प्रारंभिक परीक्षा
पिघलते ग्लेशियर ज्वालामुखी विस्फोट को ट्रिगर कर सकते हैं
- 09 Jul 2025
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
प्राग (Prague) में आयोजित गोल्डश्मिट सम्मेलन, 2025 में प्रस्तुत एक अध्ययन से पता चलता है कि ग्लेशियरों के पिघलने और ज्वालामुखीय गतिविधियों में वृद्धि के बीच संभावित संबंध (विशेषकर पश्चिमी अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में) हो सकता है।
नोट: गोल्डश्मिट सम्मेलन भू-रसायन (Geochemistry) और संबंधित विषयों पर आधारित प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन है, जिसका आयोजन यूरोपीय भू-रसायन संघ तथा भू-रासायनिक सोसायटी द्वारा किया जाता है।
पिघलते ग्लेशियरों और ज्वालामुखी विस्फोटों पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- उपहिमनद ज्वालामुखी: ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के नीचे स्थित ज्वालामुखी को सबग्लेशियेटेड वोल्केनोज़ कहा जाता है। ये आइसलैंड, ब्रिटिश कोलंबिया और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- ये ज्वालामुखी ग्लेशियरों के पीछे हटने (Glacier Retreat) के प्रति संवेदनशील होते हैं, क्योंकि बर्फ की चादरें ज्वालामुखीय गतिविधियो पर दाब रखती हैं।
- सबसे अधिक खतरा पश्चिमी अंटार्कटिका में है, जहाँ लगभग 100 ज्वालामुखी बर्फ के नीचे स्थित हैं। जैसे-जैसे बर्फ पिघलेगी, अगले कुछ दशकों या सदियों में ज्वालामुखीय विस्फोटों की संभावना बढ़ सकती है।
- उत्तर अमेरिका, न्यूज़ीलैंड और रूस जैसे क्षेत्र भी इस जोखिम के अंतर्गत आते हैं, जहाँ बर्फ पिघलने और जलवायु परिवर्तन के कारण ज्वालामुखीय गतिविधि सक्रिय हो सकती है।
- पिघलती बर्फ और ज्वालामुखी गतिविधियाँ: आइस शीट्स (Ice Sheets) ज्वालामुखियों के नीचे स्थित मैग्मा कक्षों पर दबाव डालती हैं, जिससे विस्फोटों को रोका जा सकता है।
- जब ग्लेशियर या आइस कैप पिघलते हैं, तो दबाव में कमी आती है, जिससे अंडरग्राउंड गैस और मैग्मा का विस्तार होता है, जिससे विस्फोट की संभावना बढ़ जाती है।
- इस प्रक्रिया को ग्लेशियल अनलोडिंग कहा जाता है, जिसकी अवधारणा वर्ष 1970 के दशक में दी गई थी।
- जलवायु परिवर्तन से प्रभावित वर्षा ज़मीन के नीचे जाकरमैग्मा प्रणालियों के साथ क्रिया कर सकती है, जिससे संभावित रूप से विस्फोट हो सकता है।
- उदाहरण: आइसलैंड के अंतिम प्रमुख बर्फ-ह्रास काल (Deglaciation) (लगभग 15,000 से 10,000 वर्ष पूर्व) के दौरान, ज्वालामुखी गतिविधि वर्तमान दरों से 30-50 गुना अधिक थी।
- जब ग्लेशियर या आइस कैप पिघलते हैं, तो दबाव में कमी आती है, जिससे अंडरग्राउंड गैस और मैग्मा का विस्तार होता है, जिससे विस्फोट की संभावना बढ़ जाती है।
- ज्वालामुखी विस्फोटों के जलवायु प्रभाव:
- अल्पकालिक शीतलन: ज्वालामुखी विस्फोट वायुमंडल में राख और सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जिससे सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध होता है तथा पृथ्वी की सतह अस्थायी रूप से ठंडी हो जाती है।
- सल्फर डाइऑक्साइड समताप मंडल में पानी के साथ प्रतिक्रिया करके सल्फ्यूरिक एसिड एरोसोल बनाता है जो सौर विकिरण को परावर्तित करता है, जिससे सतह ठंडी हो जाती है।
- उदाहरण: माउंट पिनातुबो (1991) ने उत्तरी गोलार्द्ध को एक वर्ष से अधिक समय तक ~0.5°C तक तापमान कम कर दिया।
- दीर्घकालिक वार्मिंग: बार-बार होने वाले विस्फोटों से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और मीथेन (CH₄) जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे वैश्विक तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि होती है और यह एक फीडबैक लूप उत्पन्न करता है, जहाँ ग्लेशियर पिघलने से ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं, जो ग्लेशियर पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ कर देते हैं।
- अल्पकालिक शीतलन: ज्वालामुखी विस्फोट वायुमंडल में राख और सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जिससे सूर्य का प्रकाश अवरुद्ध होता है तथा पृथ्वी की सतह अस्थायी रूप से ठंडी हो जाती है।
हिमनद (ग्लेशियर):
- हिमनद (ग्लेशियर): एक विशाल, धीमी गति से गतिमान बर्फ का द्रव्यमान, जो समय के साथ हिमपात की परतों के संघनन से बनता है।
- निर्माण: हिमपात (Snowfall) लगातार जमा होता है। यह धीरे-धीरे दबाव में आकर फर्न (Firn) में परिवर्तित हो जाता है, फर्न बर्फ और ग्लेशियल आइस के बीच की स्थिति होती है। कई दशकों से लेकर 100 वर्षों या उससे अधिक समय में यह सघन ग्लेशियल बर्फ में बदल जाती है।
- प्रकार :
- अल्पाइन ग्लेशियर पर्वतीय घाटियों से नीचे प्रवाहित होते हैं।
- आइस शीट्स (50,000 वर्ग किमी से बड़ी) केवल ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में मौजूद हैं।
- आइस कैप्स (<50,000 वर्ग किमी) गुंबद के आकार की होती हैं और उच्च अक्षांश क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- आइसफील्ड्स, हिमशिखरों से छोटे होते हैं तथा अंतर्निहित भू-भाग से प्रभावित होते हैं।
- ग्लेशियल बर्फ का विस्तार: ग्लेशियर पृथ्वी की भूमि सतह का लगभग 10% क्षेत्र कवर करते हैं (~15 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक)।
- समुद्र तल पर प्रभाव: यदि सभी ग्लेशियर और आइस शीट्स पूरी तरह पिघल जाती हैं, तो वैश्विक समुद्र तल 60 मीटर (195 फीट) तक बढ़ सकता है।
- क्षेत्रफल के अनुसार सबसे बड़ा ग्लेशियर: सेलर ग्लेशियर (अंटार्कटिका)
- सबसे लंबाग्लेशियर: बेरिंग ग्लेशियर (अलास्का)।
- नीली हिमनद बर्फ: पुरानी हिमनद बर्फ नीली या फिरोज़ी दिखाई देती है क्योंकि यह प्रकाश स्पेक्ट्रम के अन्य सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है और केवल नीले रंग का प्रकीर्णन करती है। इसकी घनी, सघन क्रिस्टलीय संरचना, सामान्य फ्रीज़र बर्फ की सरल संरचना के विपरीत, इस प्रभाव को बढ़ाती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |