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भारत का सतत् वायु गुणवत्ता मार्ग

  • 26 Jul 2025
  • 193 min read

यह एडिटोरियल 24/07/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित NCAP 2.0 must focus on industrial reform to ensure cities have clean airपर आधारित है। यह लेख वायु प्रदूषण में औद्योगिक योगदान और उसे नियंत्रित करने हेतु ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (NCAP) के लिये आवंटित न्यूनतम वित्तीय संसाधनों के बीच के गहन अंतराल को उजागर करता है। यह इस बात पर बल देता है कि स्वच्छ वायु को केवल पर्यावरणीय नहीं बल्कि आर्थिक प्राथमिकता के रूप में भी देखा जाना चाहिये और इसके लिये एक समग्र रणनीति अपनायी जानी आवश्यक है।

प्रिलिम्स के लिये: वायु प्रदूषक, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, PM2.5 सांद्रता, फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन सिस्टम, कार्बन मोनोऑक्साइड, उज्ज्वला योजना, हीटवेव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हैप्पी सीडर 

मेन्स के लिये: भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण में योगदान देने वाले प्रमुख कारक, भारत की वायु प्रदूषण नियंत्रण पहलों की प्रभावशीलता को सीमित करने वाली प्रमुख कमियाँ, भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के प्रमुख निहितार्थ 

भारत का वायु प्रदूषण संकट औद्योगिक उत्सर्जन से गहनता से संबद्ध है, क्योंकि देश के लगभग 37% सबसे प्रदूषित शहर थर्मल पावर प्लांट और विनिर्माण इकाइयों जैसे बड़े उद्योगों से घिरे हैं। इन शहरों में से 20 प्रतिशत में उद्योगों के मुख्य प्रदूषक होने के बावजूद, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के धन का केवल 0.6 प्रतिशत ही औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिये आवंटित किया जाता है, जिससे समस्या का अभिनिर्धारण और संसाधन आवंटन के बीच एक गंभीर विसंगति उजागर होती है। जैसे-जैसे भारत NCAP 2.0 की तैयारी कर रहा है, क्षेत्रीय सुधारों और नियामक उपायों से परे, भारत को एक व्यापक राष्ट्रीय प्रयास के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये जो वायु गुणवत्ता नियंत्रण को पर्यावरणीय अनिवार्यता एवं सतत् विकास के लिये आर्थिक आवश्यकता, दोनों के रूप में प्राथमिकता दे।

भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण में योगदान देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं? 

