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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र

  • 28 Jul 2025
  • 142 min read

यह एडिटोरियल 26/07/2025 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “Transforming a Nation of Job Seekers,” लेख पर आधारित है। यह लेख भारत के कौशल विकास प्रयासों को जन उद्यमिता को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूरक बनाने का एक सशक्त तर्क प्रस्तुत करता है। यह राष्ट्रीय कौशल नीति 2025 के मसौदे के दृष्टिकोण के अनुरूप है और विकसित भारत के लक्ष्य को सही मायने में साकार करने का तर्क प्रदान करती है।

प्रिलिम्स के लिये:

स्टार्टअप इंडिया पहल, स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS), अटल इनोवेशन मिशन (AIM), स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स (FFS) योजना

मेन्स के लिये:

भारत में उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति, उद्यमिता से संबंधित चुनौतियाँ और संबंधित सुधार

भारत की लगभग 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है और इसका जनसांख्यिकीय लाभांश आर्थिक विकास के लिये एक सशक्त अवसर प्रस्तुत करता है। लेकिन इस क्षमता का सही दोहन करने के लिये भारत को रोज़गार सृजन से आगे बढ़कर जन उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। राष्ट्रीय कौशल नीति 2025 का मसौदा बड़े पैमाने पर कौशल विकास के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करता है, लेकिन स्थानीय उद्यमों को सक्षम बनाने के पूरक प्रयासों के बिना, जनसांख्यिकीय लाभ का दोहन नहीं हो पाएगा।

भारत के उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • स्टार्टअप आधार का तीव्र विस्तार: भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम अब विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप है, जिसमें दिसंबर 2024 तक 1.57 लाख से अधिक स्टार्टअप्स को औद्योगिक और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा मान्यता दी जा चुकी है, जबकि वर्ष 2016 में यह संख्या मात्र 502 थी।
  • विकास के केंद्र के रूप में द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों का उभार: जहाँ बेंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली-NCR जैसे बड़े शहर भारत के उद्यमिता परिवर्तन में अग्रणी रहे हैं, वहीं अब छोटे शहर भी इस रफ्तार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। वर्तमान में 51% से अधिक स्टार्टअप्स द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों से उभर रहे हैं।
    • स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से सरकार ने इस विकास को बढ़ावा देने और उद्यमियों की अगली पीढ़ी को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • उद्यमिता की गति को बढ़ा रहा है फिनटेक: भारत का फिनटेक क्षेत्र देश के उद्यमिता इकोसिस्टम में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वैश्विक फिनटेक अपनाने में भारत दूसरे स्थान पर है, जहाँ लगभग 87% उपयोग दर्ज किया गया है। डिजिटल पेमेंट, ऋण सुविधा और इंश्योरटेक में तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
    • भारत का फिनटेक क्षेत्र वर्ष 2029 तक $420 बिलियन के मूल्यांकन तक पहुँचने की संभावना है, जिसकी वार्षिक संयुक्त वृद्धि दर (CAGR) लगभग 31% अनुमानित है।
  • AI-आधारित नवाचार की लहर: भारत में उद्यमिता अब तेजी से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा संचालित हो रही है। वर्ष 2025 के मध्य तक 70% से अधिक स्टार्टअप्स अपने कार्यों में AI को शामिल कर रहे हैं, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा, एजटेक और रिटेल क्षेत्रों में।
  • BCG-NASSCOM रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत का AI बाज़ार 25-35% CAGR की दर से बढ़ने की संभावना है, जो नवाचार और रोज़गार सृजन की संभावनाओं को सुदृढ़ करता है।
    •  जहाँ AI सामान्य कार्यों को स्वचालित करता है, वहीं यह डेटा साइंस, मशीन लर्निंग और AI-आधारित एप्लिकेशन के क्षेत्र में नई नौकरियाँ और अवसर भी उत्पन्न कर रहा है।
  • नीति-प्रेरित उद्यमिता सुधार: भारत में उद्यमिता का विकास अब केवल कुछ राज्यों तक सीमित नहीं रहा है। उत्तर प्रदेश, असम और गुजरात जैसे राज्य विशेष स्टार्टअप एवं नवाचार नीतियाँ अपना रहे हैं, जिनमें डेडिकेटेड वेंचर फंड, इन्क्यूबेशन नेटवर्क और सिंगल विंडो क्लीयरेंस जैसी सुविधाएँ शामिल हैं।
    • उदाहरण के लिये, दिल्ली की ड्राफ्ट इंडस्ट्रियल पॉलिसी (2025–35) में ₹400 करोड़ का स्टार्टअप वेंचर कैपिटल फंड और इंडस्ट्री-एकेडेमिया टेक पार्क्स की व्यवस्था शामिल है। इस तरह के राज्य स्तरीय इकोसिस्टम नवाचार को स्थानीय बना रहे हैं तथा “स्टार्टअप-रेडी गवर्नेंस” की दिशा में अग्रसर हैं।
  • तकनीक से परे बढ़ती उद्यमिता: कृषि-उद्यमी और कारीगरों का उभार: भारत की उद्यमशील भावना अब केवल तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं है; इसमें कृषि-उद्यमी (Agripreneurs), कारीगर, और स्वयं सहायता समूह (SHGs) भी शामिल हो रहे हैं। DeHaat, KisanKonnect, और Loop जैसे प्लेटफॉर्म छोटे किसानों के लिये एग्री-सप्लाई चेन का डिजिटलीकरण कर रहे हैं।
  • एकल उद्यमिता और क्रिएटर इकोनॉमी का विस्तार: भारत की गिग और क्रिएटर इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही है, जहाँ लोग YouTube और Instagram जैसे प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से सामग्री, विशेषज्ञता और सेवाओं का व्यवसायीकरण कर रहे हैं।
    • वर्ष 2025 तक भारत में 20 से 25 लाख सक्रिय डिजिटल क्रिएटर्स हैं, जिनमें से कई पारंपरिक टीमों या वेंचर फंडिंग के बिना कार्य कर रहे हैं।
    • फिटनेस कोच, क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाने वाले शिक्षक, और AI आधारित कंटेंट डिज़ाइनर जैसे व्यक्तिगत उद्यमियों की नई पीढ़ी “व्यवसाय” की परिभाषा को फिर से गढ़ रही है।

