अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अफगानिस्तान संबंधों का सुदृढ़ीकरण
- 14 Oct 2025
- 128 min read
यह एडिटोरियल 14/10/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Talking to Taliban: On India-Afghanistan ties” पर आधारित है। इस लेख में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री की यात्रा के दौरान तालिबान के साथ भारत के संतुलित संपर्क का परीक्षण किया गया है, जिसमें नैतिक और क्षेत्रीय कूटनीतिक विचारों के साथ-साथ रणनीतिक, सुरक्षा एवं मानवीय प्राथमिकताओं को भी शामिल किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये: तालिबान, उत्तरी गठबंधन, सलमा बाँध, चाबहार बंदरगाह, गोल्डन क्रिसेंट, एक्ट ईस्ट नीति, हार्ट ऑफ एशिया, SCO, मॉस्को फॉर्मेट परामर्श
मेन्स के लिये: भारत-अफगानिस्तान संबंधों में हालिया घटनाक्रम, भारत-अफगानिस्तान संबंधों का महत्त्व, भारत-अफगानिस्तान संबंधों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
भारत का तालिबान के साथ कूटनीतिक संपर्क क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है। अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री का भारत दौरा नई दिल्ली की रणनीतिक हितों, सुरक्षा और मानवीय प्रतिबद्धताओं की रक्षा के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण को इंगित करता है, जबकि नैतिक दुविधाएँ एवं ऐतिहासिक अविश्वास अभी भी स्पष्ट रूप से मौजूद हैं। क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने, निवेशों की सुरक्षा करने तथा मानवाधिकारों की पैरवी करने की आवश्यकता के बीच संतुलन स्थापित करना एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करता है, जो तेज़ी से बदलते एवं अस्थिर दक्षिण एशियाई परिदृश्य में भारत की सूक्ष्म और विवेकपूर्ण कूटनीति की क्षमता का भी परीक्षण करता है।
भारत-अफगानिस्तान संबंधों में हाल के घटनाक्रम क्या हैं?
- तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के साथ प्रत्यक्ष राजनयिक संपर्क: अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की यात्रा वर्ष 2021 के बाद से तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के साथ पहली प्रत्यक्ष राजनयिक संपर्क थी, जिसने संबंधों में मधुरता और बेहतर संवाद का संकेत दिया।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति ने मुत्ताकी पर लगे यात्रा प्रतिबंध हटा दिये, जिससे उनकी यात्रा संभव हो सकी, जो अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक सहयोग का संकेत है।
- काबुल में भारतीय मिशन का उन्नयन: भारत और अफगानिस्तान राजनयिकों के आपसी आदान-प्रदान पर सहमत हुए, जिससे निरंतर राजनयिक संचार संभव हो सका।
- एक तकनीकी मिशन से एक पूर्ण दूतावास में परिवर्तन, राजनयिक उपस्थिति और आधिकारिक मान्यता को दृढ़ करने के भारत के उद्देश्य को दर्शाता है।
- संप्रभुता और सुरक्षा पर प्रतिबद्धताएँ: दोनों देशों ने संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान की पुष्टि की, अफगानिस्तान ने भारत के विरुद्ध अपने क्षेत्र के प्रयोग की अनुमति नहीं देने का वचन दिया, जो एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा आश्वासन है।
- उन्नत व्यापार संबंध: दोनों सरकारें द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिसका उद्देश्य राजनीतिक अनिश्चितताओं के बावजूद आर्थिक संबंधों को पुनर्जीवित करना है।
- दोनों पक्षों ने भारत-अफगानिस्तान हवाई माल ढुलाई गलियारे के शुभारंभ का स्वागत किया, जो दोनों देशों के बीच प्रत्यक्ष व्यापार एवं वाणिज्य को और बढ़ाएगा।
- मानवीय और विकास पहल: भारत ने अस्पताल निर्माण और विस्तारित मानवीय सहायता सहित अवसंरचना परियोजनाओं की घोषणा की, जो सॉफ्ट पावर एवं विकासात्मक कूटनीति को दर्शाता है।
- भारत ने भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में आवासीय भवनों के पुनर्निर्माण में अफगान सरकार की सहायता करने की इच्छा व्यक्त की।
भारत-अफगानिस्तान संबंधों का क्या महत्त्व है?
