भारतीय अर्थव्यवस्था
निष्पक्ष और उपभोक्ता-केंद्रित अर्थव्यवस्था हेतु भारत के प्रयास
- 10 Dec 2025
- 188 min read
यह एडिटोरियल 09/12/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “IndiGo meltdown has exposed a harsh truth: Passengers absorb damage while companies walk away” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। यह लेख दर्शाता है कि किस प्रकार नए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) नियमों को लेकर इंडिगो का संकट कॉर्पोरेट लापरवाही और विमानन क्षेत्र में लगभग एकाधिकार के खतरों को उजागर करता है। साथ ही यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि घटती प्रतिस्पर्द्धा से (जो दूरसंचार क्षेत्र के द्विदलीय वर्चस्व का स्मरण कराता है) यात्रियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और इस प्रक्रिया में राज्य की विनियामक प्रतिबद्धता की वास्तविक परीक्षा होती है।
प्रिलिम्स के लिये: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय, भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण, UPI इकोसिस्टम, कॉमन इक्विटी टियर 1, भारत का ई-कॉमर्स बाज़ार
मेन्स के लिये: बाज़ार शक्ति की निगरानी और नियंत्रण के लिये भारत का मौजूदा नियामक कार्यढाँचा, भारत के प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ती बाज़ार-संकेंद्रण प्रवृत्ति, प्रणालीगत Too Big to Fail जोखिम
इंडिगो में हाल ही में उत्पन्न परिचालनगत अव्यवस्था, जो नये नए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) मानकों के प्रवर्तन से उत्पन्न हुई और जिसके कारण हज़ारों यात्री फँस गये, इस तथ्य को उजागर करती है कि पर्याप्त नियामक अवधि उपलब्ध होने के बावजूद गंभीर कॉर्पोरेट उपेक्षा बनी रही। तथापि यह संकट भारतीय उड्डयन क्षेत्र में "Too Big to Fail" जैसी एकाधिकार-स्थिति का ठोस रूप धारण करती जा रही एक गहन विकृति का लक्षण है। यह परिघटना दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में उभरती चिंताजनक प्रवृत्तियों का प्रतिबिंब है, जहाँ द्वैध-प्रभुत्व तथा उपभोक्ता-विकल्पों के क्षरण ने प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार को संरचनात्मक प्रभुत्व वाले बाज़ार में रूपांतरित कर दिया है। जैसे-जैसे यात्री/उपभोक्ता विकल्पों की कमी का खामियाज़ा भुगत रहे हैं, तब एक नियामक के रूप में राज्य की भूमिका अपनी अंतिम परीक्षा का सामना कर रही है।
बाज़ार शक्ति की निगरानी और नियंत्रण के लिये भारत का मौजूदा नियामक कार्यढाँचा क्या है?
भारत की वर्तमान व्यवस्था मुख्य रूप से रेफरी की भूमिका निभाती है, न कि गेटकीपर की। इसका ढाँचा इस प्रकार निर्मित है कि यह गलत आचरण होने के बाद दण्डित (Ex-Post) करता है, न कि किसी प्रतिस्पर्द्धी को असमान रूप से प्रभुत्वशाली बनने से पहले (Ex-Ante) ही रोकता है।
- मुख्य कानून: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 - यह बाज़ार प्रभुत्व के दुरुपयोग के विरुद्ध भारत का केंद्रीय विधिक साधन है। इसने पुराने MRTP अधिनियम का स्थान लिया, जो ‘एकाधिकार’ को स्वयं में ही नकारात्मक मानता था।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4: यह कंपनियों को उनके ‘प्रभुत्व’ के दुरुपयोग से रोकती है— जैसे: अनुचित मूल्य निर्धारण, आपूर्ति सीमित करना, बाज़ार तक पहुँच अवरुद्ध करना या अनुचित शर्तें थोपना।
- यह ‘प्रभुत्व’ को नहीं बल्कि ‘प्रभुत्व के दुुरुपयोग’ को नियंत्रित करता है, ताकि उपभोक्ताओं तथा अन्य व्यवसायों के लिये निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित हो सके। यह निम्न प्रकार के आचरणों को रोकता है:
- प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण: प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करने के लिये लागत से कम कीमत पर बिक्री करना (प्रायः दूरसंचार क्षेत्र में इसका उल्लेख किया जाता है)।
