भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की समुत्थानशील आर्थिक संवृद्धि का मार्ग
- 02 Dec 2025
- 166 min read
यह एडिटोरियल 02/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Cautious optimism: On India and growth” आधारित है। यह लेख भारत की प्रभावशाली 8.2% GDP वृद्धि और रिकॉर्ड व्यापार घाटे तथा कम अपस्फीति के बीच इसकी स्थिरता को लेकर चिंताओं के बीच के अंतर को उजागर करता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि वास्तविक चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि यह वृद्धि व्यापक हो तथा ग्रामीण मांग और श्रम-प्रधान क्षेत्रों को लाभ पहुँचाए।
प्रिलिम्स के लिये: उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ, भारत का FMCG क्षेत्र, GeM, इंडिया स्टैक, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME)
मेन्स के लिये: भारत की वर्तमान आर्थिक वृद्धि को आकार देने और मज़बूत करने वाले कारक, भारत की आर्थिक वृद्धि को बाधित करने वाली प्रमुख अड़चनें
भारत की सितंबर तिमाही की 8.2% की GDP वृद्धि दर उम्मीदों से अधिक रही है, जो विनिर्माण (9.1%) और सेवाओं (9.2%) के योगदान से बढ़ी है तथा निजी खपत में भी उछाल आया है जो 7.9% तक पहुँच गई है। हालाँकि, यह वृद्धि भ्रामक हो सकती है, रिकॉर्ड 41.68 अरब डॉलर का व्यापार घाटा, अमेरिकी टैरिफ से पहले संभावित निर्यात वृद्धि और 1% से नीचे का असामान्य रूप से कम GDP अपस्फीति दर आर्थिक स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। वृद्धि अभी भी पूंजी-प्रधान और औपचारिक क्षेत्रों तक सीमित है, जबकि श्रम-प्रधान उद्योग एवं ग्रामीण उपभोग अभी भी कमज़ोर बने हुए हैं। चुनौती केवल विकास दर को बनाए रखने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी है कि वे व्यापक आर्थिक समृद्धि में परिवर्तित हों।
कौन-से कारक भारत की वर्तमान आर्थिक विकास गति को आकार दे रहे हैं और सुदृढ़ कर रहे हैं?
- रणनीतिक विनिर्माण गहनता (PLI प्रभाव): इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स में उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के विकास से प्रेरित होकर, भारत केवल असेंबली से आगे बढ़कर उच्च मूल्य वाले घटक विनिर्माण की ओर बढ़ रहा है।
- यह संरचनात्मक बदलाव PCB और एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इन्ग्रेडिएंट्स जैसे महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती पदार्थों के लिये आयात निर्भरता को कम कर रहा है, जिससे एक लचीला घरेलू औद्योगिक आधार तैयार हो रहा है, जो वैश्विक आपूर्ति शृंखला आघात के प्रति कम सुभेद्य है।
- उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 9.1% की मज़बूत वृद्धि हुई, जो सामान्य अर्थव्यवस्था से बहुत अधिक थी; PLI योजनाओं ने अगस्त 2024 तक 1.46 लाख करोड़ रुपये से अधिक का वास्तविक निवेश प्राप्त किया है, जिससे भारत मोबाइल फोन का शुद्ध निर्यातक बन गया है।
- ग्रामीण-नेतृत्व वाली खपत में पुनरुत्थान: एक स्पष्ट ‘वियोजन’ दिखाई दे रहा है, जहाँ ग्रामीण मांग वर्तमान में शहरी खपत से आगे निकल रही है, जो सामान्य से बेहतर मानसून एवं स्थिर मुद्रास्फीति के कारण संभव हो रहा है, जिससे कृषि अर्थव्यवस्था में क्रय शक्ति पुनर्स्थापित हो गई है।
- यह पुनरुत्थान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मेट्रो शहरों से परे उपभोग आधार को व्यापक बनाता है तथा FMCG और दोपहिया वाहन क्षेत्रों के लिये अधिक संधारणीय घरेलू मांग इंजन का निर्माण करता है।
- वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में ग्रामीण खपत में 7.7% की वृद्धि हुई, जो 17 तिमाहियों में सबसे अधिक है, जबकि भारत के FMCG क्षेत्र में तीसरी तिमाही में बिक्री वृद्धि धीमी रही, GST परिवर्तनों के कारण मात्रा में 5.4% की वृद्धि हुई।
- ग्रामीण बाज़ारों में 7.7% की वृद्धि हुई, जो निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) वृद्धि के लिये प्रभावी रूप से प्राथमिक चालक के रूप में कार्य कर रहा है।
- पूंजीगत व्यय-आधारित अवसंरचना गुणक: सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय में आक्रामक वृद्धि से निजी निवेश में वृद्धि जारी है, विशेष रूप से लॉजिस्टिक्स, रेलवे और रक्षा में, जिससे उच्च आर्थिक गुणक प्रभाव उत्पन्न हो रहा है।
- यह सतत सार्वजनिक व्यय ऐतिहासिक आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर कर रहा है, लॉजिस्टिक्स लागत को कम कर रहा है तथा यह सुनिश्चित कर रहा है कि औद्योगिक उत्पादन वैश्विक बाज़ारों तक प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से पहुँच सके।
- प्रमुख अवसंरचना क्षेत्रों पर केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2020 से वित्त वर्ष 2024 तक 38.8% की दर से बढ़ा है, जो वैश्विक प्रतिकूलताओं के बावजूद मज़बूत निवेश विश्वास का संकेत देता है।
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) 2.0 और AI एकीकरण: वर्तमान आर्थिक विकास बुनियादी डिजिटल एक्सेस से आगे बढ़कर ‘बुद्धिमान’ अनुप्रयोगों की ओर स्थानांतरित हो गया है, जहाँ इंडिया स्टैक (UPI, ONDC) के शीर्ष पर निर्मित AI और डेटा एनालिटिक्स MSME के लिये ऋण एवं बाज़ार अभिगम्यता को लोकतांत्रिक बना रहे हैं।
- यह ‘डिजिटलीकरण के माध्यम से औपचारिकीकरण’ छोटे उद्यमों को संपार्श्विक-मुक्त ऋण और वैश्विक बाज़ारों तक अभिगम्यता प्रदान करता है, जिससे विशाल अनौपचारिक क्षेत्र में उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है।
- जनवरी, 2025 तक, GeM ने ₹4.09 लाख करोड़ का GMV दर्ज किया है, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में लगभग 50% की वृद्धि दर्शाता है।
- 54% की AI और एनालिटिक्स प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन दर के साथ, भारतीय कंपनियाँ मशीन सेंसर, क्लाउड प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स एवं स्वचालन (इन्वेस्ट इंडिया) का उपयोग करके अपनी परिचालन पद्धतियों में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं।
- भू-राजनीतिक ‘चाइना प्लस वन’ का प्रत्यक्ष लाभ: भारत आपूर्ति शृंखलाओं के वैश्विक विविधीकरण का सक्रिय रूप से लाभ उठा रहा है तथा चीन के विकल्प की तलाश करने वाली कंपनियों से (विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में) उच्च गुणवत्ता वाले FDI को आकर्षित कर रहा है।
- जबकि वस्तु निर्यात को वैश्विक स्तर पर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, यह संरचनात्मक पुनर्स्थापन भारत को उन्नत विनिर्माण के लिये एक पसंदीदा ‘मित्रवत् तट’ (friendly shore) में बदल रहा है, जो इसे पश्चिमी मांग में मंदी से आंशिक रूप से बचा रहा है।
- 85 सॉवरेन वेल्थ फंडों और 57 केंद्रीय बैंकों के अनुसार, भारत निवेश के लिये सबसे आकर्षक उभरते बाज़ार के रूप में चीन से आगे निकल गया है।
- आर्थिक चालक के रूप में हरित ऊर्जा परिवर्तन: नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव अब केवल पर्यावरणीय ही नहीं बल्कि आर्थिक भी है, सौर एवं हरित हाइड्रोजन में बड़े पैमाने पर निवेश से जीवाश्म ईंधन के आयात के कारण होने वाले दीर्घकालिक चालू खाता घाटे में कमी आ रही है।
