दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स



अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-रूस संबंधों का पुनर्निर्धारण

  • 05 Dec 2025
  • 159 min read

यह एडिटोरियल 05/12/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “For India-Russia partnership, Moscow must do its fair share” पर आधारित है। यह लेख भारत-रूस संबंधों के स्थायी महत्त्व को रेखांकित करता है, जिसकी पुष्टि यूक्रेन संघर्ष के भू-राजनीतिक तनाव के बावजूद पुतिन की यात्रा से हुई है। इसमें तर्क दिया गया है कि साझेदारी को व्यावहारिक रूप से विकसित किया जाना चाहिये ताकि भारत इस रणनीतिक बंधन को बनाए रखते हुए रूस और पश्चिम, दोनों के साथ संबंधों में संतुलन बना सके।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा दशकों पुराने संबंधों की एक महत्त्वपूर्ण पुष्टि है जिसने वैश्विक उथल-पुथल का सामना किया है। यद्यपि यूक्रेन संघर्ष ने भारत की कूटनीतिक संतुलन-नीति को अवश्य जटिल बनाया है, पर इसने यह भी स्पष्ट किया है कि नई दिल्ली रणनीतिक स्वायत्तता को सुदृढ़ रखने तथा अपने विश्वसनीय साझेदारों के साथ संबंधों को पोषित करने के लिये प्रतिबद्ध है। रक्षा और ऊर्जा सहयोग में रूस भारत का एक महत्त्वपूर्ण एवं अपरिहार्य साझेदार बना हुआ है और दोनों देशों के लिये इस संबंध का पारस्परिक मूल्य स्पष्ट है। आगे की चुनौती इस साझेदारी की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाने में नहीं बल्कि इसे समकालीन वास्तविकताओं के अनुरूप ढालने में निहित है, जहाँ भारत रूस और पश्चिम दोनों के साथ संतुलित तथा अर्थपूर्ण रूप से जुड़ा रहे। पारस्परिक सद्भाव एवं व्यवहारिकता के आधार पर भारत और रूस वर्तमान जटिलताओं को साध सकते हैं तथा अपनी रणनीतिक साझेदारी की मूल शक्तियों को दोनों के हित में संरक्षित रख सकते हैं।