- उत्पादन/आपूर्ति को सीमित करना: जानबूझकर उड़ानों या सेवाओं की संख्या घटाकर कीमतों में हेरफेर करना।
- बाज़ार तक पहुँच से वंचित करना: नये प्रतिस्पर्द्धियों को प्रवेश न करने देना (जैसे: एयरपोर्ट स्लॉट्स को रोककर रखना)।
- धारा 5 एवं 6 (संयोजनों का विनियमन):
- विलय नियंत्रण: कोई भी बड़ा विलय जैसे Air India + Vistara या PVR + Inox) को CCI की अनुमति से ही संपन्न हो सकता है।
- AAEC परीक्षण: CCI इस बात का मूल्यांकन करता है कि क्या विलय से भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर उल्लेखनीय प्रतिकूल प्रभाव (AAEC ) पड़ेगा।
- यदि प्रतिकूल प्रभाव का खतरा हो, तो CCI सौदा रोक सकता है या ‘रिमेडीज़’ थोप सकता है (जैसे: कुछ एयरपोर्ट स्लॉट छोड़ने को कहना)।
- प्रवर्तन संस्था: भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI):
- अधिकार: CCI तीन वर्षों के वैश्विक कारोबार के औसत का 10% तक दण्ड लगा सकता है और कंपनियों को बंद करने और रोकने का आदेश (Cease and Desist) निर्देश दे सकता है।
- Ex-Post सीमा: कार्रवाई हमेशा नुकसान हो जाने के बाद होती है। उदाहरण: Google पर ₹1,337 करोड़ का दण्ड तब लगाया गया जब वह Android बाज़ार में पहले से हावी हो चुका था।
- क्षेत्रीय नियामकों का प्रश्न (अधिकार क्षेत्र की असंगतता)
- दूरसंचार (TRAI): भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) टैरिफ और गुणवत्ता को नियंत्रित करता है।
- विवाद: CCI बनाम भारती एयरटेल (2018) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि CCI को अनुचित मूल्य निर्धारण की जाँच करने से पहले क्षेत्रीय नियामक (TRAI) द्वारा तकनीकी निष्कर्षों को पूरा करने की प्रतीक्षा करनी होगी। इससे कार्टेल के खिलाफ कार्रवाई में विलंब होता है।
- विमानन (DGCA और AERA):
- नागरिक उड्डयन महानिदेशालय: सुरक्षा और लाइसेंसिंग (जैसे: पायलट थकान मानदंड) पर ध्यान केंद्रित करता है। आर्थिक एकाधिकारों पर अंकुश लगाने की इसकी शक्ति बहुत कम है।
- भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण: हवाईअड्डों के शुल्क निर्धारित करता है लेकिन एयरलाइन बाज़ार हिस्सेदारी को नियंत्रित नहीं करता है।
- रिक्ति: एयरलाइन मार्गों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिये कोई विशिष्ट नियामक नहीं है।
- हाल के घटनाक्रम (कमियों को दूर करने के प्रयास)
- सरकार ने यह स्वीकार करते हुए कि वर्ष 2002 का अधिनियम डिजिटल युग के लिये बहुत धीमा है, दो प्रमुख परिवर्तन पेश किये हैं:
- प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2023:
- डील वैल्यू थ्रेशहोल्ड: किलर एक्विज़िशन (जहाँ बड़ी टेक कंपनियाँ छोटे स्टार्टअप को सिर्फ इसलिये खरीदती हैं ताकि उन्हें खत्म कर सकें) को पकड़ने के लिये पेश किया गया है, भले ही वे संपत्ति/टर्नओवर लक्ष्यों को पूरा न करें।
- समझौते और प्रतिबद्धताएँ: यह कंपनियों को लंबी कानूनी लड़ाई के बिना समस्या को ठीक करने पर सहमत होकर मामलों के त्वरित निपटान की अनुमति देता है।
- डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा विधेयक का प्रारूप (पूर्व-निर्धारित बदलाव):
- गूगल, अमेज़ॅन जैसी प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण डिजिटल उद्यमों (SSDE) को विनियमित करने का प्रस्ताव है।
- पूर्व-निर्धारित दृष्टिकोण: मौजूदा कानून के विपरीत, शिकायत आने की प्रतीक्षा करने के बजाय यह नियम पहले से ही लागू (जैसे: आप अपने उत्पादों को प्राथमिकता नहीं दे सकते) करेगा। यह अभी विचार-विमर्श में है।
भारत के प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ते बाज़ार संकेंद्रण से किस प्रकार एक व्यवस्थित ‘Too Big to Fail’ का जोखिम उत्पन्न हो रहा है?
