भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था क्षमता को उजागर करना
- 08 Dec 2025
- 146 min read
यह एडिटोरियल 08/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “India can build a $1.2-trillion bioeconomy by 2047” लेख पर आधारित है। यह लेख भारत की जैव-अर्थव्यवस्था के तेज़ी से बढ़ते विकास को दर्शाता है, जिसमें इसकी तुलना पूंजी की उपलब्धता और मज़बूत नियमन द्वारा संचालित चीन के सफल जैव-प्रौद्योगिकी सुधार से की गई है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि इसी तरह के सुधारों के साथ, जीनोमिक्स और जैव-विनिर्माण में भारत की बढ़ती क्षमता इसे वर्ष 2047 तक वैश्विक जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी बना सकती हैं।
प्रिलिम्स के लिये: भारत की जैव अर्थव्यवस्था, BioE3 नीति, नेट-ज़ीरो 2070, जीनोम इंडिया परियोजना, GM सरसों संकर DMH-11, इथेनॉल ब्लेंडिंग, बायोसिमिलर
मेन्स के लिये: भारत ने अपनी जैव-अर्थव्यवस्था में जो प्रमुख प्रगति की है, भारत की जैव-अर्थव्यवस्था के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ।
पिछले एक दशक में भारत की जैव अर्थव्यवस्था 10 अरब डॉलर से बढ़कर 165 अरब डॉलर हो गई है, फिर भी वर्ष 2047 तक 1.2 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये वैज्ञानिक क्षमता से परे परिवर्तनकारी सुधारों की आवश्यकता है। चीन ने समर्पित बायोटेक लिस्टिंग बोर्ड और पुनर्गठित विज्ञान-प्रधान विनियामक प्राधिकरण के माध्यम से एक दशक-लंबे रूपांतरण का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसने 45 अरब डॉलर के वेंचर कैपिटल को आकर्षित तथा 200 से अधिक वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बायोटेक फर्मों को विकसित किया है। भारत का जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जिसमें जीनोमिक्स, जैव-फार्मा और जैव-विनिर्माण की शक्तियाँ इसे वैश्विक नवाचार के अगले चरण का नेतृत्व करने की स्थिति में ला रही हैं। नियामक आधुनिकीकरण और व्यापक पूंजी अभिगम्यता के साथ, भारत वर्ष 2047 तक एक विश्व-स्तरीय जैव-प्रौद्योगिकी महाशक्ति के रूप में विकसित हो सकता है।
भारत ने अपनी जैव-अर्थव्यवस्था में कौन-सी प्रमुख प्रगति की है?
- जैव अर्थव्यवस्था का घातीय विस्तार: भारत ने विकास को जीवाश्म-ईंधन निर्भरता से अलग करके और सकल घरेलू उत्पाद में चक्रीय जैव संसाधनों को एकीकृत करके, एक नवोदित जैव प्रौद्योगिकी भागीदार से एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में सफलतापूर्वक परिवर्तन किया है, जो वैश्विक औसत से काफी तीव्र गति से बढ़ रहा है।
- भारत की जैव अर्थव्यवस्था वर्ष 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 165.7 बिलियन डॉलर हो गई है तथा 2030 तक इसे 300 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है।
- रणनीतिक नीति परिवर्तन- BioE3 फ्रेमवर्क: कैबिनेट द्वारा अनुमोदित BioE3 नीति उच्च प्रदर्शन जैव विनिर्माण की दिशा में एक संरचनात्मक परिवर्तन को चिह्नित करती है, जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर जैव-निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिये बायो-फाउंड्रीज़ और बायो-एआई हब के साथ रासायनिक-आधारित प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करके जीवविज्ञान का औद्योगिकीकरण करना है।
- यह 6 विषयगत क्षेत्रों (जैसे: स्मार्ट प्रोटीन, परिशुद्ध जैव चिकित्सा) को लक्षित करता है तथा भारत के नेट-ज़ीरो 2070 जलवायु लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये बायो-एनेबलर हब का एक नेटवर्क स्थापित करता है।