भारत और रूस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • ररक्षा सहयोग: खरीदार–विक्रेता मॉडल से संयुक्त उत्पादन की ओर: रक्षा साझेदारी संरचनात्मक रूप से मेक इन इंडिया और प्रौद्योगिकी अंतरण की ओर स्थानांतरित हो गई है, ताकि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित हो सके तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखला अवरोधों के बीच युद्ध-कुशलता बनी रहती है।
    • सीधे रक्षा-खरीद के स्थान पर सह-विकास केंद्रित इस मॉडल से पश्चिमी प्रतिबंधों के जोखिम में कमी आएगी और भारतीय शस्त्रागार के रूसी मूल के उपकरणों की दीर्घकालिक अनुरक्षण-क्षमता सुनिश्चित होती है।
    • RD-191M सेमी-क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी अंतरण के लिये वर्ष 2025 का सौदा और शेष S-400 ट्रायम्फ रेजिमेंट्स (5.43 बिलियन डॉलर मूल्य) की जारी आपूर्ति-प्रक्रिया, केवल बिक्री से परे इस गहन तकनीकी एकीकरण को रेखांकित करती है। 
  • ऊर्जा सुरक्षा-रणनीतिक हाइड्रोकार्बन संरेखण: भारत ने वैश्विक मुद्रास्फीति से अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये रूस से प्राप्त रियायती कच्चे तेल का सक्रिय रूप से लाभ उठाया है, जिससे भू-राजनीतिक दबाव के बावजूद, रूस एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा-आपूर्तिकर्त्ता में बदल गया है।
    • अब सहयोग रूसी फार-ईस्ट में दीर्घकालिक निवेशों की ओर विस्तारित हो रहा है जिसके माध्यम से भारत इस्पात-उद्योग की आवश्यकता अनुसार इक्विटी ऑयल और कोकिंग कोल परिसंपत्तियाँ सुरक्षित कर रहा है।
    • वर्ष 2024–25 में रूस भारत का शीर्ष तेल-आपूर्तिकर्त्ता बना रहा तथा द्विपक्षीय व्यापार 68.7 अरब डॉलर (वित्त वर्ष 2025) के अभूतपूर्व स्तर पर पहुँचा।
  • संपर्क तंत्र– भू-अर्थव्यवस्था उन्मुख समुद्री गलियारे: दोनों देश अस्थिर स्वेज़ चैनल की अनिश्चितता को दरकिनार करते हुए चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मेरीटाइम कॉरिडोर (CVMC) जैसे नए लॉजिस्टिक मार्गों को क्रियान्वित कर रहे हैं जिससे परिवहन-खर्च घटता है तथा एक प्रत्यक्ष ऊर्जा पुल निर्मित होता है।
    • यह रणनीतिक विविधीकरण आवागमन के समय को काफी कम करता है जिससे व्यापारिक दक्षता बढ़ती है और भारत आर्कटिक तथा प्रशांत संसाधन-नेटवर्क से अधिक घनिष्ठ रूप से जुड़ता है।
    • CVMC को नवंबर 2024 में परिचालित घोषित किया गया जिसने यात्रा-समय को 40 दिनों से घटाकर 24 दिन कर दिया (लगभग 40 प्रतिशत कमी) और दूरी को लगभग 5,600 नौटिकल माइल कर दिया जो यूरोपीय मार्ग की तुलना में काफी कम है।
  • परमाणु ऊर्जा-स्वच्छ ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी समन्वय: असैन्य परमाणु सहयोग भारत–रूस साझेदारी का सर्वाधिक ठोस और उच्च-तकनीकी क्षेत्र है जो भारत के नेट-ज़ीरो लक्ष्यों के लिये बड़े पैमाने के परमाणु रिएक्टरों के निर्माण द्वारा आधार प्रदान करता है जिन पर प्रायः पश्चिमी देशों द्वारा लगाए जाने वाले कठोर दायित्व नहीं होते।
    • यह सहयोग स्थिर है और इसका विस्तार हो रहा है तथा रूस ही एकमात्र ऐसा देश है जो वर्तमान में भारत में परमाणु संयंत्र बना रहा है।  
    • हाल ही में रूस की राज्य-नियंत्रित परमाणु निगम ने तमिलनाडु स्थित कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के तीसरे रिएक्टर के प्रारंभिक ईंधन-लोडिंग हेतु प्रथम खेप प्रदान की है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र- उच्च स्तरीय प्रणोदन प्रौद्योगिकी: अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग अब मानव अंतरिक्ष उड़ान तथा क्रायोजेनिक प्रणोदन जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों तक विस्तारित हो गया है जिससे भारत के महत्त्वाकांक्षी गगनयान मिशन के महत्त्वपूर्ण तकनीकी अंतर को भरा जा रहा है।
    • यह क्षेत्र विश्वास-आधारित सहयोग का उदाहरण है, क्योंकि रूस अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन जैसी विशिष्ट प्रौद्योगिकियाँ प्रदान करता है, जिन्हें अन्य अंतरिक्ष शक्तियों द्वारा शायद ही कभी साझा किया जाता है।
    • भारत की अभूतपूर्व मानव अंतरिक्ष उड़ान पहल, गगनयान के लिये अंतरिक्ष यात्रियों को रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में व्यापक प्रशिक्षण दिया गया।
  • उर्वरक सुरक्षा-कृषि आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता: रूस भारत के लिये मृदा पोषक तत्त्वों का निर्णायक आपूर्तिकर्त्ता बनकर उभरा है, जो भारतीय कृषि को वैश्विक उर्वरक मूल्य उथल-पुथल से प्रभावी रूप से सुरक्षित रखता है तथा 1.4 बिलियन लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 
    • वैश्विक गैस कीमतों में अस्थिरता को देखते हुए यह विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला महत्त्वपूर्ण है, जिसका घरेलू उर्वरक उत्पादन लागत पर सीधा प्रभाव पड़ता है। 
    • वर्ष 2024–25 में रूस ने भारत के मिश्रित उर्वरकों का 90 प्रतिशत से अधिक निर्यात किया और अगस्त वर्ष 2025 में हुई उच्च-स्तरीय वार्ताओं (IRIGC-TEC) में DAP तथा यूरिया की दीर्घकालिक आपूर्ति को सुनिश्चित करने पर बल दिया गया जिससे भारत की सब्सिडी व्यय-रचना स्थिर रह सके।
  • व्यापार-निपटान तथा वित्तीय पारस्परिकता: प्रतिबंधों से बचने और व्यापार की गति को बनाए रखने के लिये, दोनों देश रुपया-रूबल भुगतान तंत्र को तीव्रता से परिष्कृत कर रहे हैं तथा भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) मुक्त व्यापार समझौते की संभावना तलाश रहे हैं। 
    • अब प्राथमिकता व्यापार असंतुलन को दूर करने पर है जिसके लिये रूस के पास संचित रुपये को भारत के अवसंरचना परियोजनाओं तथा सरकारी प्रतिभूतियों में पुनर्निवेश करने की रूपरेखा आगे बढ़ाई जा रही है।
    • भारत और रूस ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रुपया-रूबल भुगतान बढ़ाया तथा वर्ष 2030 तक 100 अरब डॉलर के व्यापार लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • राजनयिक विश्वास–व्यवहारिक सहयोग से आगे: द्विपक्षीय संबंध केवल लेन-देन आधारित नहीं हैं, बल्कि यह संबंध उच्च-स्तरीय नेतृत्व-आधारित विश्वास की नींव पर टिके हैं, जो मानक राजनयिक जुड़ाव से परे पश्चिमी दबाव के विरुद्ध भू-राजनीतिक स्थिरता के रूप में कार्य करता है तथा बहुध्रुवीय व्यवस्था में रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है। 
    • यह व्यक्तिगत कूटनीति सुनिश्चित करती है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रशासनिक जड़ता पर हावी है तथा बाह्य प्रतिबंधों और वैचारिक दबाव के बावजूद साझेदारी को निरंतर बनाए रखती है। 
    • इस विशिष्ट समन्वय का उदाहरण देते हुए, भारतीय प्रधानमंत्री ने हाल ही में राष्ट्रपति पुतिन का हवाई अड्डे पर व्यक्तिगत रूप से स्वागत करने के लिये सख्त राजनयिक प्रोटोकॉल को तोड़ा, जो एक दुर्लभ संकेत है कि वैश्विक अलगाववादी आख्यानों के बावजूद रूस शीर्ष स्तर की प्राथमिकता बना हुआ है। 

