अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी का सुदृढ़ीकरण
- 15 Oct 2025
- 148 min read
यह एडिटोरियल 15/10/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Powering up the Australia-India clean energy partnership” पर आधारित है। इस लेख में यह उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार ऑस्ट्रेलिया और भारत, ऑस्ट्रेलिया की कच्चे माल से संपन्नता तथा भारत की विनिर्माण क्षमताओं का लाभ उठाकर, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त डीकार्बोनाइज़ेशन प्रयासों को आगे बढ़ाने में आने वाली नीतिगत, आर्थिक एवं संस्थागत बाधाओं का समाधान करते हुए, एक पारस्परिक रूप से लाभकारी स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी का निर्माण कर सकते हैं।
प्रिलिम्स के लिये: भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP), भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA), सौर फोटोवोल्टिक (PV) तकनीक, महत्त्वपूर्ण खनिज, व्यापक रणनीतिक साझेदारी (CSP) ढाँचा (2020), AUSINDEX
मेन्स के लिये: भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय साझेदारी को सुदृढ़ करने वाले कारक, भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय सहयोग में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ, भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय साझेदारी को बढ़ाने के उपाय
जैसे-जैसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जलवायु जोखिम बढ़ रहे हैं, भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP) एक वैश्विक महत्त्व की महत्त्वपूर्ण साझेदारी के रूप में उभर रही है। ऑस्ट्रेलिया की खनिज संपन्नता और स्थिर निवेश वातावरण को भारत की विनिर्माण क्षमता तथा कुशल कार्यबल के साथ संयोजित कर यह साझेदारी नवीकरणीय ऊर्जा विकास के नये आयाम खोलने का उद्देश्य रखती है। फिर भी, चीन पर आपूर्ति-शृंखला निर्भरता को कम करना, नीतियों का सामंजस्य स्थापित करना तथा तकनीकी एवं वित्तीय अंतराल को समाप्त करना, इस दूरदर्शी पहल को वास्तविकता में रूपांतरित करने की प्रमुख चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP) क्या है?
- परिचय: भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP) नवंबर 2024 में शुरू की गई एक द्विपक्षीय पहल है जिसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को गहन करना और दोनों देशों के लिये स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में तेज़ी लाना है।
- यह व्यापक रणनीतिक साझेदारी की साझा प्रतिबद्धताओं पर आधारित, कार्बन-मुक्तीकरण, आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने हेतु एक रणनीतिक कार्यढाँचे का प्रतीक है।
- प्राथमिकता वाले क्षेत्र:
- सौर फोटोवोल्टिक (PV) तकनीक प्रौद्योगिकी, जिसमें नवाचार एवं रूफटॉप सौर कार्यबल विकास शामिल है।
- ग्रीन-हाइड्रोजन विकास, संयुक्त प्रौद्योगिकी उन्नयन और बाज़ार निर्माण पर केंद्रित।
- ग्रिड स्टेबिलिटी और नवीकरणीय एकीकरण का समर्थन करने के लिये ऊर्जा भंडारण समाधान।
- लिथियम और दुर्लभ मृदा तत्त्व जैसी सामग्रियों के लिये सौर एवं महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाएँ।
- सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करती है।
- द्वि-पक्षीय निवेश, विशाल पैमाने के संयुक्त उद्यमों और अवसंरचना परियोजनाओं को सुगम बनाते हैं।
- कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षमता निर्माण, जिसमें युवा महिलाओं और पुरुषों को सौर तकनीशियन के रूप में प्रशिक्षित करना शामिल है।
- शासन और संवाद मंच:
- ऑस्ट्रेलिया-भारत 1.5 ट्रैक संवाद का गठन, सरकारों, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को सक्षम बनाना।
- व्यापक रणनीतिक साझेदारी और भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA) जैसी मौजूदा द्विपक्षीय संरचनाओं का उपयोग।
भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय साझेदारी को मज़बूत करने में कौन से कारक सहायक हो रहे हैं?
