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स्वच्छ-प्रौद्योगिकी के माध्यम से आर्थिक विकास का मार्ग

  • 18 Jun 2025
  • 31 min read

यह एडिटोरियल 18/06/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Gaining clean-tech edge” पर आधारित है। इस लेख में भारत के लिये हरित प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर और परीक्षण बुनियादी अवसंरचना एवं मानकों को बढ़ाकर वैश्विक स्वच्छ तकनीक विनिर्माण अग्रणी बनने की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ तकनीक, राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन, हरित प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रिक वाहन, भारत की सौर मॉड्यूल क्षमता, राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन, हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिये क्षारीय समुद्री जल इलेक्ट्रोलाइज़र

मेन्स के लिये:

भारत के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में स्वच्छ प्रौद्योगिकी की भूमिका, भारत में स्वच्छ प्रौद्योगिकी से जुड़े प्रमुख मुद्दे।

भारत वैश्विक स्वच्छ तकनीक महाशक्ति के रूप में उभरने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का हरित प्रौद्योगिकी पर ध्यान इस महत्त्वाकांक्षा को प्राप्त करने के लिये एक रणनीतिक मार्ग प्रदान करता है। स्वच्छ-तकनीक विनिर्माण में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये सुदृढ़ परीक्षण बुनियादी ढाँचा और उन्नत मानक विकास आवश्यक है। यदि प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाता है, तो यह स्वच्छ विनिर्माण भारत को स्वच्छ-तकनीक व्यापार में एक वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है, जिससे इसके औद्योगिक परिदृश्य और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दोनों में बदलाव आएगा।

Green-Tech

भारत के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में स्वच्छ प्रौद्योगिकी क्या भूमिका निभा सकती है?