भारत और रूस के बीच मतभेद के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • रक्षा आपूर्ति शृंखला में व्यवधान - क्षमता अंतराल: यूक्रेन में चल रहे युद्ध ने महत्त्वपूर्ण रक्षा अनुबंधों को पूरा करने की रूस की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे भारतीय सशस्त्र बलों के लिये क्षमता शून्यता उत्पन्न हो गई है तथा नई दिल्ली को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ रही है। 
    • यह अविश्वसनीयता चीन के विरुद्ध भारत की परिचालन तत्परता को खतरे में डालती है, क्योंकि रूस अपनी अग्रिम पंक्ति की आवश्यकताओं को निर्यात प्रतिबद्धताओं से ऊपर रख रहा है, जिससे महत्त्वपूर्ण वायु रक्षा और नौसैनिक प्लेटफॉर्मों में विलंब होता है। 
    • इसी कारण S-400 सिस्टम की शेष दो रेजिमेंटों को 2026 तक विलंबित कर दिया गया है तथा अकुला-श्रेणी की परमाणु पनडुब्बी का लगभग तीन अरब डॉलर मूल्य वाला पट्टा अब वर्ष 2028 तक स्थगित कर दिया गया है जो मूल समय-सीमा से कई वर्ष पीछे है।

व्यापार असंतुलन - एकतरफा आर्थिक मार्ग: द्विपक्षीय व्यापार अस्थिर रूप से असंतुलित हो गया है, जिससे भारत वस्तुतः रूस के लिये पूँजी-निर्यातक की भूमिका निभा रहा है जबकि रूस भारतीय औषधियों या विनिर्माण उत्पादों के लिये अपने बाज़ार में समान अवसर प्रदान नहीं करता।