- व्यापक रणनीतिक साझेदारी (CSP) ढाँचा (2020): जून 2020 में, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी (2009 में आरंभ) से बढ़ाकर व्यापक रणनीतिक साझेदारी (CSP) कर दिया।
- इससे रक्षा, व्यापार, शिक्षा, जलवायु, प्रौद्योगिकी, संस्कृति आदि क्षेत्रों में एक व्यापक, अधिक संरचित सहयोग मंच का निर्माण हुआ।
- पाँच वर्षों में, CSP ने दोनों देशों के बीच 32 से अधिक उच्च-स्तरीय यात्राओं का समर्थन किया और नेतृत्व स्तरों पर गहन सहभागिता को सुगम बनाया।
- मज़बूत रक्षा और सुरक्षा सहयोग: AUSINDEX और मालाबार जैसे नियमित नौसैनिक, वायु और थल अभ्यासों के साथ रक्षा सहयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे अंतर-संचालन क्षमता में सुधार हुआ है।
- ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े सैन्य अभ्यास, ‘टैलिसमैन सेबर 2025’ में भारत की भागीदारी ने परिचालन संबंधों को और गहन किया।
- पारस्परिक रसद सहायता समझौता (MLSA) सुविधाओं तक पारस्परिक अभिगम्यता को सक्षम बनाता है, जिससे रसद एवं समुद्री क्षेत्र में जागरूकता बढ़ती है।
- '2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद' प्रत्येक दो वर्ष में ऑस्ट्रेलियाई और भारतीय विदेश एवं रक्षा मंत्रियों को रणनीतिक, रक्षा एवं क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करने तथा अपनी व्यापक रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने के लिये एक साथ लाता है।
- ECTA द्वारा सक्षम आर्थिक और व्यापार वृद्धि: भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA), एक ऐतिहासिक व्यापार समझौता, अप्रैल 2022 में हस्ताक्षरित एवं नवंबर 2022 में अनुसमर्थित किया गया, जो उन्नत द्विपक्षीय व्यापार तथा आर्थिक एकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- यह समझौता ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों को भारत को 85% से अधिक वस्तुओं का टैरिफ-मुक्त निर्यात करने में सक्षम बनाता है, यह आँकड़ा जनवरी 2026 तक बढ़कर 90% हो जाएगा, जिससे द्विपक्षीय व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- वर्ष 2035 तक भारत आर्थिक रणनीति रिपोर्ट में भारत में ऑस्ट्रेलियाई निवेश में 10 गुना वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2035 तक 100 बिलियन डॉलर है, जो महत्त्वपूर्ण खनिजों, शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों द्वारा संचालित है।
- स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु पहल: वर्ष 2024 में भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP) का शुभारंभ सोलर PV, ग्रीन-हाइड्रोजन, बैटरी भंडारण और चक्रीय अर्थव्यवस्था सहित आठ सहयोग क्षेत्रों को लक्षित करता है।
- REP महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय घटकों के शोधन और निर्माण में चीन के प्रभुत्व पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने में सहायता करता है तथा हाल के निर्यात प्रतिबंधों और महामारी-जनित व्यवधानों से उजागर हुई कमज़ोरियों का समाधान करता है।
- दोनों देश जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं को एक समान रखते हैं— भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म बिजली (जो पहले से ही गैर-जीवाश्म क्षमता का 50% है) का उत्पादन करना है तथा ऑस्ट्रेलिया का लक्ष्य वर्ष 2035 तक 62-70% उत्सर्जन में कमी लाना है।
- शिक्षा और कौशल विकास सहयोग: ऑस्ट्रेलिया ने वर्ष 2024 में लगभग 1,40,000 भारतीय छात्रों की मेज़बानी की, जिससे यह भारत देश में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया।