  • लगातार वाहनों से होने वाला उत्सर्जन: भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण संकट में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन सबसे बड़े योगदानकर्त्ताओं में से एक है। 
    • जैसे-जैसे शहरों का विस्तार होता है और वाहनों की संख्या बढ़ती है, हानिकारक प्रदूषकों, विशेष रूप से PM2.5 एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन अधिक व्यापक होता जाता है। 
      • उदाहरण के लिये, IQAir की वार्षिक वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित राजधानी शहरों में से एक बताया गया है, जहाँ PM2.5 की सांद्रता 108.3 µg/m³ तक पहुँच गई है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है। 
    • सार्वजनिक परिवहन की तुलना में निजी कारों पर बढ़ती निर्भरता, वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि के कारण प्रदूषण का यह उच्च स्तर और भी बढ़ गया है। 
  • विनिर्माण और विद्युत क्षेत्रों में अनियंत्रित वृद्धि: औद्योगिक उत्सर्जन वायु प्रदूषण का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण है, विशेषकर उन राज्यों में जहाँ विनिर्माण केंद्र सघन हैं। 
    • ताप विद्युत संयंत्र, सीमेंट संयंत्र और इस्पात प्रगालक बड़ी मात्रा में कणिका तत्त्व (PM), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) उत्सर्जित करते हैं। 
    • नियमों के बावजूद, औद्योगिक इकाइयों में प्रायः प्रभावी प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों का अभाव होता है, जिससे वायु गुणवत्ता संकट में भारी योगदान होता है। 
    • विश्व बैंक का अनुमान है कि वायु प्रदूषण के कारण उत्पादकता में कमी और अकाल मृत्यु के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना 95 अरब डॉलर का नुकसान होता है। 
  • फसल अवशेष दहन— वायु प्रदूषण में मौसमी वृद्धि: हालाँकि पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तरी राज्यों में हाल ही में फसल अवशेष दहन की मौसमी प्रथा में कमी आई है, फिर भी यह फसल कटाई के मौसम में वायु प्रदूषण को बढ़ा देती है। 
    • इस प्रथा से वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड, PM2.5 और ब्लैक कार्बन की महत्त्वपूर्ण मात्रा उत्सर्जित होती है, जिससे धुंध का निर्माण होता है। 
    • हालाँकि पंजाब में पराली दहन की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाओं में 25% की वृद्धि देखी गई है। 
  • आवासीय बायोमास दहन: भोजन पकाने और गर्म करने के लिये बायोमास का दहन ग्रामीण एवं शहरी घरों में एक आम प्रथा है, जिससे घर के अंदर व बाहर वायु प्रदूषण बढ़ता है। 
    • उज्ज्वला योजना जैसे प्रयासों के बावजूद, जिसने लाखों लोगों को LPG कनेक्शन प्रदान किये हैं, कई घर अभी भी कोयले, लकड़ी और फसल अवशेषों पर निर्भर हैं, जो हवा में हानिकारक कण मुक्त करते हैं। 
    • वाराणसी और कानपुर जैसे शहरों में, आवासीय उत्सर्जन PM2.5 प्रदूषण के 30% से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है। 
    • कई अध्ययनों से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में वायु प्रदूषण शहरी क्षेत्रों जितना ही गंभीर है तथा वायु प्रदूषण से होने वाली लगभग 70% अकाल मौतें गाँवों में होती हैं, जिनमें मुख्य रूप से घरेलू प्रदूषण का योगदान होता है। 
  • मौसम संबंधी और भौगोलिक कारक: मौसम संबंधी स्थितियाँ वायु प्रदूषकों के फैलाव और उनके सघन स्तर को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं। विशेषकर शीतकाल में तापीय उत्क्रमण जैसी घटनाएँ प्रदूषकों को सतह के निकट रोक लेती हैं, जिससे वायुगुणवत्ता में तेज़ी से गिरावट आती है। यह परिस्थिति प्रदूषण-नियंत्रण नीतियों में मौसमी कारकों को समाहित करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। 
    • NASA के उपग्रह-आधारित आँकड़ों से यह भी पता चला है कि स्थानीय तापमान को बढ़ाने में एरोसोल प्रदूषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जो एक जटिल चुनौती को उजागर करता है जहाँ प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास अनजाने में गर्मी के खतरों को बढ़ा सकते हैं, जिससे वायु गुणवत्ता प्रबंधन और भी जटिल हो जाता है। 
    • इस घटना के कारण दिल्ली जैसे शहरों में PM2.5 की सांद्रता बढ़ जाती है, जहाँ प्रायः नवंबर और दिसंबर के दौरान प्रदूषण में वृद्धि होती है। 
      • वर्ष 2024 की घटना के दौरान, दिल्ली में PM2.5 की सांद्रता 104.08 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई, जिससे गंभीर वायु गुणवत्ता संकट उत्पन्न हो गया। 
  • अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट का अनुचित निपटान, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। 
    • प्लास्टिक सहित अपशिष्ट के खुले में दहन से डाइऑक्सिन, फ्यूरॉन और पार्टिकुलेट मैटर जैसे हानिकारक प्रदूषक मुक्त होते हैं। 
    • अध्ययनों से पता चलता है कि शहर के आधार पर, शहरों में उत्पन्न होने वाले नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) का 2% से 24% जला दिया जाता है, जिससे स्थानीय वायु प्रदूषण बढ़ता है। 
    • यह प्रथा शहरी केंद्रों में PM2.5 प्रदूषण के एक बड़े हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है, जिससे वायु गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। 
  • जलवायु परिवर्तन के कारण प्रदूषण की समस्या में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की सुभेद्यता बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर से जटिल रूप से जुड़ी हुई है, जिससे एक प्रतिक्रिया चक्र बनता जा रहा है। 
    • वर्ष 1970 के बाद से भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अपने उच्चतम वैश्विक हिस्से 7.8% पर पहुँच गया है। 
      • अधिक चिंताजनक बात यह है कि हाल के वर्षों में उत्सर्जन वृद्धि की दर में तेज़ी आई है, जो अकेले वर्ष 2020 और 2023 के दौरान लगभग 1% अंक तक बढ़ गई है। 
    • जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान से ज़मीनी स्तर पर ओज़ोन का निर्माण तीव्र हो सकता है और हीटवेव की आवृत्ति एवं गंभीरता बढ़ सकती है। इससे वायु की गुणवत्ता बिगड़ती है और स्वास्थ्य पर बोझ बढ़ता है। 

भारत की वायु प्रदूषण नियंत्रण पहल की प्रभावशीलता को सीमित करने वाली प्रमुख कमियाँ क्या हैं? 

