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पश्चिम एशिया संघर्ष और भारत के हित

  • 17 Jun 2025
  • 28 min read

यह एडिटोरियल 17/06/2025 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Fallouts of Iran-Israel conflict: Disruptions in oil supplies, raised prices” पर आधारित है। यह लेख ईरान पर इज़रायल के हमलों के प्रभाव को रेखांकित करता है, जिसके परिणामस्वरूप कच्चे तेल की कीमतों में 7% की वृद्धि हुई और होर्मुज़ जलडमरूमध्य को लेकर जोखिम बढ़ गए। यह भारत के सामने उभरती ऊर्जा सुरक्षा, मुद्रास्फीति नियंत्रण और इज़रायल एवं ईरान के साथ कूटनीतिक संबंधों सहित चाबहार बंदरगाह परियोजना से जुड़ी चुनौतियों को उजागर करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

पश्चिम एशियाई क्षेत्र, चाबहार बंदरगाह, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, इस्लामिक सहयोग संगठन, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, लाल सागर, होर्मुज़ जलडमरूमध्य, केप ऑफ गुड होप,  अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा। 

मेन्स के लिये:

पश्चिम एशिया में संघर्ष के प्रमुख चालक, भारत पर पश्चिम एशियाई संघर्ष के निहितार्थ।

हाल ही में इज़रायली हमलों ने ईरान के साथ तनाव को बढ़ा दिया है, जिससे वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में आघात लगे हैं और कच्चे तेल की कीमतों में 7% की तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि ईरान की तेल उत्पादन क्षमता 3.3 मिलियन बैरल प्रतिदिन है, लेकिन मौजूदा प्रतिबंधों के चलते उसका निर्यात घटकर केवल 1.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन रह गया है। हालाँकि सबसे बड़ी चिंता हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य के संभावित अवरोध को लेकर है, जिसके माध्यम से विश्व की लगभग एक-पाँचवीं तेल आपूर्ति पारगमन होती है। पश्चिम एशिया में बढ़ता यह संघर्ष भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा, मुद्रास्फीति नियंत्रण और कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने जैसी बहुआयामी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है, विशेष रूप से जब भारत को इज़राइल और ईरान के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना है और चाबहार बंदरगाह परियोजना जैसे रणनीतिक हितों की रक्षा भी सुनिश्चित करनी है।

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पश्चिम एशिया में संघर्ष के प्रमुख कारक क्या हैं?

  • इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष: चलता आ रहा इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष क्षेत्र में अस्थिरता का एक केंद्रीय कारण बना हुआ है, जो गहरे राजनीतिक, धार्मिक और क्षेत्रीय विवादों से जुड़ा हुआ है।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्धविराम की अपीलों (जिसमें हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा की स्थायी युद्धविराम की मांग भी शामिल है) के बावजूद, गाज़ा में इज़राइली सैन्य कार्रवाइयों ने तनाव को और अधिक बढ़ा दिया है। 
      • इससे व्यापक क्षेत्रीय हस्तक्षेप की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें हिज़बुल्ला और हमास ने इज़रायल पर अपने हमलों को तेज़ कर दिया है, जिससे संकट और गहरा हो गया है।
  • ईरान-इज़रायल प्रतिद्वंद्विता और प्रॉक्सी/छद्म युद्ध: विचारधारात्मक मतभेदों से प्रेरित ईरान और इज़रायल के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता ने क्षेत्रीय अस्थिरता को और गहरा किया है। हिज़बुल्ला, हमास और अन्य मिलिशिया समूहों को ईरान का समर्थन, इज़रायल की क्षेत्रीय श्रेष्ठता के लिये एक चुनौती बन गया है।
    • उदाहरण के लिये, सितंबर 2024 में ईरान द्वारा इज़रायल के सैन्य अड्डे पर किया गया मिसाइल हमला (जो हिज़बुल्ला नेता की हत्या के प्रतिशोध में था) उसके बढ़ते युद्धक इरादों को दर्शाता है।
    • ईरान का क्षेत्रीय प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, क्योंकि इसके सहयोगी समूह लगातार अमेरिका और इज़रायल के हितों को निशाना बना रहे हैं, जिससे लेबनान, सीरिया और यमन में तनाव लगातार बढ़ रहा है।
  • सांप्रदायिक विभाजन और प्रॉक्सी/छद्म संघर्ष: धार्मिक आधार पर गहराता विभाजन पश्चिम एशिया में अस्थिरता का एक प्रमुख कारण बन गया है, जहाँ सऊदी अरब और ईरान जैसे देश क्षेत्र भर में विरोधी गुटों का समर्थन कर रहे हैं।
    • यमन में ईरान द्वारा समर्थित हूती विद्रोही लगातार सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के हितों को निशाना बना रहे हैं, जबकि सऊदी अरब सीरिया और इराक में एक प्रतिद्वंद्वी गुट का समर्थन करता है।
    • यमन में चल रहे युद्ध ने अब तक 2,50,000 से अधिक लोगों की जान ले ली है और यह लगातार अस्थिरता को बढ़ावा दे रहा है, जिससे पूरे खाड़ी क्षेत्र की सुरक्षा प्रभावित हो रही है।
  • अमेरिका और पश्चिमी प्रभाव बनाम बढ़ती चीनी भूमिका: पश्चिम एशिया में अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा ने प्रभाव के परस्पर प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र निर्मित कर दिये हैं।
    • इज़रायल के प्रति अमेरिका के समर्थन और खाड़ी क्षेत्र में उसकी सैन्य उपस्थिति विशेषकर ईरान के विरुद्ध, जो ऐतिहासिक संघर्ष का परिणाम है और हाल ही में वरश 2019 में ईरान द्वारा होर्मुज़ जलडमरूमध्य में एक अमेरिकी ग्लोबल हॉक ड्रोन को मार गिराने की घटना के चलते ईरान के साथ तनाव और अधिक बढ़ गया है।
    • वहीं दूसरी ओर, वर्ष 2023 में चीन द्वारा सफलतापूर्वक कराई गई सऊदी-अरब और ईरान के बीच शांति समझौते की मध्यस्थता क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव का संकेत देती है।
      • चीन की राजनयिक सफलता अमेरिका की नीतियों के विपरीत है, जिन्हें अक्सर एकपक्षीय माना गया है, जिससे क्षेत्र की भू-राजनीति और अधिक जटिल हो गई है।
  • संसाधनों की प्रतिस्पर्द्धा और ऊर्जा सुरक्षा: क्षेत्र के विशाल ऊर्जा भंडार संघर्ष का एक प्रमुख कारक बने हुए हैं, जहाँ तेल-समृद्ध क्षेत्रों पर प्रभाव जमाने के लिये वैश्विक शक्तियाँ प्रतिस्पर्द्धा कर रही हैं।
    • वर्ष 2024 में ईरान का कच्चे तेल का उत्पादन प्रतिदिन 3.4 मिलियन बैरल है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 3% है। किसी भी प्रकार की आपूर्ति में बाधा से तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है, जिससे वैश्विक आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
  • आर्थिक अस्थिरता और बढ़ती बेरोज़गारी: प्रतिबंधों और युद्ध से बढ़ी आर्थिक कठिनाइयों ने पश्चिम एशिया के कई देशों में अशांति को बढ़ावा दिया है।
    • उदाहरण के लिये, लेबनान की आर्थिक व्यवस्था के गिरने का कारण वहाँ मुद्रास्फीति 200% तक पहुँचना है, जिससे यह देश विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बन गया है।
    • इसी प्रकार, सऊदी अरब और इराक जैसे देशों में युवाओं की बेरोज़गारी दर 30–35% के बीच है, जिससे उग्रवाद और कट्टरपंथीकरण की प्रवृत्तियों में वृद्धि हुई है।
      • आर्थिक अस्थिरता से जनसंख्या चरमपंथी विचारधाराओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है, जिससे समग्र संघर्ष का जोखिम बढ़ जाता है।
  • परमाणु प्रसार और हथियारों की होड़: ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाएँ अब भी क्षेत्र में तनाव का प्रमुख कारण बनी हुई हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों, जिनमें वर्ष 2015 का परमाणु समझौता भी शामिल है, के बावजूद ईरान ने अपनी परमाणु क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि की है और वर्ष 2024 की शुरुआत तक यूरेनियम को 60% शुद्धता तक संवर्द्धित कर लिया है।
    • ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने की संभावना ने क्षेत्रीय शक्तियों, जैसे सऊदी अरब, को अपने स्वयं के परमाणु कार्यक्रमों पर पुनर्विचार करने के लिये प्रेरित किया है, जिससे एक संभावित हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है जो क्षेत्र को और अधिक अस्थिर बना सकती है।

