अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ईरान-इज़राइल संघर्ष 2025
- 16 Jun 2025
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त व्यापक कार्य योजना, होर्मुज़ जलडमरूमध्य, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), लाल सागर, टू स्टेट सॉल्यूशन, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC)। मेन्स के लिये:ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष के कारणों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, ईरान-इज़राइल संघर्ष का भारत पर प्रभाव और तनाव कम करने के लिये सुझाए गए उपाय। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
इज़रायल ने "ऑपरेशन राइजिंग लायन" के तहत ईरान के परमाणु और सैन्य स्थलों पर हवाई हमले एवं ड्रोन हमले किये, जिनमें तेहरान, नतांज यूरेनियम संवर्धन सुविधा, एक परमाणु अनुसंधान केंद्र, तबरीज़ में दो सैन्य अड्डे तथा केरमानशाह में एक भूमिगत मिसाइल भंडारण स्थल शामिल थे, ताकि ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोका जा सके।
- जवाबी कार्रवाई में, ईरान ने “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3” के तहत इज़राइल पर बैलिस्टिक मिसाइलों की बौछार कर दी, जिससे येरुशलम और तेल अवीव में विस्फोट हुए।
ईरान-इज़राइल संघर्ष 2025 के कारण क्या हैं?
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ईरान और इज़रायल के बीच संबंध वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से गहरे शत्रुतापूर्ण रहे हैं, जिसने ईरान को शाह के अधीन इज़रायल के करीबी सहयोगी से बदलकर एक इस्लामी गणराज्य बना दिया, जो यहूदी राज्य के प्रति खुले तौर पर विरोधी है।
- धार्मिक और वैचारिक विभाजन: शिया इस्लामी सिद्धांतों द्वारा शासित ईरान और मुख्यतः यहूदी राज्य इज़राइल, धार्मिक एवं वैचारिक मतभेदों के कारण विभाजित हैं।
- इन मूलभूत मतभेदों ने दशकों से परस्पर अविश्वास और शत्रुता को बढ़ावा दिया है।
- इज़राइल-विरोधी समूहों को ईरान का समर्थन: ईरान फिलीस्तीनी मुद्दों का कट्टर समर्थक रहा है और हमास तथा हिज़्बुल्लाह जैसे संगठनों को सहायता प्रदान करता है, जिन्हें इज़राइल आतंकवादी संगठन मानता है।
- यह प्रतिद्वंद्विता ईरान द्वारा समर्थित बलों जैसे लेबनान में हिज़्बुल्लाह और इराक में शिया मिलिशिया के साथ छद्म संघर्षों के माध्यम से सामने आती है, जिन्हें इज़रायल अपनी सुरक्षा हेतु प्रत्यक्ष खतरे के रूप में देखता है।
- इज़रायल के विनाश के लिये ईरान के मुखर आह्वान ने तनाव को और बढ़ा दिया है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: ईरान और इज़राइल, सीरियाई गृहयुद्ध तथा यमन संकट जैसे संघर्षों में विरोधी हितों के साथ क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये संघर्ष में उलझे हुए हैं।
- ईरान ने सीरिया में असद शासन और यमन में हौथी विद्रोहियों का समर्थन किया है, जबकि इज़रायल इन क्षेत्रों में ईरानी प्रभाव का मुकाबला करने के लिये कार्य करता है।
- ईरान की परमाणु महत्त्वाकांक्षाएँ: इज़रायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को एक गंभीर खतरा मानता है, उसे भय है कि परमाणु हथियारों के विकास से उसका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
- इज़रायल ईरान परमाणु समझौते (संयुक्त व्यापक कार्य योजना) का कट्टर आलोचक रहा है और उसने ईरान की परमाणु प्रगति को बाधित करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह की कार्रवाइयाँ की हैं।
ईरान-इज़रायल संघर्ष के भारत पर क्या प्रभाव होंगे?