  • पर्यावरणीय नियमों के कड़े प्रवर्तन का अभाव: यद्यपि भारत में उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिये नियम मौजूद हैं, लेकिन सख्त प्रवर्तन और निगरानी के अभाव के कारण वायु गुणवत्ता नियंत्रण अप्रभावी है। 
    • कई उद्योग, विशेष रूप से लघु उद्योग क्षेत्र, प्रदूषण नियंत्रण दिशानिर्देशों का पालन नहीं करते हैं। 
    • पत्थर तोड़ने वाली मशीनों और ईंट भट्टों से निकलने वाली धूल के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के दिशानिर्देशों की प्रायः अनदेखी की जाती है, जिसके कारण ग्रेटर मुंबई जैसे शहरों में कणिकीय पदार्थों का स्तर बढ़ जाता है। 
  • अपर्याप्त निगरानी कवरेज: NCAP के 130 शहरों में से 28 में अभी भी निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों का अभाव है। 
    • निगरानी अवसंरचना वाले शहरों में, रुकावटें और अपूर्ण डेटा कवरेज वायु प्रदूषण के रुझानों का पूरी तरह से आकलन करने तथा नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता को कम करते हैं। 
  • PM2.5 पर ध्यान की कमी और PM10 लक्ष्यों की विफलता: यद्यपि भारत के वायु गुणवत्ता प्रबंधन प्रयासों ने गति पकड़ी है, फिर भी PM10 कणों पर निरंतर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जो PM2.5 से कम हानिकारक हैं। 
    • इसके अलावा, PM10 पर ध्यान केंद्रित करने के बावजूद, निगरानी में रखे गए 97 शहरों में से केवल 41 ही PM10 में 20-30% की कमी के प्रारंभिक NCAP लक्ष्य को प्राप्त कर पाए हैं और कई शहरों में अभी भी PM10 का स्तर राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) से अधिक पाया गया है। 
  • अनौपचारिक और लघु उद्योगों पर अपर्याप्त ध्यान: भारत में वायु प्रदूषण का बड़ा हिस्सा केवल बड़े उद्योगों से ही नहीं, बल्कि ईंट भट्टों, चावल मिलों और पत्थर तोड़ने वाली मशीनों जैसे छोटे, अनौपचारिक क्षेत्रों से भी आता है। 
    • ये उद्योग प्रायः पुरानी तकनीकों का उपयोग करते हैं और इनमें बुनियादी प्रदूषण नियंत्रण तंत्र का अभाव होता है।  
    • औद्योगिक क्षेत्रों से होने वाले कुल उत्सर्जन का लगभग 10-15% MSME के संचालन से उत्सर्जित होता है, लेकिन NCAP जैसी राष्ट्रीय पहलों का ध्यान बड़े स्रोतों पर ही केंद्रित रहता है। 
      • अनौपचारिक क्षेत्र पर ध्यान दिये बिना और छोटे उद्योगों को स्वच्छ तकनीकों, जैसे ईंट भट्टों के लिये ज़िगज़ैग तकनीक या चावल मिलों के लिये बायोमास गैसीफायर, के अंगीकरण के लिये प्रोत्साहित किये बिना, प्रदूषण का स्तर उच्च बना रहेगा। 
  • प्रदूषण निगरानी और प्रबंधन में प्रौद्योगिकी का कम उपयोग: हालाँकि भारत ने वायु प्रदूषण की निगरानी में प्रगति की है, लेकिन कम लागत वाले सेंसर एवं उपग्रह डेटा जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग अभी भी अविकसित है। 
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (IIT-K) द्वारा प्रदूषण निगरानी के लिये कम लागत वाले सेंसर विकसित किये जाने के बावजूद, नीति निर्माण में इन नवाचारों को व्यापक रूप से नहीं अपनाया गया है। 
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में वास्तविक काल निगरानी प्रणालियों के एकीकरण का अभाव है, जो अधिक डेटा-संचालित हस्तक्षेपों को सक्षम बनाता। 
      • इसके अलावा, वाहनों के उत्सर्जन और औद्योगिक प्रदूषण पर वास्तविक समय में नज़र रखने के लिये उपग्रह-आधारित रिमोट सेंसिंग का कम उपयोग प्रदूषण स्रोतों को प्रभावी ढंग से लक्षित करने की क्षमता को सीमित करता है। 
  • अल्पकालिक समाधानों पर अत्यधिक निर्भरता: भारत की पहल प्रायः अल्पकालिक समाधानों पर केंद्रित होती हैं जो वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक संरचनात्मक कारणों का समाधान नहीं करती हैं। 
    • उदाहरण के लिये दिल्ली जैसे शहरों में धूल कम करने के लिये मशीनीकृत स्ट्रीट स्वीपर और एरोसोल सीडिंग का उपयोग लंबे समय में अप्रभावी सिद्ध हुआ है। 
    • हालाँकि ये साधन अस्थायी सुधार प्रदान करते हैं, लेकिन वे वाहनों से होने वाले उत्सर्जन, बायोमास दहन और औद्योगिक प्रदूषण जैसे मूल कारणों का समाधान करने में विफल रहते हैं। 

भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के प्रमुख निहितार्थ क्या हैं? 

  • एक जन स्वास्थ्य संकट के रूप में वायु प्रदूषण: भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण एक गंभीर जन स्वास्थ्य संकट उत्पन्न कर रहा है, जिससे श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों के मामलों में वृद्धि हो रही है। 
    • सूक्ष्म कणिका पदार्थ (PM2.5) विशेष रूप से हानिकारक है, जिससे अस्थमा, स्ट्रोक और हृदय रोग जैसी बीमारियाँ होती हैं। 
    • वर्ष 2021 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण 21 लाख लोगों की जान गई, जिनमें 5 वर्ष से कम उम्र के 16 लाख से अधिक बच्चे शामिल हैं। 
  • आर्थिक नुकसान और उत्पादकता में गिरावट: वायु प्रदूषण की आर्थिक लागत चौंका देने वाली है, जो उत्पादकता, स्वास्थ्य देखभाल लागत और समग्र आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। 
    • वायु प्रदूषण से श्रम उत्पादकता में कमी आती है, जिसका सीधा असर कार्यबल पर पड़ता है। 
    • वर्ष 2019 में, वायु प्रदूषण से 36.8 अरब डॉलर का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया था, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 1.36% है। 
      • एक अध्ययन से पता चलता है कि अगर भारत ने सुरक्षित वायु गुणवत्ता स्तर हासिल कर लिया होता, तो वर्ष 2019 में उसकी GDP में 95 अरब डॉलर की वृद्धि होती, जो खराब वायु गुणवत्ता के कारण खोए गए महत्त्वपूर्ण आर्थिक अवसर को दर्शाता है। 
  • शहरी वायु गुणवत्ता और रहने योग्यता में गिरावट: बढ़ता वायु प्रदूषण शहरी जीवन को और भी कठिन बना रहा है, विशेषकर दिल्ली, कोलकाता और मुंबई जैसे महानगरों में। वायु प्रदूषण दृश्यता को कम करके, धुंध का विरचन करके और बाह्य गतिविधियों को सीमित करके जीवन की गुणवत्ता को कम करता है। 
    • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मूल अधिकार का हिस्सा माना। 
    • ऐसे खतरनाक स्तर शहरी निवासियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करते हैं, जिससे तनाव होता है, शहर में रहने का आकर्षण कम होता है और प्रभावित क्षेत्रों से पलायन होता है। 
  • कमज़ोर आबादी पर असमान प्रभाव: भारत में वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर बच्चों, बुजुर्गों और निम्न-आय वर्ग सहित कमज़ोर आबादी को असमान रूप से प्रभावित करता है। 
    • अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाएँ और बच्चे बायोमास दहन से होने वाले आंतरिक प्रदूषण के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। 
    • घर के अंदर वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में तीव्र श्वसन संक्रमण (ARI) का खतरा बढ़ जाता है। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता के लिये खतरा: बढ़ता वायु प्रदूषण भी पर्यावरणीय क्षरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र और जैवविविधता प्रभावित हो रही है। 
    • सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) जैसे प्रदूषक अम्लीय वर्षा का कारण बनते हैं, जिससे जंगलों, जलीय पारिस्थितिक तंत्र एवं फसलों को नुकसान पहुँचता है। 
    • अम्लीय वर्षा के कारण मृदा से कैल्शियम एवं मैग्नीशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्त्वों का क्षय हो जाता है, जिससे पौधों की सुरक्षा कमज़ोर हो जाती है और वे अनावृष्टि, रोग व कीटों जैसे पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक सुभेद्य हो जाते हैं।

भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचार क्या हैं? 