पश्चिम एशियाई संघर्ष का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

  • कूटनीतिक और रणनीतिक दुविधाएँ: भारत को इस क्षेत्र में एक जटिल कूटनीतिक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसके इज़राइल और ईरान दोनों से गहरे संबंध हैं।
    • एक गुटनिरपेक्ष शक्ति या बहु-गठबंधन शक्ति के रूप में भारत की स्थिति का परीक्षण इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे और इज़रायल तथा ईरान के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता से होता है।
    • वर्ष 2024 में तनाव बढ़ने पर, जब इज़राइल ने ईरानी ठिकानों को निशाना बनाया, भारत को दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील करनी पड़ी, जबकि उसे दोनों देशों से अपने मज़बूत संबंध भी बनाए रखने पड़े।
      • भारत के रणनीतिक हित, विशेषकर चाबहार बंदरगाह परियोजना, इस अस्थिर स्थिति से सावधानीपूर्वक निपटने की मांग करते हैं।  

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  • ऊर्जा सुरक्षा मुद्दा और तेल की बढ़ती कीमतें: पश्चिम एशियाई संघर्षों, विशेषकर इज़रायल और ईरान के बीच तनाव का भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
    • चूँकि भारत अपनी 80% से अधिक कच्चे तेल की आवश्यकता आयात के माध्यम से पूरी करता है, इसलिये इस क्षेत्र से तेल आपूर्ति में कोई भी बाधा भारत की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।
    • बढ़ते संघर्ष, विशेषकर हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य के संभावित बंद होने से वैश्विक तेल आपूर्ति लाइनों को खतरा उत्पन्न हो गया है।
      • ईरानी ठिकानों पर इज़रायल के हवाई हमलों के बाद ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतों में 9% की वृद्धि हुई, जो अस्थिरता में वृद्धि का संकेत है।
  • उच्च माल ढुलाई और शिपिंग लागत के कारण आर्थिक तनाव: संघर्ष ने महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्गों को बाधित कर दिया है, जिससे शिपिंग लागत में वृद्धि हुई है और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में देरी हुई है।
    • भारतीय निर्यात के लिये एक महत्त्वपूर्ण मार्ग लाल सागर अब सुरक्षा खतरों का सामना कर रहा है, जिससे माल की शिपिंग लागत बढ़ सकती है।
    • लाल सागर के लिये वैकल्पिक मार्ग केप ऑफ गुड होप के आसपास चक्कर लगाने से शिपिंग समय में 10-14 दिन की वृद्धि हो सकती है, जिससे माल ढुलाई लागत में 20% की वृद्धि हो सकती है।
      • इससे भारतीय निर्यात की कीमतें बढ़ने की संभावना है, जिसका प्रभाव वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों पर पड़ेगा।

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  • इज़राइल और ईरान के साथ व्यापार पर प्रभाव: संघर्ष के कारण इज़राइल और ईरान दोनों के साथ भारत के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
    • आर्थिक उथल-पुथल के कारण दोनों देशों को भारतीय निर्यात में गिरावट आई है और वर्ष 2024 की पहली छमाही में इज़राइल के निर्यात में 63.5% की गिरावट आई थी।
    • इसी तरह, ईरान के साथ व्यापार में भी भारी गिरावट आई है। चूँकि भारत दोनों देशों के साथ विशेष रूप से रक्षा और तेल के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण व्यापार संबंध रखता है, इसलिये यह गिरावट उसके रणनीतिक आर्थिक संबंधों के लिये एक गंभीर झटका है।
  • भारतीय प्रवासियों और विप्रेषणों के लिये खतरा: खाड़ी और पश्चिम एशिया में लाखों भारतीय कार्य कर रहे हैं, ऐसे में इस क्षेत्र की अस्थिरता प्रवासी श्रमिकों के लिये प्रत्यक्ष खतरा उत्पन्न करती है।
    • लेबनान और सऊदी अरब जैसे देशों में कार्यरत भारत के प्रवासी बढ़ती हिंसा के प्रति संवेदनशील हैं, जिससे बड़े पैमाने पर निकासी की आवश्यकता पड़ सकती है।
    • यहाँ यदि संघर्ष और गहराता है, तो इससे उनकी सुरक्षा और आय बाधित हो सकती है, जो भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि विप्रेषण GDP का लगभग 3% हिस्सा बनाते हैं।
  • मुद्रास्फीति का दबाव और आर्थिक मंदी: तेल की कीमतों में वृद्धि के साथ, भारत को मुद्रास्फीति के दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जो आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकता है।
    • वैश्विक तेल कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि से भारत का चालू खाता घाटा लगभग 10 बिलियन डॉलर बढ़ जाता है।
    • भारत की मुद्रास्फीति दर और अधिक बढ़ सकती है, जिससे खाद्यान्न और ईंधन की कीमतें प्रभावित होंगी, जो इसकी बड़ी आबादी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
      • इन तनावों के बीच वैश्विक वृद्धि की संभावनाएँ कमज़ोर होने से भारत की विकास संभावनाएँ भी प्रभावित हो सकती हैं, जैसा कि विश्व बैंक द्वारा वर्ष 2025 के लिये संशोधित वैश्विक GDP वृद्धि अनुमान 2.3% में परिलक्षित होता है।
  • भू-राजनीतिक बदलाव और चीन का प्रभाव: बीजिंग द्वारा मध्यस्थता किये गए सऊदी-ईरान शांति समझौते सहित पश्चिम एशिया में बढ़ते चीनी प्रभाव ने भारत की रणनीतिक गणना को प्रभावित किया है।
    • जैसे-जैसे चीन आर्थिक और कूटनीतिक माध्यमों से अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, भारत पर अपने क्षेत्रीय संबंधों की पुनर्समीक्षा करने का दबाव बढ़ रहा है।
    • चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और ईरान के साथ उसके बढ़ते संबंध, जिनमें ऊर्जा समझौते भी शामिल हैं, नई भू-राजनीतिक परिस्थितियाँ उत्पन्न कर रहे हैं, जिनसे निपटना भारत के लिये आवश्यक है ताकि वह इस क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा कर सके, विशेषकर इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) जैसे क्षेत्रों में।