- परिचालन संबंधी अस्थिरता और नैतिक जोखिम (विमानन): विमानन में अत्यधिक संकेंद्रण एक विफलता का एकल बिंदु बनाती है, जहाँ कॉर्पोरेट कुप्रबंधन तुरंत राष्ट्रीय आवागमन संकट का रूप ले लेता है।
- इस प्रभुत्व के कारण नैतिक जोखिम (Moral Hazard) भी उत्पन्न होता है क्योंकि बाज़ार का अग्रणी यह जानता है कि उसकी विफलता से देश की समूची परिवहन प्रणाली बाधित हो जायेगी, अतः राज्य उसे गिरने नहीं दे सकता, जिससे कर्मचारियों की कमी जैसे जोखिम भरे परिचालन संबंधी दाँव खेलने को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण के लिये, DGCA के अनुसार, इंडिगो ने अगस्त 2025 में 83.14 लाख यात्रियों का परिवहन किया, जो बाज़ार हिस्सेदारी का 64.2% है, इसके हालिया पायलट रोस्टर में गड़बड़ी के कारण हजारों उड़ानें बाधित हुईं, जिससे यात्रियों के पास कोई विकल्प नहीं बचा तथा अन्य एयरलाइनों पर स्पॉट किराए में 300-400% की वृद्धि हुई।
- अल्प-प्रतिस्पर्धी बाज़ार में मौन मिलीभगत (दूरसंचार): दूरसंचार क्षेत्र अति-प्रतिस्पर्द्धा से एक स्थिर अल्पाधिकार की ओर स्थानांतरित हो गया है, जिसकी विशेषता मौन मिलीभगत है जहाँ प्रमुख प्रतिस्पर्द्धी कंपनियाँ मूल्य-प्रतिस्पर्द्धा करने के के बजाय प्रायः समानांतर रूप से टैरिफ बढ़ाती हैं।
- स्पेक्ट्रम लागत और विशाल अवसंरचना आवश्यकताओं के कारण यह क्षेत्र ‘नॉन-कॉण्टेस्टेबल’ बन गया है जिससे उपभोक्ताओं की सौदाकारी शक्ति लगभग समाप्त हो गयी है।
- उदाहरण: वर्ष 2024 में Airtel का मार्केट शेयर 38.6% और Jio का 41.6% हो गया और दोनों ने लगभग एक ही समय 10–25% की टैरिफ वृद्धि कर दी जिससे कम-लागत डेटा का युग समाप्त हो गया।
- डिजिटल भुगतान (फिनटेक) में प्रणालीगत जोखिम: UPI इकोसिस्टम में उभरते खतरनाक द्विपक्षीय एकाधिकार (Duopoly) के कारण किसी एक प्रदाता में तकनीकी त्रुटि देश के लगभग आधे डिजिटल लेन-देन को ठप्प कर सकती है।
- यह ‘Winner-Takes-Most’ संरचना नवोन्मेष के लिये ‘Kill Zone’ बनाती है क्योंकि नए प्रवर्तक नेटवर्क प्रभावों तथा नकदी-क्षरण की प्रतिस्पर्द्धा झेल नहीं पाते।
- PhonePe और Google Pay सभी UPI लेनदेन के 80% से अधिक का प्रसंस्करण करते हैं, जिसके चलते NPCI को अपने 30% बाज़ार पूंजीकरण सीमा के कार्यान्वयन को फिर से स्थगित करने के लिये विवश होना पड़ा, यह स्वीकार करते हुए कि इकोसिस्टम को जोखिम मुक्त करने के लिये कोई व्यवहार्य विकल्प मौजूद नहीं है।
- आपूर्ति शृंखला संप्रभुता और अवसंरचना एकाधिकार (लॉजिस्टिक्स): महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वारों (बंदरगाहों और हवाई अड्डों) का एकल समूह के अधीन एकीकरण ऊर्ध्वाधर संकेंद्रण के जोखिम उत्पन्न करता है, जहाँ निजी एकाधिकार व्यापार लागत और लॉजिस्टिक्स दक्षता को निर्धारित कर सकते हैं।
- सार्वजनिक अवसंरचना पर इस अनियंत्रित मूल्य निर्धारण शक्ति से प्रमुख प्रतिस्पर्द्धी आपस में सब्सिडी देकर छोटे लॉजिस्टिक्स प्रतिस्पर्द्धियों को बाज़ार से बाहर कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत में, कुछ प्रमुख बंदरगाहों पर कंटेनर टर्मिनल संचालन के संकेंद्रण के कारण ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं जहाँ कुछ निजी टर्मिनल संचालक ही मालवाहक शुल्क और भंडारण शुल्क निर्धारित करते हैं।