भारत के उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में प्रमुख बाधाएं क्या हैं?

  • पर्याप्त मात्रा में रोज़गार सृजन नहीं होना: भारत में रोज़गार चाहने वालों की संख्या उपलब्ध औपचारिक रोज़गार अवसरों से कहीं अधिक है।
    • यदि रोज़गार सृजन के साथ-साथ उद्यमिता को बढ़ावा नहीं दिया गया, तो भारत की विशाल युवा आबादी लाभ के बजाय एक भार बन सकती है।
  • ड्राफ्ट नेशनल स्किल पॉलिसी 2025 के अनुसार, भारत में 11 करोड़ छात्र, 22 करोड़ युवा जो न तो रोज़गार में हैं, न शिक्षा में, और न ही किसी प्रशिक्षण में (NEETs) और 2 करोड़ बेरोज़गार व्यक्ति रोज़गार की तलाश में हैं या आने वाले समय में इसकी तलाश करेंगे, यह भारत के रोज़गार बाज़ार की चुनौती की व्यापकता को दर्शाता है।
  • McKinsey रिपोर्ट (2020) के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक 9 करोड़ गैर-कृषि क्षेत्रीय नौकरियाँ सृजित करनी होंगी ताकि वर्तमान जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों के अनुसार 6 करोड़ नए श्रमिकों को समाहित किया जा सके।
  • पूंजी तक असमान पहुँच: महत्वाकांक्षी उद्यमियों का एक बड़ा वर्ग, विशेष रूप से महिलाएँ, विकलांग लोग और हाशिए पर रहने वाले पृष्ठभूमि के लोग, संपार्श्विक, डिजिटल पहुँच या औपचारिक क्रेडिट इतिहास की कमी के कारण ऋण या निवेश तक पहुँचने में कठिनाई महसूस करते हैं।
    • नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2021–22 में महिलाओं द्वारा धारित मुद्रा खातों में लगभग 79% खाते 'शिशु' श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, जबकि केवल 10–11% 'किशोर' और मात्र 4% 'तरुण' श्रेणी में थे। जो यह दर्शाता है कि महिलाओं को बड़े ऋणों तक पहुँच बहुत सीमित है।
    • जुलाई 2024 तक, स्टैंड अप इंडिया योजना के तहत देशभर में अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) और महिला उद्यमियों को 2.35 लाख से अधिक ऋण प्रदान किये जा चुके हैं। फिर भी, कई उधारकर्त्ताओं को आज भी जमानत की कमी या बैंकिंग प्रणाली में मौजूद पूर्वग्रहों के कारण असमान और असंगत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • अपर्याप्त अवसंरचना और डिजिटल डिवाइड: राष्ट्रीय सैंपल सर्वे कार्यालय (NSSO) के वर्षों 2024 के आँकड़ों के अनुसार, ग्रामीण भारत में केवल 24% घरों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आँकड़ा 66% है, जो डिजिटल पहुँच में भारी असमानता को दर्शाता है।
    • हालाँकि UPI का प्रसार, जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी,और डिजिटल साक्षरता अभियान (DISHA) जैसे प्रयासों के बावजूद, पहली बार उद्यम शुरू करने वालों, विशेष रूप से महिलाओं और हाशिये पर रहने वाले समुदायों को अभी भी औपचारिक ऋण, डिजिटल उपकरणों और बाज़ार से जुड़ाव में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      जिसका कारण जागरूकता की कमी, प्रामाणिक दस्तावेज़ों का अभाव या कमज़ोर कनेक्टिविटी है।
  • उद्यमिता समर्थन प्रणालियों की सीमित पहुँच: जहाँ शहरी स्टार्टअप्स को अवसंरचना, मार्गदर्शन और फंडिंग की बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं, वहीं ग्रामीण और छोटे शहरों के उद्यमियों को अक्सर आवश्यक नेटवर्क, जागरूकता तथा इकोसिस्टम सपोर्ट की कमी झेलनी पड़ती है।
    • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) 2024 के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में भारत में 1.2 लाख से अधिक स्टार्टअप्स पंजीकृत हुए हैं, जिससे भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है। 
      • फिर भी, इस विकास की एकाग्रता के कारण कई ग्रामीण ज़िलों को अब भी इन्क्यूबेशन, मार्गदर्शन और पूंजी तक अर्थपूर्ण पहुँच नहीं मिल पाई है।