- रणनीतिक भू-राजनीतिक साझेदारी: भारत अफगानिस्तान को क्षेत्रीय सुरक्षा और प्रतिकूल प्रभाव, विशेषतः पाकिस्तान के प्रभाव, को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण मानता है।
- अफगान-पाकिस्तान संबंधों में गिरावट ने पाकिस्तान के क्षेत्रीय प्रभाव के प्रतिकार के रूप में तालिबान से निपटने की भारत की रणनीतिक गणना को प्रभावित किया।
- 1990 के दशक में उत्तरी गठबंधन को भारत का समर्थन और अफगानिस्तान के सबसे बड़े क्षेत्रीय विकास साझेदारों में से एक के रूप में इसकी भूमिका, एक दीर्घकालिक रणनीतिक प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- आतंकवाद-रोधी सहयोग: वर्ष 2001 के बाद, भारत अफगानिस्तान को आतंकवाद का गढ़ बनने से रोकने के लिये अफगान सुरक्षा बलों के क्षमता निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल रहा।
- तालिबान के नेतृत्व वाली अफगान सरकार द्वारा भारत के विरुद्ध अफगानिस्तान के क्षेत्र का प्रयोग न करने देने की हालिया प्रतिज्ञा, बदलती वास्तविकताओं के बीच आतंकवाद-रोधी सहयोग के विकास को दर्शाती है।
- विकास और पुनर्निर्माण में योगदान: भारत ने अवसंरचना परियोजनाओं में भारी निवेश किया है: सलमा बाँध, ज़रंज-डेलाराम राजमार्ग (पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए रणनीतिक व्यापार मार्ग), काबुल का संसद भवन, अस्पताल और बिजली सबस्टेशन, जो एक प्रकार की सॉफ्ट पावर के रूप में अफगान विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- सूखे और कोविड-19 के दौरान मानवीय सहायता जैसी पहल अफगान विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
- आर्थिक और व्यापारिक संपर्क: अफगानिस्तान की खनिज संपदा का मूल्य 1-3 ट्रिलियन डॉलर के बीच है, इसलिये भारत खनन और व्यापार में आर्थिक अवसर देखता है।
- यह भारत को क्षेत्रीय मंचों और चाबहार बंदरगाह (ईरान-अफगानिस्तान-भारत गलियारा) जैसी अवसंरचना परियोजनाओं में भाग लेने में सक्षम बनाता है ताकि पाकिस्तान को दरकिनार करके व्यापार को सुगम बनाया जा सके।
- गहन सांस्कृतिक बंधन: भारत और अफगानिस्तान के बीच प्राचीन काल से गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत संबंध हैं, जो साझा धर्मों, भाषाओं व सांस्कृतिक आदान-प्रदान में परिलक्षित होते हैं।
- अफगानिस्तान में बॉलीवुड की लोकप्रियता और अफगान छात्रों के लिये भारतीय छात्रवृत्तियाँ चल रही सांस्कृतिक कूटनीति को उजागर करती हैं।
- राजनीतिक बदलावों के बीच कूटनीतिक संपर्क: तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान में भारत की हालिया कूटनीतिक अभिगम्यता, जिसमें उसके काबुल मिशन को पूर्ण दूतावास का दर्जा देना और तालिबान राजनयिकों की मेज़बानी करना शामिल है, ज़मीनी हकीकतों के साथ मान्यता देने में हिचकिचाहट को संतुलित करने वाली व्यावहारिक कूटनीति को दर्शाता है।
- भारत-अफगानिस्तान संबंध चीन की मध्य एशिया में बढ़ती प्रभावशाली स्थिति और पाकिस्तान की अस्थिरता उत्पन्न करने वाली गतिविधियों के खिलाफ एक संतुलक भूमिका निभाते हैं। हार्ट ऑफ एशिया— इस्तांबुल प्रोसेस जैसे क्षेत्रीय मंचों में भारत की भागीदारी राजनीतिक सहयोग एवं क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने में उसकी भूमिका को और सुदृढ़ करती है।
भारत-अफगानिस्तान संबंधों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- सुरक्षा चिंताएँ और आतंकवाद: राजनयिक संपर्क के बावजूद, आतंकवाद एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
- लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी समूहों के साथ तालिबान के ऐतिहासिक संबंधों से अफगानिस्तान के भारत-विरोधी आतंकवादियों के लिये एक सुरक्षित आश्रय बनने की आशंकाएँ बढ़ जाती हैं।