- यह परिवर्तन हरित नौकरियों और विनिर्माण की एक नई समानांतर अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहा है, विशेष रूप से सौर मॉड्यूल एवं बैटरी स्टोरेज में, जो कार्बन उत्सर्जन से विकास को अलग कर रहा है।
- जून 2025 तक, देश ने गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 235.7 गीगावाट बिजली उत्पादन हासिल कर लिया है, जिसमें 226.9 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा और 8.8 गीगावाट परमाणु ऊर्जा शामिल है, जो 476 गीगावाट की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 49% है।
- यह भारत के कार्बन-मुक्ति लक्ष्यों तथा सतत् भविष्य के प्रति उसकी प्रतिबद्धता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो औद्योगिक विकास के लिये निर्बाध बिजली सुनिश्चित करेगा।
- वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता और ऋण-विस्तार: पिछले दशक की ‘ट्विन बैलेंस शीट’ समस्या का काफी हद तक समाधान हो चुका है तथा बैंकों के पास अब निजी कॉर्पोरेट पूंजीगत व्यय के अगले चरण के लिये धन उपलब्ध कराने में सक्षम उत्तम लेखा-जोखा है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, भारत के बैंकिंग क्षेत्र में परिसंपत्ति गुणवत्ता में निरंतर सुधार दर्ज किया गया है, सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात सितंबर 2024 में कुल अग्रिमों का 2.6% तक गिर गया है, जो पिछले 12 वर्षों में सबसे निचला स्तर है।
- यह वित्तीय स्थिरता, परिसंपत्ति गुणवत्ता में तत्काल गिरावट के जोखिम के बिना, बुनियादी अवसंरचना और आवास जैसे उत्पादक क्षेत्रों में निरंतर ऋण प्रवाह की अनुमति देती है।
भारत की आर्थिक संवृद्धि में अभी भी कौन-सी प्रमुख बाधाएँ अवरोध बन रही हैं?
- संरचनात्मक ‘बेरोज़गारी विकास’ और कौशल बेमेल: मुख्य बाधा कार्यबल के बड़े पैमाने पर प्रवाह को अवशोषित करने में विनिर्माण क्षेत्र की अक्षमता बनी हुई है, जो शैक्षणिक उत्पादन और उद्योग 4.0 आवश्यकताओं के बीच गंभीर विसंगति से और भी बढ़ जाती है।
- यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ रहा है, फिर भी श्रम बाज़ार को ‘संरचनात्मक शैथिल्ययुक्त (Structural hysteresis)’ का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ लाखों स्नातकों में उच्च-मूल्य वाली भूमिकाओं के लिये आवश्यक विशिष्ट तकनीकी योग्यता का अभाव है, जिससे स्थिर गुणवत्ता वाले रोज़गार के साथ उच्च विकास का विरोधाभास उत्पन्न हो रहा है।
- युवा बेरोज़गारी (15-29 वर्ष) अगस्त 2025 में 14.6% के उच्च स्तर पर बनी रही, जबकि रिपोर्ट बताती है कि गैर-तकनीकी कौशल की कमी के कारण केवल 42.6% स्नातकों को ही कॉर्पोरेट भूमिकाओं के लिये रोज़गार योग्य माना गया।
- निजी निवेश (पूंजीगत व्यय) की शिथिलता: सरकार द्वारा बुनियादी अवसंरचना पर व्यय को अग्रिम रूप से बढ़ाने के बावजूद, जोखिम से बचने और अनिश्चित वैश्विक मांग के कारण निजी कॉर्पोरेट पूंजीगत व्यय में पूरी तरह से वृद्धि नहीं हुई है।
- कंपनियाँ ऋण-मुक्त हो चुकी हैं और वे लाभ कमा रही हैं, फिर भी वे ग्रीनफील्ड विस्तार में विलंब कर रहे हैं, तथा इसके बजाय ब्राउनफील्ड दक्षताओं पर निर्भर हैं, जो नई उत्पादक क्षमता एवं नौकरियों के सृजन को सीमित करता है।
- यद्यपि नई परियोजनाओं की घोषणाओं में वृद्धि हुई, फिर भी वास्तविक निजी परियोजना पूर्णता में वित्त वर्ष 2025 में 31% की वार्षिक गिरावट आई है और नई परियोजनाओं में निजी पूंजीगत व्यय योगदान में मामूली 4% की वृद्धि हुई, जो वेट एंड वॉच दृष्टिकोण का संकेत देता है।
