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हिंद महासागर क्षेत्र पर भारत का फोकस

  • 04 Dec 2025
  • 142 min read

यह सम्पादकीय “A template for security cooperation in the Indian Ocean” शीर्षक लेख पर आधारित है, जो 03/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित हुआ था। यह लेख कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन के विस्तार के माध्यम से हिंद महासागर में सहयोगात्मक सुरक्षा ढाँचा तैयार करने के लिये भारत के नवीकृत प्रयासों को उजागर करता है। साथ ही यह भी रेखांकित करता है कि चीन को लेकर विभिन्न खतरा-धारणाएँ और क्षेत्रीय अनिश्चितताएँ भारत के रणनीतिक हितों हेतु अधिक मज़बूत संस्थागत एकजुटता की माँग करती हैं।

प्रिलिम्स के लिये: हिंद महासागर क्षेत्र, कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन, ऑपरेशन सागर बंधु, अंतर्राष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण, समुद्रयान मिशन, ऑपरेशन संकल्प, होर्मुज़ जलडमरूमध्य, ‘नेबरहुड फर्स्ट’ पॉलिसी, INS अरिदमन, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र

मेन्स के लिये: भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र का महत्त्व, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के सामने आने वाली मुख्य चुनौतियाँ।

वर्ष 2025 में आयोजित 7वें NSA-स्तरीय कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) ने हिंद महासागर क्षेत्र की उभरती सुरक्षा संरचना को आकार देने के लिये भारत के नवीकृत प्रयासों को रेखांकित किया है। वर्ष 2011 में बाधित हुए त्रिपक्षीय तंत्र के रूप में जिसकी शुरुआत हुई थी, वह अब विस्तृत होकर समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी उपायों, तस्करी और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों को संबोधित करने वाले एक व्यापक मंच में विकसित हो चुका है। सेशेल्स जैसे नए सदस्यों के जुड़ने के साथ CSC क्षेत्रीय सहयोगात्मक सुरक्षा की बढ़ती इच्छा को भी संकेत देता है। लेकिन क्षेत्रीय देशों की विविध प्राथमिकताएँ और आंतरिक अस्थिरताएँ इस सुरक्षा ढाँचे को अब भी अस्थिर तथा अनिश्चित बनाए रखती हैं। भारत के लिये, ये परिवर्तन इस बात की पुनः पुष्टि करते हैं कि हिंद महासागर क्षेत्र उसकी आर्थिक सुरक्षा, रणनीतिक स्वायत्तता और क्षेत्र में ‘नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ की भूमिका के लिये केंद्रीय महत्त्व रखता है।

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हिंद महासागर भारत के रणनीतिक हितों को कैसे आकार देता है?