- हालाँकि तालिबान ने वर्ष 2025 में अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध नहीं होने देने का संकल्प लिया था, लेकिन आतंकवादी संगठनों से पूरी तरह अलग न होने के कारण संदेह बना हुआ है।
- पाकिस्तान का प्रभाव और छद्म गतिशीलता: भारत के साथ पाकिस्तान की रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता अफगानिस्तान में गहराई से उभरती है।
- पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (ISI) ने ऐतिहासिक रूप से तालिबान और छद्म समूहों का समर्थन किया है, जिससे शांति एवं सुरक्षा जटिल हुई है।
- पाकिस्तान में विद्रोह छेड़ने वाले तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) पर कार्रवाई करने से तालिबान के इनकार ने अफगान-पाकिस्तान संबंधों में खटास तो उत्पन्न की है, लेकिन सीमा पार अस्थिरता का खतरा बना हुआ है।
- राजनीतिक अस्थिरता और शासन संबंधी मुद्दे: तालिबान का गैर-लोकतांत्रिक शासन, एक समावेशी, अफगान-नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया के लिये भारत के समर्थन के साथ संघर्ष करता है।
- महिलाओं के अधिकारों का अभाव, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और असहमति का दमन भारत की मूल्य-आधारित भागीदारी को कमज़ोर करते हैं।
- भारत में तालिबान के नेतृत्व वाले प्रेस कार्यक्रमों में महिला पत्रकारों को शामिल न करने पर वर्ष 2025 का विवाद, मानवाधिकारों के मामले में खराब रिकॉर्ड वाली सरकार के साथ जुड़ने की कठिनाइयों का उदाहरण है।
- आर्थिक और अवसंरचना की चुनौतियाँ: अफगानिस्तान विश्व के सबसे गरीब देशों में से एक बना हुआ है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भारत की कई निवेश परियोजनाओं, जैसे सलमा बाँध और काबुल संसद, में बाधा डालती हैं।
- तालिबान का शासन और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध परियोजनाओं की निरंतरता एवं व्यापार में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। हालाँकि, चाबहार बंदरगाह और खनन क्षेत्र के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा देने के भारत के प्रयास सतर्क आशावाद का संकेत देते हैं।
- बढ़ता चीनी प्रभाव: तालिबान के साथ वार्ता और अवसंरचना में निवेश सहित अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती भूमिका, भारत के लिये एक रणनीतिक चुनौती पेश करती है।
- वर्तमान में विकसित हो रहे 'चीन–अफगानिस्तान संबंध' भारत के लिये एक रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि यह संभावित रूप से बीज़िंग के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधन मार्गों और क्षेत्रीय संपर्क को सुदृढ़ कर सकता है, जिससे दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में भारत की प्रभावशीलता सीमित हो सकती है।
- मादक पदार्थों की तस्करी और नशीले पदार्थ: विश्व के सबसे बड़े अफीम उत्पादक के रूप में अफगानिस्तान की स्थिति, जो गोल्डन क्रिसेंट (अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान) का केंद्र है, क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा देता है।
- मादक पदार्थों का व्यापार भारत को, विशेष रूप से पंजाब जैसे क्षेत्रों को, जो मादक पदार्थों की लत के संकट से जूझ रहे हैं, नुकसान पहुँचाता है तथा आतंकवादी गतिविधियों को वित्तपोषित करता है।
- गोल्डन क्रीसेंट से मादक पदार्थों की तस्करी को नियंत्रित करना एक सीमा पार सुरक्षा प्राथमिकता बनी हुई है, जो द्विपक्षीय संबंधों को जटिल बनाती है।
अफगानिस्तान के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत को कौन-से रणनीतिक कदम उठाने चाहिये?
