अंतर्राष्ट्रीय संबंध
बहु-पक्षीयता एवं भारत के सामरिक निहितार्थ
- 09 Dec 2025
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यह एडिटोरियल 08/12/2025 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “India’s multi-alignment to the fore in Putin visit” पर आधारित है। इस लेख के तहत भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के दृढ़ दावे को सामने लाया गया है, जो पश्चिमी दबाव के बावजूद रूस के साथ उसके संबंधों द्वारा उजागर होता है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार नई दिल्ली एक स्वतंत्र, बहु-गठबंधन वाली विदेश नीति का मार्ग अपनाते हुए प्रमुख शक्तियों के साथ संतुलन बनाए रखती है।
प्रिलिम्स के लिये: BRICS, iCET, आर्टेमिस एकॉर्ड, वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, मुक्त व्यापार समझौते, ब्रह्मोस, भारत का LiFE (पर्यावरण के लिये जीवनशैली) मिशन, खनिज सुरक्षा साझेदारी, अखौरा-अगरतला रेल लिंक
मेन्स के लिये: वैश्विक मामलों में भारत के बहु-पक्षीयता के मुख्य स्तंभ, भारत के बहु-पक्षीयता दृष्टिकोण से जुड़े प्रमुख मुद्दे।
पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रूसी राष्ट्रपति के रूप में भारत का हालिया स्वागत वैश्विक मामलों में रणनीतिक स्वायत्तता के एक साहसिक दावे का संकेत देता है। अमेरिकी टैरिफ दबावों और रूस के विरुद्ध यूरोप के अलगाव अभियान के बावजूद, नई दिल्ली ने गुटीय राजनीति के बजाय स्वतंत्र बहु-पक्षीयता को चुना है। उच्च-स्तरीय पश्चिमी यात्राओं की योजना और वर्ष 2026 में भारत द्वारा BRICS की अध्यक्षता ग्रहण करने के साथ, सभी वैश्विक शक्तियों के लिये यह संदेश स्पष्ट है— भारत अपनी राह स्वयं तय कर रहा है। यह कूटनीतिक संतुलन उभरती शक्तियों के लिये यह उदाहरण प्रस्तुत करता है कि वे प्रतिस्पर्द्धी गुटों के बीच विविध संबंधों का लाभ उठाते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ा सकती हैं।
वैश्विक मामलों में भारत की बहु-पक्षीयता के मुख्य स्तंभ क्या हैं?
- रणनीतिक स्वायत्तता और आक्रामक हेजिंग: भारत कठोर गुटों की तुलना में राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देता है, तथा अधिकतम लाभ उठाने के लिये अमेरिका और रूस जैसी प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के साथ एक साथ कार्य करता है।
- यह सिद्धांत आधारित व्यावहारिकता नई दिल्ली को यूरेशिया के साथ महाद्वीपीय स्थिरता एवं ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखते हुए पश्चिम से उन्नत प्रौद्योगिकी प्राप्त करने में सहायता करती है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने प्रतिबंधों के बावजूद वर्ष 2024 में अपने कच्चे तेल का लगभग 40% रूस से आयात किया, साथ ही iCET और आर्टेमिस एकॉर्ड्स के माध्यम से अमेरिका के साथ संबंधों को मज़बूत किया।
- ग्लोबल साउथ का समर्थन: स्वयं को एक विकासात्मक सेतु के रूप में स्थापित करते हुए, भारत ऋण, खाद्य सुरक्षा और जलवायु वित्त पर विकासशील विश्व की चिंताओं के निवारण हेतु सक्रिय रूप से अनुशंसा करता है।
- इससे इसकी भूमिका निष्क्रिय नियम-पालक से सक्रिय नियम-निर्माता की भूमिका ग्रहण करता है ताकि महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में ‘ग्लोबल साउथ’ के हित हाशिये पर न चले जायें।