  • रोज़गार सृजन के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: जैसे-जैसे भारत स्वच्छ-तकनीक उद्योगों की ओर अग्रसर हो रहा है, सौर, पवन, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और बैटरी भंडारण जैसे क्षेत्र लाखों रोज़गार सृजित करेंगे, जो भारत के युवा कार्यबल के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • अकेले ऊर्जा परिवर्तन से वर्ष 2030 तक 5-6 मिलियन तथा वर्ष 2047 तक 9-10 मिलियन नौकरियाँ सृजन हो सकती हैं। 
      • यह बदलाव भारत के संवहनीय अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने से समर्थित है, जो स्वच्छ-प्रौद्योगिकी क्षेत्र को रोज़गार-संपन्न विकास इंजन के रूप में देखता है, विशेष रूप से विनिर्माण, अनुसंधान एवं विकास तथा परियोजना क्रियान्वयन में।
  • ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना और आयात पर निर्भरता कम करना: स्वच्छ प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने से प्रत्यक्ष रूप से आयातित जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता कम हो जाती है, जिससे ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है। 
    • सौर पैनलों, पवन टर्बाइनों और बैटरी भंडारण के घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर भारत ऊर्जा आयात में उल्लेखनीय कटौती कर सकता है, जो वर्तमान में अर्थव्यवस्था पर बोझ है। 
      • वर्ष 2023 में, घरेलू मांग को पूरा करने के लिये भारत की सौर मॉड्यूल क्षमता चार गुना बढ़ जाएगी, जो सौर और बैटरी उत्पादन के लिये PLI योजनाओं के साथ संरेखित होगी, जिससे चीनी आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी।
  • तकनीकी नवाचार और अनुसंधान एवं विकास वृद्धि को उत्प्रेरित करना: भारत की स्वच्छ-तकनीक क्रांति तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दे रही है, विशेष रूप से ऊर्जा भंडारण, हाइड्रोजन और बैटरी प्रौद्योगिकियों में। 
    • राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन और इलेक्ट्रिक वाहनों तथा सौर घटकों के लिये PLI योजनाएँ भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाए रखने के लिये अनुसंधान एवं विकास पर ज़ोर देती हैं।
      • ये नवाचार न केवल विनिर्माण को बढ़ावा देंगे, बल्कि ऐसे सफलताओं की ओर भी ले जाएंगे जो भारत को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकते हैं, तथा स्टार्ट-अप्स, विश्वविद्यालयों और कॉर्पोरेट साझेदारियों का एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र तैयार कर सकते हैं।
    • वर्ष 2025 में लॉन्च किये जाने वाले भारत क्लीनटेक मैन्युफैक्चरिंग प्लेटफॉर्म का उद्देश्य हरित प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास सहयोग को बढ़ावा देना, उन्नत ऊर्जा भंडारण और सौर प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण को सुविधाजनक बनाना है।
  • वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की स्थिति को मज़बूत करना: स्वच्छ-प्रौद्योगिकी विनिर्माण पर भारत का ध्यान इसे नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण उत्पादन के लिये वैश्विक केंद्र में बदल रहा है। 