  • महिलाओं की निम्न श्रम भागीदारी: हालाँकि 2023–24 में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) बढ़कर 31.7% हो गई है, फिर भी केवल 15.9% कामकाजी महिलाएँ ही वेतनभोगी नौकरियों में हैं। बाकी अधिकांश महिलाएँ निम्न उत्पादकता वाले या स्व-नियोजित कार्यों में लगी हुई हैं।
    • महिलाओं के लिये लक्षित कौशल और उद्यमिता समर्थन के बिना, लैंगिक अंतर बना रहेगा।
    • सीमित रोज़गार अवसरों के अलावा, महिला उद्यमियों को ऐसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है जैसे 'ग्लास सीलिंग', जो उन्हें ऊँचे पदों तक पहुँचने से रोकती है तथा 'ग्लास क्लिफ', जहाँ उन्हें ऐसे नेतृत्व वाले पद दिये जाते हैं, जो पहले से ही संकट में होते हैं, जिससे विफलता का खतरा अधिक होता है।
  • कमज़ोर नवाचार शृंखला और पेटेंट व्यावसायीकरण अंतराल: वैश्विक स्तर पर पेटेंट फाइलिंग में भारत की स्थिति मज़बूत है, लेकिन इनमें से कई पेटेंट अप्रयुक्त ही रह जाते हैं। इसका मुख्य कारण है उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के बीच कमज़ोर संपर्क और कमज़ोर व्यावसायीकरण अवसंरचना, जिसके चलते नवाचार बाज़ार तक नहीं पहुँच पाते है।
    • यह स्थिति उन संभावित उद्यमियों को हतोत्साहित करती है जिनके पास इन्क्यूबेटर, कानूनी सहायता तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसी सुविधाओं की पहुँच नहीं होती, जो नवाचारों को व्यवसाय में बदलने के लिये आवश्यक हैं।
    • हालाँकि भारत में पेटेंट में 24.6% की वृद्धि देखी गई है, लेकिन वास्तव में "कार्यरत" घोषित पेटेंट की संख्या 2019–20 में 16,181 से गिरकर 2022–23 में केवल 560 रह गई, जो व्यावसायीकरण की गंभीर कमी को दर्शाती है।
      • आर्थिक सर्वेक्षण 2024–25 के अनुसार, 2014–15 के बाद से पेटेंट स्वीकृति में 17 गुना वृद्धि और वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) 2024 में भारत की 39वीं रैंकिंग के बावजूद, अधिकांश पेटेंट अप्रयुक्त ही रह जाते हैं।
      • इसका मुख्य कारण है उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के बीच कमजोर साझेदारी और तकनीकी हस्तांतरण अवसंरचना की कमी, जिसके चलते नवाचारों का व्यावसायीकरण नहीं हो पाता।
  • मौजूदा उद्यमिता पहलों का शिथिल क्रियान्वयन: स्किल इंडिया मिशन और अटल नवाचार मिशन (AIM) जैसी पहलों के बावजूद, इनकी प्रभावशीलता असमान क्रियान्वयन और ज़िला-स्तरीय समन्वित संस्थागत ढाँचे की कमी के कारण सीमित रही है।
    •  ग्रामीण और आकांक्षी ज़िलों में इन योजनाओं की सीमित पहुँच के कारण, ये व्यापकता, विस्तार क्षमता और समावेशिता सुनिश्चित करने में विफल रही हैं।
    • हालाँकि स्किल इंडिया के तहत प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के अंतर्गत 1.37 करोड़ प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण दिया गया है, लेकिन इनमें से केवल 18% (लगभग 24 लाख) लोगों को ही रोज़गार में सफलतापूर्वक स्थान मिल पाया है, जो कौशल प्रशिक्षण और रोज़गार परिणामों के बीच भारी अंतर को दर्शाता है।
  • सुरक्षित नौकरियों के प्रति सामाजिक झुकाव: भारत में पारंपरिक रूप से लोगों की आकांक्षा अब भी मुख्य रूप से सरकारी या वेतनभोगी नौकरियों को सुरक्षित करने पर केंद्रित है।
    • उद्यमिता को अब तक एक आकर्षक और सम्मानजनक करियर विकल्प के रूप में सांस्कृतिक रूप से स्वीकार नहीं (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) किया गया है।
    • अधिकांश युवाओं और उनके परिवारों की आज भी प्राथमिकता स्थिर सरकारी नौकरी या नियमित वेतन वाली नौकरी होती है। यह नीतिगत प्रोत्साहनों के बावजूद, सांस्कृतिक हिचकिचाहट के कारण उद्यमिता को अपनाने के इच्छुक लोगों की संख्या सीमित रह जाती है।