- उदाहरण के लिये, भारत ने अगस्त वर्ष 2024 में 123 देशों के साथ तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट की मेज़बानी की। साथ ही, भारत ने अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता दिलाने में निर्णायक भूमिका निभायी।
- भू-आर्थिक जोखिम-मुक्ति एवं समुत्थानशीलता: वैश्विक विखंडन का मुकाबला करने के लिये, भारत लचीली आपूर्ति शृंखलाओं (फ्रेंड-शोरिंग) में एकीकृत करने के लिये पूरक अर्थव्यवस्थाओं के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) कर रहा है।
- इस रणनीति का उद्देश्य उच्च तकनीक निवेश को आकर्षित करना तथा अस्थिर या शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों पर आर्थिक निर्भरता को कम करना है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने चार सदस्यीय यूरोपीय ब्लॉक (EFTA) के साथ 100 बिलियन डॉलर के मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं और इन देशों से औद्योगिक उत्पादों पर अधिकांश आयात-शुल्क समाप्त करने पर सहमति दी है।
- इसके अलावा, भारत ने IMEC कॉरिडोर को चालू करने के लिये यूएई अंतर-सरकारी कार्यढाँचे को अंतिम रूप दिया।
- आत्मनिर्भरता के माध्यम से एकीकृत निवारण: आयात-निर्भरता से हटकर घरेलू सैनिक-औद्योगिक परिसर के निर्माण द्वारा भारत बाह्य दबावों की संभावना को सीमित कर रहा है।
- मेक इन इंडिया के माध्यम से यह द्वि-उपयोगी रणनीति घरेलू विनिर्माण क्षमता बढ़ाती है तथा एकल-स्रोत रक्षा-खरीद पर निर्भरता को घटाती है।
- उदाहरण के लिये, भारत का रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 में 23,622 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया है।
- इसके अलावा, भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलें प्रदान की हैं, जिससे यह वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित 375 मिलियन डॉलर के सौदे के तहत इस उन्नत भारत-रूस संयुक्त उद्यम मिसाइल प्रणाली को प्राप्त करने वाला पहला देश बन गया है।
- ऊर्जा-यथार्थवाद तथा हरित संक्रमण: भारत ऊर्जा-सुरक्षा को एक अपरिहार्य संप्रभु अधिकार मानता है और किफायती जीवाश्म ईंधन के साथ-साथ व्यापक हरित संक्रमण के बीच संतुलन बनाये रखता है।
- यह व्यावहारिक द्वैतवाद, वैश्विक तेल झटकों से अर्थव्यवस्था को स्थिर रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय जलवायु-प्रतिबद्धताओं का पालन सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने द्विपक्षीय संबंधों में तनाव के बावजूद, कतर से LNG आयात को अगले 20 वर्षों के लिये, अर्थात वर्ष 2048 तक, मौजूदा दरों से कम कीमतों पर बढ़ाने के लिये 78 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- हरित संक्रमण के क्षेत्र में भारत कोयले के चरणबद्ध-उन्मूलन के बजाय चरणबद्ध-न्यूनीकरण की अनुशंसा करता है ताकि विकासशील देशों को आर्थिक प्रगति हेतु नीति-स्थान मिल सके।
- वैश्विक पर्यावरण मंचों पर, यह लगातार न्यायसंगत और समतापूर्ण ऊर्जा परिवर्तन पर बल देता है, जो भारत के LiFE (पर्यावरण के लिये जीवनशैली) मिशन पर आधारित है, जो सतत उपभोग एवं उत्तरदायित्वपूर्ण जीवनशैली पर ज़ोर देता है।
- डिजिटल कूटनीति और तकनीकी-संप्रभुता: भारत अपने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को एक सॉफ्ट पावर टूल के रूप में उपयोग करता है, जो बिग टेक एकाधिकार के लिये एक ओपन-सोर्स, स्केलेबल विकल्प प्रदान करता है।