  • यातायात चौराहों पर WAYU वायु शोधन इकाइयाँ: ये स्थानीयकृत वायु शोधक वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के प्रभावों को कम करने में सहायता करते हैं, जिससे उच्च यातायात वाले क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होता है। 
  • प्रदूषण कम करने के लिये आयनीकरण तकनीक: आयनीकरण प्रक्रियाओं के माध्यम से वायु में प्रदूषकों को बेअसर करने के लिये आयनीकरण तकनीक का परीक्षण किया गया। इस तकनीक में लक्षित क्षेत्रों में परिवेशी वायु प्रदूषण को और कम करने की क्षमता है। 
  • मध्यम/बड़े पैमाने के स्मॉग टावर: स्मॉग टावर, बड़े पैमाने के वायु शोधक, व्यापक क्षेत्र में कणिका पदार्थ और प्रदूषकों को कम करने के लिये तैनात किये गए थे, जिससे घनी प्रदूषित शहरी क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ। 
  • पुराने वाहनों में उत्सर्जन नियंत्रण उपकरणों की रेट्रोफिटिंग: पुराने वाहनों (BS III मानक) में उत्सर्जन नियंत्रण उपकरणों को रेट्रोफिट करने के लिये एक परियोजना शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य पुराने उत्सर्जन मानकों का पालन करने वाले वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करना था। 
  • वायु गुणवत्ता निगरानी के लिये स्वदेशी फोटॉनिक प्रणाली: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने वास्तविक काल में दूरस्थ वायु गुणवत्ता निगरानी, प्रदूषण डेटा की सटीकता बढ़ाने और बेहतर निर्णय लेने में सहायता के लिये एक स्वदेशी फोटॉनिक प्रणाली विकसित की है। 
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) स्वायत्त प्रौद्योगिकी में प्रगति: DST राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर भौतिक प्रणाली मिशन (NM-ICPS) ने EV में स्वायत्त नेविगेशन प्रौद्योगिकी के एकीकरण का समर्थन किया, जिसका उद्देश्य अनुकूलित ड्राइविंग पैटर्न के माध्यम से यातायात की भीड़ को कम करना तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है। 