- छोटी लॉजिस्टिक्स कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धा करने में कठिनाई होती है, जबकि बड़े निर्यातक और आयातक प्रायः तरजीही दरों पर सौदा करते हैं, जो सरकारी विनियमन के बिना केंद्रीकृत नियंत्रण के जोखिमों को उजागर करता है।
- ‘Too Big to Save’ की दुविधा (बैंकिंग/D-SIB): मेगा-बैंकों का निर्माण करने वाले विलय से प्रणालीगत संक्रामक जोखिम बढ़ जाता है, जहाँ एक संस्था की विफलता समग्र वित्तीय प्रणाली को अस्थिर कर सकती है और राज्य को करदाता-निधियों से बचाव करना पड़ सकता है।
- इस संकेंद्रण से घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (D-SIB) बनते हैं, जो यह मानकर अधिक जोखिमपूर्ण ऋण-पद्धतियाँ अपना सकते हैं कि संप्रभु सुरक्षा-छत्र उपलब्ध है।
- उदाहरण के लिये, विलय के बाद HDFC Bank का Nifty 50 में भार लगभग 14% हो गया। RBI SBI, HDFC और ICICI को डी-सिब्स के रूप में वर्गीकृत करता है और इन्हें जोखिम को कम करने के लिये उच्च कॉमन इक्विटी टियर 1 (CET1) पूँजी-बफर बनाये रखना अनिवार्य है।
- सूचना का समरूपीकरण (मीडिया और मनोरंजन): मीडिया क्षेत्र में क्षैतिज संकेंद्रण मीडिया बहुलता के लिये गंभीर चुनौती है, जिससे एक ऐसा ‘कंटेंट-कॉर्पोरेशन’ उत्पन्न हो रहा है जो विज्ञापन-रेट निर्धारण और आख्यान नियंत्रण दोनों को नियंत्रित करने में सक्षम है।
- इससे विचारों का बाज़ार एक कॉर्पोरेट एकाधिकार में सिमट जाता है, जहाँ एक ही इकाई कंटेंट क्रिएशन (स्टूडियो) और प्रसारण (स्ट्रीमिंग/TV) दोनों प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती है।
- उदाहरण के लिये, रिलायंस-डिज्नी के विलय से एक ऐसी इकाई का निर्माण हुआ जो टीवी/स्ट्रीमिंग दर्शकों के लगभग 40% और क्रिकेट प्रसारण के प्रमुख अधिकारों को नियंत्रित करती है, जिससे विज्ञापन दरों के एकाधिकार और कंटेंट की विविधता के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- नियामकीय विलंब बनाम पूर्व-आवश्यकता (नीति): बाज़ार के संकेंद्रण की गति अपराध के बाद लागू होने वाले दंड (अपराध के बाद जुर्माना) से कहीं अधिक होती है, जिससे बाज़ार अग्रणियों के लिये दंड केवल व्यवसाय करने की लागत बनकर रह जाता है।
- पूर्व-निर्धारित नियमों (डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा विधेयक जैसे निवारक नियम) के बिना, नियामक उन गेटकीपर प्लेटफॉर्मों के खिलाफ एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्होंने पहले ही बाज़ार को स्थायी रूप से विकृत कर दिया है।
- उदाहरण के लिये, CCI की लंबी जाँच के बावजूद, वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली फ्लिपकार्ट भारत के ई-कॉमर्स बाज़ार में शीर्ष स्थान पर बनी हुई है, जिसकी बाज़ार हिस्सेदारी 48% है और यह उद्योग की वृद्धि दर से कहीं आगे है।
- प्रस्तावित डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा विधेयक अभी भी लंबित है, जिससे छोटे विक्रेता एल्गोरिदम बायस और भारी छूट के प्रति सुभेद्य बने हुए हैं।
‘Too Big to Fail’ गतिशीलताएँ
|
गतिशीलताएँ/ तंत्र |
यह किस प्रकार कार्य करता है |
यह खतरनाक क्यों है (इसके दुष्परिणाम) |
क्षेत्रीय अभिव्यक्ति (भारत) |
|
नैतिक जोखिम विरोधाभास |
जब कोई कंपनी इतनी संकटग्रस्त हो जाती है कि उसके पतन से राष्ट्र पंगु हो जाएगा, तो वह मान लेती है कि सरकार को ही उसे बचाना होगा। परिणामस्वरूप, वह यह जानते हुए भी कि उसे सरकार की ओर से एक अंतर्निहित सुरक्षा कवच प्राप्त है, परिचालन संबंधी जोखिम भरे कदम उठाती है (जैसे: कर्मचारियों की कमी, आक्रामक विस्तार)। |