- यह टेक-डिप्लोमैसी भारत को विकासशील देशों को सुशासन-संबंधी समाधान उपलब्ध कराकर दीर्घकालिक सद्भाव बनाने में सहायक होती है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने UPI को संयुक्त अरब अमीरात के आनी और नेपाल के भुगतान नेटवर्क (वर्ष 2024) से जोड़ा है। इसके अलावा, भारत ने त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों के साथ इंडिया स्टैक साझा करने के लिये DPI साझेदारी पर हस्ताक्षर किये हैं।
- लघुपक्षवाद और मुद्दा-आधारित गठबंधन: अनावश्यक बहुपक्षवाद से हटकर, भारत अब विशिष्ट सुरक्षा और तकनीकी चुनौतियों से निपटने के लिये चुस्त, उद्देश्य-केंद्रित समूहों (क्वाड, I2U2) का उपयोग करता है।
- इससे औपचारिक सैन्य गठबंधनों की बाधाओं के बिना समुद्री सुरक्षा और महत्त्वपूर्ण खनिजों पर समुत्थानशील, कार्यात्मक सहयोग की अनुमति मिलती है।
- उदाहरण के लिये, भारत वर्ष 2024 में लिथियम तक पहुंच के लिये अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) में शामिल हो गया और डार्क शिपिंग से निपटने के लिये क्वाड समुद्री डोमेन जागरूकता का विस्तार किया।
बहुपक्षवाद बनाम लघुपक्षवाद: एक रणनीतिक तुलना
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मानदंड |
बहुपक्षवाद |
लघुपक्षवाद |
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मूल सिद्धांत |
सार्वभौमिक वैधता - व्यापक भागीदारी तथा वैश्विक सहमति के माध्यम से उन मानकों को निर्मित करना जिनकी विश्व-स्तर पर स्वीकृति हो। |
सामरिक दक्षता - समान हितों वाले, सक्षम तथा सीमित समूहों के माध्यम से तीव्र परिणाम प्राप्त करना। |
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सदस्यता संरचना |
वृहद तथा समावेशी - प्रायः लगभग सार्वभौमिक (जैसे: संयुक्त राष्ट्र के सदस्य); क्षमता या सामरिक अभिविन्यास की परवाह किये बिना सभी राज्यों के लिये खुला। |
लघु एवं विशिष्ट - साझा हितों और पूरक शक्तियों वाले कुछ चुनिंदा देशों (आमतौर पर 3-5) तक सीमित। |
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निर्णय लेना |
सर्वसम्मति-प्रधान तथा धीमा - विविध हितों और वीटो-शक्ति के कारण निर्णय-अवरोध संभावित (जैसे: UNSC)। |
तीव्र और लचीला - सदस्य समान सामरिक लक्ष्यों को साझा करते हैं, इसलिये निर्णय त्वरित और क्रियाभिमुख। |
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क्षेत्र और फोकस |
व्यापक एवं मानक-निर्धारण - औपचारिक संधियों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार और वैश्विक व्यापार जैसे बड़े वैश्विक मुद्दों का हल करता है। |
संकीर्ण एवं कार्य-उन्मुख - समुद्री सुरक्षा, तकनीकी सहयोग या आपूर्ति शृंखला जैसी विशिष्ट चुनौतियों को लक्षित करता है। |
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संस्थागत रूप |
औपचारिक एवं प्रशासनिक - बड़े सचिवालयों, चार्टरों और संरचित प्रक्रियाओं (जैसे: WTO, WHO) द्वारा समर्थित। |
अनौपचारिक एवं अनुकूलनीय - आमतौर पर स्थायी सचिवालय के बिना; शिखर सम्मेलनों और कार्य समूहों (जैसे: I2U2, AUKUS) के माध्यम से संचालन करता है। |
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प्राथमिक सीमा |