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता और टैरिफ अवरोध: वैश्विक संरक्षणवाद और ‘टैरिफ वॉर’ में वृद्धि के कारण भारत का निर्यात इंजन धीमा पड़ रहा है, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा गैर-टैरिफ बाधाओं एवं उच्च शुल्कों को लागू करने के कारण।
- यह बाह्य शत्रुता घरेलू अक्षमताओं को बढ़ा रही है, जिसके कारण वस्त्र और रत्न जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र वियतनाम एवं बांग्लादेश जैसे चुस्त प्रतिस्पर्द्धियों के सामने बाज़ार हिस्सेदारी खो रहे हैं।
- अक्तूबर 2025 (EY) में व्यापारिक निर्यात में (-)11.8% की गिरावट देखी गई।
- यह बाह्य शत्रुता घरेलू अक्षमताओं को बढ़ा रही है, जिसके कारण वस्त्र और रत्न जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र वियतनाम एवं बांग्लादेश जैसे चुस्त प्रतिस्पर्द्धियों के सामने बाज़ार हिस्सेदारी खो रहे हैं।
- MSME ऋण सीमाएँ और तकनीकी पिछड़ापन: विकास की रिकवरी ‘K-आकार की रही है, जिसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) डिजिटलीकरण प्रयासों के बावजूद किफायती औपचारिक ऋण तक पहुँचने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
- उच्च संपार्श्विक आवश्यकताओं और उन्नत डिजिटल उपकरणों को तेज़ी से अपनाने में असमर्थता ने इस क्षेत्र को, जिसमें गैर-कृषि श्रमिकों का बड़ा हिस्सा कार्यरत है, स्थिर बना दिया है तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के अनुरूप आगे बढ़ने में असमर्थ बना दिया है।
- MSME क्षेत्र में ऋण अंतराल लगभग 20 लाख करोड़ से 25 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें MSME ऋण की लगभग 47% मांग पूरी नहीं हो पाई है, जिससे छोटी इकाइयों को 12-14% ब्याज दरों पर महंगी अनौपचारिक उधारी पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
- चीनी ‘डंपिंग’ और आयात निर्भरता: एक महत्त्वपूर्ण बाधा सस्ते चीनी आयातों की बाढ़ है, विशेष रूप से इस्पात, रसायन और इलेक्ट्रॉनिक्स में, जो घरेलू विनिर्माण व्यवहार्यता को कम कर रही है।
- चूँकि चीन स्वयं मंदी का सामना कर रहा है, इसलिये वह अपनी अतिरिक्त क्षमता का निर्यात भारत को कर रहा है, जिससे एक व्युत्क्रमित शुल्क कार्यढाँचा तैयार हो रहा है, जहाँ तैयार माल का आयात करना प्रायः स्थानीय स्तर पर उनका विनिर्माण करने की तुलना में सस्ता पड़ता है।
- भारत में, अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक घटक आयात चीन (लगभग 40%) से हुआ, इसके बाद वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही में हांगकांग (16%) से हुआ। इसके अलावा, वैश्विक रिपोर्टें पुष्टि करती हैं कि चीन स्टील और रसायनों को बहुत कम कीमतों पर डंप कर रहा है।
- उच्च लॉजिस्टिक्स और विनिमय लागत: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर एक ‘अदृश्य कर’ बनी हुई है, जो भौतिक बुनियादी अवसंरचना (सड़कों/बंदरगाहों) में सुधार के बावजूद वैश्विक मानकों की तुलना में काफी अधिक है।
- विनियामक अनुपालन का बोझ और दूरदराज़ के डिपो में धीमी गति से काम पूरा होने के कारण मार्जिन में कमी आ रही है, जिससे भारतीय सामान वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में 10-15% अधिक महंगा हो गया है।
- वर्ष 2025 में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद का 7.97% अनुमानित है, जो अभी भी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से ऊपर है, जिससे विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो रही है तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में गहन एकीकरण में बाधा आ रही है।
भारत स्थिर और सतत आर्थिक संवृद्धि प्राप्त करने के लिये क्या उपाय कर सकता है?