निजी लाभ, सामाजिक हानि। जोखिम भरे व्यवहार से होने वाला लाभ संस्था अपने पास रखती है, लेकिन जब संकट आता है, तो करदाता को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है (या तो वित्तीय सहायता के रूप में या अराजकता के रूप में)। |
विमानन क्षेत्र: IndiGo द्वारा पायलट रिज़र्व को अत्यधिक कम रखना, यह मानकर कि उसका नेटवर्क इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसे ठप नहीं किया जा सकता, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर उड़ानें रद्द हो रही हैं। |
|
प्रवेश के लिये उच्च अवरोध |
मौजूदा कंपनियाँ महत्त्वपूर्ण सीमित संसाधनों, जैसे: एयरपोर्ट स्लॉट, स्पेक्ट्रम या डेटा का भंडार जमा कर लेती हैं, जिससे एक आर्थिक अंतराल बन जाता है, जिससे नए, लघु प्रतिस्पर्द्धियों के लिये बाज़ार में प्रवेश करना असंभव हो जाता है। |
नवाचार में ठहराव। बाज़ार प्रतिस्पर्द्धाहीन हो जाता है। नए प्रतिद्वंद्वियों का भय समाप्त होने पर स्थापित कंपनियाँ सेवा-गुणवत्ता सुधारने या नवाचार करने को प्रेरित नहीं होती हैं। |
बुनियादी अवसंरचना: मुंबई/दिल्ली हवाई अड्डों पर सुबह के प्राइम स्लॉटों पर पुरानी एयरलाइनों का नियंत्रण, जिससे नयी एयरलाइनों (जैसे: Akasa) के लिये बिज़नेस ट्रैवलर बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो जाता है। |
|
नियामकीय अधिग्रहण और विलंब |
कभी-कभी नियामक संस्था से अधिक शक्तिशाली वही संस्थान हो जाता है जिसे विनियमित करना है। दण्ड-प्रवर्तन की लागत (लंबित मुकदमे आदि) विशाल कंपनियों के लिये तुच्छ हो जाती है, या नियामक को डर रहता है कि सख्त कार्रवाई से आवश्यक सेवाएँ बाधित हो सकती हैं। |
संस्था में वास्तविक शक्ति या क्षमता की कमी। विनियमन ‘Ex-Post’ (नुकसान होने के बाद जुर्माना) बन जाता है न कि ‘Ex-Ante’ (पहले ही जोखिम रोकना)। इस प्रकार दण्ड केवल ‘लागत’ बन जाते हैं जिनके बावजूद कंपनियाँ वही व्यवहार जारी रखती हैं। |
ई-कॉमर्स: ऐसे प्लेटफॉर्म जो प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी व्यवहार के लिये जुर्माना भरते रहते हैं, पर वही अत्यधिक छूट वाले मॉडल जारी रखते हैं जो छोटे रिटेलरों को बाज़ार से बाहर कर देते हैं। |
|
आपूर्ति शृंखला संकट (Monopsony) |
यह स्थिति तब होती है जब कोई दिग्गज कंपनी केवल एकाधिकार विक्रेता ही नहीं बल्कि एकाधिकार खरीदार (Monopsony) भी बन जाती है। वह अपने सप्लायर्स, हवाई अड्डों या लॉजिस्टिक्स भागीदारों पर शर्तें थोपती है, उनके मुनाफे को घटाकर अपनी बाज़ार शक्ति को और बढ़ाता है। |
प्रतिस्पर्द्धा इकोसिस्टम का क्षरण। छोटे विक्रेता और सहायक उद्योग (जैसे: ग्राउंड हैंडलिंग, टावर कंपनियाँ) मुनाफे से वंचित हैं, जिससे आपूर्ति शृंखला खोखली हो गई है और पूरी तरह से एक ही ग्राहक पर निर्भर है। |
रिटेल/FMCG: बड़े क्विक-कॉमर्स या रिटेल दिग्गज FMC वितरकों से अत्यंत कम मार्जिन पर सौदा करने के लिये दबाव डालते हैं, जिससे छोटे वितरक व्यवसाय से बाहर हो जाते हैं। |
बाज़ार में एकाधिकार पर नियंत्रण और उपभोक्ताओं की सुरक्षा एवं विकल्पों को सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