भारत भर में एक मज़बूत उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?

  • राष्ट्रीय मिशन के माध्यम से उद्यमिता का संस्थागत विकास: रोज़गार सृजन को व्यवस्थित रूप से प्रोत्साहित करने और स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा देने के लिये, राष्ट्रीय उद्यमिता मिशन की स्थापना की जा सकती है। यह मिशन स्किल इंडिया और अटल इनोवेशन मिशन जैसी पहलों के लिये एक छत्र मिशन के रूप में कार्य करेगा।
    • इस मिशन की प्रत्येक ज़िले में सक्रिय उपस्थिति होनी चाहिये तथा इसे आकांक्षी ज़िला से जोड़ा जाना चाहिये।
    • उदाहरण के तौर पर, ग्लोबल एलायंस फॉर मास एंटरप्रेन्योरशिप (GAME) नीति आयोग के साथ साझेदारी में नागपुर, विशाखापत्तनम और उत्तर प्रदेश के चुनिंदा ज़िलों में सक्रिय उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र की पायलट परियोजनाएँ चला रहा है।
  • ‘स्टार्टअप इंडिया’ से ‘भारत के लिये उद्यमिता’ की ओर ध्यान केंद्रित करना: भारत की उद्यमशीलता वृद्धि को अब छोटे शहरों, दूरस्थ ज़िलों और गाँवों से उत्पन्न होना चाहिये।
    • इन क्षेत्रों को डिजिटल अवसंरचना, वित्तीय सेवाओं तथा ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) तथा यूपीआई (UPI) जैसे प्लेटफार्मों में समावेशन के रूप में लक्षित समर्थन की आवश्यकता है।
      • इसका उद्देश्य है कि भीड़भाड़ वाले शहरों की ओर पलायन को कम किया जाए और सशक्त, आत्मनिर्भर स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण किया जाए।
    • भारत के "शार्क टैंक" मॉडल को "शार्क रूट्स" पहल के रूप में विस्तारित किया जा सकता है, जिससे ग्रामीण और ज़मीनी स्तर के नवाचारों को उजागर किया जा सके।
      • उद्यमशीलता की कहानी कहने और वित्तपोषण प्लेटफार्मों को मेट्रो शहरों से परे विस्तारित करके, यह अप्रयुक्त प्रतिभा को सामने ला सकता है, समावेशी विकास को बढ़ावा दे सकता है तथा वास्तव में नीचे से ऊपर की ओर स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दे सकता है।
    • भारत इस संदर्भ में वैश्विक उदाहरणों से भी प्रेरणा ले सकता है, जैसे: इंडोनेशिया की देसा ब्रिलियन  पहल, जो गाँव स्तर पर उद्यमिता को पोषित करने पर केंद्रित है। चिली का स्टार्ट-अप चिली  कार्यक्रम, जो शहरी तकनीकी केंद्रों से परे क्षेत्रीय और सामाजिक उद्यमिता को समर्थन प्रदान करता है।
  • लक्षित कौशल विकास और सहायता के माध्यम से वंचित समूहों को सक्षम बनाना: सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के निचले स्तर पर मौजूद व्यक्तियों, जैसे कि दिव्यांगजन के लिये विशेष प्रावधान आवश्यक हैं।
    • उनके प्रशिक्षण को केवल व्यावसायिक कौशल तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिये, बल्कि उसमें वित्तीय साक्षरता, मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ तथा बाज़ार व्यवहार की समझ भी शामिल होनी चाहिये।
    • विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में एक समर्पित "रिमोट बडी या मेंटर प्रणाली" की आवश्यकता है।