- पूर्ण मान्यता को बरकरार रखते हुए राजनयिक संपर्क बनाए रखना: तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत ने वर्ष 2021 में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए “Engage but not Recognise अर्थात् संवाद करो पर मान्यता मत दो” नीति अपनाई थी। इसी क्रम में भारत ने वर्ष 2025 में काबुल स्थित अपने तकनीकी मिशन को पूर्ण दूतावास के रूप में उन्नत किया।
- भारत को तत्काल राजनीतिक मान्यता के बिना आधिकारिक चैनलों (पूर्ण दूतावास, नियमित राजनयिक आदान-प्रदान) को बनाए रखना और गहरा करना जारी रखना चाहिये।
- सीमित संपर्क बनाए रखते हुए और औपचारिक मान्यता के बजाय मानवीय सहायता प्रदान करते हुए, भारत को यह प्रदर्शित करना चाहिये कि रणनीतिक आवश्यकता नैतिक उत्तरदायित्व पर हावी नहीं होनी चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसके कार्य व्यावहारिक एवं सैद्धांतिक दोनों रहें।
- लक्षित विकास और मानवीय कूटनीति का विस्तार: भारत को बढ़ते चीनी प्रभाव का सामना करने के लिये क्षमता-विकास सहायता, अवसंरचनात्मक सहयोग तथा कूटनीतिक सहभागिता का विस्तार निरंतर जारी रखना चाहिये, साथ ही अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहिये, जो भारत की विदेश नीति की रूपरेखाओं जैसे ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीतियों में उल्लिखित एक प्रमुख सिद्धांत है।
- भारत को स्वास्थ्य, जल, शिक्षा तथा पुनर्निर्माण जैसे दृश्यमान और आवश्यकता-आधारित परियोजनाओं को जारी रखना चाहिये, जो सद्भावना उत्पन्न करती हैं और समुदायों को स्थिर करती हैं।
- भारत द्वारा कई स्वास्थ्य सेवा और अवसंरचना परियोजनाओं का पुनः आरंभ और विस्तार: काबुल के बगरामी ज़िले में 30-बिस्तरों वाले अस्पताल का निर्माण, ऑन्कोलॉजी और ट्रॉमा सेंटर, पक्तिका व खोस्त जैसे प्रांतों में पाँच प्रसूति क्लीनिक एवं एक थैलेसीमिया केंद्र की स्थापना।
- ये सभी पहल भारत की सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ करती हैं, सद्भावना को प्रोत्साहित करती हैं तथा विकासात्मक कूटनीति के माध्यम से स्थानीय समुदायों को स्थिर बनाती हैं, यह वही मॉडल है जिसे जापान ने दक्षिण-पूर्व एशिया को दिये गये अपने सहायता-कार्यक्रमों में अपनाया था।
- आतंकवाद-रोधी सहयोग को मज़बूत बनाना: कानूनी सुरक्षा उपायों के अंतर्गत अफगान सुरक्षा सेवाओं के लिये वास्तविक काल में खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान, संयुक्त जाँच और क्षमता निर्माण को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये।
- गोल्डन क्रीसेंट के स्रोत और पारगमन क्षेत्रों में सीमा पार मादक पदार्थ-विरोधी सहयोग, अवरोधन तथा माँग-घटाने के कार्यक्रमों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- वर्ष 2011 के रणनीतिक साझेदारी समझौते से प्रेरणा लेते हुए, भारत को अफगान सुरक्षा क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों का समर्थन जारी रखना चाहिये, जो आतंकवाद-रोधी सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रतिबिंबित करते हों।
- सुरक्षित आर्थिक संपर्क और भू-आर्थिक विकल्प: वैकल्पिक मार्गों और परियोजनाओं के माध्यम से व्यापार एवं निवेश का विस्तार किया जाना चाहिये, जो शत्रुतापूर्ण पारगमन को दरकिनार करते हैं तथा स्पष्ट सुरक्षा उपायों के साथ संसाधन-क्षेत्र साझेदारी को आगे बढ़ाते हैं।
- उदाहरण के लिये, चाबहार बंदरगाह के उपयोग के माध्यम से आर्थिक संपर्क, भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर (2025) की पुनर्स्थापना एवं संविदात्मक और सुरक्षा गारंटी के साथ चुनिंदा निवेश (जैसे: AFISCO के माध्यम से हाजीगक) स्थिरता के लिये पारस्परिक प्रोत्साहन प्रदान करते हैं तथा भारत के लिये लाभ का सृजन करते हैं।
- बोझ और वैधता साझा करने के लिये बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग: समन्वित सहायता, आतंकवाद-रोधी और पुनर्निर्माण योजनाओं के लिये हार्ट ऑफ एशिया, SCO, मॉस्को फॉर्मेट, संयुक्त राष्ट्र एवं भागीदार देशों (ईरान, मध्य एशियाई राज्य) के माध्यम से कार्य किया जाना चाहिये।
