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विकसित भारत हेतु स्वास्थ्य सेवा कवरेज की पुनर्संरचना

  • 11 Dec 2025
  • 175 min read

यह एडिटोरियल 10/12/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Road map for universal health coverage in India” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। यह लेख वृद्धजन आबादी में वृद्धि, तीव्र शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दबावों के बीच वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की दिशा में भारत के प्रयासों को दर्शाता है। साथ ही इसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज से सार्वभौमिक स्वास्थ्य आश्वासन की ओर बढ़ने के लिये मज़बूत स्वास्थ्य सेवाओं के समन्वय, बहुक्षेत्रीय सहयोग और स्वास्थ्य के अधिकार कानून की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये: यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC) दिवस, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY), आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAM), आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, Ni-Kshay मित्र, PM आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन, गैर-संचारी रोग, आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 

मेन्स के लिये: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में भारत की प्रगति, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में भारत की यात्रा में बाधा डालने वाले महत्त्वपूर्ण अवरोध 

प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 12 दिसंबर को भारत में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC) दिवस मनाया जा रहा है, जो वर्ष 2030 तक UHC और वर्ष 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है। जनांकिकीय परिवर्तन, तीव्र शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन जैसी उभरती चुनौतियों का सामना करते हुए समान स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये देश की स्वास्थ्य प्रणाली को चुस्त, अनुकूलनीय और पूर्वानुमानित होना आवश्यक है। वर्ष 2030 तक 193 करोड़ भारतीयों की आयु 65 वर्ष से अधिक होने तथा उनमें से 40% के शहरी क्षेत्रों में रहने के अनुमान के साथ, स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना पर अत्यधिक दबाव है। आगे की राह प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल के बीच के अंतराल को समाप्त करने की मांग करती है। अंततः सफलता के लिये मज़बूत विधायी आधार पर आधारित बहु-क्षेत्रीय सहयोग आवश्यक है ताकि सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की कल्पना को सार्वभौमिक स्वास्थ्य आश्वासन में रूपांतरित किया जा सके।

भारत ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में किस प्रकार प्रगति की है?