- जीनोमिक सॉवरेनिटी और सटीक चिकित्सा: भारत ने जीनोम इंडिया परियोजना के पूर्ण होने से भारत ने जीनोमिक सॉवरेनिटी स्थापित कर ली है। इसके माध्यम से वैश्विक चिकित्सा डेटाबेस में मौजूद यूरो-केंद्रित पूर्वाग्रह को सुधारा गया तथा भारत की विविध जातीय संरचना के अनुरूप प्रिसिज़न मेडिसिन विकसित होने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- उदाहरण के लिये, भारतीय वैज्ञानिकों ने 10,000 व्यक्तियों का पूर्ण जीनोम अनुक्रमण संपन्न किया, जिससे जनसंख्या-विशिष्ट विविधताएँ और रोग-संबद्ध आनुवंशिक रूपांतर का पता चला।
- वैश्विक बायोफार्मा एवं वैक्सीन नेतृत्व: विश्व की फार्मेसी के रूप में मात्रा के प्रभुत्व से आगे बढ़ते हुए, भारत नवीन जैविक और बायोसिमिलर्स के मूल्य शृंखला में आगे बढ़ रहा है तथा महत्त्वपूर्ण प्रतिरक्षा चिकित्सा व उच्च मूल्य वाली दवाओं के लिये आयात निर्भरता को कम करने के लिये अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को मज़बूत कर रहा है।
- भारत साइटिवा (Cytiva) के ग्लोबल बायोफार्मा इंडेक्स- 2025 में शीर्ष 10 में शामिल हो गया है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया अब वैश्विक स्तर पर उत्पादित और बेची गई खुराकों की संख्या (1.5 बिलियन से अधिक खुराक) के हिसाब से विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है।
- जैव-ईंधन एकीकरण के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा: देश ने एक सुदृढ़ कृषि-ऊर्जा संबंध बनाने के लिये जैव-ऊर्जा को सक्रिय रूप से संचालित किया है, जिससे कृषि अपशिष्ट (पराली) का प्रभावी ढंग से उपयोग करके कच्चे तेल के आयात एवं कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा रहा है, जबकि किसानों की आय में वृद्धि हो रही है।
- भारत ने वर्ष 2030 के मूल लक्ष्य से 5 वर्ष पहले, वर्ष 2025 में 20% इथेनॉल ब्लेंडिंग (E20) प्राप्त कर लिया, जिससे विदेशी मुद्रा में लगभग ₹1.44 लाख करोड़ की बचत हुई और 244 लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल का प्रतिस्थापन हुआ।
- डीप-साइंस स्टार्टअप इकोसिस्टम: नवाचार परिदृश्य अकादमिक अनुसंधान से लेकर व्यावसायिक व्यवहार्यता तक परिपक्व हो गया है, जो कि BIRAC के लैब-टू-मार्केट वित्तपोषण द्वारा संचालित है, जिससे एक डीप-साइंस पाइपलाइन का निर्माण हुआ है, जो निजी इक्विटी को आकर्षित करता है तथा स्वास्थ्य और कृषि में ज़मीनी स्तर की चुनौतियों का समाधान करता है।
- बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या वर्ष 2014 में मात्र 50 से बढ़कर फरवरी 2025 तक लगभग 9,000 हो गई है, जिससे भारत बायोटेक नवाचार का एक वैश्विक केंद्र बन गया है।
- इसके अलावा, अगस्त 2025 तक भारत में 12 DBT-समर्थित जैव प्रौद्योगिकी पार्क और 95 BIRAC-समर्थित जैव-इनक्यूबेटर (75 बायो-नेस्ट और 20 ई-युवा केंद्र) हैं।
- कृषि जैव प्रौद्योगिकी में समुत्थानशीलता: नियामक सावधानी के बावजूद, जैव-कृषि क्षेत्र जलवायु-सहिष्णु GM फसलों और जैव-उत्प्रेरक पदार्थों के विकास के माध्यम से प्रौद्योगिकी-संचालित खाद्य सुरक्षा की ओर आगे बढ़ रहा है तथा पर्यावरणीय स्थिरता के साथ उत्पादकता आवश्यकताओं को संतुलित कर रहा है।
- उदाहरण के लिये, भारत में विकसित GM सरसों संकर DMH-11 के संदर्भ में विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे मौजूदा किस्मों की तुलना में सरसों की पैदावार में लगभग 25-30% की वृद्धि होगी।
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- स्थिर अनुसंधान एवं विकास निवेश: भारत का जैव-नवप्रवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र लगातार कम निवेश के कारण अवरुद्ध है, जिससे एक संसाधन संजाल बन गया है, जहाँ शोधकर्त्ताओं के पास उच्च जोखिम वाले अन्य कार्यों के लिये धन की कमी है।