- हरित औद्योगिक परिवर्तन में तीव्रता लाना: भारत को एक सुनियोजित हरित-औद्योगिक रणनीति अपनानी चाहिये जो पूर्वानुमानित विनियामक मार्गों, हरित-प्रौद्योगिकी समूहों और चक्रीय-अर्थव्यवस्था मानदंडों के माध्यम से फर्मों को निम्न-कार्बन उत्पादन की ओर प्रेरित करे।
- स्वच्छ प्रौद्योगिकी घटकों के घरेलू विनिर्माण को मज़बूत करने से बाह्य कमज़ोरियाँ कम होंगी।
- वास्तविक काल डिजिटल निगरानी के साथ पर्यावरणीय मंजूरी को सुसंगत बनाने से अनुपालन उद्योगों में तेजी लाई जा सकती है।
- एक हरित-कौशल मिशन उभरते क्षेत्रों के लिये कार्यबल तैयार कर सकता है। इस तरह की संतुलित हरित नीति विकास की गति से समझौता किये बिना प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करती है।
- आघात-प्रतिरोधी आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण: आपूर्ति-शृंखला के समुत्थानशीलता को बढ़ाने के लिये सोर्सिंग में विविधता, आधुनिक लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर और डिजिटल डैशबोर्ड के माध्यम से जुड़े फ्लेक्सिबल वेयरहाउसिंग की आवश्यकता होती है।
- बहु-स्तरीय आपूर्तिकर्त्ता मानचित्रण को प्रोत्साहित करने से व्यवधानों को रोका जा सकता है। स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता विकास के लिये नीतिगत समर्थन घरेलू मूल्य शृंखलाओं को मज़बूत बनाता है। बुनियादी अवसंरचना की योजना में जलवायु-जोखिम आकलन को शामिल करने से चरम मौसमी घटनाओं के जोखिम को कम किया जा सकता है।
- यह एकीकृत डिज़ाइन उत्पादन चक्र को स्थिर करता है और दीर्घकालिक विकास की निश्चितता को बढ़ाता है।
- मानव पूंजी की गुणवत्ता को मज़बूत करना: मानव पूंजी को मज़बूत करने के लिये उभरती हुई उद्योग आवश्यकताओं के अनुरूप मॉड्यूलर कौशल और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के साथ एकीकृत सतत शिक्षण प्लेटफॉर्मों की आवश्यकता है।
- अनुकूली शिक्षण पद्धति के माध्यम से आधारभूत शिक्षण अंतराल को न्यूनतम करने से दीर्घकालिक उत्पादकता में वृद्धि होगी।
- एक स्वास्थ्य-उन्मुख रोज़गार कार्यढाँचा कार्यबल में कमी ला सकता है। शिक्षा जगत और उद्योग के बीच अनुकूलनशील गतिशीलता के माध्यम से अनुसंधान प्रतिभा को बढ़ावा देने से नवाचार को बल मिलता है। इस तरह का समग्र मानव-पूंजी गहनीकरण एक संधारणीय उत्पादकता आधार तैयार करता है।
- दीर्घकालिक संधारणीयता के लिये राजकोषीय पुनर्संयोजन: एक समुत्थानशीलता-उन्मुख राजकोषीय नीति के लिये कर आधार को व्यापक बनाना, व्यय को युक्तिसंगत बनाना तथा परिणाम-आधारित बजट को शामिल करना आवश्यक है।
- रियल टाइम डैशबोर्ड के माध्यम से राजकोषीय पारदर्शिता में सुधार से निवेशकों का विश्वास मज़बूत होता है।
- हरित बुनियादी अवसंरचना को रणनीतिक प्राथमिकता देने से दीर्घकालिक लाभ कई गुना बढ़ जाते हैं।
- चरणबद्ध समेकन और प्रति-चक्रीय बफरिंग वैश्विक अस्थिरता के विरुद्ध स्थिरता को बढ़ाते हैं। यह संतुलित रुख व्यापक आर्थिक जोखिमों का प्रबंधन करते हुए विकास को बनाए रखता है।
- प्रौद्योगिकी-संचालित शासन और सार्वजनिक सेवा दक्षता: विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को शामिल करने से निर्बाध सेवा वितरण सुनिश्चित होता है तथा प्रशासनिक चूक कम होती है।
- AI-सहायता प्राप्त नियामक प्रणालियाँ अनुपालन, पूर्व-चेतावनी तंत्र और क्षेत्रीय पर्यवेक्षण को बढ़ा सकती हैं।