प्रासंगिकता का संकट - निर्णय में प्रायः विलंब, प्रक्रियागत जटिलता और महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के कारण अप्रभावी। |
वैधता का संकट - विशिष्टता के आरोप तथा सार्वभौमिक बहुपक्षीय मानकों को दरकिनार करने की आलोचना। |
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प्रमुख उदाहरण |
संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक, WHO |
क्वाड, BRICS, I2U2. |
भारत के बहुसंरेखण दृष्टिकोण से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- अमेरिकी के ट्रांज़ैक्शनलिज़्म से सामरिक स्वायत्तता पर दबाव: वाशिंगटन में रणनीतिक साझेदारी से लेन-देन संबंधी दबाव की ओर परिवर्तन, आर्थिक दबाव के बिना स्वतंत्र विदेश नीति विकल्प बनाए रखने की भारत की क्षमता के लिये चुनौती है।
- यह अंतर्विरोध साझा मूल्यों की सीमाओं को उजागर करता है, जब रूस को अलग-थलग करने जैसे प्रमुख अमेरिकी भू-राजनीतिक हितों को नई दिल्ली द्वारा पूरी तरह से पूरा नहीं किया जाता है।
- भारत का रूस के साथ S-400 रक्षा समझौता इसी तनाव का उदाहरण है, जिसके कारण अमेरिका को भारत-विशेष छूट देनी पड़ी और रूस-संबंधी हर तनाव के दौरान CAATSA-जनित प्रतिबंधों की आशंकाएँ पुनः उभर आती हैं।
- हाल ही में, अमेरिका ने अगस्त 2025 में चुनिंदा भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाया।
- रूस धुरी से घटते लाभ: हालाँकि रूस धुरी ने ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की, लेकिन भुगतान निपटान विफलताओं और मास्को के वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र पर पश्चिमी प्रतिबंधों को सख्त करने के कारण आर्थिक व्यवहार्यता कम हो रही है।
- भारत के सामने द्वि-स्तरीय संकट है— एक ओर रूस की व्यस्तता के कारण रक्षा-आपूर्ति शृंखला प्रभावित हो रही है और दूसरी ओर रियायती तेल का लाभ लगातार घटता जा रहा है।
- उदाहरण के लिये, दिसंबर 2025 में रूसी तेल आयात घटकर ~600,000 बैरल प्रति दिन रह गया (तीन वर्षों में सबसे कम), बार-बार शिखर सम्मेलन की घोषणाओं के बावजूद RuPay-Mir भुगतान लिंक अभी भी चालू नहीं है।
- चीन नॉर्मलाइज़ेशन का जाल और व्यापार विषमता: अक्तूबर 2024 के सीमा गश्ती समझौते के बावजूद, विश्वास की कमी उच्च बनी हुई है, फिर भी चीनी औद्योगिक इनपुट पर आर्थिक निर्भरता बढ़ती जा रही है, जिससे आत्मनिर्भरता कमज़ोर हो रही है।
- इस असमान सामान्यीकरण से भारत के चीनी वस्तुओं के लिये डंपिंग ग्राउंड बनने का खतरा उत्पन्न हो गया है, जबकि सीमा पर खतरे का केवल प्रबंधन किया जा रहा है, समाधान नहीं किया जा रहा है।
- चीन ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के सामने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ भारत की सीमा पर लगभग 600 से अधिक शियाओकांग (सुसंपन्न) सीमा-रक्षा बस्तियों की योजना बनाई है तथा उनका निर्माण कर रहा है।
- व्यापार के मोर्चे पर, चीन को भारत का निर्यात सत्र 2020-21 और 2024-25 के दौरान लगभग 33% गिर गया, जबकि इसी अवधि में चीन से आयात लगभग 74% बढ़ गया।
- इस असमान सामान्यीकरण से भारत के चीनी वस्तुओं के लिये डंपिंग ग्राउंड बनने का खतरा उत्पन्न हो गया है, जबकि सीमा पर खतरे का केवल प्रबंधन किया जा रहा है, समाधान नहीं किया जा रहा है।
