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भारतीय अर्थव्यवस्था

वर्ल्ड फूड इंडिया 2025

  • 30 Sep 2025
  • 95 min read

प्रिलिम्स के लिये: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार। 

मेन्स के लिये: खाद्य सुरक्षा एवं मूल्य संवर्द्धन, ग्रामीण रोज़गार और एमएसएमई विकास के लिये एक इंजन के रूप में खाद्य प्रसंस्करण। 

स्रोत: PIB 

चर्चा में क्यों? 

भारत के प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण कार्यक्रम, वर्ल्ड फूड इंडिया 2025 का उद्देश्य भारत को एक 'वैश्विक खाद्य केंद्र' के रूप में स्थापित करना है। इस कार्यक्रम का समापन 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर के साथ हुआ, जिसमें विभिन्न राज्यों में निवेश, नवाचारों और रोज़गार सृजन पर प्रकाश डाला गया। 

विश्व खाद्य भारत 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) द्वारा परिकल्पित WFI, भारत का प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण कार्यक्रम है। वर्ष 2017 में अपने पहले संस्करण के बाद, वर्ष 2023 में इसका दूसरा, वर्ष 2024 में इसका तीसरा और अब वर्ष 2025 में इसका चौथा संस्करण आयोजित किया गया है। 
  • इसने भारत को "विश्व की खाद्य टोकरी (Food Basket of the World)" के रूप में प्रदर्शित करने, निवेश को बढ़ावा देने, खेत से खाने तक के संबंधों को बढ़ाने, स्थायी खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहित करने और भारत की विविध खाद्य संस्कृति को उजागर करने के लिये अपना विकास किया है। 

world food india

core focus  pillars

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का परिदृश्य किस प्रकार है? 

  • खाद्य प्रसंस्करण: इसमें कच्चे कृषि, पशु या मत्स्य उत्पादों को उनके मूल भौतिक गुणों में परिवर्तन करके खाद्य, व्यावसायिक रूप से मूल्यवान तैयार या अर्द्ध-तैयार उत्पादों में बदलने की विधियाँ शामिल हैं। 
  • प्रसंस्करण के स्तर: 
    • प्राथमिक प्रसंस्करण: कृषि उत्पादों की बुनियादी सफाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग। 
    • द्वितीयक प्रसंस्करण: सामग्री को खाद्य उत्पादों में परिवर्तित करना (उदाहरण के लिये, गेहूँ को पीसकर आटा बनाना)। 
    • तृतीयक प्रसंस्करण: खाने के लिये तैयार खाद्य पदार्थ बनाना (जैसे, आटे से रोटी पकाना)। 
  • भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास:  भारत दूध, प्याज और दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है, तथा चावल, गेहूँ, गन्ना, चाय, फल और सब्जियाँ तथा अंडों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।  
  • भारत का कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात 2024-25 में 49.4 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का योगदान 20.4% होगा (2014-15 में 13.7% से बढ़कर)। इस क्षेत्र में पंजीकृत इकाइयों में 2.23 मिलियन और अपंजीकृत इकाइयों में 4.68 मिलियन लोग कार्यरत हैं। 
  • पंजीकृत खाद्य व्यवसाय संचालकों की संख्या 25 लाख से बढ़कर 64 लाख हो गई, जिसे 24 मेगा फूड पार्कों से सहायता मिली है।  
  • ऑपरेशन ग्रीन्स के अंतर्गत किए गए प्रयासों तथा कुल 225 अनुसंधान एवं विकास (R&D) परियोजनाओं के परिणामस्वरूप 20 पेटेंट और 52 व्यावसायिक प्रौद्योगिकियों का सृजन हुआ। 
  • भारत की पहल: 

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अवसर और चुनौतियाँ क्या हैं? 