- अनुसंधान एवं विकास के बोझ को साझा करने में निजी क्षेत्र की अनिच्छा के कारण सरकारी अनुदान पर भारी निर्भरता बनी रहती है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में महत्त्वपूर्ण खोजों का पैमाना सीमित हो जाता है।
- भारत का अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (GERD) सकल घरेलू उत्पाद के 0.64-0.7% पर स्थिर है, जबकि वैश्विक औसत 1.8% है।
- कृषि-जैव प्रौद्योगिकी में विनियामक गतिरोध: कृषि जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र नीतिगत अनिश्चितता और न्यायिक गतिरोध के कारण पंगु हो गया है, विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के व्यावसायीकरण के संबंध में।
- यह नियामकीय अवरोध विदेशी निवेश को रोकती है तथा किसानों को जलवायु-अनुकूल बीजों तक अभिगम्यता से वंचित करती है, जिससे स्वदेशी समाधान होने के बावजूद भारत खाद्य तेल के आयात पर निर्भर रहता है।
- GEAC की अनुमति के बावजूद GM सरसों (DMH-11) सर्वोच्च न्यायालय में लंबित निर्णय के चलते अटकी हुई है, और वर्ष 2002 का Bt कपास दो दशकों से भारत की एकमात्र व्यावसायिक GM फसल बना हुआ है।
- आपूर्ति शृंखलाओं में गंभीर आयात निर्भरता: बायो-फार्मा तथा मेडटेक क्षेत्रों में उत्पादन के उच्च स्तरीय कच्चे माल और उपकरणों के लिये बाह्य स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण गंभीर कमजोरी बनी हुई है।
- आयातित महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक सामग्रियों (KSM) और उन्नत डायग्नोस्टिक उपकरणों के लिये आयात पर निर्भरता राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा को प्रभावित करती है तथा घरेलू विनिर्माताओं के लाभांश को घटाती है।
- भारत अपने चिकित्सा उपकरणों का 70-80% आयात करता है और 70% से अधिक महत्त्वपूर्ण API के लिये चीन पर निर्भर है, जबकि हाल ही में PLI योजनाओं द्वारा इस अंतर को न्यूनतम करने का प्रयास किया गया है।
- वित्तपोषण में वैली ऑफ डेथ: डीप-साइंस स्टार्टअप्स को अवधारणा के प्रमाण और व्यावसायीकरण के बीच घातक वित्तपोषण अंतराल का सामना करना पड़ता है, जहाँ जोखिम पूँजी उपलब्ध नहीं रहती।
- हालाँकि प्रारंभिक चरण अनुदान (BIRAC) जैसे अनुदान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, लेकिन अंतिम-चरण के धैर्यशील निवेश की कमी के कारण अनेक महत्त्वपूर्ण भारतीय बायोटेक स्टार्टअप्स या तो बंद हो जाते हैं, या औद्योगिक स्तर तक पहुँचने से पहले अपनी बौद्धिक संपदा विदेशों में बेचने को विवश होते हैं।
- इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप भारतीय जैव प्रौद्योगिकी कंपनियाँ घरेलू स्तर पर विस्तार करने के बजाय विदेशी अर्थव्यवस्थाओं में प्रतिभा और बौद्धिक संपदा का योगदान कर रही हैं, जिससे उन्हें औद्योगिक पैमाने से पहले IP बेचने या बाहर निकलने के लिये विवश होना पड़ रहा है।
- जैव-निर्माण अवसंरचना का अभाव: BioE3 नीति की महत्त्वाकांक्षा खंडित और अपर्याप्त जैव-निर्माण अवसंरचना की वास्तविकता से असंगत है। औद्योगिक पैमाने के किण्वन टैंकों (बायो-फाउंड्रीज़) और प्रायोगिक संयंत्रों का तीव्र अभाव एक ऐसी बाधा उत्पन्न करता है जहाँ प्रयोगशाला-सिद्ध तकनीकों का घरेलू स्तर पर बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं किया जा सकता, जिससे अनुबंधित निर्माताओं को आउटसोर्सिंग करने के लिये विवश होना पड़ता है।