- पड़ोसी देशों में डिलिवरी डेफिसिट और भारत विरोधी भावना: भारत की नेबरहूड फर्स्ट नीति को क्रियान्वयन-गत कमज़ोरियों (विशेषतः बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में विलंब) के कारण एक ‘डिलिवरी डेफिसिट’ का सामना करना पड़ रहा है। इससे भारत पर ‘बिग ब्रदर’ मानसिकता थोपे जाने की आलोचनाएँ बढ़ती हैं।
- साझेदार देशों में राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रायः संबंधों में अचानक असंतुलन हो जाता है, क्योंकि नई सरकारें भारत के प्रभाव को संतुलित करने के लिये चीन की ओर झुक जाती हैं।
- उदाहरण के लिये, बांग्लादेश में वर्ष 2024 के बाद की राजनीतिक उथल-पुथल के कारण भारत ने प्रमुख कनेक्टिविटी परियोजनाओं को रोक दिया है या धीमा कर दिया है, जबकि पूर्वोत्तर-बंगाल की खाड़ी के बीच निर्बाध संपर्क पर वर्षों से बयानबाज़ी चल रही है।
- अखौरा-अगरतला रेल लिंक और ढाका-टोंगी-जॉयदेबपुर रेल विस्तार जैसी प्रमुख योजनाओं में विलंब तथा लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ा है।
- FTA साझेदारों के साथ व्यापार घाटा बढ़ना: भू-राजनीतिक संबंधों के लिये मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर हस्ताक्षर करने की भारत की जल्दबाज़ी ने अनजाने में घरेलू विनिर्माण को नुकसान पहुँचाया है, क्योंकि साझेदार देशों से आयात भारत की निर्यात वृद्धि से अधिक है।
- यह अर्थशास्त्र पर भूराजनीति दृष्टिकोण, पारस्परिक बाजार अभिगम्यता सुनिश्चित किये बिना संवेदनशील क्षेत्रों में औद्योगीकरण को समाप्त करने का जोखिम उत्पन्न करता है।
- NITI आयोग ने बताया कि वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में FTA साझेदारों के साथ व्यापार घाटा 23% बढ़कर 26.7 बिलियन डॉलर हो गया।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में, संयुक्त अरब अमीरात से भारत का आयात 70.37% बढ़कर 7.2 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया, जिसके परिणामस्वरूप 3.5 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
- ग्लोबल साउथ में संसाधन विषमता: ग्लोबल साउथ में नेतृत्व के लिये भारत का दावा चीन की गहरी निवेश-आधारित कूटनीति की तुलना में इसकी सीमित वित्तीय क्षमता के कारण विवादित है।
- जबकि भारत समर्थन प्रदान करता है, वह ठोस, तीव्र (यद्यपि भारी कर्ज के साथ) बुनियादी अवसंरचना की आपूर्ति के लिये संघर्ष करता है, जिसकी विकासशील देशों को तत्काल आवश्यकता है।
- भारत का विकास समझौता डिजिटल अवसंरचना, क्षमता निर्माण और नीति अनुशंसा जैसी कम लागत वाली, उच्च प्रभाव वाली सॉफ्ट पावर परिसंपत्तियों को प्राथमिकता देता है, क्योंकि इसमें विकासशील देशों की विशाल हार्ड इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये आवश्यक पूंजी अधिशेष का अभाव है।
- यह वित्तीय वास्तविकता एक व्यावहारिक विभाजन को जन्म देती है, जहाँ ग्लोबल साउथ के देश नेतृत्व और मानदंडों के लिये भारत पर निर्भर होते हैं, लेकिन अनिवार्य रूप से इस्पात और कंक्रीट के लिये बीजिंग की ओर रुख करते हैं, जिससे भारत की रणनीतिक क्षमता सीमित हो जाती है।
- सितंबर 2024 के FOCAC शिखर सम्मेलन में चीन ने अफ्रीका को 50.7 बिलियन डॉलर देने का वादा किया, जो भारत की सहायता से कहीं अधिक है।
वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत अपनी बहुपक्षीय भागीदारी को सुदृढ़ करने के लिये क्या कदम उठा सकता है?