- ये मंच समन्वित मानवीय प्रतिक्रियाओं, आतंकवाद-रोधी और सीमा-पार सहयोग को सक्षम बनाते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र एवं ASEAN प्रथाओं द्वारा सन्निहित बहुपक्षीय संघर्ष समाधान के सिद्धांतों को दर्शाते हैं।
- सामाजिक, लैंगिक और मानवाधिकार संबंधी चिंताओं का निवारण: व्यावहारिक रूप से सक्रिय होते हुए भी, भारत ने राजनयिक माध्यमों और अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा, अल्पसंख्यक अधिकारों एवं राजनीतिक समावेशिता की लगातार अनुशंसा की है।
- वर्ष 2025 में तालिबान की भारत यात्रा के दौरान महिला पत्रकारों को शामिल न किये जाने की आलोचना हुई, लेकिन इसने कूटनीति के साथ नैतिक चिंताओं को संतुलित करने की भारत की चुनौती को रेखांकित किया।
- भारत की सहभागिता रणनीति यूरोपीय संघ की सत्तावादी शासन वाले देशों के साथ सतर्क कूटनीति जैसी हो सकती है, जहाँ सहायता सुधारों पर आधारित होती है।
- साथ ही, भारत को छात्रवृत्ति, व्यावसायिक प्रशिक्षण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मीडिया/संचार पहुँच का विस्तार जारी रखना चाहिये जो आम अफ़गानों तक पहुँचे।
निष्कर्ष:
भारत-अफगानिस्तान संबंध आज रणनीतिक व्यावहारिकता और गहरे ऐतिहासिक संबंधों को दर्शाते हैं। विदेश नीति विशेषज्ञ हर्ष पंत के शब्दों में, “सहभागिता का अर्थ समर्थन नहीं होता !,” जो इस बात को रेखांकित करता है कि भारत अपने सिद्धांतों और व्यवहारिक कूटनीति (Realpolitik) के बीच सूक्ष्म संतुलन बनाए हुए है। आगे का मार्ग धैर्यपूर्ण और सिद्धांत-आधारित सहभागिता, सशक्त मानवीय सहायता तथा बहुपक्षीय सहयोग की माँग करता है ताकि भारत अपने हितों की रक्षा करते हुए अफगानिस्तान की शांति एवं प्रगति में योगदान दे सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. तालिबान से जुड़ने के लिये सैद्धांतिक कूटनीति और व्यावहारिक राजनीति में संतुलन आवश्यक है। इस संदर्भ में, भारत की अफगानिस्तान नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं वैश्विक भू-राजनीति पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1. भारत-अफगानिस्तान संबंधों (2025) में हाल के प्रमुख घटनाक्रम क्या थे?
तालिबान के विदेश मंत्री का दौरा, संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों में छूट, काबुल मिशन का उन्नयन, पारस्परिक राजनयिक आदान-प्रदान, संप्रभुता/सुरक्षा पर प्रतिज्ञाएँ तथा व्यापार एवं मानवीय सहायता पर प्रतिबद्धताएँ।
प्रश्न 2. भारत-अफगानिस्तान संबंध रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?
यह रणनीतिक गहराई, आतंकवाद-रोधी सहयोग, विकास कूटनीति और चाबहार तथा खनन के माध्यम से भू-आर्थिक अभिगम्यता प्रदान करता है।
प्रश्न 3. तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान से जुड़ने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
आतंकवाद, पाकिस्तान का छद्म प्रभाव, मानवाधिकार मुद्दे, चीनी BRI उपस्थिति, गोल्डन क्रीसेंट ड्रग व्यापार और परियोजना निरंतरता जोखिम।
प्रश्न 4. अफगानिस्तान के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत को कौन-से रणनीतिक उपाय अपनाने चाहिये?
बिना मान्यता के सहयोग करना, विकास और मानवीय सहायता का विस्तार करना, आतंकवाद निरोध और खुफिया जानकारी साझा करना मज़बूत करना, व्यापार मार्गों को सुरक्षित करना तथा बहुपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2022)
- अज़रबैजान
- किरगिज़स्तान
- ताजिकिस्तान
- तुर्कमेनिस्तान
- उज़्बेकिस्तान
उपर्युक्त में से किनकी सीमाएँ अफगानिस्तान के साथ लगती हैं?
(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 2 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर. (c)
मेन्स
प्रश्न 1. वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायक बल (ISAF) की अफगानिस्तान से प्रस्तावित वापसी क्षेत्र के देशों के लिये बड़े खतरों (सुरक्षा उलझनों) भरा है। इस तथ्य के आलोक में परीक्षण कीजिये कि भारत के सामने भरपूर चुनौतियाँ हैं तथा उसे अपने सामरिक महत्त्व के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है। (2013)