यह संरचनात्मक कमी साझेदारी की आर्थिक तर्कशीलता को कमज़ोर करती है क्योंकि रूस उच्च-मूल्य वाले उत्पाद चीन से आयात करता जा रहा है जबकि भारत से की जाने वाली उसकी खरीद बहुत नगण्य है। 

आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2025 में भारत का रूस को निर्यात केवल 4.88 अरब डॉलर था जबकि आयात 63.84 अरब डॉलर तक पहुँच गया।

सामरिक विचलन - जूनियर पार्टनर सिंड्रोम: भारत रूस की चीन पर बढ़ती निर्भरता को चिंता की दृष्टि से देखता है, क्योंकि यह आशंका प्रबल हुई है कि रूस बीजिंग का जूनियर पार्टनर बनता जा रहा है। इससे यह संभावना उत्पन्न होती है कि संभावित चीन–भारत संघर्ष की स्थिति में मॉस्को की तटस्थता कमज़ोर पड़ेगी।

इस भू-राजनीतिक पुनर्संरचना से यूरेशियाई भू-भाग में भारत के लिये रणनीतिक संतुलनकर्त्ता के रूप में रूस की उपयोगिता कमजोर होने का खतरा है।

वर्ष 2024 में चीन–रूस व्यापार 244.8 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुँच गया तथा रूस की चीनी दोहरे-उपयोग प्रौद्योगिकी पर बढ़ती निर्भरता ने उसे बीजिंग के रणनीतिक हितों के प्रति अधिक से अधिक कृतज्ञ बना दिया है।

भुगतान संकट: रुपया जाल तंत्र: प्रतिबंधों के कारण मानक बैंकिंग चैनलों के निलंबन से भुगतान संकट उत्पन्न हो गया है, जहाँ अरबों डॉलर के भुगतान या तो अटक गए हैं या उनका निपटान करना मुश्किल हो रहा है।

रूसी निर्यातक अस्थिर भारतीय रुपए को संचित करने में अनिच्छुक हैं, जिसके कारण विनिमय तंत्र पर घर्षण उत्पन्न हो रहा है तथा भविष्य में रक्षा और ऊर्जा अनुबंधों में रुकावट आ रही है। 

भारत के साथ असंतुलित व्यापार संबंध के कारण रूस को प्रत्येक महीने 1 बिलियन डॉलर तक की राशि रुपए में जमा करनी पड़ रही है।

ऊर्जा अर्थव्यवस्था– रणनीतिक रियायतों का क्षरण: रियायती रूसी कच्चे तेल से मिलने वाला आर्थिक लाभ अब तेज़ी से घट गया है क्योंकि रियायतें संकीर्ण हो रही हैं और टैंकर एवं बीमा पर पश्चिमी प्रतिबन्ध कड़े होते जा रहे हैं, जिससे भारत के लिये कूटनीतिक लागत बढ़ रही है, जबकि पहले उसे उच्च आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा था। 

इससे भारत पर कूटनीतिक दबाव बढ़ा है जबकि आर्थिक लाभ पहले जैसा नहीं रहा। मध्य-पूर्वी कच्चे तेल की तुलना में रूसी कच्चे तेल का मूल्य-अंतर कम होने के कारण भारत के लिये पश्चिमी दबाव झेलने की प्रोत्साहन-शक्ति भी घट रही है। 

पिछले लगभग तीन वर्षों में भारत ने रूसी तेल से 12.6 अरब डॉलर की बचत की थी, परंतु वर्ष 2024–25 में यह रियायत घटकर औसतन केवल 2.3 डॉलर प्रति बैरल रह गई।

मानवीय तनाव- रूसी सेना में भारतीय नागरिक: रूसी सेना में भारतीय नागरिकों की भर्ती एक नयी कूटनीतिक चुनौती बन गई है। कई मामलों में यह भर्ती गलत बहानों के आधार पर की गई जिससे हताहतों की घटनाएँ हुईं और भारत में सार्वजनिक असंतोष बढ़ा। 