- भारत में ऑस्ट्रेलियाई विदेशी शाखा परिसरों की स्थापना से शैक्षिक आदान-प्रदान का विस्तार हो रहा है।
- संयुक्त कौशल विकास परियोजनाओं में युवाओं और महिलाओं को सशक्त बनाने पर विशेष ध्यान देते हुए सोलर रूफटॉप टेकनीशियनों को प्रशिक्षण देना शामिल है।
- REP में वर्ष 2027 तक 2,000 तकनीशियनों (महिलाओं और युवाओं) को प्रशिक्षित करने के लिये भारत-ऑस्ट्रेलिया रूफटॉप सोलर ट्रेनिंग एकैडमी की स्थापना शामिल है।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग: ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष विज्ञान, स्वच्छ ऊर्जा, महत्त्वपूर्ण खनिजों और डिजिटल अनुसंधान में संयुक्त परियोजनाओं का समर्थन करता है।
- दोनों देश उपग्रह प्रक्षेपण और डेटा-साझाकरण पहलों सहित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों पर सहयोग करते हैं।
- REP के तहत नवाचार चुनौतियाँ नवीकरणीय प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित करती हैं, स्मार्ट ग्रिड, ग्रीन-हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण समाधानों में योगदान देती हैं।
- ऑस्ट्रेलिया-भारत हरित इस्पात साझेदारी भारत की बढ़ती इस्पात माँग का समर्थन करती है, साथ ही बेहतर दक्षता एवं संधारणीयता के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देती है।
- जन-जन संपर्क और सांस्कृतिक संबंध: ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी भारतीय समुदाय व्यावसायिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंधों के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों का सक्रिय रूप से समर्थन करता है।
- शिक्षा, ऑस्ट्रेलिया का भारत को सबसे बड़ा सेवा निर्यात है, जिसका मूल्य 4.4 बिलियन डॉलर (2022) है।
- भारतीय संस्कृति, व्यंजन, त्यौहार और बॉलीवुड जीवंत बहुसंस्कृतिवाद में योगदान करते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया-इंडिया इंस्टिट्यूट और इंडिया-ऑस्ट्रेलिया फ्रेंडशिप एसोसिएशन जैसी पहल आपसी समझ एवं शैक्षिक सम्मेलनों को बढ़ावा देती हैं।
भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय सहयोग में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- आपूर्ति शृंखलाओं में चीन पर अत्यधिक निर्भरता: भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा सामग्रियों एवं घटकों के लिये चीन पर अत्यधिक निर्भर हैं।
- चीन विश्व के लगभग 70% दुर्लभ मृदा खनन के लिये ज़िम्मेदार है और वैश्विक दुर्लभ मृदा प्रसंस्करण के लगभग 90% को नियंत्रित करता है।
- भारत चीन से कुल आयात का लगभग 15% आयात करता है, जिसमें विद्युत मशीनरी, दवा सामग्री और बैटरी सामग्री शामिल हैं।
- इसी प्रकार, ऑस्ट्रेलिया के 90% से अधिक आयातित सोलर पैनल चीन से आते हैं तथा ऑस्ट्रेलिया में लगभग 80% पैनल चीन में निर्मित हैं।
- यह निर्भरता रणनीतिक कमज़ोरियाँ उत्पन्न करती है— उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 में दुर्लभ मृदा तत्त्व निर्यात पर चीन के प्रतिबंधों ने भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन को बाधित किया, कुछ मामलों में उत्पादन आधा कर दिया।
- जापान के साथ एक त्रिपक्षीय आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ता पहल का उद्देश्य आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाना तथा चीन पर निर्भरता कम करना है, जो इस चुनौती की तात्कालिकता को रेखांकित करता है।