- G4 एकजुटता के माध्यम से सुधारित बहुपक्षवाद को संस्थागत बनाना: भारत को G4 (ब्राज़ील, जर्मनी, भारत, जापान) और विकासशील देशों के L.69 समूह को एकजुट करके संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार के लिये बयानबाजी की मांगों से हटकर आक्रामक पाठ-आधारित वार्ता की ओर बढ़ना चाहिये।
- रणनीति को तत्काल P5 वीटो गतिरोध को दरकिनार करने के लिये दीर्घकालिक स्थायी सीट आश्वासन के साथ एक व्यावहारिक अंतरिम मॉडल की पेशकश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इससे कथानक अधिकार से हटकर कार्यात्मक आवश्यकता की ओर चला जाता है तथा नई दिल्ली को वैश्विक शासन में उत्तर-दक्षिण के बीच के विभाजन को समाप्त करने में सक्षम एकमात्र विश्वसनीय स्थिरता प्रदान करने वाले देश के रूप में स्थापित किया जाता है।
- रणनीतिक विदेश नीति परिसंपत्ति के रूप में DPI कूटनीति: नई दिल्ली को यूपीआई और इंडिया स्टैक जैसे अपने डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना (DPI) को बिग टेक एकाधिकार के लिये एक ओपन-सोर्स विकल्प के रूप में ग्लोबल साउथ में निर्यात करके गवर्नेंस-एज़-ए-सर्विस को औपचारिक रूप देना चाहिये।
- भारतीय टेक्नोक्रेट द्वारा प्रबंधित ग्लोबल DPI रिपोज़िटरी की स्थापना करके, भारत एक डिजिटल गुटनिरपेक्ष आंदोलन बना सकता है, जो विकासशील देशों में तकनीकी संप्रभुता को बढ़ावा देगा।
- इससे गहन, शासन-अज्ञेय संस्थागत सद्भावना का निर्माण होता है तथा साझेदार अर्थव्यवस्थाओं को भारतीय डिजिटल मानकों में एकीकृत किया जाता है, जिससे दीर्घकालिक रणनीतिक स्थिरता का निर्माण होता है।
- ग्लोबल साउथ के लिये एक स्थायी सचिवालय की स्थापना: सामयिक शिखर सम्मेलनों से आगे बढ़ने के लिये, भारत को विकासात्मक चुनौतियों पर व्यवस्थित रूप से नज़र रखने और उन्हें स्पष्ट करने के लिये नई दिल्ली में एक स्थायी ग्लोबल साउथ सचिवालय का प्रस्ताव तथा वित्तपोषण करना चाहिये।
- यह संस्थागत तंत्र एक नीति प्रयोगशाला के रूप में कार्य करेगा, जो ऋण और जलवायु वित्त पर अस्पष्ट शिकायतों को G20 और संयुक्त राष्ट्र के लिये कार्यवाही योग्य नीति पत्रों में परिवर्तित करेगा।
- इससे भारत की भूमिका केवल एक आवाज़ या माध्यम से बदलकर विकासशील देशों के लिये एक नीति मध्यस्थ और एजेंडा-निर्धारक बन गई है।
- महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकरण: भारत को केवल कच्चे माल तक अभिगम्यता की तलाश करने के बजाय मूल्य-संवर्द्धन प्रसंस्करण की पेशकश करने के लिये अपनी विनिर्माण क्षमता का लाभ उठाकर महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारी (MSP की तरह) को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना चाहिये।
- ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के साथ प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों का सह-विकास करके, भारत वैश्विक हरित परिवर्तन में स्वयं को अपरिहार्य मध्य-धारा नोड के रूप में स्थापित कर सकता है।