    • श्रम और इस्पात, तांबा और एल्युमीनियम जैसे कच्चे माल में लागत लाभ का लाभ उठाकर, भारत स्न्धरणीय उत्पादों की बढ़ती मांग वाले बाज़ारों में अपना स्थान बनाकर, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एक रणनीतिक साझेदार के रूप में अपनी स्थिति बना सकता है। 
    • चाइना+1 रणनीति, जिसके तहत राष्ट्र चीन-आधारित आपूर्ति शृंखलाओं के विकल्प तलाशते हैं, भारत के लिये स्वच्छ-प्रौद्योगिकी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने का एक अवसर प्रस्तुत करती है।
      • भारत का स्वच्छ प्रौद्योगिकी निर्यात, विशेष रूप से सौर PV मॉड्यूल, वर्ष 2023 में 5 गीगावाट तक बढ़ गया, जिससे अमेरिका और यूरोप में बाज़ार हिस्सेदारी का विस्तार हुआ, जो हरित ऊर्जा उपकरणों के विनिर्माण आधार के रूप में भारत के उदय का संकेत है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था और अपशिष्ट पुनर्चक्रण उद्योग को बढ़ावा देना: भारत में स्वच्छ प्रौद्योगिकी का तात्पर्य केवल नवीकरणीय ऊर्जा से नहीं है, बल्कि अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण के लिये स्थायी समाधान तैयार करना भी है। 
    • रीसायक्लिंग पर ज़ोर देते हुए, स्वच्छ-तकनीक उद्योग सौर पैनलों और बैटरियों जैसे जीवन-अंत उत्पादों से मूल्यवान सामग्रियों को पुनः प्राप्त करके पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है। 
    • राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन जैसी पहलों के साथ, भारत बैटरी और सौर प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक क्रिटिकल मिनरल्स की कमी को दूर करने के लिये पुनर्चक्रण का उपयोग कर सकता है।
  • शहरी संधारणीयता और हरित अवसंरचना विकास में तेज़ी लाना: स्वच्छ प्रौद्योगिकियाँ भारत के शहरी भविष्य को आकार देने, ऊर्जा मांगों को संबोधित करने और प्रदूषण को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
    • हरित निर्माण सामग्री, इलेक्ट्रिक वाहन और संधारणीय निर्माण विधियों को अपनाकर भारत पर्यावरण अनुकूल शहरों के निर्माण में अग्रणी हो सकता है।
    • भारत हरित भवन प्रथाओं में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, जो सरकारी नीतियों, ऊर्जा और पर्यावरण डिज़ाइन में नेतृत्व तथा एकीकृत आवास मूल्यांकन के लिये हरित रेटिंग जैसी हरित भवन रेटिंग प्रणालियों और सतत् विकास की आवश्यकता के बारे में बढ़ती जागरूकता से प्रेरित है।
  • पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों में कमी: स्वच्छ प्रौद्योगिकी के अंगीकरण से प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में कमी आने से सार्वजनिक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार होता है, जो भारत जैसे देश के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जहाँ वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष 1.2 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं।
    • ऊर्जा, परिवहन और अपशिष्ट प्रबंधन में स्वच्छ प्रौद्योगिकी नवाचार कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं तथा लाखों लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं। 
    • भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में वृद्धि वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में कटौती की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो देश के वायु प्रदूषण में लगभग 30% का योगदान देता है।