      •  AI-सक्षम कौशल विकास प्लेटफॉर्म, BHASHINI जैसे टूल्स के साथ एकीकृत होकर, बहुभाषी, सुलभ प्रशिक्षण सामग्री और व्यक्तिगत मार्गदर्शन को बड़े पैमाने पर उपलब्ध कराने के लिये एक महत्त्वपूर्ण सेतु की भूमिका निभा सकते हैं।
  • लैंगिक-केंद्रित कौशल विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देना: महिला सम्मान बचत पत्र, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और स्किल इंडिया मिशन जैसी योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिये, जिसमें महिलाओं के लिये विशेष मॉड्यूल शामिल हों, जैसे डिजिटल साक्षरता, विपणन (मार्केटिंग) और उद्यम प्रबंधन
  • इससे महिलाओं को सशक्त उद्यमी बनने के लिये आवश्यक कौशल, ज्ञान और आत्मविश्वास प्राप्त होगा।
    • महिलाओं के लिये स्टार्टअप इंडिया और महिला उद्यमिता मंच (WEP) को सशक्त बनाना: प्रारंभिक चरण की महिला-नेतृत्व वाली पहलों को समर्थन देने हेतु, स्टार्टअप इंडिया फॉर वीमेन और महिला उद्यमिता मंच (WEP) को और अधिक सुदृढ़ किया जाना चाहिये। इसमें सीड फंडिंग, मेंटोरिंग और नेटवर्किंग जैसी सुविधाएँ शामिल होनी चाहिये।
    • किरण मजूमदार-शॉ (बायोकॉन) और फाल्गुनी नायर (नायका) जैसी उद्यमियों को प्रेरणास्रोत के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
      • इनकी कहानियां महिलाओं को प्रेरित कर सकती हैं और उद्यमिता को बढ़ावा दे सकती हैं। संवेदित और समन्वित प्रयासों के माध्यम से इस प्रभाव को और अधिक व्यापक बनाया जा सकता है।
  • उच्च शिक्षा में अनिवार्य उद्यमिता पाठ्यक्रम: उद्यमशील मानसिकता को व्यवस्थित रूप से विकसित करने के लिये, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में संरचित उद्यमिता पाठ्यक्रम को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिये।
    • औपचारिक शिक्षा से आगे, जनजागरूकता अभियानों के माध्यम से उद्यमिता को एक सम्मानजनक और व्यवहारिक करियर विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिये, विशेषकर गैर-मेट्रो क्षेत्रों में, जहाँ अब भी नौकरी और सरकारी सेवा को प्राथमिकता दी जाती है।
      •  इसमें विचार की वैधता (Idea Validation), वित्तीय साक्षरता, और डिजिटल उद्यम प्रबंधन जैसे व्यावहारिक मॉड्यूल शामिल होने चाहिये।
  • जागृति यात्रा (15 दिन की राष्ट्रीय ट्रेन यात्रा जो नए और मौजूदा उद्यमियों के लिये होती है) जैसी पहलों को सरकार द्वारा निम्न संसाधनों वाले उद्यमियों के लिये वैयक्तिकृत किया जा सकता है, जिससे समावेशिता सुनिश्चित हो सके।
  • निकास और पुनः प्रवेश संबंधी सुधार: एक जोखिम-सहिष्णु उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये भारत को चाहिये कि वह विफल स्टार्टअप्स हेतु निकास प्रक्रियाओं को सरल बनाए तथा उद्यमियों को बिना किसी बाधा के पुनः प्रवेश की अनुमति दे।
    • इसके लिये निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:
      • दिवालियापन कानूनों में संशोधन,
      • तेज़ विवाद समाधान तंत्र,
      • तथा व्यवसाय विफलता से जुड़े सामाजिक भेदभाव को हटाना।

