों को भी शामिल करना होगा।
  • डिजिटल डिवाइड: न्यायालय ने मौजूदा डिजिटल डिवाइड पर भी प्रकाश डाला, जिससे न केवल दिव्यांगजन बल्कि ग्रामीण समुदाय, वरिष्ठ नागरिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग भी प्रभावित होते हैं।
    • न्यायालय ने यह माना कि अनुच्छेद 21 (गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार), अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव से संरक्षण), और अनुच्छेद 38 (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों) के अंतर्गत, कमज़ोर वर्गों के लिये सार्वभौमिक डिजिटल पहुँच सुनिश्चित करना केवल एक नीतिगत विकल्प नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक दायित्व है, जो सार्वजनिक जीवन में समान भागीदारी के लिये आवश्यक है।

डिजिटल सशक्तीकरण से संबंधित अन्य प्रमुख निर्णय क्या हैं?

  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 21 के तहत किसी मौलिक अधिकार पर लगाई जाने वाली कोई भी प्रक्रिया न्यायसंगत, उचित और तार्किक होनी चाहिये— वह मनमानी या दमनकारी नहीं हो सकती। इस निर्णय ने समावेशी डिजिटल अधिकारों की न्यायशास्त्र के लिये आधार तैयार किया।
  • फहीमा शिरीन आर.के. बनाम केरल राज्य (2019) के मामले में केरल उच्च न्यायालय भारत का पहला ऐसा न्यायालय बना, जिसने अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा के अधिकार के हिस्से के रूप में इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मान्यता प्रदान की।
    • न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि छात्रावासों में छात्रों को इंटरनेट की सुविधा से वंचित करना उनके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संरक्षित है, और अनुच्छेद 19(1)(छ) के अंतर्गत ऑनलाइन व्यापार और व्यवसाय करने का अधिकार सुरक्षित है।
    • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इन अधिकारों पर लगाए जाने वाले किसी भी प्रतिबंध को युक्तिसंगतता और अनुपातिकता पर खरा उतरना आवश्यक है।

भारत में दिव्यांगजनों के डिजिटल सशक्तीकरण के समक्ष प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?

  • डिजिटल साक्षरता में विभाजन और बहिष्कार: डिजिटल साक्षरता में महत्त्वपूर्ण खामियों के कारण अनेक दिव्यांगजन आवश्यक सेवाओं और आर्थिक अवसरों तक पहुँच से वंचित रह जाते हैं।
    • PMGDISHA (प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान) जैसी योजनाओं के बावजूद, डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों में दिव्यांगजनों का प्रतिनिधित्व अनुपातहीन रूप से कम है।
  • सुगम्यता संबंधी दिशा-निर्देशों के प्रवर्तन में कमी: हालाँकि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) के तहत डिजिटल सुलभता को अनिवार्य किया गया है, लेकिन इसका क्रियान्वयन विभिन्न क्षेत्रों में असंगत और अपर्याप्त है।
  • वर्ष 2023 में इस दिशा में अनुपालन को मज़बूत करने के लिये संशोधन किये गए, फिर भी सरकारी और निजी क्षेत्रों में प्रवर्तन अभी भी विखंडित और असंगठित है।
  • सुगम्य भारत अभियान जैसी पहलें शिक्षा सहित डिजिटल सेवाओं को सुगम्य बनाने का प्रयास करती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनका क्रियान्वयन उचित नही है।
  • सुलभ सहायक तकनीकों (Assistive Technologies - AT) की कमी: दिव्यांगजनों की आवश्यकताओं के अनुसार सहायक तकनीकों की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन भारत में किफायती और ज़रूरत आधारित AT समाधानों की भारी कमी है।
    • एसिड अटैक सर्वाइवर्स को पलक झपकाने या चेहरा संरेखित करने जैसे चेहरे की पहचान करने वाले कार्यों में संघर्ष करना पड़ता है, जबकि दृष्टिबाधित उपयोगकर्त्ताओं को सेल्फी और दस्तावेज़ सत्यापन जैसे कार्यों में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे डिजिटल  KYC (KYC) बहिष्कृत और भेदभावपूर्ण हो जाता है।
      • यह कमी दिव्यांगजनों की डिजिटल प्लेटफार्मों तक प्रभावी पहुँच और लाभ उठाने की क्षमता को सीमित करती है, जिससे उनका डिजिटल बहिष्कार और गहरा होता है।