भारत में स्वच्छ प्रौद्योगिकी से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • आयातित कच्चे माल पर निर्भरता: भारत का स्वच्छ-प्रौद्योगिकी क्षेत्र आयात पर अत्यधिक निर्भर है, विशेष रूप से बैटरी के लिये लिथियम, सौर पैनलों के लिये सिलिकॉन और पवन टर्बाइनों के लिये दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसी महत्त्वपूर्ण सामग्रियों के लिये। 
    • यह निर्भरता मूल्य अस्थिरता और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के संदर्भ में कमज़ोरियाँ उत्पन्न करती है, जो भारत के स्वच्छ-प्रौद्योगिकी लक्ष्यों की मापनीयता को प्रभावित कर सकती है। 
      • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद, भारत अभी भी अपने सौर घटकों का 80% और बैटरियों का 75-85% आयात करता है, जिससे आत्मनिर्भरता सीमित हो जाती है।
    • इसके अलावा, हाल ही में चीन ने सात दुर्लभ मृदा तत्त्वों और चुंबककों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया है, जो भारत के लिये आपूर्ति शृंखला जोखिम उत्पन्न करते हैं। 
  • तकनीकी अंतराल और नवाचार चुनौतियाँ: भारत को स्वच्छ प्रौद्योगिकी में स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन और उच्च दक्षता वाले सौर पैनलों जैसे उन्नत क्षेत्रों में। 
    • यद्यपि देश ने विनिर्माण के क्षेत्र में प्रगति की है, फिर भी वह उन महत्त्वपूर्ण नवाचारों के मामले में पीछे है जो दीर्घकालिक संधारणीयता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सक्षम बनाएंगे। 
      • उदाहरण के लिये, हाइड्रोजन उत्पादन के लिये भारत की इलेक्ट्रोलाइज़र तकनीक अभी भी अविकसित है, जिससे हरित हाइड्रोजन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति में विलंब हो रहा है।
  • स्वच्छ-प्रौद्योगिकी एकीकरण के लिये अपर्याप्त बुनियादी कार्यढाँचा: जबकि भारत का स्वच्छ-प्रौद्योगिकी क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहा है, पर्याप्त बुनियादी अवसंरचना की कमी (विशेष रूप से ग्रिड एकीकरण और ऊर्जा भंडारण के लिये) एक बड़ी बाधा बनी हुई है। 
    • सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के प्रबंधन के लिये भारत को मज़बूत भंडारण समाधान और स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने की आवश्यकता है। 
      • अभी तक भारत का ग्रिड बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण के मामले में अविकसित है, जिससे अकुशलता और बर्बादी का खतरा बना हुआ है।
    • भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता वर्ष 2024 में 209 गीगावाट तक पहुँच गई है, फिर भी अपर्याप्त ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ इस क्षमता के इष्टतम उपयोग में बाधा डालती हैं। इसका पूरा उपयोग करने के लिये, भारत को वर्ष 2030 तक 336 गीगावाट घंटे भंडारण की आवश्यकता होगी।
  • उच्च पूंजीगत व्यय और वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: स्वच्छ-तकनीक विनिर्माण की पूंजी-गहन प्रकृति के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है, जो कई व्यवसायों, विशेष रूप से लघु और मध्यम उद्यमों (SME) के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा रही है। 
    • PLI योजना जैसी पहलों के बावजूद, फंडिंग की कमी एक सतत् मुद्दा बनी हुई है, विशेषकर ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये। यह वित्तपोषण अंतर उत्पादन को बढ़ाने और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने को चुनौतीपूर्ण बनाता है।
    • वित्त वर्ष 2024 में, भारत ने स्वच्छ-तकनीक सौदों में 2.4 बिलियन डॉलर हासिल किये, फिर भी वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने के लिये अभी भी अनुमानित 12.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है, जो फंडिंग की कमी को उजागर करता है।
  • स्वच्छ-तकनीक विनिर्माण के लिये कुशल कार्यबल की कमी: भारत का स्वच्छ-तकनीक क्षेत्र कुशल श्रमिकों की कमी से बाधित है, विशेष रूप से सौर पैनल उत्पादन, EV बैटरी असेंबली और कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों जैसी उन्नत विनिर्माण प्रक्रियाओं में। 
    • यद्यपि राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन इनमें से कुछ चिंताओं का समाधान करता है, फिर भी कुशल श्रमिकों की संख्या बढ़ाने में उसे अभी भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • अकेले नवीकरणीय उद्योग को लगभग 1.2 मिलियन के कौशल अंतराल का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी मांग 26% बढ़ने की उम्मीद है, जिससे वर्ष 2027 तक 1.7 मिलियन कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी।
  • स्वच्छ-प्रौद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन का पर्यावरणीय प्रभाव: जबकि स्वच्छ-प्रौद्योगिकी का उद्देश्य उत्सर्जन को कम करना और संधारणीयता को बढ़ावा देना है, सौर पैनलों, पवन टर्बाइनों और EV बैटरी जैसे उत्पादों के जीवन-काल के अंत का प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौती पेश करता है। 
    • CEEW के अनुसार, भारत में वर्ष 2030 तक 600 किलोटन सौर अपशिष्ट उत्पन्न होने की उम्मीद है, लेकिन सुदृढ़ पुनर्चक्रण प्रणालियों के बिना, यह अपशिष्ट पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ा सकता है।
    • सरकार का चक्रीयता पर ध्यान अभी भी प्रारंभिक चरण में है तथा अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन स्वच्छ-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दीर्घकालिक संधारणीयता को कमज़ोर कर सकता है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकी उत्पादों के लिये सीमित बाज़ार मांग: यद्यपि स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में रुचि बढ़ रही है, फिर भी इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल और बैटरी भंडारण प्रणालियों जैसे उत्पादों की घरेलू मांग बड़े पैमाने पर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये अपर्याप्त है। 
    • राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन की सफलता सतत् घरेलू मांग के सृजन पर निर्भर करती है, जो वर्तमान में उच्च अग्रिम लागत और सीमित उपभोक्ता जागरूकता के कारण चुनौतियों का सामना कर रही है।