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा में बाधा: भारत के लिये, जो महत्त्वपूर्ण होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से प्रतिदिन लगभग 2 मिलियन बैरल तेल आयात करता है, किसी भी अस्थिरता का अर्थ होगा आपूर्ति की कमी, ऊर्जा लागत में वृद्धि, बढ़ती मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास पर बाधाएँ।
- भारत वैश्विक तेल मूल्य अस्थिरता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है; क्षेत्रीय संघर्ष से निरंतर उछाल के कारण मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, राजकोषीय संतुलन पर दबाव पड़ सकता है, आर्थिक विकास धीमा हो सकता है तथा निवेशकों का रुझान बॉण्ड और सोने की ओर जा सकता है, जैसा कि सेंसेक्स और निफ्टी की कमज़ोर शुरुआत से परिलक्षित होता है।
- भारतीय प्रवासियों पर प्रभाव: भारत के 1.34 करोड़ NRI में से 66% से अधिक मध्य पूर्व में रहते हैं, मुख्य रूप से UAE, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान और बहरीन में। पश्चिम एशिया, विशेष रूप से फारस की खाड़ी में रहने वाले बड़े भारतीय प्रवासियों को क्षेत्रीय तनावों से खतरा हो सकता है, जिससे उनकी सुरक्षा नई दिल्ली के लिये एक प्रमुख प्राथमिकता बन जाती है।
- भारत में बड़े पैमाने पर निकासी करने का इतिहास रहा है - विशेष रूप से कुवैत संकट (1990-91 खाड़ी युद्ध) के दौरान और हाल ही में लीबिया और यूक्रेन से।
- सामरिक संपर्क में व्यवधान: ईरान में चाबहार बंदरगाह जैसी भारत की प्रमुख संपर्क परियोजनाएँ, जो इसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ती हैं, क्षेत्रीय उथल-पुथल से प्रभावित हो सकती हैं।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) को इस संघर्ष के कारण जोखिम का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इसकी प्रगति को खतरा हो रहा है तथा द्विपक्षीय व्यापार और क्षेत्रीय आर्थिक गतिशीलता पर प्रभाव पड़ रहा है।
- इसके अतिरिक्त, लाल सागर और आसपास के जलक्षेत्र में शिपिंग व्यवधान के कारण देरी हो सकती है, शिपिंग लागत बढ़ सकती है और वैश्विक व्यापार मार्गों में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
- भारत के लिये कूटनीतिक तंगी: भारत ने इज़रायल के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं, विशेषकर रक्षा, प्रौद्योगिकी और नवाचार जैसे क्षेत्रों में। हालाँकि, जैसे-जैसे तनाव बढ़ता है, भारत स्वयं को एक चुनौतीपूर्ण स्थिति में पा सकता है, जिसमें पक्ष लेने के लिये दबाव का सामना करना पड़ सकता है- एक ऐसा परिणाम जिससे वह बचना चाहेगा।
- इज़रायल-ईरान संघर्ष के बिगड़ने से भारत के संवेदनशील कूटनीतिक संतुलन के बिगड़ने का खतरा है, जिसे उसने पिछले एक दशक में इज़रायल, ईरान और खाड़ी अरब देशों के साथ प्रभावी ढंग से बनाए रखा है।
ईरान-इज़राइल संघर्ष को कम करने के संभावित समाधान क्या हो सकते हैं?
- द्वि-राज्य -राज्य समाधान: इज़रायल को गाज़ा में स्थायी युद्ध विराम की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता के प्रवाह को सुगम बनाना चाहिये तथा द्वि-राज्य समाधान के माध्यम से दशकों पुराने संकट को हल करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का सम्मान करना चाहिये।
- क्षेत्र में स्थायी सुरक्षा, शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये यह सबसे व्यवहार्य मार्ग है।
- द्वि-राज्य समाधान में इज़रायल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की परिकल्पना की गई है, जो इज़रायल को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने और अपने यहूदी जनसांख्यिकीय बहुमत को बनाए रखने में सहायता करेगा, जबकि फिलिस्तीनी लोगों को राज्य का दर्जा प्रदान करेगा।
- क्षेत्र में स्थायी सुरक्षा, शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये यह सबसे व्यवहार्य मार्ग है।
- संवाद और कूटनीति: ईरान और इज़राइल के बीच प्रत्यक्ष वार्ता, जिसमें यूरोपियन यूनियन या संयुक्त राष्ट्र जैसे तटस्थ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थों का सहयोग हो, विश्वास निर्माण और सार्थक वार्ताओं का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं, ताकि साझा हितों की पहचान की जा सके।
- परमाणु प्रसार से निपटना: ईरान संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) के प्रति पुनः प्रतिबद्ध हो सकता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षणों के माध्यम से उसकी अनुपालन स्थिति का सत्यापन संभव हो सके।
- इसके बदले में, इज़राइल ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के अधिकार को स्वीकार कर सकता है तथा ईरानी परमाणु स्थलों पर सैन्य हमले न करने के आश्वासन प्रदान कर सकता है।
- क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ बनाना: ईरान और इज़राइल के बीच क्षेत्रीय मंचों — जैसे कि अरब लीग या खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) — में सहयोग को प्रोत्साहित करने, साझा सुरक्षा चुनौतियों से निपटने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
- सामान्यीकरण की दिशा में कदम: ईरान और इज़राइल आपसी राजदूतों की नियुक्ति, दूतावासों को पुनः खोलने तथा जन-संपर्क को प्रोत्साहित करने के माध्यम से संबंधों के सामान्यीकरण की दिशा में कार्य कर सकते हैं, जैसा कि इज़राइल और UAE या बहरीन के बीच शांति पहल के मॉडल में देखा गया है।
निष्कर्ष
ईरान-इज़राइल संघर्ष, जो ऐतिहासिक, वैचारिक और भू-राजनीतिक तनावों में निहित है, क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करता है। भारत के लिये यह ऊर्जा सुरक्षा, प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर जोखिम उत्पन्न करता है। शत्रुता को कम करने और पश्चिम एशिया में दीर्घकालिक शांति सुनिश्चित करने के लिये कूटनीतिक समाधान, परमाणु अप्रसार और क्षेत्रीय सहयोग अनिवार्य हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: पश्चिम एशिया में ईरान-इज़राइल संघर्ष का भारत के रणनीतिक हितों, विशेषकर चाबहार बंदरगाह तथा IMEC जैसे संपर्क परियोजनाओं पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भूमध्यसागर, निम्नलिखित में से किन देशों की सीमा है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1,2 और 3 उत्तर: (c) प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है? (2018) (a) चीन उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. "भारत के इज़राइल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।" विवेचना कीजिये। (2018) |