  • भू-राजनीतिक नेतृत्व और क्षेत्रीय एकजुटता: भारत यहाँ अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ पॉलिसी को लागू करते हुए क्षेत्रीय देशों को सुरक्षा ढाँचों के माध्यम से जोड़कर बाह्य शक्तियों (विशेषकर चीन) के प्रभाव को संतुलित करता है।
    • इससे भारत एक निष्क्रिय पर्यवेक्षक से आगे बढ़कर क्षेत्रीय स्थिरता के लिये सक्रिय ‘मानक-निर्माता’ की भूमिका निभाने लगा है।
    • नवंबर 2025 में, भारत ने 7वाँ कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) आयोजित किया, जिसमें सेशेल्स पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ और इस प्रकार चीन की नौसैनिक मौजूदगी का मुकाबला करने हेतु 6 देशों का एक सुदृढ़ सुरक्षा समूह स्थापित हुआ।
  • ‘नेट सुरक्षा प्रदाता’ और प्रथम प्रत्युत्तरकर्त्ता की भूमिका: यह क्षेत्र भारत की मानवीय कूटनीति के लिये एक परीक्षण स्थल के रूप में कार्य करता है, जहाँ तीव्र आपदा-प्रतिक्रिया भारत के प्रति बड़े पैमाने पर ‘रणनीतिक भरोसा’ और सॉफ्ट पावर का निर्माण करती है जो प्रतिद्वंद्वी देशों की मात्र वित्तीय कूटनीति से कहीं बढ़कर प्रभाव उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण के लिये, हाल ही में भारत ने ऑपरेशन सागर बंधु शुरू किया, जिसके तहत INS विक्रांत, INS उदयगिरि और वायु परिसंपत्तियों को बाढ़ प्रभावित श्रीलंका भेजा गया जबकि अन्य देश अभी सहायता पर विचार ही कर रहे थे।
  • रणनीतिक संपर्कता और मध्य एशिया तक पहुँच: शत्रुतापूर्ण स्थलीय सीमाओं को पार करते हुए, हिंद महासागर मध्य एशिया और अफगानिस्तान जैसे संसाधन-समृद्ध क्षेत्रों तक पहुँचने का एकमात्र व्यावहारिक मार्ग प्रदान करता है। यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प के रूप में एक वैकल्पिक व्यापार-मार्ग भी तैयार करता है।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने मई 2024 में चाबहार बंदरगाह के लिये ऐतिहासिक 10-वर्षीय संचालन समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद नवंबर 2025 में अमेरिका से एक महत्त्वपूर्ण प्रतिबंध-छूट प्राप्त की, जिससे भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद निर्बाध व्यापार सुनिश्चित हो सका।
  • नीली अर्थव्यवस्था और गहरे समुद्री संसाधनों के अधिकार: समुद्र तल पर पाए जाने वाले पॉली-मेटैलिक नोड्यूल (PMN) और सल्फाइड जैसे खनिज भारत की स्वच्छ ऊर्जा (विशेषकर EV बैटरियों) की दिशा में परिवर्तन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। ये चीन के खनिज एकाधिकार पर निर्भरता को कम करने में भी सहायता करते हैं।
    • भारत ने सितंबर 2025 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA) के साथ कार्ल्सबर्ग रिज में खनन अधिकारों हेतु ऐतिहासिक 15-वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे तांबा और जस्ता जैसे खनिज भंडारों तक संभावित पहुँच का मार्ग खुल गया।
  • प्रौद्योगिकी अग्रिम और वैज्ञानिक प्रतिष्ठा: गहरे महासागर की प्रौद्योगिकी में महारत हासिल करना भारत को देशों के एक विशिष्ट समूह में रखता है, जो तकनीकी क्षमता का संकेत देता है और यह क्षमता पनडुब्बी युद्ध और जलमग्न निगरानी के लिये ठोस सैन्य क्षमता में परिवर्तित होती है।
    • समुद्रयान मिशन में मात्स्य-6000 प्रोटोटाइप्स को 500 मीटर गहराई के योग्यता परीक्षणों को आगे बढ़ाया, जिसमें वर्ष 2026 तक मानवयुक्त गहरे समुद्र की क्षमता प्राप्त करने के लिये ₹4,077 करोड़ का बजट शामिल है।
  • ऊर्जा सुरक्षा और SLOC संरक्षण: महासागर भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा है, जिसमें सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन (SLOCs) गुजरती हैं, जिनके माध्यम से लगभग सभी ऊर्जा आयात होते हैं। इन मार्गों को अवरुद्ध कर देना देश के औद्योगिक इंजन को स्थिर कर सकता है।
    • भारत के कच्चे तेल के दो-तिहाई से अधिक आयात और LNG के लगभग 50% आयात होर्मुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से होते हैं, जो इसे हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण मार्ग बनाता है।
    • ऑपरेशन संकल्प को भारतीय नौसेना द्वारा लॉन्च किया गया ताकि भारतीय व्यापारी जहाज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, जो होर्मुज़ जलडमरूमध्य और फारस की खाड़ी के अन्य उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों से गुजरते हैं।