- अंतर-संचालनीय डेटा प्लेटफॉर्म लक्षित कल्याणकारी वितरण को बढ़ावा देते हैं। शहरी प्रशासन को अपव्यय को रोकने के लिये सेंसर-संचालित संसाधन प्रबंधन अपनाना चाहिये। ऐसा तकनीक-सक्षम शासन अर्थव्यवस्था में उत्पादकता और समुत्थानशीलता को बढ़ाता है।
- नवाचार-आधारित विकास पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: एक मज़बूत नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के लिये लचीले नियामक सैंडबॉक्स, गहन उद्योग-अनुसंधान संबंध और अग्रणी प्रौद्योगिकियों में मिशन-संचालित अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है।
- घरेलू बौद्धिक संपदा निर्माण को प्रोत्साहित करने से व्यावसायीकरण चक्र में तेज़ी आ सकती है। विश्वविद्यालयों से जुड़े क्षेत्रीय नवाचार ज़िलों के निर्माण से वितरित नवाचार क्षमता का निर्माण होता है।
- सुव्यवस्थित स्टार्टअप अनुपालन प्रयोग को बढ़ावा देता है। नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था स्वाभाविक रूप से अधिक अनुकूलनीय एवं भविष्य-सुरक्षित होता है।
- MSME प्रतिस्पर्द्धात्मकता और औपचारिकता को सुदृढ़ करना: MSME की समुत्थानशीलता को बढ़ाने के लिये परिचालन संबंधी बाधाओं को कम करने हेतु सुव्यवस्थित अनुपालन, एकीकृत डिजिटल पोर्टल और जोखिम-आधारित नियामक मानदंडों की आवश्यकता है।
- साझा प्रौद्योगिकी केंद्रों के साथ क्लस्टर-आधारित उन्नयन से उत्पादकता और नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- नकदी प्रवाह आधारित ऋण और बेहतर प्राप्य प्रबंधन के माध्यम से मज़बूत ऋण प्रवाह, चलनिधि आघात के प्रति सुभेद्यता को कम करता है।
- सरलीकृत कराधान और डिजिटल बहीखाता के माध्यम से औपचारिकता को बढ़ावा देने से बाज़ार तक अभिगम्यता बढ़ती है।
- एक सुनियोजित MSME-क्षमता मिशन उन्हें संधारणीय और समावेशी विकास के इंजन में परिवर्तित कर सकता है।
निष्कर्ष:
भारत की वर्तमान विकास गति में जहाँ एक ओर विनिर्माण क्षेत्र की रणनीतिक उन्नति, ग्रामीण उपभोग में सुधार, आधारभूत ढाँचे में व्यापक निवेश एवं डिजिटल एकीकरण जैसी संरचनात्मक सुदृढ़ताएँ शामिल हैं, वहीं दूसरी ओर उभरती हुई चुनौतियाँ भी स्पष्ट हैं। रोज़गार-विहीन वृद्धि, MSME क्षेत्र में ऋण-अंतर और वैश्विक व्यापार से संबंधित अनिश्चितताएँ इस प्रगति की समुत्थानशीलता पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। दीर्घकालिक एवं समावेशी विकास के लिये मानव पूँजी का सशक्तीकरण, हरित औद्योगीकरण, आपूर्ति शृंखला की मज़बूती तथा नवाचार-आधारित नीतियों को और गहन बनाने की आवश्यकता है। MSME क्षेत्र के लिये लक्षित समर्थन तथा प्रौद्योगिकी-सक्षम शासन ही भारत की उच्च GDP वृद्धि को व्यापक, सहभागितापूर्ण और स्थायी आर्थिक शक्ति में रूपांतरित कर सकते हैं।
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दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत की आर्थिक संवृद्धि को गति देने वाले प्रमुख कारकों और उन संरचनात्मक चुनौतियों का परीक्षण कीजिये जो इसकी स्थिरता व समावेशिता को सीमित करती हैं। साथ ही, ऐसी नीतिगत पहलों का सुझाव दीजिये जो अर्थव्यवस्था की सहनक्षमता और व्यापक विकास को सुदृढ़ कर सकें। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न:
1. भारत की वर्तमान आर्थिक वृद्धि के मुख्य चालक क्या हैं?