इस मुद्दे ने लोगों के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है और भारतीय विदेश मंत्रालय को तत्काल रिहाई के लिये सख्त मांग जारी करने के लिये विवश किया है।

विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि नवंबर 2025 तक रिहाई के वादे के बावजूद 44 भारतीय अभी भी रूसी सेना में सेवारत हैं।

क्षेत्रीय तनाव-पाकिस्तान कारक: भारत की चिंताओं के बावजूद रूस पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है जिसमें हथियारों की बिक्री की संभावनाएँ तथा संयुक्त सैन्य अभ्यास शामिल हैं। 

दक्षिण एशिया में अपनी साझेदारियों को विविधतापूर्ण बनाने की रूस की यह रणनीति नई दिल्ली को असहज करती है क्योंकि पाकिस्तान की सैन्य क्षमता में किसी भी वृद्धि को भारत अपनी सुरक्षा के लिये सीधा खतरा मानता है। 

सितंबर 2025 में रूस और पाकिस्तान ने द्रुज़्बा-2025 संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किया जबकि भारत ने इस पर अप्रत्यक्ष असंतोष व्यक्त किया था।

रूस के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

विनिर्माण के लिये संप्रभु मूल्य शृंखला को संस्थागत बनाना: भारत को एक स्वायत्त मूल्य शृंखला पहल का प्रस्ताव करना चाहिये जो साधारण व्यापार से आगे बढ़कर गहन औद्योगिक एकीकरण की ओर अग्रसर हो तथा विशेष रूप से उन क्षेत्रों को लक्षित करे जहाँ रूस को पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है।

एयरोस्पेस पुर्जों और प्रीसिज़न इंजीनियरिंग जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये भारत में विशेष विनिर्माण क्षेत्र स्थापित करने के लिये रूसी कंपनियों को आमंत्रित करके, भारत रूस की आपूर्ति शृंखला संकट को हल करते हुए घरेलू औद्योगिक विकास के लिये फँसे रुपये के भंडार का उपयोग कर सकता है।

इससे एक मेक इन इंडिया के परस्पर लाभकारी चक्र का निर्माण होता है, जो रूसी रख-रखाव आवश्यकताओं और वैश्विक निर्यात बाज़ारों दोनों की पूर्ति करता है।

रूसी फार-ईस्ट के लिये कुशल प्रवासन गलियारे का परिचालन:  रूस में तीव्र जनसंख्या-ह्रास और श्रम-अभाव को देखते हुए भारत को रूसी सुदूर पूर्व पर केंद्रित एक औपचारिक, राज्य-समर्थित कुशल प्रवासन गलियारा स्थापित करने की दिशा में पहल करनी चाहिये।

इस उपाय में व्यावसायिक मानकों में सामंजस्य स्थापित करना तथा साइबेरियाई बुनियादी अवसंरचना के विकास में काम करने के लिये भारतीय इंजीनियरों, निर्माण श्रमिकों और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिये विशेष वीज़ा व्यवस्था बनाना शामिल होगा।

इससे न केवल रूस का घरेलू दबाव कम होगा, बल्कि रणनीतिक रूप से चीनी प्रभाव वाले क्षेत्र में भारतीय जनांकिकीय प्रभाव भी स्थापित होगा।

रुपया-रूबल पुनर्निवेश संधि की स्थापना: भारत को एक औपचारिक पुनर्निवेश संधि की संरचना विकसित करनी चाहिये, जिसके तहत रूस के व्यापारी अधिशेष रुपये विशेष अवसंरचना बॉण्डों और कॉरपोरेट ऋण-पत्रों में निवेश किये जायें।

वोस्ट्रो खातों में धनराशि को निष्क्रिय छोड़ने के बजाय, यह तंत्र रूस के व्यापार अधिशेष को भारतीय बंदरगाहों, रिफाइनरियों और राजमार्गों में दीर्घकालिक इक्विटी हिस्सेदारी में परिवर्तित कर देगा।

यह वित्तीय इंजीनियरिंग अल्पकालिक भुगतान बाधा को दीर्घकालिक आर्थिक आधार में बदल देती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता में रूस का निहित स्वार्थ है।