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

  • “ग्रे-ज़ोन” युद्ध और वैज्ञानिक जासूसी: चीन ने ‘नागरिक’ अनुसंधान जहाज़ों का उपयोग हिंद महासागर के समुद्र तल (बैथिमेट्रिक डेटा) का मानचित्रण करने के लिये संस्थागत रूप से शुरू कर दिया है, जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान के बहाने भविष्य में PLA नौसेना की तैनाती हेतु एक पनडुब्बी ‘हाईवे’ तैयार हो रहा है। इस पर UNCLOS जैसे कानूनी ढाँचे पर्याप्त नियंत्रण नहीं कर पाते।
    • हाल ही में, चार चीनी जहाज़ों का एक समूह हिंद महासागर क्षेत्र में प्रवेश कर गया, ठीक उसी समय जब भारत ने मिसाइल परीक्षण के लिये NOTAM जारी किया था (जिसे बाद में भारत ने स्थगित कर दिया) और सक्रिय रूप से भारत की रणनीतिक परिसंपत्तियों के ध्वनिक संकेतों (Acoustic signatures) एकत्र किये।
  • तटवर्ती देशों की ‘पेंडुलम पॉलिटिक्स’: भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ पॉलिसी एक संरचनात्मक चुनौती का सामना कर रही है, जहाँ छोटे द्वीपीय राष्ट्र ‘चीन कार्ड’ का उपयोग करके रियायतें प्राप्त करते हैं, ‘इंडिया फर्स्ट’ और ‘इंडिया आउट’ नीतियों के बीच संतुलन बदलते हुए, दीर्घकालिक रणनीतिक संरेखण को अस्थिर और महंगा बनाते हैं।
    • जब मालदीव चीन समर्थक रुख के कारण वित्तीय संकट में पड़ा, तो उसका झुकाव अचानक भारत की ओर हो गया।
    • भारत ने मालदीव को 400 मिलियन डॉलर का वित्तीय समर्थन और 3,000 करोड़ रुपये का द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप प्रदान किया, जिससे मालदीव द्वारा पहले बीजिंग के साथ किये गए रक्षा समझौते को प्रभावी रूप से निरस्त किया जा सका।
  • भूमिगत परमाणु प्रतिस्पर्द्धा और द्वितीय-प्रहार स्थिरता: IOR अब एक ‘परमाणु-विशिष्ट’ थिएटर में बदल रहा है, क्योंकि चीन निरंतर निवारक गश्त के लिये उन्नत SSBN (परमाणु-सशस्त्र पनडुब्बियाँ) तैनात कर रहा है। इसके जवाब में भारत पर अपनी त्रिकालीन क्षमता को तेज़ी से परिपक्व करने का दबाव है, ताकि द्वितीय-प्रहार क्षमता में ‘विश्वसनीयता का अंतर’ न बने।
    • चीन की टाइप 096 पनडुब्बियों से उत्पन्न खतरे का सामना करने के लिये भारत ने INS अरिदमन के समुद्री परीक्षणों को तीव्र किया और अपनी तीसरी SSBN को कमीशन करने का लक्ष्य निर्धारित किया, ताकि निरंतर जलमग्न निवारक क्षमता सुनिश्चित की जा सके।