इससे पारस्परिक भेद्यता और अन्योन्याश्रयता उत्पन्न होती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पश्चिमी शक्तियाँ अपनी आपूर्ति शृंखला की समुत्थानशीलता की रक्षा के लिये भारत की आर्थिक स्थिरता में निवेश करती रहेंगी।
रक्षा निर्यात के माध्यम से सागर का संचालन: क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR) सिद्धांत को तेजस और ब्रह्मोस जैसे किफायती रक्षा प्लेटफॉर्मों के निर्यात के माध्यम से समुद्री जागरूकता से क्षमता निर्माण तक विकसित करने की आवश्यकता है।
हिंद महासागर के तटीय देशों को रक्षा खरीद के लिये ऋण उपलब्ध कराने से एक सुरक्षा संरचना का निर्माण होता है जो भारतीय हार्डवेयर एवं रख-रखाव पर निर्भर होती है।
इससे भारत एक निष्क्रिय निवल सुरक्षा प्रदाता से एक सक्रिय सुरक्षा गारंटर बन गया है, जो अपनी रक्षा साझेदारियों के संजाल से शत्रुतापूर्ण नौसैनिक घेरेबंदी का मुकाबला कर सकता है।
AI गवर्नेंस और साइबर-एथिक्स में मानदंड-निर्माण: भारत को ग्लोबल साउथ AI फ्रेमवर्क के निर्माण का नेतृत्व करना चाहिये जो संप्रभु डेटा स्वामित्व को प्राथमिकता देता है तथा पश्चिमी या चीनी मॉडलों द्वारा एल्गोरिथम उपनिवेशीकरण को रोकता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक भागीदारी (GPAI) में सक्रिय रूप से भाग लेकर तथा आगामी इम्पैक्ट AI शिखर सम्मेलन- 2026 में मंच तैयार करके, भारत अपने नैतिक AI सिद्धांतों को अंतर्राष्ट्रीय कानून में शामिल कर सकता है।
इससे यह सुनिश्चित होता है कि भविष्य के वैश्विक डिजिटल नियम विकासशील देशों के विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक संदर्भों का सम्मान करेंगे तथा तकनीकी रंगभेद के एक नए रूप को रोकेंगे।
स्मार्ट पावर लॉबिंग के लिये प्रवासी समुदाय का लाभ उठाना: भारत को अपने प्रवासी समुदाय को केवल सांस्कृतिक राजदूत के रूप में देखने के स्थान पर उन्हें अपने मेज़बान देशों की विधायिकाओं में रणनीतिक दबाव समूहों के रूप में उपयोग करने की आवश्यकता है।
औपचारिक प्रवासी परामर्शदात्री समितियों की सुविधा प्रदान करके, भारत इस उच्च कुशल जनसांख्यिकी को वाशिंगटन और लंदन जैसी राजधानियों में अनुकूल व्यापार एवं वीज़ा नीतियों के लिये पैरवी करने के लिये प्रेरित कर सकती है।
यह निष्क्रिय सॉफ्ट पावर को सक्रिय स्मार्ट पावर में परिवर्तित कर देता है तथा राजनीतिक अंतर्विरोध के विरुद्ध एक परिष्कृत, विकेंद्रित कूटनीतिक माध्य का निर्माण करता है।
निष्कर्ष:
भारत की बहु-पक्षीयता की नीति कोई कूटनीतिक संतुलन साधने का प्रयास नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक तनाव को रणनीतिक अवसर में बदलने की एक सुविचारित रणनीति है। जैसे-जैसे वैश्विक गुट मज़बूत होते जा रहे हैं और बहुपक्षवाद कमज़ोर पड़ता जा रहा है, नई दिल्ली की संतुलित स्वायत्तता यह दर्शाती है कि किस प्रकार उभरती शक्तियाँ किसी की अधीनता के बिना सभी को अपने साथ जोड़ सकती हैं। उभरती वैश्विक व्यवस्था में भारत की विदेश नीति एक सरल सत्य को प्रतिबिंबित करती है: “राष्ट्र तब उभरते हैं जब वे पक्ष चुनकर नहीं, बल्कि स्पष्टता और साहस के साथ अपना मार्ग चुनकर आगे बढ़ते हैं।”