  • वायु प्रदूषण की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 
    • कम लागत वाली, वास्तविक काल वायु गुणवत्ता निगरानी तकनीकों का विस्तार: भारत को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों, जिनमें औद्योगिक क्षेत्र और परिवहन गलियारे शामिल हैं, में कम लागत वाले, वास्तविक काल वायु गुणवत्ता सेंसरों को व्यापक रूप से अपनाने को प्राथमिकता देनी चाहिये। 
    • उपग्रह डेटा और उन्नत विश्लेषण के साथ मिलकर ये सेंसर प्रदूषण के हॉटस्पॉट की पहचान करने और स्थानीय नीतियों को सूचित करने के लिये निरंतर निगरानी प्रदान करने में सहायता कर सकते हैं। 
    • जब प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुँच जाता है, तो रियल टाइम डेटा का उपयोग यातायात विनियमन या औद्योगिक बंदी जैसे तत्काल उपायों को शुरू करने के लिये किया जा सकता है। 
      • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में उच्च प्रदूषण वाले दिनों में वाहन चलाने को हतोत्साहित करने के लिये वास्तविक काल वायु गुणवत्ता डेटा के आधार पर गतिशील वायु गुणवत्ता-आधारित टोल लागू किया जाना चाहिये। 
  • अपशिष्ट प्रबंधन के लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन: वायु प्रदूषण में अपशिष्ट दहन के बड़े योगदान को नियंत्रित करने के लिये, भारत को एक चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल अपनाना चाहिये जो अपशिष्ट उत्पादन को कम करने, पुनर्चक्रण में सुधार करने और खुले में दहन पर निर्भरता को कम करने पर केंद्रित हो। 
    • घरेलू स्तर पर अपशिष्ट पृथक्करण को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ कुशल अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण से प्लास्टिक, लकड़ी और अन्य हानिकारक सामग्रियों के दहन में भारी कमी आ सकती है। 
    • नगरपालिकाओं को सब्सिडी के माध्यम से खाद बनाने और पुनर्चक्रण पहलों (जैसे: इंदौर मॉडल) को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये अनधिकृत अपशिष्ट दहन पर कठोर दंड लगाया जाना चाहिये। 
  • शहरी और क्षेत्रीय वायु गुणवत्ता कार्य योजनाओं का एकीकरण: भारत को एक एयरशेड-आधारित प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाना चाहिये, जहाँ वायु गुणवत्ता नीतियाँ केवल शहर स्तर पर नहीं बल्कि क्षेत्रीय स्तर भी पर विकसित की जाएँ 
    • इसमें क्षेत्रीय वायु गुणवत्ता कार्य योजनाएँ तैयार करना शामिल होना चाहिये जो कृषि अवशेषों के दहन, औद्योगिक उत्सर्जन और सीमा पार प्रदूषण जैसे क्षेत्राधिकार-पार प्रदूषण स्रोतों को ध्यान में रखें। 
    • शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बायो-फिल्टर और ‘लिविंग वॉल’ या वर्टिकल गार्डन जैसी जैविक वायु शोधन प्रणालियों पर शोध एवं कार्यान्वयन होना चाहिये, जो प्राकृतिक रूप से प्रदूषकों को अवशोषित कर सकें। 
    • प्रदर्शन-आधारित वित्तपोषण पर हाल ही में ज़ोर, जहाँ शहरों को 15% वार्षिक प्रदूषण में कमी जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, भारत सरकार की एक उल्लेखनीय पहल है। 
      • इस दृष्टिकोण को और अधिक व्यापक रूप से अपनाया जाना चाहिये तथा इसे और अधिक सख्ती से लागू किया जाना चाहिये। 
  • स्वच्छ परिवहन अवसंरचना के अंगीकरण में तेज़ी लाना: भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के चार्जिंग अवसंरचना को मज़बूत करके, आकर्षक सब्सिडी प्रदान करके और EV निर्माताओं व उपभोक्ताओं के लिये कर प्रोत्साहन शुरू करके इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की ओर तेज़ी से संक्रमण करना चाहिये। 
    • इसके साथ ही, बिजली या वैकल्पिक ईंधन से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों को बढ़ावा देने से परिवहन क्षेत्र में प्रदूषण कम होगा, जो वायु गुणवत्ता में गिरावट का एक प्रमुख कारण है। 
    • गैर-मोटर चालित परिवहन अवसंरचना (जैसे: समर्पित साइकिल लेन और पैदल यात्री-अनुकूल सड़कें) को एकीकृत करने से निजी वाहनों पर निर्भरता भी कम होगी, जिससे उत्सर्जन में और कमी लाने में सहायता मिलेगी। 
  • औद्योगिक रेट्रोफिट और आधुनिकीकरण नीतियों को सख्ती से लागू करना: भारत को यह सुनिश्चित करने के लिये कठोर नीतियों को लागू करना चाहिये कि उद्योग स्वच्छ तकनीकों और ऊर्जा-कुशल प्रक्रियाओं को अपनाएँ। 
    • पुरानी औद्योगिक इकाइयों में इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर (ESP), फैब्रिक फिल्टर और वेट स्क्रबर जैसे उन्नत प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का अनिवार्य रेट्रोफिटिंग उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी ला सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, उद्योगों को सतत् ईंधन स्रोतों और ऊर्जा-कुशल प्रणालियों के अंगीकरण के लिये कम ब्याज दर वाले ऋण या कर छूट जैसे वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने से निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा। 