आर्कटिक-उष्णकटिबंधीय समुद्री ग्रिड का सह-विकास: भारत को चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मेरीटाइम कॉरिडोर को केवल एक व्यापार मार्ग से आगे बढ़ाकर एक संयुक्त जहाज़ निर्माण और रसद ग्रिड बनाना चाहिये।

इसमें रूसी क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए भारतीय शिपयार्डों में आइस-क्लास व्यापारी जहाज़ों का सहयोगात्मक निर्माण शामिल है, जिसे विशेष रूप से उत्तरी समुद्री मार्ग के लिये डिज़ाइन किया गया है।

भारत की उष्णकटिबंधीय समुद्री विशेषज्ञता को रूस के ध्रुवीय नौवहन प्रभुत्व के साथ एकीकृत करके, दोनों देश एक नए, प्रतिबंध-रहित वैश्विक रसद मार्ग को नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे पारंपरिक पश्चिमी-नियंत्रित  प्रतिबंध-प्रतिरोधी वैकल्पिक समुद्री धुरी विकसित होगी।

अतिआवश्यक प्रौद्योगिकियों के लिये स्वतंत्र अनुसंधान क्षेत्र का निर्माण: दोनों देशों को विशेष रूप से क्वांटम कंप्यूटिंग, उच्च-श्रेणी धातु विज्ञान और नागरिक परमाणु प्रणोदन जैसी अस्वीकृत प्रौद्योगिकियों के लिये एक संयुक्त अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना चाहिये।  

उन क्षेत्रों में संसाधनों को एकत्रित करके, जहाँ दोनों को संभावित या वास्तविक पश्चिमी प्रौद्योगिकी अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है, वे एक महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी स्वायत्त क्षेत्र बना सकते हैं जो वैश्विक IP व्यवस्थाओं से स्वतंत्र रूप से संचालित होता है।

यह उपाय तकनीकी स्वायत्तता को सुरक्षित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि अंतरिक्ष और रक्षा में रणनीतिक प्रगति बाह्य भू-राजनीतिक दबाव से मुक्त रहे।

तृतीय-बाज़ार रक्षा निर्यात संघ का शुभारंभ: भारत को अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया को लक्ष्य करते हुए रक्षा संबंधों को संयुक्त निर्यात संघ में परिवर्तित करने के लिये प्रयास करना चाहिये।

ब्रह्मोस मॉडल का उपयोग करते हुए, इस उपाय में भारतीय सॉफ्टवेयर और रूसी हार्डवेयर का उपयोग करके तृतीय देशों में सोवियत युग के प्लेटफॉर्मों को पुनःस्थापित एवं उन्नत करना शामिल होगा।

यह रणनीति वैश्विक स्तर पर साझेदारी को मुद्रीकृत करती है, जिससे भारत विश्व भर में रूसी मूल के उपकरणों के लिये अनुरक्षण केंद्र बन जाता है, जिससे रूसी रक्षा उद्योग व्यवहार्य बना रहता है तथा भारत की कूटनीतिक अभिगम्यता का विस्तार होता है। 

ऊर्जा इक्विटी अधिग्रहण रणनीति तैयार करना: स्पॉट मार्केट से तेल खरीद पर निर्भर रहने के बजाय, भारत को रूस के प्रमुख तेल और गैस क्षेत्रों में अपस्ट्रीम हिस्सेदारी के लिये व्यापार अधिशेष का विनिमय करके सक्रिय रूप से ऊर्जा इक्विटी रणनीति का पालन करना चाहिये।  

इस उपाय में वोस्तोक ऑयल या आर्कटिक LNG-2 जैसी परियोजनाओं में इक्विटी प्राप्त करना शामिल है, जिससे बाज़ार मूल्य के बजाय स्रोत पर ही ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो जाएगी।

इससे संबंध केवल व्यापारिक न रहकर दीर्घकालिक सामरिक संपत्ति-अधिकार संबंध में परिवर्तित होंगे और ऊर्जा आपूर्ति की वैश्विक अनिश्चितताओं का जोखिम कम होगा।

निष्कर्ष: 