- बुनियादी अवसंरचना की कमी के कारण भारत के पास वैश्विक मेडटेक बाज़ार का केवल 1.5% हिस्सा है तथा उच्च-स्तरीय जैव-विनिर्माण जीनोम वैली जैसे कुछ समूहों तक ही सीमित है, जिससे 300 बिलियन डॉलर के जैव-अर्थव्यवस्था लक्ष्य में विलंब हो रहा है।
- नवप्रवर्तन-व्यावसायीकरण विरोधाभास: शैक्षणिक उत्पादन और व्यावसायिक प्रभाव के बीच एक स्पष्ट विसंगति है, जहाँ भारत बड़ी मात्रा में शोध पत्र तैयार करता है, लेकिन वैश्विक स्तर पर स्वीकृत पेटेंटों की संख्या कम है।
- इसका अर्थ यह है कि भारतीय करदाताओं द्वारा वित्तपोषित अनुसंधान प्रायः विपणन योग्य उत्पादों में परिणत नहीं हो पाता, जिसके परिणामस्वरूप प्रयोगशाला से बाज़ार तक की शृंखला बनने के बजाय शोध-पत्र उत्पादन की चक्रवृद्धि बन जाती है।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक- 2024 में 39वें स्थान पर होने के बावजूद, भारत ज्ञान प्रभाव और IP सृजन में काफी पीछे है।
- उच्च स्तरीय जैव-विज्ञान में प्रतिभा का असंतुलन: यह क्षेत्र मानव पूंजी में गुणवत्ता-मात्रा असंतुलन से जूझ रहा है, जिसके कारण हजारों स्नातक ऐसे तैयार हो रहे हैं, जिनमें सिंथेटिक जीव विज्ञान या AI-संचालित औषधि खोज जैसे उभरते क्षेत्रों में व्यावहारिक कौशल का अभाव है।
- इस प्रतिभा अंतराल के कारण महंगे पुनर्प्रशिक्षण या बेहतर शैक्षणिक-उद्योग संबंधों की आवश्यकता है, ताकि कार्यबल को BioE3 युग के लिये उद्योग-तैयार बनाया जा सके।
- उद्योग रिपोर्ट जैव सूचना विज्ञान और जीवविज्ञान में विशेष प्रतिभा की गंभीर कमी को उजागर करती है, BioE3 नीति (2024) विशेष रूप से इस कौशल अंतर को बायो-एआई हब स्थापित करने के लिये एक बड़ी बाधा के रूप में उद्धृत करती है।
भारत अपने जैव-अर्थव्यवस्था क्षेत्र के विकास को मज़बूत करने और गति देने के लिये क्या कदम उठा सकता है?
- प्लग-एंड-प्ले बायो-फाउंड्रीज़ का संचालन: प्रयोगशाला-स्तरीय नवाचार और औद्योगिक उत्पादन के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर को समाप्त करने के लिये, भारत को सक्रिय रूप से साझा बायो-फाउंड्रीज़ और पायलट-स्केल सुविधाओं का एक नेटवर्क स्थापित करने की आवश्यकता है, जो भुगतान-प्रति-उपयोग के आधार पर स्टार्टअप्स के लिये सुलभ हो।
- यह सेवा के रूप में अवसंरचना मॉडल, डीप-टेक फर्मों के लिये पूंजीगत व्यय की बाधा को कम करेगा, जिससे उन्हें निजी किण्वन या डाउनस्ट्रीम प्रसंस्करण संयंत्रों के निर्माण की भारी लागत वहन किये बिना, पूर्व-व्यावसायिक चरण में प्रौद्योगिकियों को मान्य करने की अनुमति मिलेगी, इस प्रकार स्केल-अप अड़चन को सीधे हल किया जा सकेगा।
- विज्ञान-प्रथम विनियामक सैंडबॉक्स को संस्थागत बनाना: विनियामक कार्यढाँचे को पुलिसिंग मॉडल से सुविधाजनक मॉडल में बदलने की आवश्यकता है, जिसके लिये विशेष रूप से सिंथेटिक जीव-विज्ञान और जीन-एडिटिंग के लिये विनियामक सैंडबॉक्स का निर्माण किया जाना चाहिये।
- इससे नैदानिक परीक्षणों के विभिन्न चरणों को समानांतर रूप से संसाधित करने तथा वैज्ञानिक मूल्यांकन को प्रशासनिक अनुज्ञा-प्रक्रिया से पृथक करने में सहायता मिलेगी, जिससे सरकार नवीन जैविक दवाओं के लिये ‘टाइम-टू-मार्केट’ अवधि को बहुत हद तक कम कर सकती है।
- इससे एक पूर्वानुमानित नीतिगत वातावरण का निर्माण होता है जो जोखिम लेने को प्रोत्साहित करता है तथा अत्याधुनिक अनुसंधान में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करता है।
- पूंजी के लिये एक समर्पित बायोटेक इनोवेशन बोर्ड का गठन: वैली ऑफ डेथ फंडिंग संकट को हल करने के लिये, वित्तीय नियामकों को स्टॉक एक्सचेंजों पर एक विशेष बायोटेक इनोवेशन लिस्टिंग बोर्ड शुरू करना चाहिये, जो वैश्विक मॉडल के समान है तथा प्री-रेवेन्यू अनुसंधान एवं विकास-आधारित कंपनियों को लाभ इतिहास के बजाय बौद्धिक संपदा मूल्य के आधार पर सूचीबद्ध करने की अनुमति देता है।