- सीमित डाउनस्ट्रीम विनिर्माण: ऑस्ट्रेलिया मुख्य रूप से लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा जैसे कच्चे खनिजों का निर्यात करता है, लेकिन उसके पास बड़े पैमाने पर शोधन एवं विनिर्माण सुविधाओं का अभाव है।
- परिणामस्वरूप, वह आर्थिक मूल्य को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सकता या उच्च-स्तरीय नवीकरणीय प्रौद्योगिकी विनिर्माण में भाग नहीं ले सकता, जिससे भारत के विनिर्माण क्षेत्र के साथ संभावित द्विपक्षीय औद्योगिक तालमेल सीमित हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, विश्व का सबसे बड़ा लिथियम उत्पादक होने के बावजूद, ऑस्ट्रेलिया कई तैयार बैटरी घटकों का आयात करता है, जबकि भारत की PLI योजनाएँ घरेलू उत्पादन शृंखलाएँ बनाने का प्रयास करती हैं।
- नियामक, प्रमाणन और नीतिगत संरेखण संबंधी मुद्दे: भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच भिन्न मानक एवं नियम नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों तथा महत्त्वपूर्ण खनिजों के सुचारू व्यापार में बाधा डालते हैं।
- निवेशक प्रायः यूरोपीय संघ (EU) या संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे उन बाज़ारों की ओर झुकाव रखते हैं जहाँ नियम पूर्वानुमेय एवं सामंजस्यपूर्ण होते हैं, जिससे भारत-ऑस्ट्रेलिया परियोजनाओं में निवेश की उत्सुकता कुछ कम हो जाती है।
- सोलर पैनल्स, ग्रीन-हाइड्रोजन उत्पादन और बैटरी तकनीक के लिये प्रमाणन को सुसंगत बनाने का कार्य अभी भी प्रगति पर है जिसके लिये समन्वित कूटनीतिक और उद्योग प्रयासों की आवश्यकता है।
- भू-राजनीतिक और सामरिक अंतर: रूस के साथ भारत के सामरिक रक्षा संबंध और गुटनिरपेक्ष रुख, अमेरिका एवं पश्चिमी रक्षा गठबंधनों के साथ ऑस्ट्रेलिया के गठबंधन के विपरीत हैं।
- यह भिन्नता रक्षा और संबंधित उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के प्रति सतर्क दृष्टिकोण का कारण बनती है।
- हालाँकि, हिंद-प्रशांत सुरक्षा पर बढ़ते तालमेल और मालाबार जैसे संयुक्त नौसैनिक अभ्यास इन चुनौतियों को कम करते हैं, जिससे क्रमिक रणनीतिक अभिसरण दिखाई देता है।
- व्यापार असंतुलन और कच्चे माल के निर्यात पर ध्यान: ऑस्ट्रेलिया से भारत का आयात मुख्यतः कोयले पर निर्भर है, जो ऑस्ट्रेलिया के भारत को निर्यात का 80% से अधिक है।
- इससे एक व्यापार असंतुलन उत्पन्न होता है जिसे भारत सतत् विकास और स्वच्छ ऊर्जा के पारस्परिक लक्ष्य के विपरीत मानता है।
- दोनों देश ट्रेड बास्केट में विविधता लाने के लिये काम कर रहे हैं, लेकिन गैर-टैरिफ बाधाएँ, टैरिफ और प्रक्रियात्मक अड़चनें अभी भी ऑस्ट्रेलिया को भारतीय निर्यात (विशेष रूप से MSME में) को बाधित करती हैं।
- प्रतिभा असंगति और कौशल प्रमाणन चुनौतियाँ: भारत एक विशाल, लागत-प्रभावी कुशल कार्यबल प्रदान करता है, लेकिन सभी कौशल ऑस्ट्रेलियाई उद्योग मानकों और प्रमाणन आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं।
- सोलर रूफटॉप टेकनीशियन ट्रेनिंग पहल जैसे प्रयास इस समस्या का समाधान करने में सहायता करते हैं, लेकिन ऐसे कार्यक्रमों को विभिन्न क्षेत्रों में उच्च-गुणवत्ता और मान्यता प्राप्त स्तर तक पहुँचाना जटिल है।
- भाषा और मान्यता संबंधी बाधाएँ कार्यबल की गतिशीलता एवं कौशल की पारस्परिक मान्यता के लिये भी चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
ऑस्ट्रेलिया के साथ अपनी द्विपक्षीय साझेदारी को बढ़ाने के लिये भारत को कौन-से रणनीतिक उपाय अपनाने चाहिये?