भारत की वृद्धि मुख्यतः उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के तहत विनिर्माण विस्तार, ग्रामीण मांग में सुधार, पूँजी व्यय आधारित बुनियादी अवसंरचना निवेश, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के व्यापक उपयोग तथा हरित ऊर्जा संक्रमण से संचालित हो रही है जिससे अर्थव्यवस्था की क्षमता और स्थायित्व दोनों बढ़ रहे हैं।
2. भारत की आर्थिक वृद्धि में कौन-सी संरचनात्मक चुनौतियाँ बाधा बन रही हैं?
प्रमुख अवरोधों में सीमित रोज़गार सृजन, कौशल असंगति, MSME क्षेत्रों में ऋण व प्रौद्योगिकी की कमी, वैश्विक शुल्क बाधाओं के कारण निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में गिरावट, चीनी आयात पर निर्भरता तथा उच्च लॉजिस्टिक्स एवं लेन-देन लागत शामिल हैं।
3. भारत विनिर्माण और आपूर्ति-शृंखला की कमज़ोरियों का समाधान किस प्रकार कर रहा है?
भारत में PLI योजनाओं के माध्यम से उच्च-मूल्य विनिर्माण को बढ़ावा देकर, ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति द्वारा विदेशी निवेश आकर्षित करके, आधुनिक लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर विकसित करके, घरेलू घटक-निर्माताओं को प्रोत्साहित करके तथा AI और डिजिटल प्रणालियों के प्रयोग से आपूर्ति-शृंखलाओं को अधिक सक्षम बनाया जा रहा है।
4. भारत में सतत् और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
नीतियों में हरित औद्योगिक रूपांतरण को गति देना, मानव पूँजी का विस्तार, लचीली आपूर्ति-शृंखलाओं का निर्माण, राजकोषीय पुनर्संतुलन, नवाचार-आधारित वृद्धि, MSME क्षेत्र का औपचारिककरण और सहयोग, तथा प्रौद्योगिकी-संचालित शासन जैसे उपाय आवश्यक हैं।
5. डिजिटल अवसंरचना भारत की आर्थिक मज़बूती में किस प्रकार योगदान दे रही है?
डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना और AI-आधारित प्रणालियाँ उधार-सुलभता, बाज़ार अभिगम्यता, नियामक अनुपालन तथा संचालन-क्षमता को बेहतर बनाती हैं जिससे MSME एवं बड़े उद्यम दोनों औपचारिककरण, नवाचार और अधिक व्यापक आर्थिक भागीदारी की दिशा में सक्षम होते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. 'व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease of Doing Business Index)' में भारत की रैंकिंग समाचार-पत्रों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016)
(a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)
(b) विश्व आर्थिक मंच
(c) विश्व बैंक
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
उत्तर: C
प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)
(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।
उत्तर: (c)
प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019)
(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।
उत्तर: (b)
मेन्स:
प्रश्न 1. "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)
प्रश्न 2. आमतौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)