इन उपायों से अधिक लोग दीर्घकालिक दंडात्मक परिणामों के भय के बिना नवाचार करने को प्रोत्साहित होंगे तथा भारत में एक सशक्त उद्यमिता संस्कृति विकसित हो सकेगी।

  • स्टार्टअप्स के लिये खरीद संबंधी सुधार: सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक खरीद का एक निर्धारित प्रतिशत पंजीकृत स्टार्टअप्स से किये जाने को  यह अनिवार्य कर सकती है।
    • ऐसी अधिमान्य खरीद नीतियाँ उद्यमशीलता की भावना को सशक्त बनाएंगी, विश्वसनीय बाज़ार पहुँच प्रदान करेंगी तथा प्रारंभिक चरण के उद्यमों, विशेष रूप से महिलाओं, युवाओं और हाशिये के समूहों द्वारा संचालित उद्यमों में आत्मविश्वास को बढ़ावा देंगी।

निष्कर्ष:

विकसित भारत के विज़न को वास्तव में साकार करने के लिये, भारत को केवल कौशल विकास और रोज़गार सृजन तक सीमित न रहकर, जनसामान्य में उद्यमिता की संस्कृति को विकसित करना होगा। पिरामिड के निचले स्तर पर मौजूद युवाओं को सशक्त बनाकर और स्टार्टअप इंडिया से ‘भारत के लिये उद्यमिता’ की ओर ध्यान केंद्रित करके, देश अपनी जनसांख्यिकीय लाभांश को समावेशी और समुत्थानशील आर्थिक विकास में परिवर्तित कर सकता है। अंततः ‘उद्यमिता जन आंदोलन’ को गति देना ही भारत के विकास गाथा का अगला कदम है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्र. भारत जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसामान्य उद्यमिता के माध्यम से समावेशी विकास में कैसे रूपांतरित कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? (2016)

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