अवसर

चुनौतियाँ

  • विस्तारित बाज़ार: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसका मूल्य वर्ष 2023 में 336 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा तथा वर्ष 2032 तक दोगुना होने का अनुमान है। 
    • यह विस्तार रोज़गार सृजन करता है, कृषि का मूल्यवर्द्धन करता है, तथा भारत की GDP को मज़बूत करता है। 

 

  • बुनियादी ढाँचे की कमी और कटाई के बाद होने वाले नुकसान: भारत में पर्याप्त कोल्ड चेन, भंडारण और परिवहन सुविधाओं का अभाव है, जिसके कारण लगभग 30% खाद्य सामग्री बर्बाद हो जाती है और हर वर्ष करीब ₹90,000 करोड़ रुपये के कटाई के बाद नुकसान होते हैं। 
  • शहरीकरण: बढ़ती शहरी जनसंख्या और व्यस्त जीवनशैली के चलते रेडी-टू-ईट, पैकेज्ड और सुविधाजनक खाद्य पदार्थों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है, जो वर्ष 2025 तक 12 लाख करोड़ रुपये को पार करने की संभावना है। यह स्थिति उत्पाद विविधीकरण और नई ब्रांडों के लिये व्यापक संभावनाएँ खोलती है। 

 

  • SME के लिये प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय बाधाएँ: छोटे और मध्यम उद्यम आधुनिक मशीनरी की उच्च लागत तथा ऋण तक सीमित पहुँच से जूझ रहे हैं। 
    • इससे उनकी उत्पादकता कम हो जाती है और बड़ी कंपनियों के मुकाबले उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता कमज़ोर हो जाती है। 

 

  • स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती और जैविक खाद्य पदार्थ: जैविक तथा पादप-आधारित उत्पादों की मांग में स्थिरता का योगदान है। अनुमान है कि वर्ष 2025 तक जैविक बाज़ार 75,000 करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा तथा उपभोक्ता इसके लिये ज़्यादा भुगतान करने को तैयार होंगे। 

 

 

  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: स्वचालन, AI, रोबोटिक्स और स्मार्ट पैकेजिंग को अपनाने से दक्षता और गुणवत्ता में बदलाव आ रहा है। 
    • भारतीय फूड टेक बाज़ार में यह बदलाव वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिये नए अवसर खोलता है।
  • कुशल कार्यबल की कमी और निम्न अनुसंधान एवं विकास (R&D): यह क्षेत्र कौशल अंतराल से जूझ रहा है, जहाँ खाद्य प्रौद्योगिकी में लाखों प्रशिक्षित श्रमिकों की मांग है। अनुसंधान एवं विकास में निम्न निवेश नवाचार और मूल्य-वर्द्धित  उत्पादों के विकास को सीमित करता है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) एवं ग्रामीण रोजगार: भारत में 6.3 करोड़ MSMEs हैं जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30% का योगदान देते हैं। PMFME जैसी योजनाएँ स्थानीय उद्यमिता को प्रोत्साहित करती हैं। 
    • यह किसानों को मूल्य शृंखला (Value Chain) में आगे बढ़ने में मदद करती हैं और ग्रामीण आजीविका को सहयोग प्रदान करती हैं। 
  • वैश्विक प्रसंस्कृत निर्यात में कम हिस्सेदारी: भारत के कृषि-निर्यातों में केवल 16% प्रसंस्कृत उत्पाद शामिल हैं, जबकि अमेरिका में यह 25% और चीन में 49% है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत की निर्यात क्षमता का अभी तक पूर्ण रूप से उपयोग नहीं हो पाया है।
  • गुणवत्ता-सम्बंधी बार-बार अस्वीकृति भारत की निर्यात साख को नुकसान पहुँचाती है। यूरोपीय संघ ने वर्ष 2024 में 527 उत्पादों में संदूषण पाया। साथ ही, भारतीय और वैश्विक मानकों के बीच सामंजस्य की कमी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा को और सीमित करती है।

कौन से उपाय भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को मज़बूत कर सकते हैं? 