स्वच्छ प्रौद्योगिकी के विकास में तेज़ी लाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • स्वच्छ-प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को मज़बूत करना: भारत को स्वच्छ-प्रौद्योगिकी नवाचारों में तेज़ी लाने के लिये सरकार, निजी क्षेत्र और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग के लिये एक मज़बूत कार्यढाँचा बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी उच्च जोखिम वाले अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ावा दे सकती है, व्यावसायीकरण की समयसीमा को कम कर सकती है तथा अत्याधुनिक समाधानों को तेज़ी से बाज़ार में ला सकती है।
    • कर लाभ या मिलान वित्त पोषण के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के लिये निजी कंपनियों को प्रोत्साहित करके, भारत ग्रीन हाइड्रोजन, उन्नत बैटरी और कार्बन कैप्चर जैसी नेक्स्ट जेनरेशन की प्रौद्योगिकियों के लिये एक गतिशील पारिस्थितिकी तंत्र बना सकता है।
  • सर्कुलर इकोनॉमी कार्यढाँचे का विस्तार और सुदृढ़ीकरण: भारत को एक सर्कुलर इकोनॉमी के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये जो अपशिष्ट को कम करने, सामग्रियों का पुनः उपयोग करने और सौर पैनलों, पवन टर्बाइनों एवं EV बैटरी जैसे स्वच्छ-तकनीक उत्पादों के पुनर्चक्रण पर केंद्रित हो।
    • व्यापक पुनर्चक्रण और रिवर्स लॉजिस्टिक्स प्रणालियों की स्थापना से स्वच्छ प्रौद्योगिकी उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी, जबकि संसाधन पुनर्प्राप्ति को अधिकतम किया जा सकेगा। 
    • सरकार निर्माताओं के लिये अनिवार्य पुनर्चक्रण कोटा बना सकती है और व्यवसायों को विघटन एवं सामग्री पुनर्प्राप्ति के लिये डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे दीर्घावधि में स्वच्छ प्रौद्योगिकी अधिक समुत्थानशील बन सकेगी।
  • स्वच्छ-तकनीक उद्योगों के लिये कौशल विकास में सुधार: स्वच्छ-तकनीक क्षेत्र के विकास को समर्थन देने के लिये, भारत को अपने कार्यबल को उन्नत बनाने और पुनः कौशल प्रदान करने में तत्काल निवेश करना चाहिये, विशेष रूप से उच्च-तकनीक विनिर्माण एवं रखरखाव क्षेत्रों में। 
    • विशिष्ट व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, उद्योग-विशिष्ट प्रमाणपत्र और विश्वविद्यालय साझेदारी स्थापित करने से सौर विनिर्माण, बैटरी प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रिक वाहन सर्विसिंग जैसे क्षेत्रों में कौशल अंतर को पाटने में मदद मिलेगी।
    • इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने से कुशल कार्यबल का सृजन सुनिश्चित होगा, जो स्वच्छ-प्रौद्योगिकी क्रांति को शक्ति प्रदान कर सकेगा।
  • एकीकृत स्वच्छ-तकनीक वित्तपोषण तंत्र का निर्माण: भारत को स्वच्छ प्रौद्योगिकी स्टार्टअप्स और बड़े पैमाने पर विनिर्माण परियोजनाओं में वित्तपोषण की कमी को दूर करने के लिये एक समर्पित स्वच्छ-तकनीक वित्तपोषण तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
    • सरकार समर्थित ऋण, उद्यम पूंजी और ग्रीन बॉण्ड का संयोजन उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश को जोखिम मुक्त करने में मदद कर सकता है।
    • ग्रीन बैंक या स्वच्छ-तकनीक निवेश कोष के निर्माण से विशेष रूप से स्वच्छ-तकनीक उद्यमों के लिये पूंजी जुटाई जा सकेगी, जिससे दीर्घकालिक विकास और नवाचार को समर्थन मिलेगा तथा स्टार्टअप्स के लिये वित्तीय बाधाएँ कम होंगी।
  • सरकारी और कॉर्पोरेट स्तर पर हरित खरीद नीतियों को लागू करना: सरकार और बड़े निगमों को हरित खरीद नीतियों को अपनाना चाहिये जो उनके क्रय निर्णयों में स्वच्छ-तकनीक उत्पादों एवं सेवाओं को प्राथमिकता देती हैं। 
    • घरेलू स्वच्छ-तकनीक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने और उन्हें सरकारी अनुबंधों तक तरजीही पहुँच प्रदान करने से अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन मिलेगा तथा वैश्विक बाज़ारों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मज़बूत होगी।
    • ये नीतियाँ न केवल हरित प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण में तेज़ी लाएंगी, बल्कि विनिर्माताओं के लिये स्थिर बाज़ार स्थितियाँ भी उत्पन्न करेंगी, जिससे उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने में मदद मिलेगी।
  • टियर-2 और टियर-3 शहरों में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: देश भर में स्वच्छ-तकनीक विकास को बढ़ावा देने के लिये, भारत को छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करना चाहिये, जहाँ विनिर्माण लागत कम है तथा अप्रयुक्त क्षमता मौजूद है। 
    • स्वच्छ-प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटर स्थापित करके, स्थानीय स्टार्टअप को वित्तीय सहायता प्रदान करके तथा उन्हें राष्ट्रीय और वैश्विक बाज़ारों से जोड़कर, भारत क्षेत्रीय प्रतिभा की रचनात्मक क्षमता का दोहन कर सकता है। 
    • नवाचार का यह विकेंद्रीकरण समावेशी विकास को प्रोत्साहित करेगा तथा स्वच्छ-प्रौद्योगिकी विनिर्माण के लिये क्षेत्रीय केंद्रों का निर्माण करेगा।
