रैपिड फायर
ताप विद्युत संयंत्रों के लिये फ्लू गैस डीसल्फराइज़ेशन (FGD) सिस्टम पर छूट
- 16 Jul 2025
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स्रोत: TH
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत के 78% थर्मल पावर प्लांटों को फ्लू गैस डीसल्फराइज़ेशन (FGD) सिस्टम लगाने से छूट प्रदान की है, जिससे वायु प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- FGD की भूमिका: फ्लू गैस डीसल्फराइज़ेशन (FGD) सिस्टम का उपयोग कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन को कम करने के लिये किया जाता है। FGD सिस्टम में आमतौर पर चूना पत्थर (CaCO₃), चूना (CaO) या अमोनिया (NH₃) का प्रयोग फ्लू गैस में मौजूद SO₂ को निष्क्रिय करने के लिये किया जाता है।
- नीतिगत बदलाव: वर्ष 2015 में यह अधिसूचित किया गया था कि सभी ताप विद्युत संयंत्रों को SO₂ उत्सर्जन कम करने के लिये वर्ष 2017 तक FGD प्रणालियाँ स्थापित करनी होंगी। हालाँकि, केवल 8% संयंत्रों ने ही इसका पालन किया है।
- नई अधिसूचना के अनुसार, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 10 किलोमीटर के भीतर स्थित केवल 11% इकाइयों (श्रेणी A) को FGD स्थापित करना अनिवार्य है।
- विशेषज्ञ समिति की समीक्षा के आधार पर, गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या गैर-प्राप्ति शहरों के निकट 11% (श्रेणी B) में FGD स्थापित करने की आवश्यकता हो सकती है।
- नई अधिसूचना के अनुसार, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 10 किलोमीटर के भीतर स्थित केवल 11% इकाइयों (श्रेणी A) को FGD स्थापित करना अनिवार्य है।
- छूट के पीछे मुख्य तर्क: प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में एक पैनल ने कहा कि भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा कम है और वातावरण में मौजूद SO₂ का स्तर पहले से ही स्वीकृत सीमा (10–20 µg/m³ बनाम 80 µg/m³) से नीचे है।
- इसमें यह भी पाया गया कि FGD इकाइयों वाले या उनके बिना वाले क्षेत्रों के बीच वायु गुणवत्ता में कोई महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं है।
- उच्च स्थापना लागत, सीमित आपूर्तिकर्ता, और कोविड-19 के कारण हुई देरी को भी संयंत्रों को छूट देने के कारणों में शामिल किया गया।
- विशेषज्ञों की आलोचना: SO₂ सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5) में योगदान देता है, जो 200 किमी तक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। FGD की कमी से श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
- ऊँची चिमनियाँ केवल उत्सर्जन को बढ़ाती हैं, कम नहीं करतीं। भारत के PM2.5 स्तरों में कोयले के दहन का योगदान लगभग 15% है।
- यह निर्णय जनता से विमर्श के बिना लिया गया, स्थान आधारित मानकों को स्थापित करता है तथा इससे वायु गुणवत्ता व सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचने का खतरा है।
और पढ़ें: कोयला विद्युत संयंत्रों हेतु FGD नियमों की समीक्षा