- व्यापक समझौतों के माध्यम से व्यापार में विविधता और सुदृढ़ता: भारत को मौजूदा ECTA के पूरक के रूप में एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर वार्ता में तीव्रता लानी चाहिये, ताकि टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर किया जा सके जो भारतीय MSME को ऑस्ट्रेलियाई बाज़ारों तक प्रभावी ढंग से पहुँचने से रोकती हैं।
- वित्त वर्ष 2025 में 24 अरब डॉलर का वर्तमान द्विपक्षीय व्यापार आशाजनक है, लेकिन व्यापार उत्पादों में विविधता लाने तथा नियामक ढाँचों को सरल बनाने से और अधिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, विशेषकर कृषि, फार्मास्यूटिकल्स एवं डिजिटल सेवाओं जैसे क्षेत्रों में।
- भारत की उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं और ऑस्ट्रेलिया के संसाधन निर्यात का लाभ उठाकर आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ किया जा सकता है तथा दीर्घकालिक औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी और आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ता बढ़ाना: भारत को चीन पर निर्भरता कम करने तथा आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ता बढ़ाने के लिये लिथियम, कोबाल्ट एवं दुर्लभ मृदा तत्त्व जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के शोधन और प्रसंस्करण में ऑस्ट्रेलिया के साथ सह-निवेश करना चाहिये।
- सोलर रूफटॉप टेकनीशियन ट्रेनिंग जैसे समन्वित कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये, जिसमें कुशल कार्यबल तैयार करने के लिये भारत के स्किल इंडिया और ऑस्ट्रेलिया की नेट ज़ीरो जॉब्स योजना को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- नीति निर्माता संदर्भ कार्यढाँचे के रूप में स्वच्छ ऊर्जा प्रमाणन में यूरोपीय संघ के समन्वित मानकों जैसे मॉडलों का उपयोग कर सकते हैं।
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग को गहन करना: भारत को वार्षिक रक्षा मंत्रियों की वार्ता, संयुक्त स्टाफ वार्ता और द्विपक्षीय अभ्यास जैसे परिचालन एवं रणनीतिक संवादों का विस्तार जारी रखना चाहिये।
- जटिल सैन्य अभ्यासों में भागीदारी, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के अभ्यास टैलिसमैन सेबर एवं संयुक्त अभ्यास ऑस्ट्राहिंड में भारत की भागीदारी शामिल है, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अंतर-संचालनीयता और रणनीतिक संरेखण को मज़बूत करती है।
- अक्तूबर 2025 में भारत में ऑस्ट्रेलिया के पहले रक्षा व्यापार मिशन और ऑस्ट्रेलिया के लैंड फोर्सेज़ एक्सपो (2024) में इंडिया पैवेलियन की स्थापना द्वारा चिह्नित रक्षा औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा देना।
- भारत साइबर युद्ध, अंतरिक्ष निगरानी और AI-सक्षम प्रणालियों जैसी उभरती रक्षा प्रौद्योगिकियों में सहयोग को और बढ़ा सकता है।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग का विस्तार: भारत को स्वच्छ ऊर्जा, जैव-विनिर्माण और रक्षा तकनीक में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये ऑस्ट्रेलिया-भारत सामरिक अनुसंधान कोष एवं ऑस्ट्रेलिया के मैत्री अनुदान जैसे द्विपक्षीय तंत्रों के माध्यम से वित्त पोषित संयुक्त अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को बढ़ाना चाहिये।
- स्टार्टअप और प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान को बढ़ावा देने से नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों तथा स्मार्ट ग्रिड समाधानों के व्यावसायीकरण में तेज़ी आएगी।
- उदाहरण के लिये, ISRO और ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं उपग्रह डेटा-साझाकरण में सहयोग ने उच्च-तकनीकी सहयोग के विस्तार के लिये एक मिसाल कायम की है।
- शैक्षणिक और जन-जन संपर्क को बढ़ावा देना: भारत को ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों के शाखा परिसरों की भारत में स्थापना का समर्थन करना चाहिये तथा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के सबसे बड़े स्रोत के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिये द्विपक्षीय छात्रवृत्ति बढ़ानी चाहिये।