- असममित पूर्व-नियमन को संस्थागत रूप देना: वर्तमान एक-आकार-सभी के लिये उपयुक्त दृष्टिकोण के बजाय, नियामकों को एक असममित नियामक कार्यढाँचा अपनाना चाहिये जो सख्त अनुपालन भार को केवल प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण उद्यमों (SSE) पर डालता है। वर्तमान ‘वन-साइज़-फिट्स-ऑल’ दृष्टिकोण के स्थान पर नियामकों को एक असममित विनियामक कार्यढाँचा अपनाना चाहिये, जिसमें कठोर अनुपालन-भार केवल केवल प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण उद्यमों (SSE) पर डाला जाये।
- प्रमुख कंपनियों के लिये सेल्फ-प्रेफरेंसिंग तथा बंडलिंग जैसे व्यवहारों को अग्रिम रूप से निषिद्ध कर देना तथा छोटे प्रतिस्पर्द्धियों को अपेक्षाकृत मुक्त रखना कृत्रिम रूप से प्रवेश-अवरोधों को कम करता है।
- यह मॉडल ‘गलत आचरण के बाद दण्ड’ देने के बजाय ‘समान अवसरों की संरचना’ पर केंद्रित है, जिससे प्रमुख कंपनियाँ उभरती हुई प्रतिस्पर्द्धा को उसके परिपक्व होने से पहले ही समाप्त न कर सकें तथा एक प्रतिस्पर्द्धात्मक बाज़ार की स्थितियाँ विकसित हों।
- अवसंरचना में आवश्यक सुविधा सिद्धांत को लागू करना: ऊर्ध्वाधर एकाधिकार को रोकने के लिये, हवाई अड्डे के स्लॉट, दूरसंचार टावर और भुगतान गेटवे जैसे महत्त्वपूर्ण अवसंरचना को विधिक रूप से सामान्य वाहक उपयोगिताओं के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
- इससे प्रमुख मालिकों पर यह बाध्यता आती है कि वे प्रतिस्पर्द्धियों को नियंत्रित दरों पर, खुले और गैर-भेदभावपूर्ण ढंग से पहुँच उपलब्ध कराएँ, जिससे ‘गेटकीपर बॉटलनेक्स’ को रोका जा सके।
- बुनियादी अवसंरचना के स्वामित्व को सेवा वितरण से अलग करके, राज्य यह सुनिश्चित करता है कि कोई निजी एकाधिकार भौतिक संपत्तियों पर अपने नियंत्रण का दुरुपयोग करके प्रतिद्वंद्वियों को डिजिटल या सेवा अर्थव्यवस्था से बाहर न कर सके।
- डायनामिक प्राइस कॉलर और एल्गोरिदमिक ऑडिट को लागू करना: आपूर्ति-आघातों के दौरान उपभोक्ता की विवशता के दोहन को रोकने के लिये नियामकों को डायनेमिक प्राइस कॉलर्स लागू करने चाहिये, जो ऐतिहासिक औसतों के आधार पर बढ़ती कीमतों की सीमाएँ निर्धारित करेंगे, ताकि अत्यधिक अस्थिरता को रोका जा सके।
- इसके अलावा, एयरलाइन और दूरसंचार मूल्य निर्धारण इंजनों के लिये अनिवार्य एल्गोरिम ऑडिट, मौन मिलीभगत तंत्रों का पता लगाने तथा उन्हें समाप्त करने के लिये आवश्यक हैं।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि AI-संचालित मूल्य निर्धारण मॉडल दक्षता को अनुकूलित करने के लिये कार्य करते हैं, न कि कार्टेल व्यवहार की नकल करते हुए समन्वित मूल्य वृद्धि के माध्यम से लाभ निकालने के लिये।
- ‘ग्रैंडफादर राइट्स’ को समाप्त कर डायनेमिक परिसंपत्ति-पुनर्विनियोजन: शीर्ष उपयोग-घंटों वाले हवाई अड्डे के स्लॉट जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों पर स्थायी ‘ग्रैंडफादर राइट्स’ को हटाकर प्रदर्शन-आधारित पुनर्आवंटन व्यवस्था लागू की जानी चाहिये।
- नियामकों को ‘उपयोग करो या साझा करो’ वाले प्रावधान लागू करने चाहिये, जिसके तहत प्रमुख स्लॉट का एक निश्चित प्रतिशत समय-समय पर वापस ले लिया जाए तथा स्लॉट को विशेष रूप से नए प्रवेशकों या छोटे प्रतिस्पर्द्धियों को नीलाम किया जाए।
- इससे बाज़ार हिस्सेदारी के स्थिर होने से बचा जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सार्वजनिक संसाधनों का निरंतर उपयोग ऐतिहासिक प्रभुत्व के बजाय प्रतिस्पर्द्धी दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाए।