  • क्लस्टर विकास: लागत में कटौती करने और ग्रामीण-शहरी संतुलन को बढ़ावा देने के लिये साझा बुनियादी ढाँचे (शीत भंडारण, प्रयोगशालाएँ, अपशिष्ट संयंत्र), सहायक उद्योगों (पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स) और निर्बाध परिवहन लिंक के साथ कृषि केंद्रों के पास एकीकृत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र स्थापित करना। 
  • तकनीक-संचालित आपूर्ति शृंखला: ट्रेसेबिलिटी के लिये ब्लॉकचेन का उपयोग, वास्तविक समय की निगरानी हेतु IoT, मांग के पूर्वानुमान के लिये AI तथा फसल मूल्यांकन के लिये ड्रोन/उपग्रह इमेजिंग का उपयोग करना, ताकि बर्बादी में कमी लाई जा सके और दक्षता में सुधार लाया जा सके। 
  • फसल चक्रों के अनुरूप क्षेत्र-विशेष ऋण योजनाएँ बनाना, लघु और मध्यम उद्यमों (SME) के लिये एक ऋण गारंटी कोष स्थापित करना तथा फूड-टेक क्षेत्र में निजी इक्विटी एवं वेंचर कैपिटल को आकर्षित करने हेतु कर प्रोत्साहन प्रदान करना। 
  • गुणवत्ता मानक: भारतीय मानदंडों को वैश्विक मानदंडों (Codex) के साथ सुसंगत बनाना, बाज़ार लाभ के साथ स्तरीय प्रमाणन लागू करना, मोबाइल परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करना तथा गुणवत्ता आधारित मूल्य निर्धारण को राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) से जोड़ना। 
  • विनियामक सरलीकरण: देरी को कम करने और अनुपालन लागत को घटाने के लिये एकल-खिड़की मंजूरी प्रणाली और एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म की स्थापना। 
  • निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र: प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं, देश-केंद्रित रणनीतियों और वास्तविक समय बाज़ार खुफिया प्रणाली के साथ निर्यात-विशिष्ट क्षेत्रों का विकास करना, वैश्विक प्रमुख कंपनियों को आकर्षित करने के लिये PLISFPI निधियों का पूर्ण उपयोग करना। 
  • अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा: खाद्य नवाचार प्रयोगशालाएँ स्थापित करना, अनुसंधान एवं विकास के लिये भारित कर छूट देना तथा विस्तार हेतु पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण तकनीकों का राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करना।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र 

1. वर्ल्ड फूड इंडिया (WFI) 2025 क्या है?
उत्तर: यह MoFPI (Ministry of Food Processing Industries) का प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य भारत को वैश्विक खाद्य हब के रूप में प्रदर्शित करना है। यह ₹1 लाख करोड़ से अधिक निवेश आकर्षित करने और “farm-to-fork” (खेती से थाली तक) कनेक्शन को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करता है।

2. भारत के लिये खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का महत्त्व क्या है?
उत्तर: यह क्षेत्र खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, मूल्य संवर्द्धन करने, ग्रामीण रोज़गार सृजित करने, MSME विकास को बढ़ावा देने और निर्यात (USD 49.4 अरब 2024–25 में) को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

3. खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने वाली प्रमुख सरकारी योजनाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: PLISFPI (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना – खाद्य प्रसंस्करण), PLISMBP (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना – कदन्न उत्पाद), PMKSY (प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना), PMFME (सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकरण योजना), खाद्य प्रसंस्करण में 100% FDI, मेगा फूड पार्क योजना

4. भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर: कटाई के बाद होने वाला नुकसान (~₹90,000 करोड़), अवसंरचना की कमी, SMEs के लिए क्रेडिट की बाधाएँ, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में कमज़ोरी

5. इस क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
उत्तर: क्लस्टर-आधारित ज़ोन का निर्माण, तकनीक-संचालित आपूर्ति श्रृंखलाएँ (AI, IoT, Blockchain), क्रेडिट सुधार, Codex-मानक गुणवत्ता सुनिश्चित करना, सिंगल-विंडो क्लियरेंस, अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा देना

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न. भारत सरकार मेगा फूड पार्क की अवधारणा को किस/किन उद्देश्य/उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है? (2011) 

  1. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्तम अवसंरचना सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु।  
  2. खराब होने वाले पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रसंस्करण करने और अपव्यय घटाने हेतु।  
  3. उद्यमियों के लिये उद्यमी और पारिस्थितिकी के अनुकूल आहार प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध कराने हेतु। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 

(b) केवल 1 और 2 

(c) केवल 2 और 3 

(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करके किसानों की आय में पर्याप्त वृद्धि कैसे की जा सकती है? (2020) 

प्रश्न. लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकार्यता के क्या कारण हैं? खाद्य प्रक्रमण इकाई गरीब किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने में किस प्रकार सहायक होगी? (2017)

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