इसी दृष्टिकोण के साथ भारत स्वयं को नई वैश्विक व्यवस्था के एक सेतु, संतुलनकारी शक्ति और तेज़ी से उभरते विश्व-व्यवस्था के नियम-निर्माता के रूप में स्थापित कर रहा है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत की बहु-पक्षीयता की रणनीति वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच रणनीतिक स्वायत्तता के संतुलित प्रदर्शन को दर्शाती है। भारत की बहु-संरेखित विदेश नीति के मुख्य स्तंभों, इसके समक्ष आने वाली चुनौतियों और अपनी बहुपक्षीय स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये भारत द्वारा अपनाए जा सकने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न:
1. भारत की बहु-पक्षीयता रणनीति क्या है?
भारत एक ही गुट के साथ जुड़ने के बजाय, रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए, एक साथ कई वैश्विक शक्तियों के साथ समन्वय करता है।
2. भारत की बहु-पक्षीयता की नीति के मुख्य स्तंभ क्या हैं?
प्रमुख स्तंभों में रणनीतिक स्वायत्तता, ग्लोबल साउथ नेतृत्व, अनुकूल आपूर्ति शृंखलाएँ, रक्षा आत्मनिर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा, डिजिटल कूटनीति और लघु-पक्षीय गठबंधन शामिल हैं।
3. बहु-पक्षीयता में भारत के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
इन चुनौतियों में अमेरिकी दबाव, रूस से घटते लाभ, चीन के साथ व्यापार असंतुलन, पड़ोस में क्रियान्वयन-संबंधी कमी तथा ग्लोबल साउथ में सीमित वित्तीय क्षमता शामिल हैं।
4. भारत अपनी बहुपक्षीय स्थिति को कैसे मज़बूत कर रहा है?
यह G4 एकजुटता, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) कूटनीति, ग्लोबल साउथ सचिवालय, महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारी, रक्षा निर्यात, AI गवर्नेंस और प्रवासी भारतीय समुदाय के माध्यम से अपने बहुपक्षीय स्थिति को सुदृढ़ कर रहा है।
5. भारत ऊर्जा सुरक्षा और स्थायित्व के बीच संतुलन किस प्रकार बनाता है?
इसके लिये दीर्घकालिक जीवाश्म ईंधन समझौतों को सुरक्षित किया जा रहा है तथा सामानांतर रूप से कोयला-उपशमन (Phase-down) और LiFE पहल के माध्यम से न्यायसंगत एवं हरित संक्रमण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. भारत के निम्नलिखित राष्ट्रपतियों में से कौन कुछ समय के लिये गुटनिरपेक्ष आंदोलन का महासचिव भी रहे? (2009)
(a) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
(b) वराहगिरि वेंकटगिरि
(c) ज्ञानी जैल सिंह
(d) डॉ. शंकर दयाल शर्मा
उत्तर: (c)
प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
- न्यू डेवलपर्मेंट बैंक की स्थापना ए.पी.ई.सी. (APEC) द्वारा की गई है।
- न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न 1. "पूर्व और पश्चिम के बीच नाजुक असंतुलन और यू.एस.ए. बनाम रूस-चीनी गठबंधन के बीच उलझन के कारण संयुक्त राष्ट्र में सुधार प्रक्रिया अभी भी अनसुलझी है।" इस संबंध में पूर्व-पश्चिम नीति टकरावों की जाँच और समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2025)