  • ‘दोहरे उपयोग’ वाले बुनियादी ढाँचे का सैन्यीकरण: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के बंदरगाह अपने व्यावसायिक आवरण को छोड़कर वास्तविक लॉजिस्टिक आधार बनते जा रहे हैं। ये ‘नागरिक’ सुविधाएँ PLA नौसेना को मरम्मत, पुनःपूर्ति और खुफिया संचालन की क्षमता देती हैं, वह भी बिना किसी औपचारिक सैन्य आधार से जुड़े कूटनीतिक बोझ के।
    • हालिया रिपोर्टों ने पुष्टि की है कि क्याउकफ्यू (म्याँमार) और ग्वादर (पाकिस्तान) में ‘लॉजिस्टिक्स सुविधाओं’ का विस्तार किया गया है, जो वायुयान वाहक को डॉक करने में सक्षम हैं, इस प्रकार भारत के अंडमान एवं निकोबार कमांड को पूर्व व पश्चिम दोनों से घेरते हैं।
  • अवैध, गैर-सूचित और अविनियमित (IUU) मत्स्यन और संसाधन लूट: चीन के औद्योगिक पैमाने पर दूरस्थ जल मत्स्यन वाले बेड़े टूना स्टॉक्स को समाप्त कर रहे हैं और तटीय राज्यों के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) का उल्लंघन कर रहे हैं, जिससे क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा को खतरा है और ऐसे तनाव बिंदु उत्पन्न हो रहे हैं जो स्थानीय समुद्री झड़पें उत्पन्न कर सकते हैं।
    • वर्ष 2025 के उपग्रह आँकड़ों से पता चला कि पश्चिमी हिंद महासागर में प्रतिवर्ष 600 से अधिक चीन के ट्रॉलर ऑपरेट करते हैं, जो प्राय: ‘गोइंग डार्क’ (AIS बंद) और स्टॉक्स का दोहन करते हैं, जिसके चलते भारत ने इन्फॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर (IFC-IOR) की निगरानी बढ़ा दी है।
      • बड़े पैमाने पर चीन ट्रॉलरों के अलावा, भारत पाल्क बे में श्रीलंका के साथ मत्स्यन को लेकर तीव्र विवाद का भी सामना कर रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति बुनियादी ढाँचे की संवेदनशीलता: बढ़ते समुद्र स्तर प्रमुख द्वीप साझेदारों (मालदीव, सेशेल्स) के अस्तित्व को ही खतरे में डाल रहे हैं, जिससे ‘जलवायु सुरक्षा’ संकट उत्पन्न होता है, जहाँ भारत को जनसंख्या प्रवासन संकट और कम ऊँचाई वाले एटोल्स पर स्थित रणनीतिक राडार स्टेशनों के नुकसान हेतु तैयारी करनी पड़ती है।
    • उदाहरण के लिये, मालदीव का भू-भाग विश्व में सबसे कम ऊँचाई वाला है, जहाँ 80 प्रतिशत से अधिक द्वीप सागरीय स्तर से 1 मीटर से भी कम ऊँचाई पर हैं।
    • भारत के भीतर भी रणनीतिक समुद्री बुनियादी ढाँचा जोखिम में है। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में कई प्रतिष्ठान और नौसेना हवाई अड्डे जैसे INS बाज़ (कैंपबेल बे) ऐसे क्षेत्रों में स्थित हैं जो तटीय कटाव तथा तूफानी लहरों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, जिससे सैन्य तैयारी व क्षेत्रीय निगरानी क्षमता दोनों खतरे में पड़ सकते हैं।