  • PM-JAY के माध्यम से वित्तीय लोकतंत्रीकरण: प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) ने स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता को वित्तीय स्थिति से प्रभावी रूप से अलग कर दिया है, जो विनाशकारी स्वास्थ्य व्यय (CHE) के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा संजाल के रूप में कार्य करता है। 
    • वर्ष 2024 के अंत में आय की परवाह किये बिना वरिष्ठ नागरिकों (70+) को कवरेज प्रदान करके, यह एक गरीब-समर्थक योजना से एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा पात्रता में परिवर्तित हो गया है, जो माध्यमिक एवं तृतीयक देखभाल तक समान अभिगम्यता सुनिश्चित करता है। 
    • जुलाई 2025 तक, 41 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके हैं तथा इस योजना के तहत 1.40 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 9.84 करोड़ से अधिक अस्पताल में भर्ती होने की अनुमति दी जा चुकी है। 
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में परिवर्तन (आयुष्मान आरोग्य मंदिर और टेली-मानस): भारत ने उप-केंद्रों को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (AAM) में परिवर्तित करके, अपनी स्वास्थ्य दृष्टि को रोगकेंद्रित सोच से आरोग्य केंद्रित सोच की ओर मोड़ा है। 
    • ये केंद्र व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (CPHC) प्रदान करके ग्रामीण-शहरी विभाजन को न्यूनतम करते हैं, मातृ देखभाल से आगे बढ़कर कैंसर और मधुमेह जैसी गैर-संक्रामक बीमारियों (NCD) की जाँच की सुविधा समुदाय के घर-घर तक पहुँचाते हैं। 
    • अक्तूबर 2025 तक, भारत ने 1.80 लाख AAM केंद्रों को चालू कर दिया, जो लक्ष्य से कहीं अधिक था। इन केंद्रों ने उच्च रक्तचाप के लिये 38.79 करोड़ से अधिक जाँच की हैं, जो अग्रणी रक्षा पंक्ति के रूप में कार्य कर रहे हैं।
      • नवंबर 2025 तक, 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने 53 टेली-मानस सेल स्थापित किये हैं। साथ ही, राज्यों द्वारा चुनी गई भाषा के आधार पर टेली-मानस सेवाएँ 20 भाषाओं में उपलब्ध हैं। 
  • डिजिटल हेल्थ बैक बोन (ABDM): आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) एकीकृत स्वास्थ्य इंटरफेस (UHI) बनाकर पारिस्थितिकी तंत्र में क्रांति ला रहा है, जिससे रोगी रिकॉर्ड अंतर-संचालनीय एवं पोर्टेबल बन रहे हैं। 
    • यह डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर दृष्टिकोण खंडित डेटा की समस्या को समाप्त करता है, जिससे दीर्घकालिक हेल्थ हिस्ट्री ट्रैकिंग सक्षम होती है तथा दूरस्थ आबादी के लिये निर्बाध टेलीमेडिसिन एक्सेस की सुविधा मिलती है।
    • अगस्त 2025 तक, 79.91 करोड़ ABHA ID (स्वास्थ्य खाते) बनाए जा चुके हैं। ई-संजीवनी ने ABHA और ABDM के एकीकरण के माध्यम से देश भर में डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं तक अभिगम्यता का विस्तार करते हुए 43 करोड़ से अधिक टेलीकंसल्टेशन की सुविधा प्रदान की है और यह विश्व के सबसे बड़े सरकारी स्वामित्व वाले टेलीमेडिसिन नेटवर्क के रूप में कार्य कर रहा है।