- इससे खुदरा और संस्थागत निवेशकों से घरेलू सतत पूंजी को आकर्षित करने में सहायता मिलेगी, जो डीप-साइंस की लंबी अवधि के विकास-चक्र को समझता है तथा इससे सरकारी अनुदानों एवं अस्थिर विदेशी उद्यम पूँजी पर निर्भरता कम होगी।
- कार्यबल कौशल में बायो-एआई एकीकरण को अनिवार्य बनाना: वर्तमान कौशल अंतराल को दूर करने के लिये शैक्षणिक पाठ्यक्रम में तत्काल बदलाव की आवश्यकता है, ताकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा साइंस को सीधे जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों में एकीकृत किया जा सके।
- कंप्यूटेशनल बायोलॉजी और इन-सिलिको ड्रग डिस्कवरी में कुशल हाइब्रिड कार्यबल को बढ़ावा देकर, भारत एक प्रतिभा पूल बना सकता है जो अनुसंधान में तीव्रता लाने के लिये बड़े डेटा का लाभ उठाने में सक्षम हो।
- यह कदम कार्यबल को पारंपरिक लैब-आधारित कार्य से आगे ले जाकर BioE3 युग की तकनीक-आधारित आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार करेगा।
- प्रमुख प्रारंभिक सामग्रियों (KSM) के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना: जैव-अर्थव्यवस्था को भू-राजनीतिक झटकों और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों से बचाने के लिये, सरकार को उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को विशेष रूप से जैविक कच्चे माल एवं बायोरिएक्टर घटकों के अपस्ट्रीम विनिर्माण तक विस्तारित करना चाहिये।
- इन महत्त्वपूर्ण इनपुटों के लिये आयात पर निर्भरता कम करने से न केवल राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि भारतीय बायोफार्मा निर्यातकों के लाभ मार्जिन में भी सुधार होगा, जिससे वे प्रमुख बाज़ार भागीदारों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बन सकेंगे।
- शैक्षणिक जगत में प्रौद्योगिकी अंतरण कार्यालय (TTO) की स्थापना: सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों में समर्पित प्रौद्योगिकी अंतरण कार्यालयों को अनिवार्य बनाकर अनुसंधान संस्थानों और उद्योग के बीच व्यावसायीकरण इंटरफेस को पेशेवर बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
- इन इकाइयों में शिक्षाविदों के बजाय उद्योग के अनुभवी लोगों को नियुक्त किया जाना चाहिये तथा इनका ध्यान केवल पेटेंट मूल्यांकन, IP लाइसेंसिंग और शैक्षणिक अनुसंधान को व्यवहार्य स्टार्टअप में परिवर्तित करने पर केंद्रित होना चाहिये।
- यह उपाय भारत के विशाल शोध-प्रकाशन आधार को वास्तविक आर्थिक परिसंपत्तियों तथा विपणन योग्य उत्पादों में बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- ‘जीनोमिक डेटा सॉवरेनिटी’ के माध्यम से प्रिसिज़न-केयर को बढ़ावा: भारत को अपनी व्यापक आनुवंशिक विविधता का रणनीतिक उपयोग करते हुए भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC) को वैश्विक दवा-कंपनियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण साझेदारी मंच के रूप में विकसित करना चाहिये।
- एक सुरक्षित तथा निजता-अनुपालक कार्यढाँचा विकसित करके इस जीनोमिक डेटा तक विनियमित अभिगम्यता प्रदान की जा सकती है जिससे विश्वभर के अनुसंधान केंद्र भारतीय तथा गैर-यूरोपीय जनसंख्या हेतु ‘प्रिसिज़न मेडिसिन’ विकसित कर सकें।
- इससे भारत न केवल एक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होता है, बल्कि अगली पीढ़ी की चिकित्सा पद्धति के लिये वैश्विक खोज मूल्य शृंखला में एक अपरिहार्य भागीदार के रूप में भी स्थापित होता है।
निष्कर्ष:
सशक्त वैज्ञानिक क्षमताओं, तेज़ी से बढ़ते स्टार्टअप इकोसिस्टम और BioE3 जैसे महत्त्वाकांक्षी नीतिगत कार्यढाँचों से लैस भारत की जैव-अर्थव्यवस्था एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। फिर भी, इसकी पूरी क्षमता को उजागर करने के लिये साहसिक नियामक सुधार, व्यापक पूँजी अभिगम्यता और विश्वस्तरीय जैव-निर्माण अवसंरचना की आवश्यकता है। प्रतिभा, तकनीक और जीनोमिक सॉवरेनिटी में रणनीतिक निवेश के साथ, भारत एक जैव-प्रौद्योगिकी भागीदार से वैश्विक नवाचार अग्रणी के रूप में परिवर्तित हो सकता है। यदि ये परिवर्तनकारी कदम निरंतर जारी रहते हैं, तो भारत वर्ष 2047 तक 1.2 ट्रिलियन डॉलर की जैव-अर्थव्यवस्था की महाशक्ति के रूप में उभरने की मज़बूत स्थिति में होगा।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत की जैव-अर्थव्यवस्था की हालिया उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये। इस क्षेत्र में कौन-सी संरचनात्मक चुनौतियाँ मौजूद हैं तथा सतत एवं समावेशी जैव-अर्थव्यवस्था विकास सुनिश्चित करने के लिये किन नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है? |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. भारत की जैव अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास का कारण क्या है?
भारत की जैव अर्थव्यवस्था का विस्तार जीनोमिक्स, जैव विनिर्माण, टीके, जैव ईंधन तथा BIRAC और BioE3 नीति जैसी पहलों द्वारा समर्थित एक सुदृढ़ स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में प्रगति के कारण हो रहा है।
प्रश्न 2. BioE3 नीति को परिवर्तनकारी क्यों माना जा रहा है?
BioE3 नीति, भारत को उच्च-प्रदर्शन बायोमैन्युफैक्चरिंग की दिशा में अग्रसर करती है क्योंकि यह बायो-फाउंड्रीज़, Bio-AI हब एवं बायो-एनबलर नेटवर्क स्थापित करती है, जिनके माध्यम से जीवविज्ञान का औद्योगीकरण संभव होता है तथा रसायन आधारित प्रक्रियाओं पर निर्भरता घटती है।
प्रश्न 3. भारत के बायोटेक स्टार्टअप्स के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
सबसे बड़ी बाधा वैली ऑफ डेथ (Valley of Death) वित्तपोषण का अंतर है, जिसमें स्टार्टअप्स को प्रयोगशाला स्तर से लेकर व्यावसायिक उत्पादन तक नवाचारों को बढ़ाने हेतु आवश्यक अंतिम चरण तक ले जाने के लिये पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं होती।
प्रश्न 4. भारत की जैव अर्थव्यवस्था के लिये नियामक सुधार क्यों महत्त्वपूर्ण है?
पुराने तथा खंडित विनियमन आनुवंशिकतः रूपांतरित फसलों, नयी जैव-औषधियों और गहन-विज्ञान नवाचारों के लिये अनुमोदन की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। निवेश आकर्षित करने तथा वाणिज्यिकीकरण को तीव्र गति प्रदान करने के लिये विज्ञान-आधारित और पूर्वानुमानित नियामक प्रणाली आवश्यक है।
प्रश्न 5. भारत वर्ष 2047 तक वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी किस प्रकार बन सकता है?
भारत को बायो-फाउंड्रीज़ में निवेश बढ़ाना चाहिये, घरेलू आपूर्ति-शृंखलाओं को सुदृढ़ बनाना चाहिये, प्रीसिज़न मेडिसिन की क्षमताओं का विस्तार करना चाहिये, R&D व्यय को बढ़ाना चाहिये तथा वैश्विक ‘इनोवेशन बोर्ड’ के आधार पर एक समर्पित बायोटेक पूँजी बाज़ार विकसित करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त, वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012)
- सूखा सहन करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना
- उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना
- अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगने और प्रकाश-संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
- उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)