संघर्षों के बीच पश्चिम एशिया में अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • क्षेत्रीय शक्तियों के साथ कूटनीतिक संवाद को दृढ़ करना: भारत को एक सक्रिय कूटनीतिक रणनीति अपनानी चाहिये तथा अपने रणनीतिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा के लिये इज़रायल और ईरान दोनों के साथ संवाद को बढ़ाना चाहिये।
    • भारत को अपने रणनीतिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा हेतु इज़राइल और ईरान दोनों के साथ प्रत्यक्ष वार्ता करनी चाहिये।
      • हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री ने दोनों देशों के साथ क्षेत्रीय स्थिति पर चर्चा की है, जिसमें तनाव बढ़ने से बचने, संयम बरतने और कूटनीति की राह पर लौटने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
    • सऊदी अरब और UAE जैसे प्रमुख खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों के साथ भारत की बढ़ी हुई राजनयिक पहुँच, न केवल भारत के आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने में सहायता करेगी, बल्कि क्षेत्रीय तनाव को कम करने में भी भारत की रचनात्मक भूमिका को मज़बूत करेगी।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग और आतंकवाद-रोधी पहल का विस्तार: भारत को पश्चिम एशिया में, विशेष रूप से इज़रायल, जॉर्डन और मिस्र जैसे देशों के साथ अपनी आतंकवाद-रोधी साझेदारी को दृढ़ करना चाहिये। 
    • खुफिया जानकारी साझा करने के ढाँचे को बढ़ाकर और संयुक्त सुरक्षा पहलों की स्थापना करके, भारत क्षेत्र में सक्रिय उग्रवादी समूहों द्वारा उत्पन्न खतरों को कम कर सकता है। 
  • ऊर्जा आयात में विविधता लाना तथा रणनीतिक भंडार का निर्माण करना: पश्चिम एशिया से तेल और गैस की आपूर्ति पर निर्भरता कम करने के लिये, भारत को अपने ऊर्जा आयात में विविधता लानी चाहिये। इसके लिये अफ्रीका, मध्य एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे नए आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ संबंध बढ़ाने होंगे। साथ ही, रणनीतिक ऊर्जा भंडार को दृढ़ करके दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
    • गैर-खाड़ी देशों के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा समझौते स्थापित करने से आपूर्ति में व्यवधान के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त होगी।
    • इसके साथ ही, भारत को रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों के विकास में तेज़ी लानी चाहिये, ताकि क्षेत्रीय संघर्षों के कारण अचानक मूल्य में उतार-चढ़ाव या आपूर्ति शृंखला में बाधाओं से बचा जा सके।
  • समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ करना और व्यापार मार्गों की रक्षा: फारस की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य में बढ़ती अस्थिरता को देखते हुए, भारत को इन महत्त्वपूर्ण जल क्षेत्रों में अपनी नौसैनिक उपस्थिति और समुद्री सुरक्षा अभियानों को सुदृढ़ करना चाहिये।
    • अमेरिका, रूस और जापान जैसी वैश्विक शक्तियों तथा प्रमुख क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सहयोग को दृढ़ करने से भारत के ऊर्जा आयात और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण शिपिंग मार्गों को सुरक्षित करने में सहायता मिलेगी। 
    • अपनी समुद्री रणनीति का विस्तार करके भारत वाणिज्य और ऊर्जा के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित कर सकता है, साथ ही क्षेत्रीय सुरक्षा मामलों में अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा सकता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिये आर्थिक कूटनीति का प्रभावी उपयोग: भारत को पश्चिम एशिया में अपने हितों की रक्षा के लिये आर्थिक कूटनीति को एक उपकरण के रूप में सक्रिय रूप से उपयोग करना चाहिये।
    • द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को प्रबल करना, निवेश साझेदारी का विस्तार करना तथा बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं (जैसे चाबहार बंदरगाह) को आगे बढ़ाना, इस क्षेत्र में भारत की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करेगा। 
    • पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करके, भारत क्षेत्रीय शक्तियों और छोटे राज्यों दोनों के साथ गहन संबंध विकसित कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि क्षेत्र में इसकी उपस्थिति को चल रहे संघर्षों के बीच एक स्थिरताकारी शक्ति के रूप में देखा जाए।
  • लोगों के बीच संबंधों और सॉफ्ट पावर कूटनीति को प्रोत्साहन: भारत को क्षेत्रीय राज्यों के साथ सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध स्थापित करने के लिये पश्चिम एशिया में अपने सशक्त प्रवासी समुदाय और लोगों के बीच संबंधों का लाभ उठाना चाहिये।
    • शैक्षिक आदान-प्रदान, सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ाकर तथा प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में भारतीय विशेषज्ञता को बढ़ावा देकर भारत अपनी सॉफ्ट पावर को दृढ़ कर सकता है। 
    • यह दृष्टिकोण न केवल भारत के प्रभाव को बढ़ाएगा, बल्कि गैर-सैन्य साधनों के माध्यम से संघर्षों को हल करने का एक मार्ग भी प्रदान करेगा, जिससे भारत शांति और सहयोग के लिये एक वैश्विक समर्थक के रूप में स्थापित होगा।
  • कनेक्टिविटी परियोजनाओं के माध्यम से क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को प्रोत्साहन: भारत को पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और भारत के बीच व्यापार और परिवहन संपर्क बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी विस्तारित कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर ज़ोर देकर क्षेत्रीय एकीकरण पहलों में तेज़ी लानी चाहिये। 
    • ये परियोजनाएँ न केवल सुगम और अधिक सुरक्षित व्यापार मार्गों की सुविधा प्रदान करेंगी, बल्कि आर्थिक अंतरनिर्भरता को प्रोत्साहन प्रदान करके क्षेत्रीय स्थिरता को भी बढ़ावा देंगी। 
    • बुनियादी ढाँचे के विकास को सुविधाजनक बनाकर, भारत चल रहे संघर्षों के बीच क्षेत्र के आर्थिक भविष्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • मानवीय सहभागिता और संकट प्रतिक्रिया तंत्र को दृढ़ करना: भारत को पश्चिम एशिया में संघर्ष से प्रभावित जनसंख्या की सहायता के लिये संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ सहयोग में एक व्यापक मानवीय प्रतिक्रिया ढाँचा स्थापित करना चाहिये। 
    • चिकित्सा सहायता, राहत सामग्री और पुनर्निर्माण सहयोग प्रदान करके भारत न केवल क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान दे सकता है, बल्कि एक शांतिदूत के रूप में अपनी छवि को भी सशक्त बना सकता है।
    • सक्रिय शांति स्थापना प्रयासों में संलग्न होने से भारत को मानवीय पीड़ा को कम करने के लिये प्रतिबद्ध एक तटस्थ अभिनेता के रूप में देखा जा सकेगा, जिससे पूरे क्षेत्र में उसकी कूटनीतिक स्थिति सुदृढ़ होगी।

निष्कर्ष: 

पश्चिम एशिया के जटिल संघर्ष भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा से लेकर कूटनीतिक संतुलन तक अनेक गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं। कूटनीतिक संवाद, सुरक्षा सहयोग और आर्थिक कूटनीति के माध्यम से एक सक्रिय रणनीति अपनाकर भारत न केवल अपने हितों की रक्षा कर सकता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रोत्साहन दे सकता है। क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संबंधों को दृढ़ करना और ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना भारत की रणनीतिक स्थिति को और अधिक सुदृढ़ करेगा। अंततः इस क्षेत्र में एक स्थिरकारी शक्ति के रूप में भारत की भूमिका उसकी दीर्घकालिक सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगी।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

Q. “पश्चिम एशिया में संघर्ष के प्रमुख कारक और भारत के रणनीतिक, आर्थिक एवं ऊर्जा सुरक्षा हितों पर उनके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।”

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक फैला नहीं है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल

उत्तर: B


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है ?

(a) चीन  
(b) इज़रायल  
(c) इराक  
(d) यमन  

उत्तर: B


मेन्स

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018)

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एसएमएस अलर्ट
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