  • दवाइयों की वहनीयता (PMBJP): प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) ने दवाओं की उच्च लागत से निपटने के लिये सक्रिय कदम उठाए हैं, जो जेब से होने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा है। 
    • समर्पित आउटलेट्स के नेटवर्क को बढ़ाकर, सरकार ने ब्रांडेड समकक्षों की तुलना में काफी कम कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता को मानकीकृत किया है, जिससे उपचार का पालन सुनिश्चित होता है।
    • जून 2025 तक, सभी ज़िलों में 16,000 से अधिक जनऔषधि केंद्र कार्यरत हैं।
      • इसके अलावा, जन औषधि आउटलेट्स ने पिछले 11 वर्षों में नागरिकों के लिये लगभग 38000 करोड़ रुपये की बचत की है। 
  • रोग उन्मूलन हेतु सक्रिय अभियानों का विस्तार (क्षयरोग मुक्त भारत): मिशन मोड दृष्टिकोण अपनाते हुए, भारत ने रोग उन्मूलन में वैश्विक नेतृत्व का प्रदर्शन किया है, विशेष रूप से राष्ट्रीय TB उन्मूलन कार्यक्रम के साथ। 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता से समर्थित निदान और सामुदायिक सहभागिता (Ni-Kshay मित्र) का लाभ उठाकर, भारत वैश्विक औसत की तुलना में तेज़ी से घटनाओं की दर को कम कर रहा है तथा पोषण संबंधी सहायता के माध्यम से स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को सुनिश्चित कर रहा है। 
    • भारत में TB के मामलों में 21% की गिरावट आई है (वर्ष 2015-2024), जो वैश्विक गिरावट दर से दोगुनी है। उपचार कवरेज बढ़कर 92% हो गया है, जिससे भारत अन्य उच्च-बोझ वाले देशों से आगे निकल गया है। 
  • आपूर्ति पक्ष संवर्धन (चिकित्सा शिक्षा): डॉक्टरों की संख्या और जनसंख्या के बीच ऐतिहासिक असंतुलन को दूर करने के लिये, सरकार ने चिकित्सा शिक्षा में संरचनात्मक सुधार लागू किये हैं, जिनमें नए AIIMS की स्थापना और कॉलेज व्यवस्थाओं का विनियमन शामिल है। 
    • इससे आने वाले दशक में WHO द्वारा अनुशंसित अनुपात को पूरा करने के लिये स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों (डॉक्टरों और नर्सों) की एक सतत आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
    • MBBS सीटों की संख्या वर्ष 2014 से पहले 51,000 से बढ़कर हाल ही में 1.12 लाख से अधिक हो गई है, जो 118% की वृद्धि है। 
      • इसके अतिरिक्त, कम सुविधा वाले ज़िलों में संबद्ध स्वास्थ्य सेवा कार्यबल को मज़बूत करने के लिये हाल ही में 157 नए नर्सिंग कॉलेजों को मंजूरी दी गई है।
  • स्वास्थ्य अवसंरचना समुत्थानशीलता (PM-ABHIM): महामारी के बाद, PM आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (PM-ABHIM) भविष्य में होने वाले प्रकोपों ​​के खिलाफ दीर्घकालिक समुत्थानशीलता बनाने पर केंद्रित है। 
    • ज़िला स्तर पर क्रिटिकल केयर ब्लॉक (CCB) और एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं की स्थापना करके, राज्य गंभीर देखभाल का विकेंद्रीकरण कर रहा है, यह सुनिश्चित करते हुए कि महानगरों की यात्रा किये बिना बेहतर परीक्षण एवं उपचार सुविधाएँ उपलब्ध हों।
    • 64,180 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ, यह मिशन सभी ज़िलों में 730 एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाएँ स्थापित कर रहा है।

भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में कौन-कौन सी महत्त्वपूर्ण बाधाएँ रुकावट डाल रही हैं?

  • शहरी शून्यता और कार्यबल असंतुलन: हालाँकि भारत ने तकनीकी रूप से WHO के अनुरूप 1:811 का डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात प्राप्त कर लिया है, लेकिन यह समग्र संख्या एक राष्ट्रीय असमानता को छिपाती है जहाँ चिकित्सा पेशेवर शहरी महानगरों में अत्यधिक केंद्रित हैं, जिसके कारण ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों से प्रतिभा का पलायन होता है। 
    • इस संरचनात्मक असंतुलन के कारण ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) गंभीर रूप से कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं और उपचार केंद्रों के बजाय केवल रेफरल बिंदुओं के रूप में कार्य कर रहे हैं। 
    • वर्ष 2025 तक, जहाँ गोवा में डॉक्टरों का घनत्व 1:335 है, वहीं बिहार इस मामले में बेहद पिछड़ा हुआ है। हालिया ग्रामीण स्वास्थ्य आँकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) में विशेषज्ञों (सर्जन, बाल रोग विशेषज्ञ) की 80% कमी है, जिसके कारण मरीजों को आधारभूत माध्यमिक देखभाल के लिये 50-100 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है।
  • मिसिंग मिडिल और आउट पेशेंट बर्डन: PM-JAY जैसे मौजूदा बीमा मॉडल माध्यमिक/तृतीयक अस्पताल में भर्ती होने पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, और आउट पेशेंट (OPD) देखभाल को काफी हद तक अनदेखा करते हैं, जो दैनिक चिकित्सा खर्चों का एक बड़ा हिस्सा है। 
    • इससे मिसिंग मिडिल वर्ग अर्थात् आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग, जो गरीबी रेखा से ठीक ऊपर है, PM-JAY योजना के लिये पात्र नहीं है, लेकिन निजी बीमा का खर्च वहन नहीं कर सकता, निदान एवं दवाओं पर गरीबी बढ़ाने वाले खर्च के प्रति सुभेद्य रह जाता है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, भारत का OOPE 39.4% है, जिसमें बाह्य रोगी देखभाल, निदान और दवाएँ प्राथमिक योगदानकर्त्ता के रूप में उभर रही हैं।
      • इन चिकित्सा खर्चों के कारण प्रतिवर्ष लगभग 55-60 मिलियन भारतीय गरीबी में धकेल दिये जाते हैं।
  • दोहरी बीमारी का बोझ: भारत दो मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है: इसने अभी तक संक्रामक रोगों (TB, मलेरिया) पर पूरी तरह से विजय प्राप्त नहीं की है, जबकि साथ ही साथ मधुमेह और कैंसर जैसी जीवनशैली से जुड़ी गैर-संक्रामक बीमारियों (NCD) के विस्फोट का सामना कर रहा है।
    • इस महामारी विज्ञान संबंधी संक्रमण के लिये एक ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकता है जो तीव्र संक्रमणों और महंगी, आजीवन चलने वाली दीर्घकालिक देखभाल दोनों का प्रबंधन करने में सक्षम हो, जिससे उन संसाधनों पर दबाव पड़ेगा, जो मूल रूप से केवल पहले प्रकार के संक्रमणों के लिये बनाए गए थे। 
    • भारत में होने वाली कुल मौतों में से 63% मौतें गैर-संक्रामक रोगों (NCD) के कारण होती हैं। अनुमान है कि वर्ष 2012 से वर्ष 2030 के दौरान इनसे भारत को 3.55 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होगा। 
      • वर्ष 2024 में, भारत को विश्व की कैंसर राजधानी कहा गया, जहाँ कैंसर के मामलों में वैश्विक औसत से अधिक तेज़ी से वृद्धि हुई।
    • इसके अलावा, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या बन गई है, जिसके चलते भारत में प्रत्येक वर्ष प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण लगभग 6 लाख लोगों की जान चली जाती है।