भारत अपने रणनीतिक हितों की रक्षा हेतु हिंद महासागर क्षेत्र में कौन-कौन से कदम उठा सकता है?

  • SAGAR एवं विकासात्मक सुरक्षा को मज़बूत करना: भारत अपनी SAGAR दृष्टि को और मज़बूर कर सकता है, यदि वह IOR देशों को गश्ती जहाज़, तटीय राडार नेटवर्क और आपदा-प्रतिक्रिया प्रणालियों जैसी क्षमता निर्माण सहायता को प्राथमिकता दे।
    • पोर्ट्स, नवीकरणीय ऊर्जा नेटवर्क और मत्स्य पालन के लिये लाइन ऑफ क्रेडिट के माध्यम से विकास-आधारित सुरक्षा छोटे द्वीपीय देशों के साथ विश्वास और सहयोग बढ़ाने में सहायक होती है।
    • बाहरी शक्तियों पर उनकी निर्भरता कम करके, भारत एक स्थिर और भारत-केंद्रित सुरक्षा वातावरण को सुदृढ़ करता है।
      • यह नीति नेबरहुड फर्स्ट दृष्टिकोण को भी मज़बूत करती है और सामूहिक रूप से भारत की नेट सुरक्षा प्रदाता के रूप में भूमिका को बढ़ाती है।
  • “मिनिलेटरल” सुरक्षा ढाँचों को संस्थागत बनाना: व्यापक सहमति वाले मंचों पर केवल निर्भर रहने के बजाय, भारत को कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (CSC) को एक औपचारिक संधि-आधारित संगठन में बदलना चाहिये, जिसमें एक स्थायी सचिवालय और समर्पित बजट हो।
    • यह एक “इच्छुक देशों का गठबंधन” स्थापित करता है, जो तेज़ी से खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त गश्त संचालित करने में सक्षम होता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे को बाहरी शक्तियों के वेटो (Vetoes) से सुरक्षित रखा जा सकता है और छोटे पड़ोसी देशों को भारत-नेतृत्व वाले समुद्री अंतर-संचालन ढाँचे में मज़बूती से शामिल किया जा सकता है।
  • सर्व-क्षेत्रीय अंडरवॉटर डोमेन अवेयरनेस (UDA): शत्रुतापूर्ण पनडुब्बियों द्वारा किये जाने वाले “सब-सर्फेस घेराव” का मुकाबला करने के लिये भारत को इंडियन ओशन के समुद्रतल पर साउंड सर्विलांस सिस्टम (SOSUS) की शृंखला तैनात करनी चाहिये और मित्रवत तटीय देशों के साथ मिलकर हाइड्रो-एकॉस्टिक सेंसर स्थापित करने चाहिये।
    • यह ध्यान को पारंपरिक सतही निगरानी से हटाकर “पारदर्शी महासागर” क्षमताओं पर केंद्रित करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी गुप्त प्रतिद्वंद्वी हिंद महासागर की थर्मल लेयर्स का मानचित्रण वास्तविक समय में ट्रैक, लक्षित और निरुत्साहित किये बिना नहीं कर सके।
  • “डिजिटल ओशन” और महत्वपूर्ण अवसंरचना सुरक्षा: भारत को IOR के लिये एक नया “सबमरीन केबल सुरक्षा प्रोटोकॉल” शुरू करना चाहिये, जिसमें समुद्र के नीचे आने वाले डेटा केबलों को सीमाओं के बराबर महत्त्वपूर्ण सार्वभौमिक संपत्ति माना जाए।
    • इन डिजिटल जीवनरेखाओं की सुरक्षा हेतु ऑटोनोमस अंडरवॉटर व्हीकल्स (AUVs) को तैनात करके और छोटे द्वीपीय देशों के केबलों के लिये “सुरक्षा गारंटी” प्रदान करके, भारत “डेटा बंधक” जैसी परिस्थितियों को रोक सकता है तथा क्षेत्र की डिजिटल संप्रभुता के संरक्षक के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत कर सकता है।
  • डीप-सी “ब्लू इकोनॉमी” एकीकरण: भारत को अपनी डीप-सी माइनिंग अन्वेषण लाइसेंस को क्रियान्वित करना चाहिये, जिससे एक “IOR रियर अर्थ सप्लाई चेन” का निर्माण हो सके और तटीय देशों को सतत संसाधन निष्कर्षण के लिये तकनीकी हस्तांतरण प्रदान किया जा सके।
    • यह आर्थिक एकीकरण शोषणात्मक संसाधन निष्कर्षण मॉडलों के लिये एक व्यवहार्य और पारदर्शी विकल्प प्रदान करता है, भारत को कोबाल्ट तथा निकल जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुँच सुरक्षित करता है एवं क्षेत्र के आर्थिक भविष्य को भारत की औद्योगिक विकास प्रणाली के साथ घनिष्ठ रूप से जोड़ता है।
  • सामान्यीकृत “लॉफेयर” और हाइड्रोग्राफिक कूटनीति: आगामी इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) की अध्यक्षता के रूप में भारत को एक “सागरीय वैज्ञानिक अनुसंधान आचार संहिता” स्थापित करनी चाहिये, जो स्पष्ट रूप से नागरिक विज्ञान के रूप में छुपे हुए ड्यूल-यूज सैन्य सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध लगाना।
    • हाइड्रोग्राफिक डेटा संग्रह के लिये कानूनी मानकों को मानकीकृत करके और अपने सर्वेक्षण संसाधन पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराकर, भारत विदेशी जासूसी जहाज़ों को कानूनी रूप से अवैध ठहरा सकता है तथा क्षेत्र में “वैज्ञानिक पारदर्शिता” पर अपना नैरेटिव पुनः स्थापित कर सकता है।
  • समुद्री अवसंरचना और रणनीतिक द्वीप विकास: सागरमाला और तटीय लॉजिस्टिक्स के त्वरित विकास से भारत की समुद्री प्रतिस्पर्द्धा क्षमता और व्यापार एकीकरण में मज़बूती आती है।
    • अंडमान और निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीपों का अत्यधिक रणनीतिक महत्त्व है तथा ये रक्षा, पर्यटन एवं कनेक्टिविटी के लिये ड्यूल-यूज़ हब के रूप में कार्य कर सकते हैं।
    • उन्नत द्वीपीय अवसंरचना निगरानी और त्वरित-प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाती है।
      • यह स्थानीय समुदायों के आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करता है। समग्र रूप से मज़बूत समुद्री अवसंरचना भारत की हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में रणनीतिक गहराई को बढ़ाती है।