  • जीवाश्म ईंधनों के लिये सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: वायु प्रदूषण में दीर्घकालिक कमी लाने के लिये, भारत को जीवाश्म ईंधनों के लिये सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता है तथा सौर, पवन और जैव ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के समर्थन हेतु धन का पुनर्वितरण करने की आवश्यकता है। 
    • नीतियों में घरेलू और औद्योगिक स्तरों पर वितरित सौर ऊर्जा उत्पादन के अंगीकरण के साथ-साथ कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करने के लिये ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को बढ़ावा देने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
    • एक सुदृढ़ कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र और कार्बन-प्रधान उद्योगों पर कर लगाने की नीति, आर्थिक संरचना को स्वच्छ ऊर्जा की ओर मोड़ सकती है। इसका अर्थ है कि यदि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों से अधिक शुल्क लिया जाये और कार्बन उत्सर्जन की स्पष्ट आर्थिक लागत तय की जाये, तो प्रदूषण करना महँगा हो जायेगा। इससे स्वच्छ ऊर्जा स्रोत आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी और निवेशकों के लिये आकर्षक बनेंगे। इस प्रकार, नीति निर्माण के माध्यम बाज़ार को हरित ऊर्जा की ओर प्रवृत्त किया जा सकता है। 
  • हरित शहरी स्थलों का विस्तार और उन्नयन: भारत को शहरी क्षेत्रों में हरित स्थानों के निर्माण और उन्नयन में निवेश करना चाहिये ताकि वे प्राकृतिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकें तथा परिवेशी प्रदूषण के स्तर को कम कर सकें। 
    • शहरी वनों, हरित छतों और ऊर्ध्वाधर उद्यानों का विस्तार PM2.5 कणों व अन्य प्रदूषकों को अवशोषित करने में सहायता कर सकता है। 
    • सरकारी नीतियों को शहर के डिज़ाइन में हरित योजना को शामिल करने तथा सार्वजनिक पार्कों और हरित पट्टियों के विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
  • तकनीकी सहायता से फसल अवशेष दहन पर सख्त नियमन: फसल अवशेष जलाने की व्यापक प्रथा पर अंकुश लगाने के लिये, भारत को आधुनिक कृषि उपकरणों जैसे पराली प्रबंधन मशीनों (जैसे: हैप्पी सीडर) और बायोमास गैसीफायरों के लिये लक्षित सब्सिडी प्रदान करनी चाहिये, जो फसल अवशेषों का दहन किये बिना कुशलतापूर्वक प्रबंधन करने में किसानों की सहायता करते हैं। 
    • साथ ही, ग्रामीण समुदायों, विशेष रूप से महिला स्वयं सहायता समूहों को कृषि अपशिष्ट से बायोचार निर्माण में सक्षम बनाकर, स्वच्छ ईंधन विकल्पों को बढ़ावा दिया जा सकता है तथा कार्बन को अलग करके मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। 
  • जन जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता पहलों को सुदृढ़ बनाना: प्रभावी प्रदूषण नियंत्रण के लिये सक्रिय जन भागीदारी और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की संस्कृति की आवश्यकता होती है। 
    • भारत को वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य जोखिमों और उत्सर्जन को कम करने में व्यक्तियों की भूमिका (विशेष रूप से आवासीय क्षेत्र में) पर केंद्रित जन जागरूकता अभियानों का विस्तार करना चाहिये। 
    • भोजन पकाने के लिये स्वच्छ ऊर्जा आधारित ईंधन, हरित परिवहन विकल्पों और अपशिष्ट में कमी को बढ़ावा देने के लिये समुदाय-संचालित पहलों को पुरस्कार या मान्यता कार्यक्रमों के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत के वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिये, देश को एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें स्वच्छ तकनीकें, सख्त प्रवर्तन और जन जागरूकता शामिल हो, जो SDG3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली), SDG11 (सतत् शहर एवं संतुलित समुदाय) एवं SDG13 (जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई) के सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप हो। तीन ‘P’Profit (लाभ), Planet (पृथ्वी) और People (लोग) के बीच संतुलन को भारत की वायु गुणवत्ता प्रबंधन रणनीतियों का मार्गदर्शन करना चाहिये ताकि आर्थिक विकास, पर्यावरणीय संधारणीयता एवं सभी के लिये बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित हो सके। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों पर चर्चा कीजिये और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। वायु गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार के लिये अतिरिक्त उपायों का सुझाव दीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. हमारे देश के शहरों में वायु गुणता सूचकांक (Air Quality Index) का परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? 

  1. कार्बन डाइऑक्साइड 
  2. कार्बन मोनोक्साइड 
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड 
  4. सल्फर डाइऑक्साइड 
  5. मेथैन 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1, 2 और 3 

(b) केवल 2, 3 और 4 

(c) केवल 1, 4 और 5 

(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर: (b)

मेन्स 

प्रश्न 1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (AQG) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) 

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