  • स्थिर सार्वजनिक व्यय और राजकोषीय संघवाद: बार-बार नीतिगत प्रतिबद्धताओं (राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017) के बावजूद, भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय GDP के 2.5% की सीमा को पार करने में विफल रहा है और लगातार उससे नीचे बना हुआ है। 
    • इस दीर्घकालिक अपर्याप्त वित्त पोषण के कारण, जिन राज्यों पर स्वास्थ्य के लिये प्राथमिक संवैधानिक जिम्मेदारी है, उन्हें स्थायी, स्वायत्त राज्य स्वास्थ्य क्षमताओं के निर्माण के बजाय मिशन-मोड केंद्रीय अनुदानों (जैसे NHM) पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • सत्र 2023-24 में, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च GDP का लगभग 1.9% था। परिणामस्वरूप, भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर केवल 1.3 अस्पताल बिस्तर हैं।
  • डिजिटल स्वास्थ्य सेवा में डिजिटल डिवाइड: आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) का लक्ष्य एक निर्बाध डिजिटल आधारशिला बनाना है, लेकिन इसे एक कठिन एनालॉग वास्तविकता का सामना करना पड़ता है, जहाँ ग्रामीण भारत में डिजिटल निरक्षरता एवं बुनियादी अवसंरचना की कमियाँ एक अपवर्जन की दीवार खड़ी करती हैं।
    • सार्वभौमिक स्मार्टफोन एक्सेस और कनेक्टिविटी के बिना, ऐप-आधारित स्वास्थ्य सेवा समाधान ग्रामीण समानता के साधन के बजाय शहरी अभिजात वर्ग के लिये एक विशेषाधिकार बनने का जोखिम उठाते हैं। 
    • हालाँकि 79.91 करोड़ से अधिक ABHA ID मौजूद हैं, लेकिन सर्वर के बार-बार डाउन होने और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) स्तरों पर डिजिटल तैयारियों की कमी के कारण टियर-3 शहरों में सक्रिय उपयोग कम बना हुआ है।
  • अनियमित निजी क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में लगभग 70% स्वास्थ्य सेवाएँ निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की जाती हैं, लेकिन यह एक नियामक अव्यवस्थित वातावरण में कार्य करता है, जहाँ क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स एक्ट का प्रवर्तन कमज़ोर है। 
    • इसके चलते कीमतों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव, तर्कहीन उपचार और आपूर्ति-प्रेरित मांग (अनावश्यक सर्जरी/परीक्षण) की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसे एकीकृत भुगतानकर्त्ता एकाधिकार के बिना सरकार नियंत्रित करने के लिये संघर्ष करती है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अनुशंसा है कि किसी भी देश में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत 10% से 15% से अधिक नहीं होना चाहिये। हालाँकि, भारत में निजी क्षेत्र में ये आँकड़े 43.1% (2016) और 49.7% (2021) हैं, जिसका अर्थ है कि निजी क्षेत्र में होने वाली लगभग हर दो डिलीवरी में से एक सी-सेक्शन होती है।
  • शासन और कार्यान्वयन में विखंडन: स्वास्थ्य एक राज्य का विषय है, लेकिन नीति प्रायः केंद्र द्वारा तैयार की जाती है, जिससे कार्यान्वयन में विखंडन होता है जहाँ PM-JAY जैसी योजनाओं को राज्यों द्वारा प्रतिरोध या संशोधन (उदाहरण के लिये, पश्चिम बंगाल) का सामना करना पड़ता है। 
    • एक राष्ट्र, एक स्वास्थ्य प्रणाली दृष्टिकोण की इस कमी के परिणामस्वरूप गैर-स्थानांतरणीय लाभ एवं असंबद्ध निगरानी प्रणालियाँ बनती हैं, जो महामारी के दौरान एक-दूसरे से समन्वय करने में विफल रहती हैं। 
    • कई राज्य अभी भी अलग-अलग सॉफ्टवेयर के साथ अपनी समानांतर स्वास्थ्य योजनाएँ चला रहे हैं, जिससे प्रवासी श्रमिकों के लिये PM-JAY लाभों की पूर्ण सुवाह्यता बाधित हो रही है। 

भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिये कौन-से उपाय अपना सकता है? 

  • अनिवार्य गेटकीपर रेफरल तंत्र: भारत को एक सख्त क्रमबद्ध रेफरल प्रणाली को संस्थागत रूप देना चाहिये, जहाँ प्राथमिक देखभाल केंद्र (आयुष्मान आरोग्य मंदिर) गैर-आपातकालीन देखभाल के लिये अनिवार्य प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करें। 
    • इससे स्थानीय स्तर पर छोटी-मोटी बीमारियों को अलग किया जा सकता है, जिससे तृतीयक अस्पतालों में द्वितीयक मामलों के भार को कम किया जा सकता है तथा विशेषज्ञ संसाधनों का बेहतर आवंटन सुनिश्चित किया जा सकता है। 
    • इस प्राथमिकीकरण को लागू करके, राज्य यह सुनिश्चित करता है कि उच्च लागत वाली अस्पताल अवसंरचना को गंभीर देखभाल के लिये आरक्षित रखा जाए, जिससे सिस्टम की दक्षता में काफी सुधार होता है तथा प्रतीक्षा समय कम हो जाता है।
  • रणनीतिक खरीद और मूल्य-आधारित देखभाल: सरकार को निजी क्षेत्र से स्वास्थ्य सेवाओं के लिये एक निष्क्रिय भुगतानकर्त्ता की भूमिका से हटकर एक सक्रिय रणनीतिक क्रेता की भूमिका निभानी होगी।
    • अनावश्यक परीक्षणों को प्रोत्साहित करने वाले शुल्क-आधारित सेवा मॉडलों के बजाय, राज्य को प्रति व्यक्ति भुगतान या बंडल्ड भुगतान मॉडल अपनाने चाहिये, जो प्रक्रियाओं की मात्रा के बजाय रोगी के ठीक होने के परिणामों के लिये प्रदाताओं को पुरस्कृत करते हैं।
    • यह निजी क्षेत्र के प्रोत्साहनों को सार्वजनिक स्वास्थ्य लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है, लागत वृद्धि को सीमित करता है और साथ ही सार्वजनिक कवरेज के लिये निजी बुनियादी अवसंरचना का लाभ उठाता है।
  • मध्य-स्तरीय स्वास्थ्य प्रदाताओं (MLHP) को कार्यभार सौंपना: MBBS डॉक्टरों की दीर्घकालिक कमी को दूर करने के लिये, प्रणाली को सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (CHO) और नर्स प्रैक्टिशनरों को बुनियादी दवाएँ निर्धारित करने और नियमित दीर्घकालिक बीमारियों का प्रबंधन करने के लिये कानूनी रूप से सशक्त बनाकर कार्य स्थानांतरण को सक्रिय रूप से लागू करना चाहिये।
    • ब्रिज कोर्स के साथ ग्रामीण चिकित्सा चिकित्सकों का एक समर्पित कैडर बनाकर उप-केंद्र स्तर पर नैदानिक ​​देखभाल के विकेंद्रीकरण की अनुमति मिलती है।
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ ग्रामीण इलाकों में सेवा देने के लिये विशेषज्ञों की अनिच्छा के कारण बाधित हुए बिना अंतिम छोर तक पहुँच पाएं।
  • सभी नीतियों में स्वास्थ्य (HiAP) कार्यढाँचा: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) को स्वास्थ्य मंत्रालय से आगे बढ़कर सभी नीतियों में स्वास्थ्य नामक एक विधायी कार्यढाँचे को अपनाने की आवश्यकता है, जो परिवहन, शहरी नियोजन एवं कृषि में बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिये स्वास्थ्य प्रभाव आकलन (HIA) को अनिवार्य बनाता है। 
    • यह अंतर-क्षेत्रीय अभिसरण वायु गुणवत्ता, सड़क सुरक्षा और पोषण जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को उनके मूल कारण पर ही सुनिश्चित करता है।
    • स्वास्थ्य को विकास के पारिस्थितिक परिणाम के रूप में मानकर, राज्य अस्पतालों पर पड़ने वाले नैदानिक ​​बोझ को कम करता है।
  • शहरी स्वास्थ्य मिशन 2.0 (पॉली-क्लिनिक): एक पुनर्जीवित राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से अदृश्य शहरी गरीबों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जो दैनिक वेतन भोगियों के कामकाज़ी अवधि के अनुरूप शाम की शिफ्ट में मोहल्ला क्लीनिक या पॉलीक्लिनिक स्थापित करे। 
    • ग्रामीण क्षेत्रों की स्तरीय संरचना के विपरीत, शहरी स्वास्थ्य सेवाओं के लिये उच्च घनत्व वाले, आसानी से सुलभ बाह्य रोगी इकाइयों की आवश्यकता होती है जिनमें स्वच्छता एवं कीट नियंत्रण को एकीकृत किया गया हो। इससे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली आबादी के लिये स्वास्थ्य सेवाओं की कमी दूर हो जाती है, जो वर्तमान में बड़े सरकारी अस्पतालों में अत्यधिक भीड़भाड़ के कारण झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भर हैं।
  • देखभाल की निरंतरता का एकीकरण: डिजिटल स्वास्थ्य मिशन को साधारण रिकॉर्ड रखने से आगे बढ़कर एक पूर्वानुमान करने वाले भौतिक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में विकसित होना चाहिये जो उच्च जोखिम वाले रोगियों को चिह्नित करने के लिये AI का उपयोग करता है ताकि अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्त्ताओं (ASHA) द्वारा सक्रिय रूप से घर-घर जाकर उनकी देखभाल की जा सके। 
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ पहनने योग्य प्रौद्योगिकी डेटा को एकीकृत करके, यह प्रणाली समय-समय पर उपचारात्मक देखभाल से निरंतर निवारक निगरानी में परिवर्तित हो सकती है। 
    • यह डिजिटल माध्यम वास्तविक काल की निगरानी और दूरस्थ विशेषज्ञ हस्तक्षेपों की सुविधा प्रदान करता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच की भौगोलिक बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
  • एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण और सामुदायिक निगरानी की ओर: भारत को एक ऐसे एक स्वास्थ्य कार्यढाँचे को अपनाना चाहिये जो पशुजन्य रोगों के प्रकोप और रोगाणुरोधी प्रतिरोध को रोकने के लिये मानव, पशु एवं पर्यावरण स्वास्थ्य को एकीकृत करता हो। 
    • जन आरोग्य समितियों और रोगी कल्याण समितियों के माध्यम से सामाजिक अंकेक्षणों द्वारा इसे पूरक बनाया जाना चाहिये, जिससे स्थानीय समुदायों को अस्पताल के प्रदर्शन, सेवा वितरण एवं संसाधन उपयोग की निगरानी करने में सहायता मिल सके। 
    • पारिस्थितिक स्वास्थ्य निगरानी को ज़मीनी स्तर की जवाबदेही के साथ मिलाकर, यह प्रणाली निवारक देखभाल सुनिश्चित करती है, सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में विश्वास बढ़ाती है तथा सामुदायिक स्तर पर सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को सुदृढ़ करती है।

निष्कर्ष: 

भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, जहाँ सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के वादे को सार्वभौमिक स्वास्थ्य आश्वासन में बदलने की आवश्यकता है—जो न केवल स्वास्थ्य सेवाओं तक अभिगम्यता, बल्कि उनकी निरंतरता, गुणवत्ता और वित्तीय सुरक्षा की गारंटी भी दे। आगे की राह साहसिक सुधारों की मांग करती है, जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करना, ग्रामीण-शहरी अंतर को कम करना, निजी क्षेत्र को विनियमित करना तथा सशक्त कानून के माध्यम से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को संस्थागत रूप देना शामिल हैं। यदि इन प्रयासों को निरंतर राजनीतिक प्रतिबद्धता व बहु-क्षेत्रीय सहयोग का समर्थन मिले तो भारत अपने स्वास्थ्य तंत्र को ऐसा रूप दे सकता है जो समतामूलक, सक्षम एवं भावी आवश्यकताओं के अनुरूप हो तथा वर्ष 2047 तक एक स्वस्थ और विकसित भारत की आधारशिला रख सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की दिशा में प्रगति महत्त्वाकांक्षी सुधारों से चिह्नित है, लेकिन संरचनात्मक असमानताओं के कारण इसमें बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं। प्रमुख उपलब्धियों और प्रमुख प्रणालीगत बाधाओं पर चर्चा कीजिये तथा भारत में UHC से सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा की ओर संक्रमण के लिये आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेपों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न: 

प्रश्न 1. सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) क्या है और भारत इस पर क्यों ध्यान केंद्रित कर रहा है?
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी आर्थिक बोझ के आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ जैसे रोकथाम, संवर्धन, उपचार तथा पुनर्वास सेवाएँ प्राप्त हों। भारत इसका लक्ष्य इसलिये निर्धारित कर रहा है ताकि जनसंख्या अधिक स्वस्थ हो, लोगों को स्वास्थ्य व्यय के कारण होने वाली निर्धनता से बचाया जा सके तथा विकसित भारत वर्ष 2047 के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 2. हाल के वर्षों में भारत ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की दिशा में किस प्रकार प्रगति की है?
भारत ने PM-JAY के माध्यम से वित्तीय सुरक्षा का विस्तार किया है, आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ किया है, ABDM के तहत डिजिटल स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया है, PMBJP के माध्यम से सस्ती दवाओं का विस्तार किया है तथा रोग उन्मूलन प्रयासों एवं स्वास्थ्य बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाया है।

प्रश्न 3. भारत को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने से रोकने वाली सबसे बड़ी बाधाएँ क्या हैं?
प्रमुख चुनौतियों में ग्रामीण-शहरी कार्यबल असंतुलन, सीमित OPD कवरेज के कारण जेब से होने वाला उच्च व्यय, गैर-संचारी रोगों और संक्रामक रोगों का दोहरा बोझ, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कम खर्च, डिजिटल डिवाइड के मुद्दे तथा निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का कमज़ोर विनियमन शामिल हैं।

प्रश्न 4. सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के लिये प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल को जोड़ना क्यों आवश्यक है?
चूँकि अधिकांश स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान प्राथमिक स्तर पर ही संभव है, इसलिये इसे सुदृढ़ करने से तृतीयक अस्पतालों में भीड़ कम होती है, कार्यकुशलता बढ़ती है, शीघ्र निदान सुनिश्चित होता है और लागत कम होती है। प्रभावी संसाधन उपयोग और समान अभिगम्यता के लिये एक सुदृढ़ रेफरल प्रणाली अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 5. कौन-से नीतिगत परिवर्तन भारत को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) से सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा की दिशा में अग्रसर होने में सहायता कर सकते हैं?
प्रमुख सुधारों में अनिवार्य रेफरल प्रणाली को लागू करना, मूल्य-आधारित खरीद का अंगीकरण, मध्य-स्तरीय प्रदाताओं को सशक्त बनाना, शहरी स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त करना, समानता के साथ डिजिटल स्वास्थ्य का विस्तार करना तथा सार्वभौमिक अधिकारों के लिये स्वास्थ्य के अधिकार कानून को लागू करना शामिल है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
  3. बाजरा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
  4. मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 1, 2 और 3

(c) केवल 1, 2 और 4

(d) केवल 3 और 4


मेन्स 

प्रश्न 1. एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है। विश्लेषण कीजिये। (2021)

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