  • स्वच्छ-प्रौद्योगिकी निर्यात के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना: भारत को वैश्विक स्वच्छ-प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये यूरोपीय संघ, अमेरिका और जापान जैसे अग्रणी स्वच्छ-प्रौद्योगिकी बाज़ारों के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाना चाहिये।
    • यह लक्ष्य मुक्त व्यापार समझौते स्थापित करके प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें स्वच्छ प्रौद्योगिकी घटक और प्रौद्योगिकियाँ शामिल हों, जिससे भारतीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक आसान पहुँच सुनिश्चित हो सके।
    • इसके अलावा, संयुक्त उद्यमों, ज्ञान के आदान-प्रदान और बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिये सहयोग को बढ़ावा देने से भारत को अपनी स्वच्छ-प्रौद्योगिकी महत्त्वाकांक्षाओं में तेज़ी लाने के लिये वैश्विक विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने में मदद मिलेगी।
  • ऊर्जा भंडारण और स्मार्ट ग्रिड नवाचारों को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिये, भारत को उन्नत ऊर्जा भंडारण प्रणालियों और स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों के विकास एवं तैनाती को प्राथमिकता देनी चाहिये। 
    • ग्रिड-स्केल बैटरी, पंप हाइड्रो स्टोरेज और थर्मल ऊर्जा भंडारण जैसे ऊर्जा भंडारण समाधान, सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की रुकावट संबंधी समस्याओं का समाधान करेंगे। 
    • स्मार्ट ग्रिड अवसंरचना में निवेश करना, जो ऊर्जा वितरण को अनुकूलित करता है, हानियों को कम करता है तथा ग्रिड लचीलेपन को बढ़ाता है, एक स्थिर एवं कुशल ऊर्जा प्रणाली को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण होगा।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ-तकनीक प्रमाणन प्रणाली की स्थापना: भारत को स्वच्छ-तकनीक उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता को मानकीकृत और विनियमित करने के लिये एक राष्ट्रीय स्वच्छ-तकनीक प्रमाणन प्रणाली शुरू करनी चाहिये। 
    • यह प्रमाणन यह सुनिश्चित कर सकता है कि उत्पाद कठोर पर्यावरणीय और प्रदर्शन मानकों को पूरा करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को उनके खरीद निर्णयों में विश्वास मिलेगा। 
    • एक विश्वसनीय प्रमाणन प्रक्रिया बनाकर, भारत वैश्विक बाज़ारों में अपनी अलग पहचान बना सकता है और भारतीय कंपनियों को यूरोपीय संघ के इकोडिजाइन मानकों जैसे सख्त पर्यावरणीय नियमों वाले अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच बनाने में मदद कर सकता है।
  • निम्न-कार्बन निर्माण और हरित सामग्रियों में अनुसंधान को बढ़ावा देना: चूँकि निर्माण क्षेत्र उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, इसलिये भारत को निम्न-कार्बन निर्माण सामग्रियों और ऊर्जा-कुशल निर्माण विधियों में अनुसंधान में तेज़ी लानी चाहिये।
    • जैवप्लास्टिक, भांग आधारित कंक्रीट और बाँस जैसी हरित सामग्रियों के विकास के लिये सरकारी समर्थन से अधिक संधारणीय शहरीकरण को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • भौतिक नवाचार के साथ-साथ ऊर्जा-कुशल भवन डिज़ाइन, रेट्रोफिटिंग कार्यक्रम और हरित भवन प्रमाणन को बढ़ावा देने से भारत के तेज़ी से बढ़ते शहरी परिदृश्य में सतत् विकास को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष: 

भारत का स्वच्छ-तकनीक परिवर्तन संवहनीय आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने का एक अभूतपूर्व अवसर प्रस्तुत करता है, साथ ही सस्ती और प्रदूषण मुक्त ऊर्जा (SDG 7) एवं उत्कृष्ट श्रम और आर्थिक विकास (SDG 8) जैसे सतत् विकास लक्ष्य की उपलब्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। बुनियादी अवसंरचना के विकास, कौशल वृद्धि और एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करके, भारत एक आत्मनिर्भर एवं विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी स्वच्छ-तकनीक क्षेत्र बना सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत एक वैश्विक स्वच्छ-तकनीक विनिर्माण शक्ति के रूप में उभरने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसका ध्यान राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन जैसी पहलों के माध्यम से हरित प्रौद्योगिकी पर है। भारत के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में स्वच्छ-तकनीक की संभावित भूमिका की विवेचना कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स 

प्रश्न 1. पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन के विपरीत सूर्य के प्रकाश से विद्युत् ऊर्जा प्राप्त करने के लाभों का वर्णन कीजिये। इस प्रयोजनार्थ हमारी सरकार द्वारा प्रस्तुत पहल क्या है?  (2020)

प्रश्न 2.  भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये।  (2020)

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