- संघर्ष-रहित अंतर-संचालनीयता और डेटा पोर्टेबिलिटी को अनिवार्य बनाना: दूरसंचार और फिनटेक में एकाधिकार को बनाए रखने वाले लॉक-इन प्रभाव को नष्ट करने के लिये, राज्य को संघर्ष-रहित अंतर-संचालनीयता और रियल टाइम डेटा पोर्टेबिलिटी को अनिवार्य बनाना होगा।
- यदि कोई उपभोक्ता अपने लेन-देन इतिहास, नंबर या लॉयल्टी लाभों को खोए बिना तुरंत सेवा प्रदाता बदल सकता है, तो स्विचिंग लागत लगभग शून्य हो जाती है।
- इससे मौजूदा कंपनियों को अपने उपयोगकर्त्ता आधार की वफादारी पर निर्भर रहने के बजाय सेवा की गुणवत्ता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये विवश होना पड़ता है, जिससे प्रभावी रूप से प्लेटफॉर्म का व्यवसायीकरण होता है तथा उपयोगकर्त्ता को सशक्त बनाया जाता है।
- राज्य को रणनीतिक बाज़ार संतुलनकर्त्ता के रूप में तैनात करना: व्यापार से पूरी तरह पीछे हटने के बजाय, राज्य को कार्टेलाइजेशन की प्रवृत्ति वाले क्षेत्रों में वंदे भारत ट्रेनों या BSNL जैसी सार्वजनिक उपयोगिताओं को मूल्य निर्धारण कारक के रूप में रणनीतिक रूप से तैनात करना चाहिये।
- उच्च घनत्व वाले मार्गों पर उच्च गुणवत्ता वाले, सब्सिडी प्राप्त सार्वजनिक विकल्प को बनाए रखकर, सरकार तर्कसंगत मूल्य निर्धारण पर एक सीमा निर्धारित करती है, जिसे निजी एकाधिकार बाज़ार हिस्सेदारी खोए बिना पार नहीं कर सकते।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक क्षेत्र स्वयं एकाधिकार के रूप में कार्य नहीं करता, बल्कि निजी लाभ के विरुद्ध एक स्थायी नियंत्रण के रूप में कार्य करता है।
- इनपुट टैक्स तटस्थता के माध्यम से राजकोषीय युक्तिकरण: सरकार को विमानन टरबाइन ईंधन (ATF) और प्राकृतिक गैस जैसे महत्त्वपूर्ण इनपुट को GST व्यवस्था के अंतर्गत लाकर इनवर्टेड ड्यूटी संरचनाओं को समाप्त करना चाहिये।
- वर्तमान में, राज्य स्तर पर लगाए गए उच्च करों के कारण कम पूंजी वाले छोटे प्रतिस्पर्द्धी असमान रूप से पंगु हो जाते हैं, जबकि विशाल पूंजी वाली बड़ी कंपनियाँ इस लागत को वहन कर लेती हैं।
- एक समान, इनपुट-टैक्स-क्रेडिट-सक्षम व्यवस्था एक समान अवसर प्रदान करती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि बाज़ार में बने रहना परिचालन दक्षता द्वारा निर्धारित होता है, न कि नियामक मध्यस्थता और कर भार को सहन करने की क्षमता द्वारा।
निष्कर्ष:
भारत में उभरते द्विपक्षीय बाज़ार न केवल बाज़ार की विफलता का संकेत देते हैं, बल्कि उस विनियामक शिथिलता को भी उजागर करते हैं जिसे समाज अब वहन नहीं कर सकता।
एक ‘Too Big to Fail’ (इतने बड़े कि विफल न हो सकें) जैसी स्थिति से बचने के लिये दण्डात्मक, प्रतिक्रियात्मक कदमों के बजाय संरचनात्मक स्तर पर सक्रिय सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। एक न्यायसंगत बाज़ार स्वतः नहीं मिलता, उसे निर्मित करना पड़ता है। जैसा कि कहावत है, “जब शक्ति का केंद्रीकरण होता है, तो स्वतंत्रता क्षीण हो जाती है— जब तक कि संतुलन पुनर्स्थापित करने के लिये विनियमन हस्तक्षेप न करे।”
|
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ते एकीकरण से भारत में एक व्यवस्थित 'इतना बड़ा कि विफल न हो सके' वाली चुनौती उत्पन्न हो रही है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ इसका आलोचनात्मक विश्लेषण करें। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न 1. इंडिगो के परिचालन संकट को गहन बाज़ार-विफलता का लक्षण क्यों माना जा रहा है?