दिव्यांगजनों के सक्रिय डिजिटल सशक्तिकरण के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • समावेशी डिजिटल अवसंरचना: डिजिटल इंडिया के तहत, सरकार वेब सामग्री सुगमता दिशानिर्देशों का पालन करते हुए  स्क्रीन रीडर, वॉयस कमांड और वास्तविक समय सांकेतिक भाषा अनुवाद और ऑडियो विवरण के लिये AI-संचालित टूल जैसी सहायक प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दे सकती है।
    • इंटरफेस को चेहरे के संकेतों पर निर्भर होने से बचना चाहिये, वैकल्पिक ऑडियो की पेशकश करनी चाहिये, या चेहरे की विकृति वाले उपयोगकर्त्ताओं के लिये स्पर्श नेविगेशन की सुविधा प्रदान करनी चाहिये।
    • इन सुविधाओं को मौजूदा डिजिटल पोर्टलों में एकीकृत करने से दिव्यांग लोगों को डिजिटल सेवाओं का लाभ उठाने में सशक्तता मिलेगी।
  • दिव्यांगजनों के बीच डिजिटल साक्षरता में सुधार: राष्ट्रीय बहुदिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान (NIEPMD) गूगल या माइक्रोसॉफ्ट जैसे संगठनों के साथ सहयोग कर सकता है, ताकि दिव्यांगजनों को सहायक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने तथा डिजिटल और सरकारी सेवाओं तक पहुँच बनाने के लिये प्रशिक्षित करने हेतु विशेष पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जा सकें।
  • दिव्यांगता-संवेदनशील शहरी नियोजन: सार्वजनिक अवसंरचना में सहायक प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना, जैसे कि स्मार्ट सिटी पहल, जहाँ सार्वजनिक परिवहन, स्मार्ट स्ट्रीट लाइटिंग और शहरी स्थानों को दिव्यांगजनों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया हो।
    • सार्वजनिक स्थानों पर डिजिटल साइनेज़ स्थापित किया जाना चाहिये जो विभिन्न प्रारूपों में जानकारी प्रदान करें - जैसे ऑडियो, ब्रेल और सांकेतिक भाषा वीडियो - ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दिव्यांगजन आसानी से नेविगेट कर सकें।
  • दिव्यांगजन सशक्तिकरण के लिये समावेशी नवाचार प्रयोगशाला: दिव्यांगजनों के लिये अत्याधुनिक डिजिटल सुलभता समाधान विकसित करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से एक समावेशी नवाचार प्रयोगशाला का निर्माण करना।
    • यह केंद्र स्टार्टअप्स, प्रौद्योगिकी कंपनियों और गैर सरकारी संगठनों को एक साथ लाएगा, ताकि पहुँच में सुधार के लिये नवीन, स्केलेबल और किफायती प्रौद्योगिकियों का निर्माण किया जा सके।

अपने ग्राहक को जानो (Know Your Customer)

  •  KYC:  KYC प्रक्रिया एक अनिवार्य पहचान सत्यापन प्रणाली है जिसका उपयोग वित्तीय और गैर-वित्तीय संस्थाओं द्वारा ग्राहकों द्वारा निवेश करने या खाता खोलने से पहले किया जाता है। 
    • इसमें विश्वसनीय दस्तावेज़ों अथवा डेटा का उपयोग करके ग्राहक की पहचान सत्यापित करना शामिल है, जैसे पहचान का प्रमाण, पता और हाल ही की तस्वीर। संयुक्त या अधिदेश धारकों के लिये भी इसी तरह के विवरण की आवश्यकता होती है।
  • डिजिटल KYC: यह कागज़-आधारित परंपरागत विधियों के स्थान पर ई-दस्तावेज़ों, बायोमेट्रिक डेटा अथवा आधार प्रमाणीकरण जैसे डिजिटल साधनों का उपयोग कर ग्राहक की पहचान सत्यापित करने की एक प्रक्रिया है।
  • सेंट्रल KYC रिकॉर्ड रजिस्ट्री (CKYCRR): CKYCRR एक केंद्रीकृत संग्रह है जिसमें KYC रिकॉर्ड संग्रहीत होते हैं, जिससे वित्तीय संस्थानों में इस डेटा का पुनः उपयोग संभव हो जाता है और बार-बार प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता कम हो जाती है। 
  • CERSAI: भारतीय प्रतिभूतिकरण, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण और प्रतिभूति स्वत्व की केंद्रीय रजिस्ट्री (CERSAI), कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत भारत सरकार की कंपनी है, जो नई दिल्ली से संचालित होती है और धन शोधन निवारण नियम, 2005 के तहत KYC रजिस्ट्री को बनाए रखने के लिये उत्तरदायी है। 

निष्कर्ष:

सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगजनों के लिये डिजिटल पहुँच का अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार के रूप में प्रतिज्ञान किया। हालाँकि, डिजिटल डिवाइड को कम करने के लिये समावेशी बुनियादी ढाँचे और लक्षित डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता है। भारत को सभी के लिये समान डिजिटल भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगजन अधिकार अभिसमय (CRPD), 2006 के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिये।

 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. ई-गवर्नेंस सेवाएँ प्राप्त करने में दिव्यांगजनों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों का समाधान करने हेतु आवश्यक विनियामक सुधारों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत लाखों दिव्यांगजनों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।   
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।   
  3. सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

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