निष्कर्ष: 

भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) में रणनीतिक हित पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गए हैं। कोऑपरेटिव सिक्योरिटी कोएलिशन (Cooperative Security Coalition- CSC) एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में उभर रहा है, जो सहयोगात्मक सुरक्षा व्यस्था को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। जैसे-जैसे महाशक्तियों की प्रतिस्पर्द्धा गहरी होती जा रही है, भारत को रणनीतिक भरोसा बनाए रखने हेतु   कठोर समुद्री क्षमता को विकासात्मक साझेदारियों का संयोजन करना होगा। अपने हितों की रक्षा के लिये मिनिलेटरल ढाँचों को मज़बूत करना, तकनीकी प्रभुत्व स्थापित करना और जलवायु-लचीला अवसंरचना विकसित करना महत्त्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ अब पारंपरिक समुद्री शक्ति के साथ-साथ विकासात्मक साझेदारियों और मिनिलेटरल ढाँचों पर भी निर्भर हैं। उभरती सुरक्षा चुनौतियों और एक नेट सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की विकसित होती भूमिका के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ): 

1. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये हिंद महासागर क्षेत्र क्यों महत्त्वपूर्ण है?
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ प्रमुख समुद्री संचार मार्ग (Sea Lines of Communication – SLOC) स्थित हैं, जिनसे भारत के ऊर्जा आयात, व्यापार मार्ग और नौसैनिक अभियानों का संचालन होता है। यह क्षेत्र भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और क्षेत्रीय प्रभावशीलता को भी आकार देता है।

2. कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (Colombo Security Conclave- CSC) क्या है और यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
CSC एक क्षेत्रीय सुरक्षा समूह है जिसका नेतृत्व भारत करता है और जो समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी सहयोग, साइबर सुरक्षा और तस्करी जैसे मुद्दों पर केंद्रित है। यह भारत-केंद्रित सहयोग को मज़बूत करता है और IOR में बाहरी सैन्य प्रभाव को संतुलित करने में मदद करता है।

3. हिंद महासागर क्षेत्र में चीन भारत को कैसे चुनौती दे रहा है?
चीन ग्रे-ज़ोन रणनीतियाँ, ड्यूल-यूज़ पोर्ट्स, सागर तल मानचित्रण के लिये अनुसंधान जहाज़, अवैध, अप्रबंधित और अनियमित (IUU) मछली पकड़ना तथा पनडुब्बी तैनाती का उपयोग करके लंबे समय तक रणनीतिक उपस्थिति स्थापित करता है, जो भारत की समुद्री प्रभुसत्ता के लिये खतरा पैदा करती है।

4. हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति क्या भूमिका निभाती है?
यह द्वीपीय देशों के साथ कूटनीतिक, विकासात्मक और सुरक्षा साझेदारियों को स्थापित करता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित होती है तथा छोटे देशों को बाहरी शक्तियों पर निर्भर होने से रोका जा सकता है।

5. भारत IOR में अपनी समुद्री क्षमताओं को कैसे मज़बूत कर रहा है?
भारत अपनी नौसेना का आधुनिकीकरण कर रहा है, निगरानी नेटवर्क का विस्तार कर रहा है, डीप-सी मिशन (समुद्रयान) को सक्रिय कर रहा है, ऑपरेशन संकल्प जैसी अभियानों के माध्यम से SLOCs की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है और पूरे क्षेत्र में अंडरवॉटर डोमेन अवेयरनेस को बढ़ा रहा है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत निम्नलिखित में से किसका/किनका सदस्य है? (2015)  

  1. एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन)
  2.  दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स)
  3.  पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2  

(b) केवल 3  

(c) 1, 2 और 3  

(d) भारत इनमें से किसी का भी सदस्य नहीं है  

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न.1 भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)

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