क्योंकि यह दर्शाता है कि विमानन क्षेत्र में लगभग-एकाधिकार की स्थिति किस प्रकार परिचालन संबंधी लापरवाही को राष्ट्रव्यापी संकट में बदल सकती है, जहाँ यात्रियों के पास कोई व्यवहार्य विकल्प उपलब्ध नहीं बचता है।
प्रश्न 2. भारत के वर्तमान प्रतिस्पर्द्धा विनियमन की मुख्य सीमा क्या है?
भारत में Ex-post मॉडल अर्थात् दुरुपयोग होने के बाद कार्रवाई का मॉडल अपनाया जाता है, जबकि प्रभुत्व को रोकने के लिये सक्रिय पूर्व-नियम (Ex-ante) अपेक्षित हैं।
प्रश्न 3. दूरसंचार और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में दो कंपनियों का एकाधिकार उपभोक्ताओं को किस प्रकार नुकसान पहुँचा रहा है?
यह एकाधिकार प्रतिस्पर्द्धा को घटाता है, समन्वित मूल्य-वृद्धि को संभव बनाता है, तंत्र-व्यापी जोखिम उत्पन्न करता है तथा उपयोगकर्त्ताओं को प्रमुख प्लेटफॉर्मों से बांधकर (लॉक-इन) उपभोक्ता विकल्पों को सीमित करता है।
प्रश्न 4. विशेषज्ञ अब पूर्व-नियमन की मांग क्यों कर रहे हैं?
क्योंकि बाज़ार-प्रधान कंपनियाँ नियामकों की प्रतिक्रिया-क्षमता से कहीं अधिक तेज़ी से बड़ी होती जा रही हैं जिससे दंडात्मक कार्रवाइयाँ प्रभावी नहीं रह जातीं; इसलिये दुरुपयोग को होने से पहले ही रोकने के लिये सक्रिय नियमों की आवश्यकता है।
प्रश्न 5. भारत में बाज़ार-संकेंद्रण को नियंत्रित करने के लिये कौन-से सुधार सहायक हो सकते हैं?
मुख्य उपायों में प्रभुत्वशाली फर्मों के लिये असममित विनियमन, प्रतिस्पर्द्धियों के लिये आवश्यक सुविधाओं को खोलना, स्लॉट-पुनःआवंटन, गतिशील मूल्य-सीमाएँ, अंतर-संचालनीयता जनादेश तथा रणनीतिक सार्वजनिक-क्षेत्र प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. भारतीय विधान के प्रावधानों के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/विशेषाधिकार के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2012)
- उपभोक्ताओं को खाद्य की जाँच करने के लिये नमूने लेने का अधिकार है।
- उपभोक्ता यदि उपभोक्ता मंच में अपनी शिकायत दर्ज करता है, तो उसे इसके लिये कोई फीस नहीं देनी होती।
- उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर, उसका वैधानिक उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज़ कर सकता है।
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न 1. क्या भारतीय सरकारी तंत्र ने 1991 में शुरू हुए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की माँगों के प्रति पर्याप्त रूप से अनुक्रिया की है? इस महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के प्रति अनुक्रियाशील होने के लिये सरकार क्या कर सकती है? (2016)