भारत-रूस संबंध एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर हैं जहाँ ऐतिहासिक विश्वास को रणनीतिक यथार्थवाद के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे दोनों देश बदलते भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्यों का सामना कर रहे हैं, इस साझेदारी को गहन प्रौद्योगिकी, ऊर्जा एवं वित्तीय सहयोग के माध्यम से विकसित होने की आवश्यकता है। जैसा कि भारत के विदेश मंत्री ने ठीक ही कहा है, “भारत-रूस संबंध लंबे समय से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्थिरता का एक कारक रहे हैं और उनके विकास एवं प्रगति न केवल दोनों देशों के पारस्परिक हित में है, बल्कि विश्व के हित में भी है।”

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

“भू-राजनीतिक संरेखण में परिवर्तन और रूस की चीन पर बढ़ती निर्भरता के कारण भारत-रूस संबंधों की दृढ़ता की परीक्षा हो रही है।” इस बात का परीक्षण कीजिये कि उभरते मतभेद और नए अवसर किस प्रकार इस रणनीतिक साझेदारी को नया आकार दे रहे हैं।

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न: 

प्रश्न 1. 2025 में पुतिन की भारत यात्रा क्यों महत्त्वपूर्ण है?
पुतिन की यह यात्रा ऐसे समय में भारत-रूस संबंधों की पुनः पुष्टि कर रही है, जब यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंधों और वैश्विक भू-राजनीतिक परिवर्तनों ने रूस की वैश्विक स्थिति को प्रभावित किया है तथा रूस व पश्चिम के बीच भारत की संतुलन रणनीति को जटिल बना दिया है।

प्रश्न 2. रूस भारत के लिये एक अपरिहार्य साझेदार क्यों है?
रक्षा आपूर्ति, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, हाइड्रोकार्बन, उर्वरक और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मेरीटाइम कॉरिडोर जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाओं जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में रूस भारत के लिये महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।

प्रश्न 3. आज भारत और रूस के बीच प्रमुख मतभेद क्या हैं?
प्रमुख मतभेदों में यूक्रेन युद्ध के कारण रक्षा आपूर्ति में विलंब, गंभीर रूप से व्यापार असंतुलन, रुपये-भुगतान की समस्या, चीन पर रूस की बढ़ती निर्भरता तथा रूसी सेना में भारतीय नागरिकों की भर्ती जैसे मुद्दे शामिल हैं।

प्रश्न 4. भारत रूस के साथ अपने संबंधों को किस प्रकार सुदृढ़ और आधुनिक बना सकता है?
भारत संप्रभु विनिर्माण मूल्य शृंखलाओं का निर्माण करके, रूसी सुदूर पूर्व के लिये एक कुशल प्रवास गलियारा बनाकर, रुपया-रूबल पुनर्निवेश संधि को क्रियान्वित करके, आर्कटिक-उष्णकटिबंधीय लॉजिस्टिक्स का सह-विकास करके तथा अस्वीकृत प्रौद्योगिकियों और रक्षा निर्यातों को संयुक्त रूप से आगे बढ़ाकर संबंधों को आगे बढ़ा सकता है।

प्रश्न 5. क्या भारत-रूस संबंध प्रासंगिकता खो रहे हैं?
भारत-रूस संबंध प्रासंगिकता नहीं खो रहे, बल्कि ये विकसित हो रहे हैं। चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन साझा रणनीतिक हित, रक्षा विरासत प्रणालियाँ, ऊर्जा पर परस्पर निर्भरता और दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तर्क यह सुनिश्चित करते हैं कि यह साझेदारी मूल्यवान बनी रहे, बशर्ते दोनों देश नई वैश्विक वास्तविकताओं के अनुकूल ढल जाएँ।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ ‘नाभिकीय क्षेत्र में सहयोग क्षेत्राें के प्राथमिकीकरण और कार्यान्वयन हेतु कार्य योजना’ नामक सौदे पर हस्ताक्षर किये हैं? (2019) 

(a) जापान

(b) रूस

(c) यूनाइटेड किंगडम

(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (b)


मेन्स 

प्रश्न 1. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है ? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)

close
Share Page
images-2
images-2