- वीज़ा प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को बढ़ाने से दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंध और गहन होंगे।
- इंडिया-ऑस्ट्रेलिया फ्रेंडशिप एसोसिएशन और ऑस्ट्रेलियाई सरकार के सेंटर फॉर ऑस्ट्रेलिया-इंडिया रिलेशन्स जैसी उन्नत सांस्कृतिक एवं सार्वजनिक कूटनीति पहल आपसी समझ को सुदृढ़ कर सकती हैं।
- समुद्री और हिंद-प्रशांत सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना: भारत को नौवहन की स्वतंत्रता, समुद्री क्षेत्र जागरूकता और संयुक्त परिचालन योजना को बढ़ावा देने के लिये क्वाड एवं द्विपक्षीय मंचों के भीतर सहयोग को तीव्र करना चाहिये।
- समुद्री सुरक्षा रोडमैप पर हस्ताक्षर और उसका क्रियान्वयन एक स्वतंत्र एवं नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुदृढ़ करेगा, जो एक साझा प्राथमिकता है।
- वर्ष 2025 में पारस्परिक पनडुब्बी बचाव सहायता समझौते पर हस्ताक्षर क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा एवं आपदा प्रतिक्रिया के लिये व्यावहारिक सहयोग पर प्रकाश डालता है।
निष्कर्ष:
जैसा कि ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने उचित ही कहा है, “भारत-ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी ऐसे समय में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है जब वैश्विक व्यवस्था गहन परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है।”
आगे बढ़ते हुए, दोनों देशों को रक्षा सहयोग को सुदृढ़ करने, व्यापार समझौतों का विस्तार करने, स्वच्छ ऊर्जा सहयोग को आगे बढ़ाने और नियमों में सामंजस्य स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। निरंतर और व्यावहारिक सहभागिता दोनों देशों को एक साथ मिलकर एक सुदृढ़ और समृद्ध हिंद-प्रशांत भविष्य के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने में सक्षम बनाएगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा सहयोग अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों का नया आयाम है।” जलवायु परिवर्तन से निपटने और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति निर्भरता को कम करने में भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1. भारत-ऑस्ट्रेलिया नवीकरणीय ऊर्जा साझेदारी (REP) क्या है?
उत्तर: नवंबर 2024 में शुरू की गई REP, व्यापक रणनीतिक साझेदारी के तहत नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग, कार्बन-मुक्ति और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये एक द्विपक्षीय पहल है।
प्रश्न 2. REP के तहत किन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई है?
उत्तर: सौर PV, ग्रीन-हाइड्रोजन, ऊर्जा भंडारण, महत्त्वपूर्ण खनिज, चक्रीय अर्थव्यवस्था और युवाओं एवं महिलाओं के लिये कौशल विकास।
प्रश्न 3. भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय साझेदारी को मज़बूत करने वाले कारक कौन-से हैं?
उत्तर: CSP- 2020, रक्षा सहयोग, ECTA- 2022, नवीकरणीय ऊर्जा पहल, शिक्षा आदान-प्रदान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग।
प्रश्न 4. भारत-ऑस्ट्रेलिया सहयोग में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर: चीन पर निर्भरता, ऑस्ट्रेलिया में सीमित विनिर्माण, नियामक कमियाँ, भू-राजनीतिक मतभेद, व्यापार असंतुलन, अवसंरचना की बाधाएँ और कौशल असंगतता।
प्रश्न 5. ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत कौन-से रणनीतिक उपाय अपना सकता है?
उत्तर: रक्षा सहयोग को गहन करना, CECA के माध्यम से व्यापार में विविधता लाना, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना, अनुसंधान एवं विकास का विस्तार करना, शिक्षा और लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देना, समुद्री सुरक्षा को बढ़ाना तथा विनियमों में सामंजस्य स्थापित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)
(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया एवं न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब एवं वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न 1. भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौजूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये। (2021)